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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

नवंबर 2022

  • 30 Nov 2022
  • 33 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  विधि एवं न्याय  

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण  

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, यह भारत भर में सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में सवर्णों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (Economically Weaker Sections- EWS) को 10% आरक्षण प्रदान करता है। 

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय EWS के लिये पात्रता की पहचान एक ऐसे व्यक्ति के रूप में करता है जिसकी सकल वार्षिक पारिवारिक आय आठ लाख रुपए से कम है या मंत्रालय द्वारा निर्धारित सीमा से कम कृषि या आवासीय संपत्ति का मालिक है।  

संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह निम्नलिखित तीन तरीकों से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है:  

  • आर्थिक मानदंड आरक्षण प्रदान करने का आधार है:  
    • अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और गैर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की क्रीमी लेयर को EWS की परिभाषा से बाहर रखा गया है 
    • अतिरिक्त 10% आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय की गई 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है।  

मूल संरचना का सिद्धांत न्यायिक सिद्धांत को संदर्भित करता है कि संविधान की मूल विशेषताओं को संसद द्वारा संशोधित या रद्द नहीं किया जा सकता है। समानता मूल संरचना के सिद्धांत की एक प्रमुख विशेषता है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधन को बरकरार रखते हुए कहा कि आर्थिक मानदंड के आधार पर आरक्षण संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। न्यायालय ने कहा कि EWS के दायरे से SC, ST और OBC को बाहर करना गैर-भेदभाव एवं गैर-बहिष्कार के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान में पहले से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण हेतु विशेष प्रावधान मौजूद हैं। EWS श्रेणी से संबंधित लोग एक और अलग वंचित समूह हैं, इसलिये EWS आरक्षण को उचित मानने के लिये अन्य वंचित समूहों को शामिल करने की आवश्यकता नहीं थी। न्यायालय ने यह भी कहा कि EWS के लिये अतिरिक्त 10% आरक्षण, 50% की आरक्षण सीमा का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि:  

  • सीमा कठोर (इनफ्लेक्सिबल) नहीं है। 
  • यह केवल SC, ST और OBC के आरक्षण पर लागू होती है।  

  इलेक्ट्रॉनिक एवं आईटी  

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 

केंद्र सरकार ने एक संशोधित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक जारी किया है, जिसे अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 कहा जाता है। विधेयक डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा और भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड की स्थापना करने का प्रयास करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताएँ हैं: 

  • प्रयोज्यता: विधेयक भारत के भीतर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर लागू होगा, जिसमें ऐसा डेटा शामिल है जो:  
    • ऑनलाइन जमा होता है। 
    • ऑफलाइन जमा होता है और उसका डिजिटलीकरण किया जाता है।  

यह भारत के बाहर व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर भी लागू होगा, अगर यह भारत में वस्तुओं या सेवाओं को पेश करने या व्यक्तियों की प्रोफाइलिंग के लिये किया जा रहा है। व्यक्तिगत डेटा को किसी व्यक्ति के डेटा के तौर पर परिभाषित किया जाता है जिससे वह व्यक्ति पहचाना जाता है या वह डेटा उससे संबंधित होता है। प्रसंस्करण को डिजिटल व्यक्तिगत डेटा पर किये जाने वाले ऑटोमेटेड ऑपरेशन या सेट ऑफ ऑपरेशंस के तौर पर परिभाषित किया जाता है। इसमें संग्रह, भंडारण, उपयोग और साझा करना शामिल है। 

  • सहमति: व्यक्तिगत डेटा को केवल वैध उद्देश्य के लिये संसाधित किया जा सकता है जिसके लिये किसी व्यक्ति ने सहमति दी हो। निम्नलिखित निर्दिष्ट मामलों में सहमति दी गई मानी जाएगी: 
    • कानून के तहत किसी कार्य का निष्पादन, या राज्य द्वारा सेवा या लाभ का प्रावधान।  
    • मेडिकल इमरजेंसी।  
    • रोज़गार का उद्देश्य। 
    • जनहित का आधार जैसे- धोखाधड़ी को रोकना, सूचना संबंधी सुरक्षा और क्रेडिट स्कोरिंग। 
  • डेटा प्रिंसिपल के अधिकार: जिस व्यक्ति का डेटा प्रोसेस हो रहा है (डेटा प्रिंसिपल), उसके निम्नलिखित अधिकार होंगे: 
    (i) प्रोसेसिंग के लिये पुष्टि हासिल करना और प्रोसेस होने वाले डेटा और प्रोसेसिंग की गतिविधियों की समरी/सारांश हासिल करना। 
    (ii) करेक्शन और मिटाने की मांग करना।
    (iii) मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में अधिकारों के उपयोग के लिये किसी अन्य व्यक्ति को नामांकित करना।
    (iv) शिकायत निवारण। 
  • डेटा प्रिंसिपल हेतु: यदि कोई उपयोगकर्त्ता ऑनलाइन सेवा के लिये साइन-अप करते समय झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है या झूठी शिकायत दर्ज करता है, तो उपयोगकर्त्ता पर 10,000 रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। 
  • छूट: सरकार कुछ व्यवसायों को उपयोगकर्त्ताओं की संख्या और इकाई द्वारा संसाधित व्यक्तिगत डेटा की मात्रा के आधार पर विधेयक के प्रावधानों का पालन करने से छूट दे सकती है। 
  • यह देश के स्टार्टअप्स को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिन्होंने शिकायत की थी कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 बहुत अधिक "अनुपालन गहन" था। 
  • डेटा फिड्यूशरी हेतु: विधेयक उन व्यवसायों पर दंड लगाने का प्रस्ताव करता है जो डेटा उल्लंघनों से गुज़रते हैं या उल्लंघन होने पर उपयोगकर्त्ताओं को सूचित करने में विफल रहते हैं। 
  • ज़ुर्माना 50 करोड़ रुपए से लेकर 500 करोड़ रुपए तक लगाया जाएगा। 

  मीडिया एवं ब्रॉडकास्ट  

टीवी चैनलों हेतु नए मानदंड 

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 'भारत में सैटेलाइट टेलीविज़न चैनलों की अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिये दिशा-निर्देश, 2022' को अधिसूचित किया। 

  • 2022 के दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 
    • एक सैटेलाइट टीवी चैनल को अपलिंक करना (एक सेटेलाइट को कंटेंट ट्रांसमिट करना)।
    • एक सैटेलाइट टीवी चैनल को डाउनलिंक करना (एक सेटेलाइट से कंटेंट प्राप्त करना)।
    • टेलीपोर्ट/टेलीपोर्ट हब का सेटअप तैयार करना (अर्थ स्टेशन फेसिलिटी, जहाँ कई टीवी चैनलों को एक सेटेलाइट से अपलिंक किया जा सकता है)।
  • इकाई को एक निर्दिष्ट नेटवर्थ के मानदंड को पूरा करना चाहिये जो एक करोड़ रुपए से 20 करोड़ रुपए (विभिन्न श्रेणियों के लिये) के बीच होता है।
  • गृह मंत्रालय और अन्य प्राधिकरणों से मंज़ूरी प्राप्त करने के 30 दिनों के भीतर अनुमति दी जाएगी। 
  • वार्षिक अनुमति शुल्क देय होगा जो दो लाख रुपए से 15 लाख रुपए के बीच होगा। 
  • अनुमति 10 वर्ष के लिये दी जाएगी।

अपलिंकिंग की शर्तें

  • एक टीवी चैनल को अपलिंक करने के लिये इकाई के अधिकांश निदेशकों और प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों तथा संपादकीय कर्मचारियों को भारत का निवासी होना चाहिये। 
  • एक समाचार और समसामयिक मामलों के चैनल को अपलिंक करने के लिये इकाई का प्रबंधन तथा नियंत्रण भारतीय हाथों में होना चाहिये। 
  • टीवी चैनलों की अपलिंकिंग कार्यक्रम और विज्ञापन संहिता तथा केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के तहत बनाए गए नियमों के अधीन होगी।

कार्यक्रमों का लाइव टेलीकास्ट

  • गैर-समाचार और समसामयिक मामलों के चैनल के लाइव टेलीकास्ट कार्यक्रम की तारीख से कम-से-कम 15 दिन पहले मंत्रालय के साथ पंजीकृत होना चाहिये। पहले के दिशा-निर्देशों के तहत पूर्व अनुमति की आवश्यकता थी।

सार्वजनिक सेवा के प्रसारण की बाध्यता:

  • केंद्र सरकार राष्ट्रीय हित में कंटेंट के प्रसारण के लिये चैनलों को एक सामान्य सलाह जारी कर सकती है और चैनल को इसका पालन करना होगा। इन दिशा-निर्देशों के तहत अनुमति प्राप्त संस्थाएँ- स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एकता तथा पर्यावरण की सुरक्षा पर सामग्री सहित राष्ट्रीय महत्त्व और सामाजिक प्रासंगिकता के विषयों पर कम-से-कम 30 मिनट के लिये सार्वजनिक सेवा का प्रसारण कर सकती हैं। 

  ऊर्जा   

राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम 

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 और 2025-26 के बीच की अवधि के लिये राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम को अधिसूचित किया।

राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम 

  • राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम, डेवलपर्स को प्रत्यक्ष हस्तांतरण, ब्याज मुक्त ऋण और सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • कार्यक्रम को दो चरणों में लागू करने का प्रस्ताव किया गया है।
  • चरण- I का बजट परिव्यय 858 करोड़ रुपए है।

कार्यान्वयन एजेंसियाँ:

  • भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसी है।
  • बायोगैस कार्यक्रम को राज्य की नामित कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी (PIA) द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा, जिसमें कृषि/ग्रामीण विकास विभाग शामिल है।
  • वित्तीय संस्थान जैसे- बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, RBI द्वारा अनुमोदित संस्थान और इरेडा भी PIA के परामर्श से बायोगैस कार्यक्रम को लागू कर सकते हैं।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत आने वाली उप-योजनाएँ 

  • यह कार्यक्रम निम्नलिखित उप-योजनाओं के लिये एक व्यापक योजना है:
    • अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम: यह शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों/अवशिष्टों से बायोगैस, जैव-संपीड़ित प्राकृतिक गैस और बिजली संयंत्रों (नगर निगम के ठोस कचरे से बिजली परियोजनाओं को छोड़कर) के उत्पादन हेतु अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
    • पहले चरण में इस कार्यक्रम के लिये कुल अपेक्षित परिव्यय 600 करोड़ रुपए है।
    • बायोमास कार्यक्रम: यह योजना ब्रिकेट (दहनशील बायोमास सामग्री)/पैलेट निर्माण संयंत्रों की स्थापना और बायोमास आधारित सह-उत्पादन औद्योगिक परियोजनाओं को बढ़ावा देने में सहायता करेगी।  पहले चरण में इस घटक का परिव्यय 150 करोड़ रुपए अनुमानित है। 
    • बायोगैस कार्यक्रम: इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस संयंत्रों के लिये सहायता प्रदान की जाएगी और ऐसे संयंत्रों से प्राप्त जैव-खाद का उपयोग कृषि में किया जाएगा।  बायोगैस संयंत्रों के पूरा होने और चालू होने के बाद डेवलपर के बैंक खाते में वित्तीय सहायता जमा की जाएगी। पहले चरण में इस घटक पर 100 करोड़ रुपए खर्च होने की उम्मीद है। 

  पशु कल्याण  

पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा 

हाल ही में सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिये पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा पेश किया है। यह मसौदा मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है। प्रस्तावित परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं

  • पशुओं के लिये स्वतंत्रता: 
    • मसौदे में एक नई धारा 3A को शामिल करने का भी प्रस्ताव है, जो पशुओं को 'पाँच प्रकार की स्वतंत्रताएँ' प्रदान करता है। 
    • किसी पशु को रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसकी देखभाल में रह रहे पशु के निम्नलिखित अधिकार हों: 
      • प्यास, भूख और कुपोषण से मुक्ति। 
      • पर्यावरण के कारण होने वाली असुविधा से मुक्ति। 
      • दर्द, चोट और बीमारियों से मुक्ति। 
      • प्रजातियों से सामान्य व्यवहार करने की स्वतंत्रता। 
      • भय और संकट से मुक्ति 
  • वीभत्स क्रूरता के लिये दंड: 
    • न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस क्षेत्र के पशु चिकित्सकों के परामर्श से न्यूनतम 50,000 रुपए का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है और इसे बढ़ाकर 75,000 रुपए किया जा सकता है या ज़ुर्माना राशि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जा सकती है (इनमें से जो भी अधिक हो) या अधिकतम एक वर्ष का कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। 
  • पशु हत्या के लिये दंड: ज़ुर्माने के साथ अधिकतम 5 वर्ष का कारावास। 
  • धर्म द्वारा निर्धारित हत्या: अधिनियम के तहत किसी धर्म की आवश्यकताओं के अनुसार मारे गए जानवरों को अपराध नहीं माना जाता है। मसौदा विधेयक निर्दिष्ट करता है कि इस तरह की हत्या एक लाइसेंस प्राप्त बूचड़खाने में की जानी चाहिये। 
  • पशु कल्याण बोर्ड: केंद्र सरकार अधिनियम के तहत पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना करती है। मसौदा विधेयक बोर्ड के अधिकारियों को उस परिसर में प्रवेश करने और निरीक्षण करने के लिये अधिकृत करने का अधिकार देता है जहाँ पशुओं को रखा जा रहा है। 

  पर्यावरण  

दीर्घकालीन निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति 

भारत ने 27वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP27) में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) को अपनी दीर्घकालीन निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति  प्रस्तुत की।

रणनीति की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • संसाधनों का उपयोग
    • ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • फॉसिल फ्यूल में निष्पक्ष, सुचारु, सतत् और समावेशी तरीके से संक्रमण किया जाएगा।   
  • परिवहन क्षेत्र
    • इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, जैव-ईंधन के बढ़ते उपयोग, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण और हरित हाइड्रोजन ईंधन से परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की उम्मीद है। 
    • भारत वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण और सार्वजनिक परिवहन की ओर एक बदलाव पर ध्यान केंद्रित करेगा। 
  • शहरीकरण:
    • शहरी विकास स्मार्ट सिटी पहल, एकीकृत योजना, नवीन ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन तथा प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड द्वारा संचालित होगा।
  • औद्योगिक क्षेत्र
    • औद्योगिक क्षेत्र में निम्न कार्बन विकास में संक्रमण से ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा पहुँच और रोज़गार पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। 
    • ऊर्जा दक्षता, संबंधित प्रक्रियाओं में उच्च स्तर पर विद्युतीकरण में सुधार और भौतिक दक्षता को बढ़ाने एवं सर्कुलर अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिये रीसाइकलिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 
  • निम्न कार्बन विकास में संक्रमण
    • निम्न कार्बन विकास में संक्रमण में नई तकनीक और नए अवसंरचना को विकसित करने की लागत और संक्रमण की दूसरी लागत भी शामिल होगी। 
    • विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्तपोषण के प्रावधान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी और मुख्य रूप से सार्वजनिक स्रोतों से अनुदान तथा रियायती ऋण के रूप में इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। 

ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 को अधिसूचित किया है।

  • नियमों की प्रमुख निम्नलिखित  विशेषताएँ है: 
    • ये नियम ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 का स्थान लेते हैं।
    • 2022 नियम ई-अपशिष्ट के प्रबंधन का विवरण प्रदान करते हैं। 
    • ई-कचरे का अर्थ बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं। इनमें सोलर फोटो-वोल्टाइक मॉड्यूल या ऐसे पैनल या सेल शामिल हैं, जिन्हें अपशिष्ट के रूप में फेंक दिया जाता है। 
    • नियम ई-अपशिष्ट के प्रबंधन (विनिर्माण, बिक्री, पुनर्चक्रण, नवीनीकरण) में शामिल मैन्युफैक्चरर, निर्माता, नवीनीकरणकर्त्ता, भंजक (डिस्मैंटलर) और पुनर्चक्रण पर लागू होंगे। इन संस्थाओं को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा विकसित एक ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा। 
    • नियम 1 अप्रैल, 2023 से लागू होंगे।  
  • विभिन्न संस्थाओं की जिम्मेदारियाँ
    • नियम ई-अपशिष्ट के प्रबंधन में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के लिये जिम्मेदारियाँ निर्धारित करते हैं। 
    • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
      • निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण के दौरान उत्पादित ई-कचरे का संग्रह और पुनर्चक्रण/निपटान किया जाए।
      • बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मैन्युफैक्चरर ई-कचरे की रीसाइकिलिंग के निश्चित लक्ष्यों को पूरा करेंगे।
      • पुनर्चक्रणकर्त्ता यह सुनिश्चित करेंगे कि रीसाइकिलिंग केंद्र और प्रक्रिया सीपीसीबी के मानकों के अनुरूप है और उनके केंद्र में रीसाइकिल न की गई सामग्री को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ता को भेजा जाता है। 
      • ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण के लिये कुछ लक्ष्यों को पूरा करने वाले विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माता, पुनर्चक्रणकर्त्ता यह सुनिश्चित करते हैं कि पुनर्चक्रण सुविधा और प्रक्रिया CPCB के मानकों के अनुरूप है।
      • थोक उपभोक्ताओं का अर्थ है, वे संस्थाएँ जिन्होंने वित्तीय वर्ष में किसी भी समय कम-से-कम 1,000 विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग किया है। इसमें ई-रीटेलर्स भी शामिल हैं। 
  • जोखिमकारक पदार्थों का कम उपयोग
    • नियम विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादकों के लिये उनके उपकरणों में खतरनाक पदार्थों का उपयोग कम करने हेतु कुछ मानक निर्धारित करते हैं।
    • इनके तहत उत्पादित नए उपकरणों में सीसा, पारा, कैडमियम और हेक्सावलेंट क्रोमियम नहीं होना चाहिये। CPCB बाज़ार में उपकरणों का यादृच्छिक नमूनाकरण और जाँच करेगा कि क्या उनमें खतरनाक पदार्थ कम इस्तेमाल किया गया है। 
  • स्टीयरिंग समिति: 
    • नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये CPCB के अध्यक्ष के अधीन एक समिति का गठन किया जाएगा।
    • समिति के सदस्यों में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी और नवीन एवं अक्षय ऊर्जा जैसे विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। 
    • इसमें इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता और उत्पादक संघ (Producer and Manufacturer Association) तथा ई-कचरा पुनर्चक्रण संघों के प्रतिनिधि भी होंगे। 

  वित्त  

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क 

  • वित्त मंत्रालय ने सोवरिन ग्रीन बॉण्ड के लिये फ्रेमवर्क जारी किया है। 
    • ग्रीन बॉण्ड पर्यावरणीय रूप से सतत् और जलवायु उपयुक्त परियोजनाओं में निवेश हेतु धनराशि जुटाने के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं।

 मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • धनराशि का इस्तेमाल
    • ग्रीन बॉण्ड जारी करने से प्राप्त आय का उपयोग पात्र हरित परियोजनाओं के लिये वित्तीय/पुनर्वित्तीय व्यय हेतु किया जाएगा। परियोजनाओं की पात्र श्रेणी में निम्नलिखित शामिल हैं: 
      (i) अक्षय ऊर्जा (सौर/पवन/बायोमास/जल विद्युत)।
      (ii) स्वच्छ परिवहन।
      (iii) जलवायु परिवर्तन अनुकूलन। 
      (iv) सतत् जल और अपशिष्ट प्रबंधन।
      (v) प्रदूषण निवारण और नियंत्रण। 
  • परियोजना का चयन और वित्तपोषण: 
    • परियोजनाओं के चयन और मूल्यांकन में सहायता के लिये वित्त मंत्रालय द्वारा एक हरित वित्त कार्य समिति का गठन किया जाएगा।
    • समिति धनराशि के आवंटन की भी समीक्षा करेगी। 
    • इसकी अध्यक्षता मुख्य आर्थिक सलाहकार करेगा और इसकी बैठक वर्ष में कम-से-कम दो बार होगी। 
    • समिति में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय जैसे अन्य मंत्रालयों और नीति आयोग के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। 
  • रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क:
    • बॉण्ड की आय के वितरण के बारे में निवेशकों को सूचित करने के लिये एक वार्षिक रिपोर्ट जारी की जाएगी। 
    • रिपोर्ट में निम्नलिखित पर जानकारी शामिल होगी: 
      (i) आवंटित आय और व्यय के प्रकार (कर, सब्सिडी) की सूची। 
      (ii) वित्तपोषित परियोजनाओं का विवरण और स्थिति। 
      (iii) पर्यावरण संकेतकों पर मात्रात्मक संकेतकों  (जैसे कार्बन तीव्रता में कमी का संकेत) में परियोजनाओं का अपेक्षित प्रभाव। 

  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण  

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति 

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने आत्महत्याओं की समस्या के समाधान के लिये राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति जारी की है।
    • मंत्रालय के अनुसार, भारत में 15-29 आयु वर्ग के लोगों में आत्महत्या मृत्यु का प्रमुख कारण है।
  • रणनीति मौजूदा नीतियों तथा कानूनों पर आधारित है। उदाहरण के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल,  2017 आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और इसके तहत सरकार को किसी भी ऐसे व्यक्ति की देखभाल करनी होगी जिसने आत्महत्या का प्रयास किया है। 
    • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014 कई उपायों का सुझाव देती है जैसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जुड़ी शर्मिंदगी या अपमान को दूर करना। वर्ष 2020 में आत्महत्या की दर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 11.3 थी। 
    • रणनीति 2030 तक इस दर को 10% तक कम करने का समग्र लक्ष्य निर्धारित करती है। यह इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करती है।

मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं: 

  • उद्देश्य: रणनीति निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों को निर्धारित करती है: 
    (i) आत्महत्या की रोकथाम के लिये संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना।
    (ii) स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करना। 
    (iii) आत्महत्या की रोकथाम के लिये सामुदायिक और सामाजिक सहयोग बढ़ाना।
    (iv) आत्महत्या पर डेटा कलेक्शन में सुधार करना।
  • कार्य संरचना
    • प्रत्येक उद्देश्य के लिये रणनीतिक दस्तावेज़ में निम्नलिखित प्रावधान हैं:
      (i) रणनीतियाँ 
      (ii) कार्रवाई
      (iii) सफलता के संकेतक
      (iv) प्रत्येक कार्रवाई के लिये ज़िम्मेदार हितधारक 
      (v) कार्रवाई के लिये समय-सीमा 
  • आत्महत्या करने के सामान्य तरीकों तक पहुँच कम करना:
    • अल्पावधि की रणनीति के तहत यह खतरनाक कीटनाशकों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रस्ताव करती है जिसके लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कीटनाशकों पर प्रतिबंध को लागू करना सफलता का संकेतक होगा।
    • मध्यम अवधि में यह रणनीति कीटनाशकों के सुरक्षित स्टोरेज और निपटान को लागू करने का प्रस्ताव करती है, जो ज़हरीले कीटनाशकों के कारण होने वाली आत्महत्याओं की संख्या में कमी से पता चलेगा। लंबी अवधि में यह वैकल्पिक कीट नियंत्रण विधियों की उपलब्धता बढ़ाने का प्रस्ताव करती है और जैव-कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि इसकी सफलता का संकेत होगा। 
    • यह 21 वर्ष से अधिक आयु के लिये कीटनाशकों की बिक्री को लाइसेंस प्राप्त खरीद तक सीमित करती है और कीटनाशकों के सुरक्षित भंडारण और निपटान के लिये ज़िम्मेदार कर्मियों की नियुक्ति का प्रस्ताव करती है।
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