Sambhav-2023

दिवस 26

प्रश्न- 1. अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? उल्लेख कीजिये कि दुर्गा पूजा को हाल ही में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में क्यों शामिल किया गया है? (250 शब्द)

प्रश्न- 2. भारत की अमूर्त और मूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये संवैधानिक, विधिक और संस्थागत उपाय क्या हैं?

08 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के बारे में बताइए।
  • दुर्गा पूजा को यूनेस्को की सूची में शामिल किये जाने के कारण और इसके शामिल होने के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • यूनेस्को के अनुसार, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से आशय ऐसी प्रथाएँ, अभिव्यक्तियाँ, ज्ञान और कौशल हैं जिन्हें किसी समुदाय, समूह तथा कभी-कभी व्यक्ति द्वारा अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचाना जाता है। यह "बढ़ते वैश्वीकरण के संदर्भ में सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने का एक महत्त्वपूर्ण कारक होने के साथ विभिन्न समुदायों की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के अंतर-सांस्कृतिक संवाद की समझ में सहायक है जिससे आपसी सम्मान और समन्वय को प्रोत्साहन मिलता है।

मुख्य भाग:

  • यूनेस्को ने विश्व में महत्त्वपूर्ण अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची का संकलन किया। वर्ष 2010 तक, इसके तहत दो सूचियों को संकलित किया गया:
  • मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची।
  • तत्काल सुरक्षा की आवश्यकता के आलोक में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची।
  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये यूनेस्को की अंतर-सरकारी समिति ने "कोलकाता की दुर्गा पूजा" को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया है। सूची में शामिल अन्य विरासत:
  • कुडियट्टम (संस्कृत नाट्यकला), रामलीला और वैदिक पाठ की परंपरा (2008)।
  • रम्मन (2009)
  • मुदियेट्टू, कालबेलिया और छऊ (2010)
  • लद्दाख का बौद्ध मंत्रोचार (2012)
  • संकीर्तन (2013)
  • पंजाब-ठठेरा धातु हस्तशिल्प (2014)
  • नवरोज और योग (2016)
  • कोलकाता में दुर्गा पूजा (2017)
  • कुंभ मेला (2021)।
  • इस सूची में "कोलकाता की दुर्गा पूजा" को शामिल करने के कारण निम्नलिखित हैं:
    • इससे दुर्गा पूजा मनाने वाले स्थानीय समुदायों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिसमें सभी पारंपरिक शिल्पकार, डिजाइनर, कलाकार और बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजक के साथ ही पर्यटक और आगंतुक आदि शामिल हैं।
      • बंगाली समुदाय न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर दुर्गा पूजा करते हैं
    • एक ही समय में पारंपरिक, समकालीन और जीवंतता का मिश्रण: यह न केवल अतीत से विरासत में मिली परंपरा है बल्कि यह समकालीन ग्रामीण और शहरी परंपरा भी है जिसमें विविध सांस्कृतिक समूह भाग लेते हैं।
    • समावेशिता: कोलकाता में दुर्गा पूजा इस बात का पर्याय नहीं है कि कुछ प्रथाएँ किसी संस्कृति के लिये विशिष्ट हैं या नहीं। यह सामाजिक सामंजस्य में योगदान देती है, पहचान और ज़िम्मेदारी की भावना को प्रोत्साहित करती है जो व्यक्तियों को एक या विभिन्न समुदायों का हिस्सा महसूस करने और बड़े पैमाने पर समाज का हिस्सा महसूस करने में सहायक है।
    • प्रतिनिधि: इसका आशय परंपराओं, कौशल और रीति-रिवाजों का ज्ञान बाकी समुदाय के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होना है।
    • समुदाय-आधारित: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को केवल तभी इस सूची में शामिल किया जाता है जब इसे संबंधित समुदायों, समूहों या व्यक्तियों द्वारा मान्यता दी जाती है और इसे प्रसारित किया जाता है।

निष्कर्ष:

  • कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची' में दिसंबर 2021 में भारत से 14 वीं प्रविष्टि के रूप में शामिल किया गया है। अधिकांश प्रमुख त्योहारों की तरह, दुर्गा पूजा सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है बल्कि यह पश्चिम बंगाल के लिये एक आर्थिक जीवन रेखा भी है।

उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत की सांस्कृतिक विरासत का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • भारत की अमूर्त और मूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये संवैधानिक, कानूनी, संस्थागत और नीतिगत/योजनागत संबंधी उपायों पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत ताज, अजंता और बौद्ध स्तूप जैसे स्मारकों और स्थापत्य कला के रुप में मूर्त और वैदिक मंत्रोच्चारण, चित्रकारी और नवरोज़ जैसे त्योहारों के रुप में अमूर्त विरासत से समृद्ध है। ये सांस्कृतिक विरासत, ज्ञान को विकसित करने/खोजने और भविष्य की पीढ़ियों के लिये इसे संरक्षित करने में पीढ़ियों के समर्पण का परिणाम हैं।

मुख्य भाग:

इन विरासत और परंपराओं को संरक्षित करने के लिये भारत सरकार द्वारा कई संवैधानिक, कानूनी, संस्थागत और नीतिगत/योजनागत संबंधी उपाय किये गए हैं।

संवैधानिक उपाय:

  • पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना और वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करना (अनुच्छेद 48 A)। उदाहरण के लिये, कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को के मिश्रित विश्व धरोहर स्थल के रुप में घोषित किया गया है।
  • कलात्मक या ऐतिहासिक स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की रक्षा करना, जिन्हें राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित किया गया है (अनुच्छेद 49)। जैसे- अजंता और एलोरा के ऐतिहासिक स्थल।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना (अनुच्छेद 51)। उदाहरण के लिये, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये यूनेस्को कन्वेंशन।
  • मातृभाषा में शिक्षा: भाषाई अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान कराने के लिये प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकरण को प्रयास करना चाहिये (अनुच्छेद 350- A भाग- XVII)।
    • यह भाषाई विविधता के रुप में अमूर्त संस्कृति को संरक्षित करने से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 51A के अनुसार, यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा:
    • अनुच्छेद 51A (f): देश की समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देना और संरक्षित करना।
    • अनुच्छेद 51A (g): जंगलों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना।

विधिक उपाय:

  • राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिये प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम (1958) को अधिनियमित किया गया है। जैसे- आगरा के ताजमहल का संरक्षण।
  • माल का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के द्वारा भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण के साथ इन्हें बेहतर सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर WTO समझौते द्वारा शासित और निर्देशित है।
  • इसके तहत चंदेरी फैब्रिक, मैसूर सिल्क, कुल्लू शॉल, तंजावुर पेंटिंग, लखनऊ जरदोज़ी, कश्मीर केसर और कश्मीर वॉलनट वुड कार्विंग जैसी विभिन्न मूर्त सांस्कृतिक विरासतों को संरक्षित किया गया है।

संस्थागत उपाय:

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में भारत में पुरातात्विक शोधों के लिये अग्रणी संस्था है।
    • इसके द्वारा प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों में संचित भौतिक और मूर्त विरासत का संरक्षण किया जाता है।
    • प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधान, ASI के मार्गदर्शक हैं। ASI के कार्यों को निर्देशित करने वाला एक और प्रमुख कानून पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 है।
  • भारतीय शिल्प परिषद एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत में हस्तशिल्प उद्योग को संरक्षित और विकसित करने के लिये गतिविधियों को बढ़ावा देता है। अखिल भारतीय शिल्प मेले के आयोजन के पीछे शिल्प मेला परिषद मुख्य निकाय है।
  • शिक्षा को संस्कृति से जोड़ने के लिये सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (CCRT) एक अग्रणी संस्थान है। यह भारत में क्षेत्रीय संस्कृतियों और भाषाओं की बहुलता के बारे में शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और गैर-शिक्षण/प्रशासनिक लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाता है।
  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में कार्यरत है। इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के संचालन के लिये स्थापित किया गया था। इसके द्वारा नई दिल्ली के जैज़ महोत्सव, गुवाहाटी के उत्तर-पूर्व संगीत समारोह आदि जैसे कार्यक्रमों के समर्थन में अनुदान प्रदान किया जाता है।
  • राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (NMM): इसका उद्देश्य लगभग दस लाख पांडुलिपियों का 'राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक डाटाबेस' तैयार करना है जो इसे विश्व में भारतीय पांडुलिपियों का सबसे बड़ा डेटाबेस बनाता है। इससे डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों के माध्यम से पांडुलिपि संरक्षकों की आने वाली पीढ़ी को प्रशिक्षित करना भी शामिल है।

नीतिगत/योजनागत उपाय:

  • ‘एक विरासत अपनाएँ: अपनी धरोहर, अपनी पहचान’ परियोजना: इसका उद्देश्य हमारी विरासत और पर्यटन को और अधिक टिकाऊ बनाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, निजी क्षेत्र की कंपनियों और कॉर्पोरेट नागरिकों/व्यक्तियों को शामिल करना है।
  • भाषा संगम ऐप: भाषा संगम ऐप, मायगॉव इंडिया (MyGov India) के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय द्वारा विकसित एक मोबाइल एप्लिकेशन है। यह भारत के लोगों को विभिन्न भारतीय भाषाओं की विस्तृत श्रृंखला से अवगत कराने के साथ क्षेत्रीय भाषाओं और उनसे संबंधित अमूर्त संस्कृति को संरक्षित करने हेतु प्रेरित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: मानवता के कल्याण के क्रम में इसे भारत के सुझाव पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्रदान की गई है।

निष्कर्ष:

भारत की मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक स्तर पर मान्यता एवं पहचान प्राप्त है। हमें अपनी समृद्ध संस्कृति की विशेषताओं को जीवंत रखने के लिये सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है।