प्रश्न- 1. निर्वाचन आयोग की भूमिका, जिम्मेदारियाँ और कार्य क्या हैं? इसकी प्रभावशीलता में सुधार के लिये आवश्यक उपाय क्या हैं?
प्रश्न- 2. GST और GST परिषद से आप क्या समझते हैं? इसकी कार्यप्रणाली में क्या चुनौतियाँ हैं? संघवाद के संदर्भ में इसकी समुचित कार्यप्रणाली हेतु उपाय बताइए।
26 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- निर्वाचन आयोग के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- निर्वाचन आयोग की भूमिका, जिम्मेदारियों और कार्यों पर चर्चा कीजिये।
- निर्वाचन आयोग के समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- निर्वाचन आयोग को और सशक्त करने के उपायों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
निर्वाचन आयोग एक स्थायी और स्वतंत्र निकाय है। इसका गठन भारत के संविधान द्वारा देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के उद्देश्य से किया गया था।
संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रावधान है कि संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के संचालन, निर्देशन व नियंत्रण की ज़िम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है। अतः निर्वाचन आयोग एक अखिल भारतीय संस्था है क्योंकि यह केंद्र व राज्य सरकारों, दोनों के लिये समान है।
मुख्य भाग
निर्वाचन आयोग की भूमिका, जिम्मेदारियाँ और कार्य:
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर समस्त भारत के निर्वाचन क्षेत्रों के भू-भाग का निर्धारण करना।
- समय-समय पर निर्वाचक-नामावली तैयार करना और सभी पात्र मतदाताओं को पंजीकृत करना।
- निर्वाचन की तिथि और समय-सारणी निर्धारित करना एवं नामांकन पत्रों का परीक्षण करना।
- राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और निर्वाचन चिह्न आवंटित करना।
- राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और निर्वाचन चिह्न आवंटित करने के मामले में हुए विवाद के समाधान के लिये न्यायालय के रूप में कार्य करना।
- निर्वाचन व्यवस्था से संबंधित विवादों की जाँच के लिये अधिकारियों की नियुक्ति करना।
- निर्वाचन के समय दलों व उम्मीदवारों के लिये आचार संहिता तैयार करना।
- निर्वाचन के समय राजनितिक दलों की नीतियों के प्रचार के लिये रेडियो और टी.वी. कार्यक्रम सूची तैयार करना।
- संसद सदस्यों की निरर्हता से संबंधित मामलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना।
- विधानसभा के सदस्यों के निरर्हता से संबंधित मामलों पर राज्यपाल को परामर्श देना।
- रिंगिंग, मतदान केंद्र लूटना, हिंसा व अन्य अनियमितताओं के आधार पर निर्वाचन रद्द करना।
- निर्वाचन कराने के लिये कर्मचारियों की आवश्यकता के बारे में राष्ट्रपति या राज्यपाल से आग्रह करना।
निर्वाचन आयोग के सामने चुनौतियाँ
- स्वायत्तता की कमी: निर्वाचन आयोग धन के लिये केंद्र पर और चुनावों के संचालन हेतु राज्यों पर निर्भर है जो इसकी स्वायत्तता को प्रभावित करता है।
- कार्यकाल की सुरक्षा: राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की सलाह पर अन्य चुनाव आयुक्तों को हटा सकते हैं जो उनकी निष्पक्षता को प्रभावित करता है।
- लोकतंत्र के आधार को विस्तृत करना: भारत में लगभग 70% मतदाता हैं जो चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हैं लेकिन निर्वाचन आयोग मतदान में वृद्धि करना चाहता है।
- नई चुनौतियों का समाधान: पेड न्यूज और फेक न्यूज़ जैसी उभर रही नई चुनौतियों से, चुनाव प्रक्रिया की वास्तविकता के बारे में अफवाहों का प्रसार होता है जिससे निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगता है।
- IT चुनौतियाँ: नई उभरती हुई तकनीक चुनौतियों जैसे आधार कार्ड को वोटर ID से जोड़ना और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों ( (EVM) को हैकिंग के प्रति सुरक्षित बनाना भी निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रमुख मुद्दा है।
- राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को जवाबदेह ठहराने की शक्तियाँ नहीं हैं: आदर्श आचार संहिता (MCC) के उल्लंघन और चुनाव खर्च की सीमा के उल्लंघन के मामले में इसके पास उन्हें जवाबदेह ठहराने की अधिक शक्तियाँ नहीं हैं।
निर्वाचन आयोग को सशक्त करने के उपाय
- आवश्यक कानूनों में बदलाव करके राजनीतिक दलों और चुनाव उम्मीदवारों को जवाबदेह ठहराने के लिये निर्वाचन आयोग को आवश्यक शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये।
- मतदाताओं का आधार बढ़ाने के लिये पोस्टल बैलट, प्रॉक्सी वोटिंग आदि तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिये।
- इसे वर्तमान की विशिष्ट चुनौतियों का सामना करने के क्रम में नए तकनीकी समाधान विकसित करने हेतु नए उभरते स्टार्टअप के साथ जुड़ना चाहिये।
- सरकार को निर्वाचन आयोग को समय पर फंड जारी करना चाहिये और वर्तमान की नई ज़रूरतों को पूरा करने के लिये नए प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों हेतु भी फंड दिया जाना चाहिये।
- अन्य निर्वाचन आयुक्तों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये इनकी पदावधि, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की इच्छा पर निर्भर नहीं होनी चाहिये।
निष्कर्ष
निर्वाचन आयोग भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसलिये लोकतंत्र के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये इसे आवश्यक और अपेक्षित शक्तियों एवं कार्यों के साथ संपन्न किया जाना चाहिये।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- GST और GST परिषद के बारे में संक्षिप्त विवरण देते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- GST के मुद्दों पर चर्चा कीजिये और इसे मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू उपभोग के लिये बेचीं जाने वाली अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला मूल्यवर्द्धित कर है। GST का भुगतान उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है लेकिन इसे वस्तुओं और सेवाओं को बेचने वाले व्यापारियों द्वारा सरकार को प्रेषित किया जाता है।
GST परिषद
- अनुच्छेद 279A के अनुसार, GST के प्रशासन और संचालन के लिये राष्ट्रपति द्वारा GST परिषद का गठन किया जाएगा। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है और राज्यों द्वारा नामित मंत्री इसके सदस्य होते हैं।
- इस परिषद को इस तरह से तैयार किया गया है कि केंद्र के पास 1/3 मतदान शक्ति होगी और राज्यों के पास 2/3 मतदान शक्ति होगी।
- इसके निर्णय 3/4 बहुमत से लिये जाते हैं।
मुख्य भाग
GST के साथ संबद्ध समस्याएँ
- कई कर दरें: कई अन्य अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, जिन्होंने इस कर व्यवस्था को लागू किया है, भारत में कर की विभिन्न दरें हैं। यह देश में सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिये एकल अप्रत्यक्ष कर की दर को लागू करने की प्रगति को बाधित करता है।
- नए उपकरों में कटौती: जहाँ एक ओर GST द्वारा विभिन्न करों और उपकरों को समाप्त किया गया है वहीँ विलासिता वाली वस्तुओं के लिये क्षतिपूर्ति उपकर के रूप में एक नया शुल्क आरोपित किया गया है। आगे चलकर इसे ऑटोमोबाइल तक विस्तारित किया गया।
- विश्वास का संकट: केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के साथ साझा किये बिना खुद के लिये उपकर और शुल्क लगाने की प्रवृत्ति ने, राज्यों को प्रदान किये जाने वाले गारंटीकृत मुआवज़े की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है। यह सही भी प्रतीत होता है क्योंकि सरकार ना केवल जीएसटी के तहत किये जाने वाले आर्थिक वादों को पूरा करने में विफल रही बल्कि इससे राज्यों के राजस्व पर भी प्रभाव पड़ा।
- GST के दायरे से बाहर की अर्थव्यवस्था: करीब आधी अर्थव्यवस्था GST से बाहर है। उदाहरण पेट्रोलियम, रियल एस्टेट, विद्युत शुल्क जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
- टैक्स फाइलिंग की जटिलता: जीएसटी कानून के तहत जीएसटी ऑडिट के साथ-साथ करदाताओं की निर्दिष्ट श्रेणियों द्वारा जीएसटी का वार्षिक रिटर्न फाइल करने की आवश्यकता होती है लेकिन वार्षिक रिटर्न फाइल करना करदाताओं के लिये एक जटिल कार्य बना हुआ है। इसके अलावा वार्षिक फाइलिंग में कई विवरण भी शामिल होते हैं जिन्हें मासिक व त्रैमासिक फाइलिंग में शामिल नहीं किया जाता है।
- कर की उच्च दरें: हालांँकि इसके तहत कर की दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है फिर भी 50% वस्तुएँ, 18% ब्रैकेट (Bracket) के अंतर्गत शामिल हैं। इसके अलावा महामारी से निपटने के लिये आवश्यक कुछ वस्तुओं पर भी अधिक कर लगाया गया था। उदाहरण के लिये ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर पर 12% कर, टीकों पर 5% और विदेशों से राहत आपूर्ति पर लगाया जाने वाला कर।
GST प्रणाली को मजबूत करने के उपाय
- परिषद के निर्णय लेने की प्रक्रिया को परामर्शी और सहमतिपूर्ण प्रकृति का सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- विवादास्पद मुद्दों के समाधान के क्रम में सबसे महत्त्वपूर्ण आयाम के रुप में केंद्र एवं राज्यों के बीच विश्वास के अंतराल को कम करने की आवश्यकता होगी। सहकारी संघवाद की भावना (जिसकी अक्सर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा वकालत की जाती है) को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- विश्वास के संकट को केवल अच्छे विश्वासपरक कार्यों के माध्यम से ही कम किया जा सकता है। केंद्र सरकार को राज्यों के प्रति वचनबद्ध होना चाहिये कि वह उन उपकरों और अधिभारों का सहारा नहीं लेगी जो राजस्व के बँटवारे योग्य पूल से बाहर हैं। इसे राज्यों से की जाने वाली राजस्व गारंटी प्रतिबद्धता का सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिये। इसे न केवल राजकोषीय संघवाद बल्कि राजनीतिक और संवैधानिक संघवाद की सच्ची भावना का भी सम्मान व समर्थन करना चाहिये।
- भारत में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों के पास प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान दोनों को आरोपित करने हेतु समान अधिकार नहीं हैं। जीएसटी से भारत का अप्रत्यक्ष कराधान, केंद्रीकृत हुआ है। राज्यों को प्रत्यक्ष कराधान के संबंध में अधिकार देकर इस दिशा में विकेंद्रीकरण पर विचार-विमर्श करने का समय आ गया है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया जाने वाला इस तरह का विचार-विमर्श, राज्यों के केंद्र सरकार के प्रति विश्वास के साथ वित्तीय स्वतंत्रता को मज़बूत करने में सहायक होगा ।
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदलने की दिशा में GST एक सकारात्मक कदम है। इससे संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये हमें GST को अपनाने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के अनुभवों का अनुसरण करना महत्त्वपूर्ण है।