Sambhav-2023

दिवस 14

प्रश्न- 1. पेसा (PESA) क्या है? क्या इस अधिनियम में विद्यमान कमियों को दूर करने के लिये इसमें संशोधन करने का समय आ गया है?

प्रश्न- 2. शहरी स्थानीय निकाय (ULB) अपने सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करने के लिये निधि, कार्यप्रणाली और कार्यकर्त्ताओं की समस्या का सामना कर रहे हैं? चर्चा कीजिये।

24 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • PESA के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
  • PESA के उद्देश्यों पर चर्चा कीजिये।
  • PESA से संबंधित कमियों पर चर्चा कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधान पाँचवीं अनुसूची में वर्णित क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं। हालाँकि संसद इन प्रावधानों को कुछ अपवादों तथा संशोधनों सहित उक्त क्षेत्रों पर लागू कर सकती है। इस प्रावधान के तहत संसद ने "पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम", 1996 को पारित किया, जिसे लोकप्रिय रूप से पेसा अधिनियम या विस्तार अधिनियम के रूप में जाना जाता है।

वर्तमान (2019) में, दस राज्यों में पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्र हैं।

मुख्य भाग

अधिनियम के उद्देश्य

PESA अधिनियम के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • संविधान के भाग IX के पंचायतों से संबंधित प्रावधानों को जरूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करना।
  • जनजातीय लोगों को स्व-शासन प्रदान करना।
  • सहभागी लोकतंत्र के तहत ग्राम प्रशासन स्थापित करना तथा ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना।
  • पारंपरिक प्रथाओं के अनुरूप उपयुक्त प्रशासनिक ढाँचा विकसित करना।
  • जनजातीय समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों की सुरक्षा और संरक्षित करना।
  • जनजातीय लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप उपयुक्त स्तरों पर पंचायतों को विशिष्ट शक्तियों से युक्त बनाना।
  • उच्च स्तर की पंचायतों द्वारा निचले स्तर की ग्राम सभा की शक्तियों और अधिकार को छीनने से रोकना।

PESA से संबंधित कमियाँ

निम्नलिखित कारणों से PESA पर फिर से विचार करने और तदनुसार आवश्यक परिवर्तन करने की तत्काल आवश्यकता है:

  • राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय कानून के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य कानूनों को अधिनियमित करना चाहिये। इसके परिणामस्वरूप पेसा आंशिक रूप से कार्यान्वित हुआ है। आंशिक कार्यान्वयन ने आदिवासी क्षेत्रों, जैसे- झारखंड में स्वशासन को विकृत कर दिया है।
  • कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पेसा स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही की उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रतिरोध आदि के कारण सफल नहीं हुआ है।
  • राज्य में किये गए सोशल ऑडिट में यह भी बताया गया है कि वास्तव में विभिन्न विकास योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा केवल कागज़ पर अनुमोदित किया जा रहा था, वास्तव में चर्चा और निर्णय लेने के लिये कोई बैठक नहीं हुई थी।
  • जिस ग्राम सभा को प्रबंधन के प्रमुख कार्य सौंपे गए हैं, उनमें प्रबंधन कौशल की कमी के साथ अपेक्षित जनशक्ति का अभाव रहता है।
  • पंचायती राज संस्थानों और समुदाय के सदस्यों को पेसा के बारे में बहुत कम जानकारी है और वर्तमान में PESA, अनुसूची V क्षेत्रों में वास्तविक रुप से लागू नहीं हो पाया है।
  • इन क्षेत्रों में त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को अधिक महत्त्व दिया जाता है। पारंपरिक रीति-रिवाजों और आदिवासी स्व-शासन की संस्कृति की रक्षा में पेसा के महत्त्व को नजरअंदाज कर दिया जाता है। गाँवों के पारंपरिक नेतृत्वकर्ताओं की अनदेखी की जाती है और पंचायत प्रतिनिधियों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • पंचायत स्तर पर ग्राम सभाएँ गठित तो की जाती हैं लेकिन सरकारी कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन के लिये इनसे परामर्श नहीं किया जाता है।

आगे की राह

  • यदि पेसा अधिनियम को सही तरीके से लागू किया जाता है तो यह आदिवासी क्षेत्र में पतित होती हुई स्वशासन प्रणाली को फिर से जीवंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
  • यह पारंपरिक शासन प्रणाली में कमियों को दूर करने के साथ इसे लैंगिक स्तर पर अधिक समावेशी एवं लोकतांत्रिक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
  • ULB के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय

भारत में 'शहरी स्थानीय शासन' का अर्थ शहरी क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधियों से बनी सरकार से है। एक शहरी स्थानीय शासन का अधिकार क्षेत्र उन निर्दिष्ट शहरी क्षेत्रों तक सीमित है जिसे राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिये निर्धारित किया गया है। नगरीय शासन प्रणाली को 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।

भारत में आठ प्रकार की शहरी स्थानीय शासन प्रणाली हैं- नगरपालिका परिषद, नगरपालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, शहरी क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, शहरी क्षेत्र , पत्तन न्यास और विशेष उद्देश्य के लिये गठित एजेंसी।

मुख्य भाग

शहरी स्थानीय निकायों के समक्ष समस्याएँ

  • वित्तीय अभाव : शहरी स्थानीय निकाय, राज्य की संचित निधि से सहायता अनुदान प्राप्त करने के लिये राज्य सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं। सामान्यतः इनके कार्यों की तुलना में इनकी आय का स्रोत अपर्याप्त होता है। इनकी आय का मुख्य स्रोत इनके द्वारा एकत्र विभिन्न प्रकार के कर होते हैं। हालाँकि शहरी निकायों द्वारा एकत्र किये जाने वाले कर, प्रदत्त सेवाओं पर व्ययों की पूर्ति के लिये पर्याप्त नहीं होते हैं।
  • अनियोजित शहरीकरण: उचित योजना के अभाव में नगर निकाय के लिये सेवाओं की गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों रूप से जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकताओं के संदर्भ में पूर्ति करना कठिन होता है।
  • राज्य सरकार का अत्यधिक नियंत्रण: राज्य सरकार का शहरी स्थानीय निकायों पर नियंत्रण रहता है। इन पर होने वाला विधायी, प्रशासनिक, न्यायिक और वित्तीय नियंत्रण, इन्हें स्वशासी सरकारों के रूप में कार्य करने के बजाय अधीनस्थ इकाइयों में परिणत कर देता है।
  • एजेंसियों की बहुलता: राज्य सरकार के प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण में और शहरी स्थानीय सरकार के प्रति किसी जवाबदेही के बिना, एकल प्रयोजन एजेंसियों (Single Purpose Agencies) का गठन किया जाता है। नगर निकायों को इन एजेंसियों के लिये बजट में योगदान करना होता है जबकि इनका इनके ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रहता है।
  • लोगों की कम भागीदारी: साक्षरता और शैक्षिक स्तर के अपेक्षाकृत उच्च स्तर के बावजूद शहर के निवासी शहरी सरकारी निकायों के कार्य में पर्याप्त रुचि नहीं लेते हैं। विशेष प्रयोजन एजेंसियों और अन्य शहरी निकायों की बहुलता के कारण लोग अपनी भूमिका की सीमाओं का निर्धारण नहीं कर पाते हैं ।

आगे की राह

  • शहरी स्थानीय निकायों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाना: शहरी स्थानीय सरकारों के स्वतंत्र कार्य और वित्तीय रूप से सुरक्षित होने के लिये वित्तीय विकेंद्रीकरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • बेहतर वित्तीय डेटाबेस बनाना: स्थानीय स्तर पर खातों के रखरखाव और लेखा परीक्षा के अभाव में नगर निकायों के लिये कोई सत्यापन-योग्य वित्तीय डेटा नहीं होता है जिसके कारण निष्पादन अनुदान नहीं मिल पाता है ।
  • सक्रिय नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करना: इसे सुनिश्चित करने के लिये शहरी स्थानीय निकाय क्षेत्रीय सभाओं और वार्ड समितियों जैसे कार्यात्मक, विकेंद्रीकृत मंच का गठन कर सकते हैं। जो निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच चर्चा और विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करेंगे।
  • नागरिक शिकायत निवारण तंत्र का सृजन: शहरी स्थानीय निकाय शिकायतों को दर्ज करने के लिये एक प्रौद्योगिकी-सक्षम मंच स्थापित कर सकते हैं जो शहर की सरकारों को नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बनाएगा। इस तंत्र के माध्यम से नागरिकों को फीडबैक देने और शिकायतें क्लोज़ करने की भी अनुमति दी जानी चाहिये।

निष्कर्ष

शहरी स्थानीय निकाय (ULB) शहरों के प्रशासन जैसे- यातायात प्रबंधन और सीवेज उपचार आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार इन्हें वर्तमान में जटिल होती समस्याओं के समाधान में सक्षम बनाने हेतु आवश्यक शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये।