प्रश्न- 1. कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। चर्चा कीजिये।
प्रश्न- 2. सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार के रूप भारत के महान्यायवादी का बहुत महत्त्व है। चर्चा कीजिये।
28 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- CAG के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- CAG के कार्यों और भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- CAG की सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
भारत के संविधान (अनुच्छेद 148) में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के स्वतंत्र पद का प्रावधान किया गया है। यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का प्रमुख होता है। यह लोक वित्त का संरक्षक होने के साथ-साथ देश की संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था का नियंत्रक होता है। इसका कर्तव्य भारत के संविधान और संसद के कानूनों के तहत वित्तीय प्रशासन को संभालना होता है।
CAG के कार्य:
संसद और संविधान द्वारा निर्धारित CAG के कर्तव्य और कार्य निम्नलिखित हैं:
- यह भारत की संचित निधि, प्रत्येक राज्य की संचित निधि और विधानसभा वाले प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश की संचित निधि से सभी व्यय संबंधी खातों की लेखा परीक्षा करता है।
- यह भारत की आकस्मिकता निधि और भारत के लोक लेखा के साथ-साथ प्रत्येक राज्य की आकस्मिकता निधि और प्रत्येक राज्य के लोक लेखा से होने वाले सभी व्यय का लेखा-परीक्षण करता है।
- यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण लाभ और हानि लेखाओं, बैलेंस शीट और अन्य अनुषंगी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।
- यह केंद्र और प्रत्येक राज्य की प्राप्तियों और व्यय का लेखा-परीक्षण करता है ताकि वह सुनिश्चित कर सके कि राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आवंटन पर प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करने के लिये नियम और प्रकियाएँ निर्धारित की गई हैं।
- यह राष्ट्रपति को इस संबंध में सलाह देता है कि केंद्र और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिये (अनुच्छेद 150)।
- यह केंद्र और राज्य के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यपाल को सौंपता है। ये इन्हें क्रमशः संसद के दोनों सदनों और राज्य विधानमंडल (अनुच्छेद 151) के समक्ष रखते हैं।
- यह किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों का निर्धारण और प्रमाणन करता है (अनुच्छेद 279), और उन्हें प्रमाणित करता है। इसका प्रमाण पत्र अंतिम होता है। 'शुद्ध आगमों' का अर्थ है- कर या शुल्क की प्राप्तियाँ,जिसमें संग्रहण की लागत सम्मिलित न हो।
- यह संसद की लोक लेखा समिति के मार्गदर्शक, मित्र और दार्शनिक के रूप में कार्य करता है।
- यह राज्य सरकारों के लेखाओं का संकलन और अनुरक्षण करता है। वर्ष 1976 में इसे केंद्र सरकार के लेखाओं के संकलन और अनुरक्षण कार्य से मुक्त कर दिया गया क्योंकि लेखाओं को लेखा परीक्षण से अलग कर लेखाओं का विभागीकरण कर दिया गया।
CAG की सीमाएँ:
- भारत में CAG का कार्य काफी हद तक औपनिवेशिक शासन की विरासत के रुप में है।
- वर्तमान में CAG निर्णय लेने तथा कार्य करने की बढ़ती अनिच्छा का प्राथमिक कारण है। लेखा परीक्षा का दमनात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- संसद की लेखा परीक्षा में संसदीय दायित्व के महत्त्व को बढ़ा-चढ़ाकर देखा जाता है। इसलिये संसद CAG के कार्यों को परिभाषित करने में विफल रही है जैसा कि संविधान में उससे अपेक्षा की गई है।
- वास्तव में CAG का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है। लेखा परीक्षक अच्छे प्रशासन के बारे में न तो बहुत कुछ जानते हैं, और न ही उनसे ऐसी अपेक्षा की जा सकती है।
- लेखा परीक्षक जानते हैं कि लेखा परीक्षा क्या होती है,लेकिन यह प्रशासन नहीं है, यह आवश्यक है लेकिन यह एक अत्यंत नीरस तथा सीमित परिप्रेक्ष्य एवं सीमित उपयोगिता वाला कार्य है।
- किसी विभाग का उप- सचिव अपने विभाग की समस्याओं के बारे में CAG तथा उसके समस्त कर्मचारियों से अधिक जानता है।
आगे की राह:
वर्तमान की समस्याओं से निपटने के लिये बदलते समय के अनुसार CAG के कार्यों और शक्तियों को फिर से परिभाषित करने के साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह सरकार की जवाबदेहिता को उचित रुप से सुनिश्चित करने में सहायक हो।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- महान्यायवादी के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- भारत के महान्यायवादी के कार्यों की चर्चा कीजिये।
- महान्यायवादी के कार्यों की सीमाओं की विवेचना कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
- संविधान (अनुच्छेद 76) में भारत के महान्यायवादी के पद की व्यवस्था की गई है। यह देश का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है।
- अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में यह भारत में सभी न्यायालयों की कार्यवाही में शामिल हो सकता है। इसके अलावा इसे संसद के दोनों सदनों या इसकी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति (जिसमें इसे सदस्य के रुप में नामित किया जा सकता है) की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने का अधिकार रखता है, लेकिन इसे मतदान का अधिकार नहीं होता है। इसे संसद के सदस्य के लिये उपलब्ध सभी विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
भारत के महान्यायवादी के कार्य:
भारत सरकार के मुख्य विधि अधिकारी के रूप में इसके निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं:
- ऐसे विधिक मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
- ऐसे अन्य विधिक कर्तव्यों का पालन करना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
- संविधान या किसी अन्य विधि द्वारा उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करना।
राष्ट्रपति ने महान्यायवादी को निम्नलिखित कार्य सौंपे हैं:
- सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार से संबंधित सभी मामलों में भारत सरकार की ओर से उपस्थित होना।
- संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दिये गए किसी भी संदर्भ में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
- भारत सरकार से संबंधित किसी भी मामले में किसी भी उच्च न्यायालय में उपस्थित होना।
महान्यायवादी के कार्यों से संबंधित सीमाएँ:
किसी भी जटिलता और कर्तव्य निर्वहन में संघर्ष से बचने के लिये महान्यायवादी पर निम्नलिखित सीमाएँ लगाई गई हैं:
- इसे भारत सरकार के खिलाफ सलाह देने से प्रतिबंधित किया गया है।
- भारत सरकार की ओर से उपस्थित होने के संदर्भ में इसे सरकार के खिलाफ पक्ष रखने से रोका गया है।
- इसे भारत सरकार की अनुमति के बिना आपराधिक मुकदमों में आरोपी व्यक्तियों का बचाव करने से प्रतिबंधित किया गया है।
- इसे भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी कंपनी या निगम में निदेशक के रूप में नियुक्ति हेतु प्रतिबंधित किया गया है।
- इसे भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग या किसी सांविधिक संगठन या किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को तब तक सलाह नहीं देनी चाहिये जब तक कि इस संबंध विधि और न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग से प्रस्ताव प्राप्त न हो।
निष्कर्ष:
हालांकि महान्यायवादी सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है लेकिन इसके अतिरिक्त भारत सरकार के अन्य विधि अधिकारी भी होते हैं। ये भारत के सॉलिसिटर जनरल और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हैं। ये महान्यायवादी की आधिकारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में सहायता करते हैं।