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Sambhav-2023

  • 15 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 6

    प्रश्न-1. केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में संवैधानिक और संविधानेत्तर प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।

    प्रश्न-2. संविधान में उल्लिखित आपात स्थितियों के प्रकारों का वर्णन कीजिये। चर्चा कीजिये कि राष्ट्रीय आपातकाल से मौलिक अधिकार कैसे प्रभावित होते हैं। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति का परिचय दीजिये जो मज़बूत और विश्वसनीय केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित है।
    • इस संदर्भ में संवैधानिक तथा अतिरिक्त संविधानेत्तर प्रावधानों जैसे आयोगों, क्षेत्रीय परिषदों आदि का उल्लेख कीजिये ।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • भारत का संविधान अपने स्वरुप में संघीय है तथा सभी शक्तियाँ (विधायी, कार्यपालक और वित्तीय) केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित हैं। इसकी संघीय भावना को पूरा करने के साथ केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर सहयोग स्थापित करने हेतु विभिन्न आयोगों और समितियों का गठन किया गया था।
    • इसलिये केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों के विभिन्न आयामों को विनियमित करने के लिये संविधान में विस्तृत प्रावधान हैं। केंद्र-राज्य संबंधों का अध्ययन तीन प्रमुख शीर्षकों के तहत किया जा सकता है: विधायी संबंध, प्रशासनिक संबंध और वित्तीय संबंध।

    मुख्य भाग

    संवैधानिक प्रावधान:

    केंद्र-राज्य के विधायी संबंध:

    • संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केन्द्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
    • भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के आलोक में यह क्षेत्र और कानून दोनों ही आधार पर केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित करता है।
    • विधायी विषयों का विभाजन (अनुच्छेद 246)
      • भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों सूची- I (संघ), सूची- II (राज्य) और सूची- III (समवर्ती) के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न विषयों के विभाजन का प्रावधान किया गया है।
    • राज्य के क्षेत्राधिकार में संसद विधान (अनुच्छेद 249): असामान्य परिस्थिति में शक्तियों के इस विभाजन को संशोधित या निलंबित कर दिया जाता है।

    प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263):

    • संविधान के अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
    • प्रशासनिक उत्तरदायित्व के विभाजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
      • कानून का बेहतर कार्यान्वयन
      • केंद्र और राज्य के बीच समन्वय स्थापित करना
      • केंद्र और राज्य के बीच विवादों का निपटारा करना
    • केंद्र और राज्य के बीच समन्वय हेतु अन्य संवैधानिक प्रावधान हैं जैसे:
      • केंद्र एवं राज्यों में लोक अधिनियमों ,रिकार्डों के लिये भारत के भू- क्षेत्र को पूर्ण विश्वास और साख प्रदान की जानी चाहिये (अनुच्छेद 261)।
      • संविधान का अनुच्छेद 263 केंद्र तथा राज्यों के मध्य समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से अंतर्राज्यीय परिषद के गठन का प्रावधान करता है।
      • संसद/राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधानमंडल को या इसके विपरीत कार्यों का पारस्परिक हस्तांतरण किया जाना।
      • संचार के साधनों के निर्माण और रखरखाव , रेलवे की सुरक्षा, मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा के प्रावधान आदि के संबंध में केंद्र द्वारा राज्यों को निर्देश दिया जाना ।
      • प्रशासन में उच्च प्रतिमान को बनाए रखने के लिये केंद्र और राज्यों के संयुक्त नियंत्रण के तहत अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान।

    वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 256-291):

    • संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।

    इस संबंध में इन संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर कई संविधानेत्तर प्रावधान भी किये गए हैं:

    • केंद्र-राज्य संबंधों को बेहतर बनाने से संबंधित आयोग:
      • प्रशासनिक सुधार आयोग: इसने कुछ सिफारिश की हैं जैसे :
        • सार्वजनिक जीवन में लंबे अनुभव वाले और गैर-पक्षपाती रवैये वाले व्यक्तियों की ही राज्यपाल के रूप में नियुक्ति की जानी चाहिये।
        • केंद्र पर निर्भरता को कम करने के लिये राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधनों का आवंटन किया जाना चाहिये।
      • सरकारिया आयोग की सिफारिश:
        • अनुच्छेद 356 का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिये।
        • राज्य के विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा वीटो किये जाने के संदर्भ में राज्य के लिये इसका कारण बताया जाना चाहिये।
        • भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये कमीशनरी प्रारंभ करना चाहिये।
      • पुंछी आयोग:
        • राज्यों को सौंपे गए मामलों पर केंद्र को संसदीय वर्चस्व स्थापित करने में विवेकपूर्ण होना चाहिये।
        • राष्ट्रपति शासन से संबंधित मामलों का निर्णय करते समय बोम्मई वाद के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
      • सलाहकारी निकायों और संगठनों जैसे नीति आयोग, राष्ट्रीय एकता परिषद, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण परिषद, स्थानीय सरकार की केंद्रीय परिषद, क्षेत्रीय परिषद, उत्तर-पूर्वी परिषद, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद आदि का प्रभावी उपयोग होना चाहिये।
      • व्यापक मामलों पर केंद्र-राज्य समन्वय हेतु विभिन्न महत्वपूर्ण सम्मेलनों का वार्षिक आयोजन हो जैसे :
        • राज्यपालों का सम्मेलन (राष्ट्रपति की अध्यक्षता में)।
        • मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन (प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में)।
        • मुख्य सचिवों का सम्मेलन (कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में)।
          • पुलिस महानिरीक्षकों का सम्मेलन।
          • मुख्य न्यायाधीशों का सम्मेलन, आदि।

    निष्कर्ष

    हालांकि केंद्र-राज्य संबंधों से उभरने वाले मुद्दों से निपटने के लिये विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों के साथ कुछ आयोगों ने भी इस संबंध में सिफारिशें की हैं लेकिन उचित तरीके से नागरिकों के कल्याण हेतु इन प्रावधानों के बेहतर कार्यान्वयन की आवश्यकता है।


    उत्तर: 2

    दृष्टिकोण

    • आपातकाल के बारे में बताते हुए संविधान में वर्णित विभिन्न प्रकार के आपातकाल का वर्णन कीजिये।
    • मौलिक अधिकारों पर राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभावों की विवेचना कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधान निहित हैं।
      • ये प्रावधान केंद्र सरकार को लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था और संविधान की रक्षा के साथ देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा,जैसी किसी भी असामान्य स्थिति का समाधान करने में सक्षम बनाते हैं।

    मुख्य भाग

    • संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का प्रावधान है:
      • राष्ट्रीय आपातकाल: युद्ध, बाह्य आक्रमण और सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल (अनुच्छेद 352)। इसके लिये संविधान में 'आपातकाल की उद्घोषणा' पद का प्रयोग किया गया है।
      • राज्य आपातकाल' या 'संवैधानिक आपातकाल: राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण लगने वाले आपातकाल (अनुच्छेद 356) को इस आपातकाल के रुप में जाना जाता है। इसे लोकप्रिय रूप से 'राष्ट्रपति शासन' के रूप में भी जाना जाता है। हालाँकि संविधान में इस स्थिति के लिये 'आपातकाल' शब्द का उपयोग नहीं किया गया है।
      • भारत के वित्तीय स्थायित्व अथवा साख के खतरे के कारण अधिरोपित आपातकाल, वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) कहा जाता है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल का मूल अधिकारों पर प्रभाव:
      • अनुच्छेद 358 और 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकारों पर प्रभाव का वर्णन करते हैं।
      • अनुच्छेद 358, अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) के निलंबन से संबंधित है। ये दो प्रावधान निम्न प्रकार से वर्णित किये जाते हैं:
      • अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मूल अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 358 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं। आपातकाल की समाप्ति के बाद अनुच्छेद 19 स्वतः ही मूल रुप में प्रभावी हो जाता है।
      • 44वें संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि अनुच्छेद 19 को केवल तभी निलंबित किया जा सकता है जब राष्ट्रीय आपातकाल युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर लगाया गया हो, न कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर।
      • अन्य मूल अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिये किसी भी न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित करने का अधिकार प्राप्त होता है। इस प्रकार इसके अंतर्गत मूल अधिकार नहीं बल्कि उनका लागू होना निलंबित होता है।
        • यह निलंबन उन्ही मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में निर्दिष्ट होते हैं।
        • यह निलंबन आपातकाल की अवधि अथवा आदेश में वर्णित अल्पावधि हेतु लागू हो सकता है।
        • अनुमोदन के लिये इस आदेश को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
        • 44वें संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिये न्यायालय जाने के अधिकार को निलंबित नहीं कर सकते हैं।

    निष्कर्ष

    • लोगों के मूल अधिकारों और राष्ट्रीय हित के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) जैसे अधिकार के निलंबन को आपातकाल के दौरान प्रतिवंधित कर दिया गया और यह अधिकार आपातकाल के दौरान भी लागू रहता है।
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