Sambhav-2023

दिवस 22

प्रश्न- 1. मधुबनी चित्रकला की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

प्रश्न- 2. भित्ति चित्रकला से लेकर लघु चित्रकला शैली तक के चित्रकला के विकास की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

03 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

दृष्टिकोण:

  • मधुबनी चित्रकला के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • मधुबनी चित्रकला की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

मधुबनी चित्रकला, पारंपरिक रूप से मधुबनी शहर के आसपास के गांवों की महिलाओं द्वारा की जाती थी इसे मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है। यह कला नेपाल में तराई क्षेत्र के आस-पास के हिस्सों तक विस्तृत है। मधुबनी चित्रों की उत्पत्ति रामायण काल से मानी जाती है जब मिथिला के राजा ने अपने राज्य के लोगों को सीता और राम के विवाह के अवसर पर अपने घरों की दीवारों और फर्श को रंगने के लिये कहा था। लोगों का मानना था कि ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते हैं। अधिकतर महिलाओं द्वारा मधुबनी चित्रकला के कौशल को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित किया गया है।

मुख्य भाग:

मधुबनी चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ:

  • इसमें अलग-अलग समय और स्थान को इंगित करने के लिये चित्रों को क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर खंडों में विभाजित किया गया है।
  • इसमें भित्ति चित्रों और लघु शैली के चित्रों की गुणवत्ता भिन्न होती है।
  • इसमें देवी-देवताओं के चित्र संक्षिप्त और अक्सर विकृत होते हैं। इनमें आमतौर पर राधा-कृष्ण मधुबनी, गणेश मधुबनी चित्रकला आदि शामिल होती हैं।
  • इन चित्रों में आँखों के आकर्षण के साथ चेहरे को प्रदर्शित किया जाता है। पेंटिंग पूरी होने के बाद आँखों पर पेंट किया जाता है।
  • इस चित्रकला की विषय-वस्तु प्रतीकात्मक होती है। उदाहरण के लिये, मछली सौभाग्य और उर्वरता का प्रतीक होती है।
  • इसके अंतर्गत निर्मित चित्र जन्म, विवाह और त्योहारों जैसे शुभ अवसरों से भी संबंधित होते हैं। इस चित्रकारी में किसी भी तरह के अंतराल को पूरा करने के लिये फूल, पेड़, जानवर आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
  • परंपरागत रूप से इन्हें गाय के गोबर और मिट्टी लेपित आधार पर चावल के लेप और वनस्पतियों के रंगों का उपयोग करके दीवारों पर चित्रित किया जाता था। समय के साथ यह आधार परिवर्तित होकर हस्तनिर्मित कागज, कपड़े और कैनवास हो गया, फिर भी इनमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता रहा।
  • कोई छाया प्रभाव न होने के कारण यह चित्रकला द्वि-आयामी होती है। इन चित्रों की कुछ सामान्य विशेषताओं में दोहरी पंक्ति का किनारा, गहरे रंगों का प्रयोग, अलंकृत पुष्प प्रतिरूप और अतिरंजित मुख मुद्राएँ शामिल हैं।
  • इन चित्रकलाओं की विषय-वस्तु एक समान होती है जो आमतौर पर कृष्ण, राम, दुर्गा, लक्ष्मी और शिव सहित हिंदुओं के धार्मिक रूपांकनों से प्रेरित होती है।

निष्कर्ष:

चूंकि मधुबनी चित्रकला एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रही है इसलिये इसे जीआई (भौगोलिक संकेत) का दर्जा दिया गया है। वर्तमान में आधुनिक मधुबनी चित्रकला को साड़ियों, दुपट्टा, बैग, घड़ियों आदि पर भी देखा जा सकता है। मिथिला की कला अद्वितीय है क्योंकि इसमें हम संस्कृत और संस्कृति की जानकारी, शब्दावली और आइकोनोग्राफी जैसे विभिन्न आयामों को समग्रता से देख सकते हैं।


उत्तर 2:

दृष्टिकोण:

  • भित्ति चित्रकला और लघु चित्रकला शैलियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • भित्ति चित्रकला से लेकर लघु चित्रकला शैली तक के चित्रकला के विकासक्रम पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

दीवारों या ठोस संरचना पर की गई रचना को भित्ति चित्र कहा जाता है। अपनी विशाल उत्कृष्टता और सुंदरता के कारण भित्ति चित्र अद्वितीय हैं। इन्हें कागज पर नहीं बनाया जा सकता है और इन्हें बड़ी संरचनाओं की दीवारों (आमतौर पर गुफाओं और मंदिर की दीवारों) पर बनाने की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में इनका प्रचलन तीन प्रमुख धर्मों (बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म) में था। अजंता-एलोरा की गुफाओं में भित्ति चित्र के कुछ बेहतरीन उदाहरण देखने को मिलते हैं।

'लघु' शब्द लैटिन शब्द 'मिनियम' से लिया गया है, जिसका अर्थ शीशा युक्त लाल रंग होता है। इस रंग का उपयोग पुनर्जागरण काल के दौरान प्रदीप्त पांडुलिपियों में किया जाता था। आमतौर पर मिनिमम शब्द के अर्थ में थोड़ी असंगति पैदा होती है,जिसका अर्थ आकार में छोटा होता है। भारतीय उपमहाद्वीप में इन लघु चित्रों की लंबी परंपरा रही है और साथ ही कई शैलियों का विकास हुआ है, जिनमें संरचना और अनुपात की दृष्टि में अंतर है। लघु चित्र छोटे और विस्तृत विवरण देने वाले होते हैं।

लघु चित्रकला के लिये कई पूर्व शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है।

  • चित्र 25 वर्ग इंच से बड़ा नहीं होना चाहिये।
  • पेंटिंग का विषय वास्तविक आकार के 1/6 से अधिक में चित्रित नहीं किया जाना चाहिये।

मुख्य भाग:

भित्ति चित्रकला से लेकर लघु चित्रकला शैली तक के चित्रकला का उद्भव:

  • भित्ति चित्रकला, प्राचीन काल से भारत में अस्तित्व में हैं और यह 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 10वीं शताब्दी ईस्वी के बीच के हो सकते हैं। इस तरह के चित्रों के प्रमाण भारत में कई स्थानों पर पाए जा सकते हैं। अजंता, अर्मामलाई गुफा, रावण छाया शैल आश्रय, बाघ गुफा, सित्तनवासल गुफा और एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर जैसे स्थानों पर भित्ति चित्रकला की सुंदरता और उत्कृष्टता देखी जा सकती है।
  • अधिकांश भित्ति चित्र या तो प्राकृतिक गुफाओं में हैं या चट्टानों को काटकर बनाए गए कक्षों में हैं। इस चित्रकला के सामान्य विषयों में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित विषय हैं। इसके अलावा, इस तरह के चित्र किसी परिसर को सजाने के लिये भी बनाए जाते थे। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जोगीमारा गुफा में प्राचीन रंगमंच कक्ष में देखा जा सकता है।
  • लघु चित्रकला की उत्पत्ति भारत में 750 ईस्वी के आसपास हुई, जब भारत के पूर्वी भाग पर पालों का शासन था। इसके अंतर्गत बुद्ध की धार्मिक शिक्षाओं एवं उनके चित्रों को ताड़ के पत्तों पर उकेरे जाने के कारण इसको काफी लोकप्रियता मिली। ताड़ के पत्तों पर सीमित स्थान होने के कारण यह चित्र छोटे- छोटे बनाए गए थे।
  • लगभग 960 ईस्वी के दौरान, चालुक्य वंश के शासकों द्वारा भारत के पश्चिमी भागों में इसी तरह के चित्रों की शुरुआत की गई थी। इस समय लघु चित्रकला के तहत अक्सर धार्मिक विषयों को चित्रित किया जाता था।
  • मुगल साम्राज्य के उदय के साथ, लघु चित्रकला का विकास तीव्रता से होने लगा। कला के प्रति अकबर के प्रेम के कारण भारतीय लघु चित्रकला शैली में फारसी कला शैली के तत्वों के शामिल हो जाने के कारण, चित्रकला की मुगल शैली का विकास हुआ। यूरोपीय चित्रों के प्रभाव से इस लघु चित्रकला शैली का और भी विकास हुआ।

निष्कर्ष:

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी लघु चित्रकला और इसके चित्रकारों को राजस्थान के राजपूत शासकों द्वारा संरक्षण मिला था। हालाँकि चित्रकला की मुगल शैली से प्रभावित, राजस्थान के लघु चित्रों की अपनी विशेषताएँ थीं और इसके अंतर्गत अक्सर शाही जीवन शैली और भगवान कृष्ण और राधा की पौराणिक कहानियों को चित्रित किया गया था। इनमें से अधिकांश लघु चित्रों में राजाओं और रानियों की जीवन शैली और उनकी बहादुरी को दर्शाया गया है। इनमें से कुछ चित्रों को विभिन्न शासकों की उपलब्धियों और राज्यों के प्रति उनके योगदान को प्रदर्शित करने के लिये भी बनाया गया था।