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06 Dec 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस 24
प्रश्न- 1. हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत शैलियों की तुलना और विषमताओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न- 2. मोहिनीअट्टम नृत्य शैली की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- संगीत की हिंदुस्तानी और कर्नाटक शैली के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- संगीत की हिन्दुस्तानी और कर्नाटक शैली की तुलना कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
हिंदुस्तानी संगीत भारत के उत्तरी भागों में प्रचलित है और कर्नाटक संगीत भारत के दक्षिणी भागों में प्रचलित है। जबकि दोनों संगीत प्रकारों की ऐतिहासिक जड़ें भरत के नाट्यशास्त्र से संबंधित हैं लेकिन 14वीं शताब्दी में इनमें अलगाव हो गया। संगीत की हिंदुस्तानी शाखा में संगीत संरचना और उसमें तात्कालिकता की संभावनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। हिंदुस्तानी शाखा में शुद्ध स्वर सप्तक या 'प्राकृतिक स्वरों के सप्तक' पैमाने को अपनाया गया है।
कर्नाटक शाखा के संगीत को पारंपरिक सप्तक में गाया जाता है। कर्नाटक संगीत कृति आधारित है और इसमें साहित्य या संगीतात्मक खंड के गीत की गुणवत्ता पर अधिक बल दिया जाता है। कृति एक निश्चित राग और नियत ताल या लयबद्ध चक्र में विकसित संगीतमय गीत होता है।
मुख्य भाग:
हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत के बीच तुलना:
अंतर के बिंदु हिंदुस्तानी संगीत कर्नाटक संगीत प्रभाव अरबी,फारसी और अफगान स्वदेशी स्वतंत्रता कलाकारों के लिये सुधार की गुंजाइश। इसलिये विविधताओं की गुंजाइश। सुधार की गुंजाइश नहीं उप-शैलियाँ कई उप-शैलियाँ हैं जिनसे घरानों का उद्भव हुआ है गायन की केवल एक विशेष निर्धारित शैली वाद्य यंत्रों की आवश्यकता कंठ संगीत की ही तरह, वाद्य यंत्रों का महत्व होता है। कंठ संगीत पर अधिक जोर राग 6 प्रमुख राग 72 राग समय निश्चित समय का अनुपालन निश्चित समय का अनुपालन नहीं उपयोग किये जाने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र तबला, सारंगी, सितार और संतूर। वीणा, मृदंगम और मैंडोलिन। प्रचलन क्षेत्र उत्तर भारत सामान्यतः दक्षिण भारत समानता बांसुरी और वायलिन का प्रयोग बांसुरी और वायलिन का प्रयोग निष्कर्ष:
वर्तमान समय में भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न श्रेणियों के कई प्रकार के संगीत प्रचलित हैं। इनमें से कुछ काफी हद तक शास्त्रीय संगीत से संबंधित हैं और कुछ वैश्विक संगीत प्रतिमानों की ओर अग्रसर हैं। वर्तमान में पॉप, जैज़ आदि जैसे नए संगीत रूपों के साथ शास्त्रीय संगीत परंपरा के मिश्रण से संगीत की नयी प्रवृत्ति विकसित हो रही है और लोगों का इसके प्रति आकर्षण बढ़ रहा है एवं लोगों के बीच शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता में कमीं आ रही है।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- मोहिनीअट्टम नृत्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- मोहिनीअट्टम नृत्य की विशेषताओं को बताइए।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
मोहिनीअट्टम या मोहिनी ('मोहिनी' का अर्थ सुंदर स्त्री और 'अट्टम' का अर्थ नृत्य होता है) का नृत्य मूल रुप से नृत्यांगनाओं द्वारा किया जाने वाला एकल नृत्य प्रदर्शन है जिसे 19वीं शताब्दी में वडिवेलु द्वारा आगे विकसित किया गया था और वर्तमान के केरल राज्य के त्रावणकोर के शासकों के अधीन इसको और भी महत्त्व मिला। इसमें 19वीं शताब्दी में त्रावणकोर के शासक स्वाति थिरुनाल का संरक्षण उल्लेखनीय है। अप्रचलित हो जाने के बाद, प्रसिद्ध मलयाली कवि वी. एन. मेनन ने कल्याणी अम्मा के साथ इसे पुनर्जीवित किया।
मुख्य भाग:
मोहिनीअट्टम नृत्य की विशेषताएँ:
- मोहिनीअट्टम में कथकली के उत्साह के साथ-साथ भरतनाट्यम का लालित्य और कोमलता, दोनों देखने को मिलते हैं।
- इसमें कदमों की थाप नहीं होती है और कदमताल सौम्य होता है।
- मोहिनीअट्टम में आमतौर पर विष्णु के स्त्री नृत्य की कहानी का वर्णन किया जाता है।
- अन्य शास्त्रीय नृत्यों की तरह ही इसके अपने नृत्त और नृत्य पहलू होते हैं।
- मोहिनीअट्टम गायन में नृत्य के लास्य पहलू (सौंदर्य, लालित्य) का प्रभुत्व होता है। इसलिये इसे मुख्य रूप से महिला नर्तकियों द्वारा किया जाता है।
- यह नृत्य, संगीत और गीतों के साथ होता है।
- श्वेत और श्वेताभ (धूमिल सफेद) के प्रमुख रंग होने और सुनहरे रंग के बेल-बूटे की डिजाइनों के कारण मोहिनीअट्टम में वेशभूषा का विशेष महत्त्व होता है। इसमें कोई स्पष्ट श्रृंगार नहीं होता है। नर्तकी अपने टखनों पर घंटियों (घुंघरू) वाली चमड़े की पट्टी पहनती हैं।
- मोहिनीअट्टम प्रदर्शन के दौरान वायु तत्त्व को अभिव्यक्त किया जाता है।
- 'अटवकुल या अटावुस' चालीस मूल नृत्य गतियों का संग्रह है।
- इसमें झाँझ, वीणा, ढोल, बाँसुरी आदि वाद्य यंत्र प्रयुक्त होते हैं ।
निष्कर्ष:
मोहिनीअट्टम में केवल महिलाएँ ही नृत्य कर सकती हैं। यह कथकली की तुलना में सौम्य होता है । इसमें की जाने वाली गतियों में महिला अनुग्रह का प्रतिनिधित्व किया जाता है। श्रृंगार परंपरा में दिव्य प्रेम की उल्लेखनीय छवियाँ शामिल होती हैं। इस नृत्य को अब समूह में किया जा सकता है हालाँकि परंपरागत रूप से यह केवल एक व्यक्ति द्वारा किया जाता था।