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Sambhav-2023

  • 10 Mar 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 105

    प्रश्न.1 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (Neglected Tropical Diseases- NTD) से आप क्या समझते हैं? इनके इलाज हेतु कुछ नवाचारी तरीके सुझाइए। (150 शब्द)

    प्रश्न.2 प्रच्छन्न भुखमरी (Hidden Hunger) के मुद्दे को हल करने के क्रम में फूड फोर्टिफिकेशन बहुत ही आशाजनक तरीका है। कुपोषण, अल्पपोषण और अतिपोषण जैसी समस्याओं को हल करने में यह किस सीमा तक एक स्थायी समाधान हो सकता है? (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इनके उपचार हेतु कुछ नवाचारी तरीकों का उल्लेख कीजिये।
    • प्रभावी और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTDs) परजीवी और जीवाणु से होने वाले रोगों का एक समूह है जिससे विश्व (मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में) में एक अरब से अधिक लोग प्रभावित होते हैं।
    • इन रोगों से सबसे गरीब और हाशिये पर रहने वाले समुदाय अधिक प्रभावित होते हैं और इन पर अन्य संक्रामक रोगों के समान ध्यान न दिये जाने के कारण इन्हें "उपेक्षित" कहा जाता है।

    मुख्य भाग:

    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 20 NTDs की पहचान की गई है जिनमें डेंगू बुखार, कुष्ठ रोग, रिवर ब्लाइंडनेस और स्लीपिंग सिकनेस जैसी बीमारियाँ शामिल हैं।
    • ये रोग अक्सर कीटों या दूषित जल और मृदा से फैलते हैं जिससे विकलांगता से लेकर अंधापन होने के साथ मृत्यु तक हो सकती है।
    • प्रभावित समुदायों के आर्थिक और सामाजिक विकास पर NTDs के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं क्योंकि इससे उत्पादकता कम होने के साथ स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि हो सकती है। हालाँकि कई NTDs इलाज योग्य हैं जिससे उनका नियंत्रण और उन्मूलन एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता बन जाता है।

    उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (NTDs) के उपचार और रोकथाम के लिये कई नवाचारी दृष्टिकोण अपनाए गए हैं जैसे:

    • समुदाय-निर्देशित उपचार: इस दृष्टिकोण में NTDs से प्रभावित समुदायों को सीधे उपचार प्रदान करने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना शामिल है। यह स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और बीमारियों एवं उपचार के बारे में जागरूकता की कमी जैसी बाधाओं को दूर करने में सहायक उपागम है।
    • व्यापक स्तर पर दवा वितरण: इस दृष्टिकोण में NTDs को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिये निवारक दवाओं द्वारा पूरे समुदायों का इलाज करना शामिल है। फाइलेरिया और ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के इलाज के लिये इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है।
    • मोबाइल प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल तकनीकों का उपयोग रोग निगरानी में सुधार, उपचार की निगरानी और समुदायों को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिये किया जा सकता है। उदाहरण के लिये बीमारी की व्यापकता और उपचार के परिणामों पर डेटा एकत्र करने और प्रसारित करने के लिये मोबाइल ऐप्स का उपयोग किया जा सकता है।
    • नई दवाओं और टीकों का विकास करना: NTDs के लिये नई दवाओं और टीकों को विकसित करने के लिये अनुसंधान जारी है। उदाहरण के लिये स्लीपिंग सिकनेस के इलाज के लिये फेक्सिनिडाज़ोल नामक एक नई दवा विकसित की गई है और डेंगू बुखार के लिये एक टीका वर्तमान में विकास की अवस्था में है।
    • अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों का समन्वय करना: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, मलेरिया नियंत्रण और एचआईवी/एड्स जैसे अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के साथ NTDs नियंत्रण और उन्मूलन प्रयासों को एकीकृत करने से इन बीमारियों के बोझ को कम करने और प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

    निष्कर्ष:

    उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTDs) वैश्विक स्वास्थ्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बने हुए हैं जिससे विश्व (मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में) में एक अरब से अधिक लोग प्रभावित हैं। हालांकि NTDs को मौजूदा हस्तक्षेपों और अभिनव दृष्टिकोणों जैसे समुदाय-निर्देशित उपचार, व्यापक स्तर पर दवा वितरण, मोबाइल प्रौद्योगिकी के उपयोग, नई दवाओं और टीकों के विकास एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के समन्वय के माध्यम से रोका जा सकता है। NTDs नियंत्रण और उन्मूलन में हुई प्रगति के बावजूद इससे प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये निरंतर प्रयास और निवेश करते रहना आवश्यक है।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • फोर्टिफिकेशन और प्रच्छन्न भुखमरी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • कुपोषण, अल्पपोषण और अतिपोषण की समस्या से निपटने के स्थायी उपाय के रूप में इसका उल्लेख कीजिये।
    • प्रभावी और समग्र निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • प्रच्छन्न भुखमरी (जिसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के रूप में भी जाना जाता है) कुपोषण का एक ऐसा रूप है जो आहार में आवश्यक विटामिन और खनिजों का पर्याप्त सेवन नहीं करने से होती है। कुपोषण के विपरीत (जो अक्सर अवरुद्ध विकास और दुबले शरीर के रूप में परिलक्षित होता है), प्रच्छन्न भुखमरी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि इसके लक्षण तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाते हैं।
    • प्रच्छन्न भुखमरी से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं जिनमें प्रतिरक्षा तंत्र का कमज़ोर होना, अवरुद्ध विकास, एनीमिया, अंधापन और यहाँ तक ​​कि मृत्यु भी शामिल हो सकती है। इसके दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं जैसे संज्ञानात्मक क्षमता और उत्पादकता में कमी आना।

    मुख्य भाग:

    निम्नलिखित तरीके से कुपोषण, अल्पपोषण और अतिपोषण की समस्या से निपटने के स्थायी उपाय के रूप में फूड फोर्टिफिकेशन प्रभावी हो सकता है:

    • पोषक तत्वों की कमी को दूर करना: विटामिन और खनिजों द्वारा गेहूँ के आटा, चावल और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन करने से लोगों में पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने (खासकर कम आय वाले देशों में जहाँ विविध प्रकार के आहार तक पहुँच सीमित होती है) में मदद मिल सकती है। इससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ पोषक तत्त्वों की कमी के कारण होने वाली बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • लागत-प्रभावी होना: सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिये फूड फोर्टिफिकेशन एक लागत-प्रभावी तरीका है क्योंकि इसे अपेक्षाकृत कम लागत पर काफी लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। इसमें न्यूनतम व्यवहार परिवर्तन और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है जिससे यह कुपोषण से निपटने का एक आसान और टिकाऊ तरीका बन जाता है।
    • सुरक्षित और प्रभावी होना: विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में पोषक तत्वों के सेवन को बढ़ाने के लिये फूड फोर्टिफिकेशन एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका हो सकता है। यह स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के साथ पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने में प्रभावी होगा।

    हालाँकि फूड फोर्टिफिकेशन की कुछ सीमाएँ हैं जैसे:

    • अतिपोषण पर सीमित प्रभाव होना: फूड फोर्टिफिकेशन से अल्पपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सकता है लेकिन इसका अतिपोषण पर सीमित प्रभाव पड़ता है, जो अत्यधिक कैलोरी और अस्वास्थ्यकर आहार के कारण होता है।
    • स्थिरता: इसको प्रभावी बनाने के लिये फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से उपभोग करने की आवश्यकता होती है लेकिन इसमें एक जोखिम यह है कि सरकार की नीतियों या बाज़ार की स्थितियों में बदलाव के कारण फोर्टीफिकेशन कार्यक्रम लंबे समय तक जारी नहीं रह सकते हैं।
    • गुणवत्ता नियंत्रण: फूड फोर्टिफिकेशन कार्यक्रमों की सफलता, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों पर निर्भर करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फोर्टीफाइड खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा हो। खराब गुणवत्ता नियंत्रण के परिणामस्वरूप या तो अपर्याप्त या अधिक पोषक तत्त्व हो सकते हैं जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • अंततः फूड फोर्टिफिकेशन कुपोषण, अल्पपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने का एक स्थायी तरीका हो सकता है लेकिन कुपोषण के मूल कारणों को दूर करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इसका अन्य रणनीतियों के साथ समन्वय किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    कुपोषण एक जटिल मुद्दा है जिससे विश्व भर में लाखों लोग प्रभावित होते हैं। इन मुद्दों को हल करने के लिये एक स्थायी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिससे कुपोषण के मूल कारणों को दूर करने के साथ सभी के लिये स्वस्थ, विविध और पोषक तत्वों से भरपूर आहार सुनिश्चित किया जा सकता है।

    इसमें सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुँच में सुधार करना, स्वस्थ खान-पान की आदतों को बढ़ावा देना और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के उपभोग को कम करना शामिल है। इन प्रयासों की सफलता के लिये विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग के साथ समुदायों और हितधारकों के बीच समन्वय करना महत्त्वपूर्ण है। कुपोषण को दूर करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि स्वस्थ और उत्पादक जीवन के लिये आवश्यक पोषक तत्वों तक सभी की पहुँच सुनिश्चित हो सके।

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