दिवस 18
प्रश्न- 1. सहकारी संघवाद की भावना को साकार करने के लिये नीति आयोग की स्थापना की गई थी। इस कथन पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्देश्यों के साथ-साथ योजना आयोग और नीति आयोग के कार्यों के बीच अंतरों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न- 2. लोकपाल, भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये एक बड़ी पहल है लेकिन लोकपाल संस्था को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
29 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- नीति आयोग के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- नीति आयोग के उद्देश्यों पर चर्चा कीजिये।
- नीति आयोग और योजना आयोग के बीच अंतर पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के उत्तराधिकारी के रूप में नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की स्थापना की गई। योजना आयोग को 1 जनवरी, 2015 को एक नई संस्था - नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिसमें 'बॉटम-अप' दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया था, जिसमें 'सहकारी संघवाद' की भावना को प्रतिध्वनित करते हुए न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन की दृष्टि की परिकल्पना की गई थी।
मुख्य बिन्दु
नीति आयोग के उद्देश्य
- सहकारी संघवाद स्थापित करने के लिये सतत् आधार पर राज्यों के साथ संरचित सहयोग पहलों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना ,यह मानते हुए कि मज़बूत राज्य ही मज़बूत देश का निर्माण के सकते हैंं।
- ग्रामीण स्तर पर विश्वसनीय योजनाओं के सूत्रण के लिये प्रक्रियाओं का विकास और इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों तक उत्तरोत्तर युक्त करते जाना I
- यह सुनिश्चित करना कि जो भी क्षेत्र इसे संदर्भित किया गया हो, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को आर्थिक रणनीति और नीति में शामिल किया गया है।
- हमारे समाज के उन वर्गों पर विशेष ध्यान देना, जो कि आर्थिक प्रगति से पर्याप्त रूप से लाभान्वित नहीं हुए हैं।
- प्रमुख हितधारकों और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समान विचारधारा रखने वाले “थिंक टैंक”, साथ ही शैक्षिक और नीति शोध संस्थानों के बीच आवश्यक सलाह प्रदान करना और साझेदारी को प्रोत्साहित करना
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, अभ्यासियों एवं अन्य भागीदारों के एक सहयोगी समुदाय के माध्यम से ज्ञान, नवाचार और उद्यमशीलता समर्थन प्रणाली तैयार करना।।
- राष्ट्रीय विकास एजेंडा के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिये अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिये मंच प्रदान करना।
- एक अत्याधुनिक संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करना, धारणीय एवं सतत् विकास के क्षेत्र में सुशासन एवं सर्वोत्तम प्रचलनों पर हुए शोध के निधान(कोष) के रूप हितधारकों को उनके प्रसार में मदद करना।।
योजना आयोग और नीति आयोग के बीच अंतर:
नीति आयोग
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योजना आयोग
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इसके पास राज्यों पर नीतियाँ थोपने की शक्ति नहीं है। यह एक सलाहकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है।।
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इसके पास राज्यों और उसके द्वारा अनुमोदित परियोजनाओं पर नीतियाँ थोपने की शक्ति थी।
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यह सदस्यों की व्यापक विशेषज्ञता पर बल देता है।
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सीमित विशेषज्ञता पर निर्भर था।
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यह सहकारी संघवाद की भावना पर कार्य करता है क्योंकि यह राज्यों की समान भागीदारी सुनिश्चित करता है।
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इसकी वार्षिक योजना बैठकों में राज्यों की भागीदारी बहुत कम रहती थी।
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प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त सचिवों को CEO के रूप में जाना जाता है।
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सचिवों को सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त किया जाता था।
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यह बॉटम अप दृष्टिकोण पर कार्य करता है।
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यह टॉप डाउन दृष्टिकोण पर कार्य करता था।
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इसे नीतियाँ लागू करने का अधिकार नहीं है।
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यह राज्यों के लिये नीतियाँ बनाता था और स्वीकृत परियोजनाओं के लिये धन आवंटित करता था।
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इसे धन आवंटित करने की शक्तियाँ नहीं हैं जो वित्त मंत्री में निहित हैं।
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इसे मंत्रालयों और राज्य सरकारों को धन आवंटित करने की शक्तियाँ प्राप्त थीं।
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निष्कर्ष
नीति आयोग देश में एक कुशल, पारदर्शी, नवीन, जवाबदेह और विशिष्ट शासन प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है। नीति आयोग बदलते समय के प्रतिनिधि के रूप में उभर सकता है और शासन में सुधार एवं सार्वजनिक सेवाओं के बेहतर वितरण के लिये नवीन उपायों को लागू करने में सरकार के एजेंडे में योगदान कर सकता है।।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- लोकपाल के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपना उत्तर शुरू कीजिये ।
- लोकपाल के क्षेत्राधिकार का उल्लेख कीजिये।
- लोकपाल के महत्व और सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
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परिचय
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 संघ के मल लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त की स्थापना का प्रावधान किया गया। ये संस्थान बिना किसी संवैधानिक स्थिति के वैधानिक निकाय हैं। वे एक "लोकपाल" का कार्य करते हैं और कुछ सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ तथा संबंधित मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करते हैं।
- लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य होते हैं। अधिकतम आठ सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य होंगे और न्यूनतम 50% सदस्य SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक और महिलाएँ होंगी।।
लोकपाल का अधिकार क्षेत्र
- लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों में संसद के सभी सदस्यों और केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर अधिकार क्षेत्र है।
- इसके अलावा लोकपाल किसी ऐसी संस्था के किसी सदस्य के बारे में भ्रष्टाचार विरोधी शिकायतों की भी जांच कर सकता है जो पूरी तरह से या आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है या उसके द्वारा नियंत्रित है।
लोकपाल का महत्व
- खराब प्रशासन दीमक की तरह है जो धीरे-धीरे किसी राष्ट्र की नींव को खोखला करता है तथा प्रशासन को अपने कार्य पूर्ण करने में बाधा डालता है। भ्रष्टाचार इस समस्या की जड़ है।
- अधिकतर भ्रष्टाचार निरोधी संस्थाएँ पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हैं। यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी CBI को ‘पिंजरे का तोता’ और ‘अपने मालिक की आवाज़’ बताया है।
- इनमें से कई एजेंसियाँ नाममात्र शक्तियों वाले केवल परामर्शी निकाय हैं और उनकी सलाह का शायद ही अनुसरण किया जाता है।
- इसके अलावा आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही की भी समस्या है, क्योंकि इन एजेंसियों पर नज़र रखने के लिये अलग से कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है।
- इस संदर्भ में, एक स्वतंत्र लोकपाल संस्था भारतीय राजनीति के इतिहास में मील का पत्थर कहा जा सकता है, जिसने कभी समाप्त न होने वाले भ्रष्टाचार के खतरे का एक समाधान प्रस्तुत किया है।
लोकपाल की सीमाएँ
- लोकपाल राजनीतिक प्रभाव से मुक्त नहीं है क्योंकि नियुक्ति समिति में स्वयं राजनीतिक दलों के ही सदस्य होते हैं
- लोकपाल की नियुक्ति मे हेरफेर किया जा सकता है क्योंकि यह तय करने के लिये कोई मानदंड नहीं है कि कौन 'प्रतिष्ठित न्यायविद्' या 'ईमानदार व्यक्ति' है।
- वर्ष 2013 का अधिनियम व्हिसल ब्लोअर को कोई ठोस सुरक्षा नहीं देता। यदि आरोपी व्यक्ति निर्दोष पाया जाए तो शिकायतकर्त्ता के विरुद्ध जाँच शुरू करने का प्रावधान लोगों को शिकायत करने से हतोत्साहित ही करेगा।
- इसकी सबसे बड़ी कमी न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना है।
- लोकपाल को कोई संवैधानिक आधार नहीं दिया गया है और लोकपाल के विरुद्ध अपील का कोई पर्याप्त प्रावधान नहीं है।
- लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित विशिष्ट विवरण पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत उस तिथि से सात साल के बाद पंजीकृत नहीं की जा सकती जिस तिथि को ऐसी शिकायत में कथित अपराध किये जाने का उल्लेख हो।
आगे की राह
- भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये कार्यात्मक स्वायत्तता तथा मानव शक्ति की उपलब्धता दोनों मामलों में ओम्बुड्समैन (लोकपाल) संस्था को मज़बूत किया जाए।
- स्वयं को सार्वजनिक जाँच का विषय बनाने के लिये इच्छुक एक अच्छे नेतृत्व के साथ-साथ अधिक पारदर्शिता, अधिक सूचना के अधिकार तथा नागरिकों और नागरिक समूहों के सशक्तीकरण की आवश्यकता है।
- लोकपाल की नियुक्ति ही स्वयं में पर्याप्त नहीं है। सरकार को उन मुद्दों को भी हल करना चाहिये जिनके आधार पर लोग लोकपाल की मांग करते हैं। मात्र जाँच एजेंसियों की संख्या में बढ़ोतरी करना सरकार के आकार में तो वृद्धि करेगा, परंतु यह आवश्यक नहीं है कि इससे प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार आए। "न्यूनतम सरकार और अधिक शासन" सरकार द्वारा अपनाए गए नारे का अक्षरश: पालन किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा लोकपाल और लोकायुक्त उनसे वित्तीय, प्रशासनिक और कानूनी रूप से अवश्य स्वतंत्र होने चाहिये, जिनकी जाँच एवं जिन्हें दंडित करने के लिये उन्हें कहा जाता है।
- लोकपाल और लोकायुक्त नियुक्तियाँ पारदर्शिता से होनी चाहिये ताकि गलत प्रकार के लोगों के पदस्थापित होने की संभावना को कम किया जा सके।
- किसी एक संस्था या प्राधिकारी में अत्यधिक शक्ति के संचयन को टालने के लिये समुचित जवाबदेही व्यवस्था के साथ विकेंद्रीकृत संस्थानों के बाहुल्य की आवश्यकता है।