जुलाई 2022 | 03 Aug 2022
PRS के प्रमुख हाइलाइट्स
- वित्त
- वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान
- सोशल स्टॉक एक्सचेंज
- खेल
- राष्ट्रीय डोपिंग रोधी विधेयक, 2021
- मध्यस्थता विधेयक, 2021
- ऊर्जा
- अक्षय खरीद और ऊर्जा भंडारण दायित्व
- शिक्षा
- उच्च शिक्षण संस्थानों की समीक्षा
- उपभोक्ता मामले
- सेवा शुल्क लगाने के निषेध पर दिशा-निर्देश
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA)
- गुणवत्ता नियंत्रण कक्ष
- पर्यावरण
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
वित्त
वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो
कैबिनेट नियुक्ति समिति (Appointments Committee of the Cabinet- ACC) ने बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) के स्थान पर वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो (FSIB) की स्थापना के लिये एक सरकारी प्रस्ताव पारित किया है।
वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो (FSIB):
परिचय
- वित्त मंत्रालय ने एक वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो (FSIB) का गठन किया।
- FSIB वित्तीय सेवा संस्थानों के बोर्ड में पूर्णकालिक निदेशकों और गैर-कार्यकारी अध्यक्षों के रूप में नियुक्ति के लिये व्यक्तियों की सिफारिश करेगा।
- वित्तीय सेवा संस्थानों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के बीमाकर्त्ता शामिल हैं।
- FSIB बैंक्स बोर्ड ब्यूरो की जगह लेता है जिसके पास समान जनादेश था।
संयोजन
- FSIB में एक अंशकालिक अध्यक्ष, चार पदेन सदस्य और केंद्र सरकार द्वारा नामित छह अंशकालिक सदस्य होंगे। पदेन सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वित्तीय सेवा विभाग के सचिव।
- सार्वजनिक उद्यम विभाग के सचिव।
- भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के एक डिप्टी गवर्नर।
- मनोनीत सदस्यों को पूर्व बैंकरों, पूर्व नियामकों, शिक्षाविदों और व्यावसायिक व्यक्तियों में से चुना जाएगा।
FSIB के कार्य:
- निदेशकों और अध्यक्षों के रूप में नियुक्ति के लिये व्यक्तियों की सिफारिश करने के अलावा, FSIB केंद्र सरकार को निम्नलिखित पर सलाह देगा:
- वित्तीय सेवा संस्थानों की वांछित प्रबंधन संरचना।
- वित्तीय संस्थानों में निदेशकों के लिये आचार संहिता और नैतिकता का निर्माण एवं प्रवर्तन।
- ऐसे संस्थानों को व्यावसायिक रणनीति और पूंजी जुटाने की योजना विकसित करने में मदद करना।
- प्रबंधन कर्मियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने तत्काल प्रभाव से रुपए (INR) में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा के लिये एक तंत्र स्थापित किया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारतीय रुपए में निर्यात और आयात के चालान, भुगतान एवं निपटान की अनुमति दी है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते के प्रमुख तत्त्व:
- भारतीय निर्यात पर जोर देते हुए वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना।
- भारतीय रुपए में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि का समर्थन करना।
- नई व्यवस्था लागू होने तक अधिकृत डीलर बैंकों को RBI से मंज़ूरी लेनी होगी।
- इस व्यवस्था के तहत सभी निर्यात और आयात का मूल्यवर्ग और चालान रुपए में किया जाएगा।
- बाज़ार दो व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रा विनिमय दर का निर्धारण करेगा।
समिति की प्रमुख टिप्पणियाँ और सिफारिशें:
वैधानिक जमा से छूट:
- 1 जुलाई, 2022 से पहले बैंकों को सभी विदेशी मुद्रा अनिवासी बैंक और अनिवासी (बाहरी) रुपया (INR) जमा को शुद्ध मांग और सावधि देनदारियों (NDTL) के तहत शामिल करना आवश्यक था।
- NDTL का उपयोग उन जमाराशियों के अनुपात की गणना करने के लिये किया जाता है जिन्हें बैंकों को नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के तहत बनाए रखना होता है।
- CRR नकद आरक्षित राशि है जिसे बैंकों को RBI के पास रखना होता है। SLR जमा की वह राशि है जो बैंकों को सोने और सरकारी प्रतिभूतियों जैसी कुछ संपत्तियों में अनिवार्य रूप से निवेश करनी होती है।
- RBI ने अब 1 जुलाई, 2022 से 4 नवंबर, 2022 तक जुटाई गई वृद्धिशील विदेशी मुद्रा जमा को CRR और SLR शर्तों से छूट दी है।
जमा पर ब्याज़:
- पहले FCNR(B) जमाराशियों पर ब्याज़ दरें एक उच्चतम सीमा के अधीन थीं जो एक बेंचमार्क ब्याज दर के आधार पर निर्धारित की जाती थी।
- इसी तरह INR जमाराशियों पर ब्याज़ दरें घरेलू रुपया सावधि जमाओं की तुलना में अधिक नहीं हो सकती हैं।
- 7 जुलाई, 2022 और 31 अक्तूबर, 2022 के बीच FCNR(B) और INR जमा से संबंधित बैंकों की ब्याज़ दर में बदलाव को इन नियमों से छूट दी जाएगी।
ऋण में FPI निवेश:
- सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉण्ड में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिये निवेश चैनलों में शामिल हैं:
- मध्यम अवधि की रूपरेखा (MTF)
- फुली एक्सेसिबल रूट (FAR)।
- FAR के तहत FPI बिना किसी निवेश सीमा के निर्दिष्ट सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं।
- निर्दिष्ट प्रतिभूतियों की वर्तमान सूची में 5 वर्ष, 10 वर्ष और 30 वर्ष की अवधि वाली सभी केंद्र सरकार की प्रतिभूतियाँ शामिल हैं।
- RBI ने अब 7 वर्ष और 14 वर्ष की अवधि के साथ जारी सभी नई सरकारी प्रतिभूतियों को शामिल करने के लिये इस सूची का विस्तार किया है।
- MTF के तहत कॉरपोरेट ऋण और सरकारी प्रतिभूतियों दोनों के लिये अधिकतम 30% FPI निवेश एक वर्ष से कम की अवशिष्ट परिपक्वता वाले उपकरणों में हो सकता है।
- FPI द्वारा सरकार और कॉरपोरेट ऋण में किये गए निवेश को 31 अक्तूबर, 2022 तक इस सीमा से छूट दी जाएगी।
सोशल स्टॉक एक्सचेंज
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के लिये नियामक ढाँचे को अधिसूचित किया।
प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- धन जुटाने के लिये पात्र संस्थाएँ:
- गैर-लाभकारी और लाभकारी सामाजिक उद्यम SSE के माध्यम से धन जुटा सकते हैं।
- एक सामाजिक उद्यम को निर्दिष्ट गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिये जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- भूख, गरीबी, कुपोषण और असमानता का उन्मूलन।
- शिक्षा, रोज़गार और आजीविका को बढ़ावा देना।
- स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना।
- ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये आजीविका को बढ़ावा देना।
- ऐसे उद्यमों को उन अविकसित या अल्पविकसित आबादी वाले खंड या क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जिन्होंने विकास प्राथमिकताओं में निम्न स्तरीय प्रदर्शन किया है।
- कुछ निकाय जैसे कॉरपोरेट फाउंडेशन, राजनीतिक या धार्मिक संगठन और पेशेवर या व्यापार संघ सामाजिक उद्यम के रूप में वर्गीकृत होने के पात्र नहीं होंगे।
- धन जुटाने के तरीके:
- गैर-लाभकारी संगठन निम्नलिखित के माध्यम से धन जुटा सकते हैं:
- संस्थागत और गैर-संस्थागत निवेशकों को जीरो कूपन जीरो प्रिंसिपल इंस्ट्रूमेंट्स जारी करक
- म्यूचुअल फंड के माध्यम से डोनेशंस।
- जीरो कूपन जीरो प्रिंसिपल इंस्ट्रूमेंट्स की परिपक्वता पर कोई कूपन भुगतान या मूलधन पुनर्भुगतान नहीं होगा।
- उनके पास एक करोड़ रुपए का न्यूनतम निर्गम आकार होगा।
- लाभकारी सामाजिक उद्यम निम्नलिखित के माध्यम से धन जुटा सकते हैं:
- इक्विटी शेयर जारी करना।
- ऋण प्रतिभूतियाँ जारी करना।
- गैर-लाभकारी संगठन निम्नलिखित के माध्यम से धन जुटा सकते हैं:
खेल
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी विधेयक, 2021
लोकसभा ने राष्ट्रीय डोपिंग रोधी विधेयक, 2021 पारित किया, जो राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) के लिये वैधानिक ढाँचा तैयार करने का प्रयास करता है।
- यह विधेयक खेलों में डोपिंग को प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है और एक वैधानिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी के गठन का प्रावधान करता है।
- डोपिंग एथलीटों द्वारा प्रदर्शन को बढ़ाने के लिये कुछ निषिद्ध पदार्थों का सेवन है।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- विधेयक एथलीटों, एथलीट सपोर्ट कर्मियों और अन्य व्यक्तियों को खेल में डोपिंग में शामिल होने से रोकता है।
- सहायक कर्मियों में कोच, प्रशिक्षक, प्रबंधक, टीम स्टाफ, चिकित्सा कर्मी और एथलीट के साथ काम करने या उसका उपचार करने या उसकी सहायता करने वाले अन्य व्यक्ति शामिल हैं।
- इन व्यक्तियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि एंटी-डोपिंग नियमों का कोई उल्लंघन न हो जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- किसी एथलीट के शरीर में प्रतिबंधित पदार्थों या उसके मार्करों की मौजूदगी।
- किसी प्रतिबंधित पदार्थ या पद्धतियों का इस्तेमाल।
- सैंपल देने से इंकार करना।
- प्रतिबंधित पदार्थ या पद्धतियों की तस्करी या तस्करी का प्रयास।
- ऐसे उल्लंघनों की सहायता करना या उन्हें छिपाना।
- कार्य:
- डोपिंग रोधी गतिविधियों की योजना बनाना, उन्हें लागू करना और उनकी निगरानी करना।
- डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन की जाँच।
- डोपिंग रोधी अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- समिति ने कहा कि विधेयक नाबालिग और वयस्क एथलीटों के बीच अंतर नहीं करता है।
- इसने सिफारिश की कि नाबालिग एथलीटों हेतु एक सुरक्षात्मक तंत्र सुनिश्चित करने के लिये नियमों में एक नाबालिग और वयस्क एथलीट के बीच अंतर किया जाना चाहिये।
- डोपिंग रोधी नियमों में क्या जोड़ा गया है:
- खेलों में भाग लेने वाले या संलग्न ‘अन्य व्यक्ति’।
- निर्धारित तरीके के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा 'संरक्षित व्यक्तियों' के रूप में निर्दिष्ट व्यक्ति।
- विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी संहिता के अनुसार, एक संरक्षित व्यक्ति वह
- जिसकी आयु 16 वर्ष से कम है
- जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है और उसने ओपन श्रेणी में किसी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा में भाग नहीं लिया है।
- अपने देश के कानूनी ढाँचे के अनुसार उसमें कानूनी क्षमता का अभाव है।
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA):
- वर्तमान में राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी एंटी डोपिंग नियमों को लागू करती है। यह एजेंसी सोसायटी के तौर पर स्थापित है।
- विधेयक इस राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी को एक वैधानिक निकाय के रूप में गठित करने का प्रावधान करता है।
- केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त डायरेक्टर जनरल एजेंसी के प्रमुख होंगे।
मध्यस्थता विधेयक, 2021
कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने मध्यस्थता विधेयक, 2021 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- विधेयक मध्यस्थता (ऑनलाइन मध्यस्थता सहित) को बढ़ावा देने का प्रयास करता है तथा मध्यस्थता समझौते के परिणामस्वरूप निपटारे को लागू करने का प्रावधान करता है।
मध्यस्थता:
- मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों के बीच समझौता कराने में मदद करता है।
- मध्यस्थता एक प्रकार का वैकल्पिक विवाद समाधान है क्योंकि वे मुकदमेबाज़ी का विकल्प प्रदान करते हैं।
- मध्यस्थ विवाद का कोई समाधान प्रदान नहीं करता है बल्कि एक अनुकूल वातावरण बनाता है जिसमें विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को हल कर सकते हैं।
समिति की प्रमुख टिप्पणियाँ और सिफारिशें:
पूर्व मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता:
- विधेयक पक्षों के लिये कम-से-कम दो मध्यस्थता सत्रों में भाग लेना अनिवार्य करता है। अगर वे बिना किसी कारण, सत्रों में भाग नहीं लेते तो उन्हें लागत (कॉस्ट्स) वहन करनी पड़ सकती है।
- समिति ने कहा कि पूर्व मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता को अनिवार्य करने से पक्षों को कई महीनों तक इंतजार करना पड़ेगा और फिर उन्हें अदालत या ट्रिब्यूनल से संपर्क करने की अनुमति मिलेगी। इससे मामले लंबित हो सकते हैं।
- समित ने सुझाव दिया कि पूर्व मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता पर विचार किया जाए, उसे वैकल्पिक बनाया जाए और उसे चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाए।
- विधेयक में यह प्रावधान भी है कि ट्रिब्यूनल में लंबित मामलों पर पूर्व मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता को लागू किया जाए।
- समिति ने कहा कि इस बारे में भी स्पष्टता का अभाव है कि ऐसे मामले पूर्व मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता के दायरे में कैसे आ सकते हैं।
मध्यस्थता की समय-सीमा:
- पैनल ने समय-सीमा को 180 दिनों से घटाकर 90 दिन करने और 180 दिनों के बजाय 60 दिनों की विस्तार अवधि की सिफारिश की।
प्रक्रियाओं की गोपनीयता:
- मध्यस्थता प्रक्रियाओं में शामिल पक्षों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उन प्रक्रियाओं से जुड़ी जानकारियों को गोपनीय रखेंगे।
- समिति ने कहा कि गोपनीयता का उल्लंघन करने पर कोई दंड/दायित्व नहीं है।
- समिति ने सुझाव दिया कि विधेयक में गोपनीयता के उल्लंघन के मामलों से जुड़ा प्रावधान होना चाहिये।
समझौतों का पंजीकरण:
- विधेयक में मध्यस्थ निपटान समझौतों के अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान है।
- समिति ने कहा कि पंजीकरण को पक्षों के विवेकाधीन छोड़ देना चाहिये।
ऊर्जा
अक्षय खरीद और ऊर्जा भंडारण दायित्व
ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2022-30 की अवधि के लिये अक्षय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation- RPO) और ऊर्जा भंडारण दायित्व (Energy Storage Obligation- ESO) के लिये प्रक्षेपवक्र अधिसूचित किया।
- RPO विद्युत वितरण कंपनियों के दायित्व को अक्षय स्रोतों से न्यूनतम प्रतिशत बिजली की खरीद के लिये संदर्भित करता है।
- ESO ऊर्जा भंडारण सुविधा के माध्यम से पवन या सौर से बिजली का न्यूनतम प्रतिशत स्रोत के दायित्व को संदर्भित करता है।
अक्षय ऊर्जा:
- प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा जो उपयोग की गई ऊर्जा से अधिक तेज़ी से भरती है, उसे अक्षय ऊर्जा कहा जाता है।
- ऐसे स्रोतों के उदाहरण जिनकी लगातार पूर्ति होती रहती है, वे हैं धूप और हवा। हमारे लिये कई प्रकार की अक्षय ऊर्जा उपलब्ध हैं।
- नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत का उत्पादन करने की तुलना में जीवाश्म ईंधन को जलाने से अधिक उत्सर्जन होता है।
इन दायित्वों को पूरा करने के लिये प्रमुख शर्तें:
- पवन और जल नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO):
- कुल RPO में से एक निश्चित प्रतिशत पवन और जल स्रोतों से पूरा किया जाना चाहिये।
- पवन RPO के लिये केवल मार्च 2022 के बाद चालू हुई परियोजनाओं से प्राप्त बिजली पर ही विचार किया जाएगा।
- हाइड्रो RPO के लिये मार्च 2019 के बाद चालू बड़ी पनबिजली परियोजनाओं से प्राप्त बिजली पर ही विचार किया जाएगा। RPO के लिये आयातित जल विद्युत पर विचार नहीं किया जाएगा।
- राज्य आयोगों से बिजली:
- राज्य बिजली नियामक आयोग मंत्रालय द्वारा निर्दिष्ट लक्ष्य से अधिक RPO और ESO निर्दिष्ट कर सकते हैं।
शिक्षा
उच्च शिक्षण संस्थानों की समीक्षा
शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्थायी समिति ने 'डीम्ड/निजी विश्वविद्यालयों/अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा मानकों की समीक्षा, मान्यता प्रक्रिया, अनुसंधान, परीक्षा सुधार और शैक्षणिक वातावरण की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
समिति के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव:
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI):
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 में उच्च शिक्षा के लिये मुख्य नियामक के रूप में HECI के गठन का प्रावधान है।
- समिति ने कहा कि HECI के प्रावधान वाला विधायक अभी ड्राफ्टिंग के चरण में है।
- समिति ने सुझाव दिया कि HECI का निर्माण करते समय, इसके क्षेत्राधिकार, स्वतंत्रता और हितधारकों के हितों की सुरक्षा को निर्दिष्ट करने से संबंधित पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिये।
- उच्च शिक्षा के लिये कई समानांतर नियामक प्राधिकरण के बजाय नियमों/रेगुलेशंस/अधिनियम के कार्यान्वयन में अंतिम फैसला देने वाले नियामक निकायों का सहज पदानुक्रम (हेरारकी) बनाया जाना चाहिये।
राज्य विश्वविद्यालयों में परीक्षा:
- समिति ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों को परीक्षाएँ संचालित करने में समस्याएँ होती हैं। इन समस्याओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रश्न पत्र लीक होना।
- नकल के अनियंत्रित मामलें।
- विद्यार्थियों और परीक्षकों की मिलीभगत।
समिति ने सुझाव दिया कि मान्यता देते समय, संस्थान की परीक्षा प्रबंधन क्षमता पर विचार किया जाना चाहिये। परीक्षा की प्रक्रिया के डिजिटलीकरण को अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
सामाजिक विज्ञान और तकनीकी शिक्षा:
- समिति ने सुझाव दिया कि तकनीकी संस्थानों में ह्यूमैनिटीज़ के कोर्स शुरू करने का प्रयोग किया जाए और इस बात का आकलन किया जाए कि संस्थान के शैक्षणिक परिवेश पर उसका क्या असर होता है। इसके अतिरिक्त सोशल साइंस/ह्यूमैनिटीज़/आर्ट मॉड्यूल्स को तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये।
उपभोक्ता मामले
सेवा शुल्क लगाने के निषेध पर दिशा-निर्देश
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचने और सेवा शुल्क का आकलन करने वाले होटलों और रेस्तराँ में उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिये नियम जारी किये हैं।
CCPA की प्रमुख टिप्पणियाँ
- CCPA ने कहा कि टिप या ग्रेच्युटी उपभोक्ता की मर्जी से दी जाती है।
- उसने यह भी कहा कि सर्विस के हिस्से में परोसे गए खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ की कीमत शामिल है, यानी उत्पाद की कीमत में सामान और सेवाओं, दोनों का घटक शामिल हैं।
- खाने-पीने की चीजों के दाम तय करने के लिये होटल और रेस्तराँ पर कोई रोक नहीं है।
- CCPA के अनुसार, लागू करों के साथ उत्पाद की उक्त कीमत के अलावा कुछ भी चार्ज करना, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत अनुचित व्यापार व्यवहार के बराबर है।
- अगर सर्विस चार्ज लगाया जाता है या उपभोक्ता को इसका भुगतान करने के लिये मज़बूर किया जाता है, तो राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन या उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की जा सकती है।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA)
- इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) 2019 के तहत स्थापित किया गया था।
- यह एक वैधानिक निकाय है जो उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में उपभोक्ता मामलों के विभाग के तहत काम करता है।
उद्देश्य:
- एक वर्ग के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, उनकी रक्षा करना और उन्हें लागू करना।
- उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जांँच करना और शिकायत/अभियोजन करना।
- असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापसी, अनुचित व्यापार प्रथाओं एवं भ्रामक विज्ञापनों को बंद करने का आदेश देना।
- भ्रामक विज्ञापनों के निर्माताओं/प्रदर्शकों/प्रकाशकों पर दंड लगाना।
दिल्ली HC द्वारा सेवा शुल्क पर लगाए गए प्रतिबंध
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिशा-निर्देशों पर इस आधार पर रोक लगा दी कि सेवा शुल्क लगाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अनुचित व्यापार के बराबर नहीं हो सकता।
- अधिनियम के अनुसार, अनुचित व्यापार व्यवहार का अर्थ है, वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री, उपयोग या आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिये अनुचित तरीके या भ्रामक पद्धति को अपनाना।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सेवा शुल्क लगाया जा सकता है, लेकिन इसे मेन्यू या अन्य स्थानों पर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिये जहाँ यह समीचीन हो सकता है।
- इसके अलावा टेकअवे के मामले में ऐसा शुल्क नहीं लगाया जा सकता है।
गुणवत्ता नियंत्रण कक्ष
खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति ने ‘गुणवत्ता नियंत्रण कक्ष (Quality Control Cells- QCC)’ पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अधिक QCC की आवश्यकता:
- खरीद से वितरण तक खाद्यान्न स्टॉक के केंद्रीय पूल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये QCC ज़िम्मेदार हैं।
- वर्तमान में देश में 11 QCC हैं।
- समिति ने कहा कि QCC की संख्या अपर्याप्त है।
- उसने गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दे को व्यापक रूप से संबोधित करने और क्षतिग्रस्त खाद्यान्नों के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिये और अधिक QCC स्थापित करने का सुझाव दिया।
- शिकायत निवारण:
- समिति ने कहा कि लाभार्थियों को घटिया गुणवत्ता का खाद्यान्न मिलने की कई शिकायतें मिली हैं।
- इसके अलावा यह देखा गया कि लाभार्थियों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने में हेल्पलाइन नंबर अप्रभावी रहे हैं।
- समिति ने इन हेल्पलाइन नंबरों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने की सिफारिश की। उसने यह सुझाव भी दिया कि:
- खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग या किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा उचित मूल्य की दुकानों पर स्वतंत्र औचक निरीक्षण किया जाए।
- इन दुकानों पर PDS वस्तुओं के वितरण और डायवर्जन की निगरानी के लिये उचित मूल्य की दुकानों की CCTV निगरानी की जाए।
पर्यावरण
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधनों को अधिसूचित किया।
- नियम प्लास्टिक से उत्पादित सामग्री (जैसे- बैग और पैकेजिंग सामग्री) के निर्माण और बिक्री के लिये मानक निर्धारित करते हैं।
- नियम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये रूपरेखा भी निर्दिष्ट करते हैं।
संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
- बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक:
- संशोधन में कहा गया है कि बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के विनिर्माताओं/विक्रेताओं को विपणन या बिक्री से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से प्रमाण पत्र प्राप्त करना चाहिये।
- इसके अलावा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा अधिसूचित और CPCB द्वारा प्रमाणित मानकों के अनुरूप होना चाहिये।
- संशोधनों में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को प्लास्टिक (खाद योग्य प्लास्टिक के अलावा) के रूप में परिभाषित किया गया है जो पर्यावरण के लिये हानिकारक अवशेषों को छोड़े बिना जैविक प्रक्रियाओं द्वारा नष्ट होने की प्रक्रिया से गुजरता है।
- पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति:
- संशोधनों में कहा गया है कि CPCB द्वारा अधिसूचित दिशा-निर्देशों के प्रावधानों का पालन नहीं करने वाले व्यक्तियों पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति लगाई जाएगी।
- केंद्रशासित प्रदेशों में नियमों का कार्यान्वयन:
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board- SPCB) और प्रदूषण नियंत्रण समिति (Pollution Control Committee- PCC) केंद्रशासित प्रदेशों में नियमों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। संशोधन में कहा गया है कि केंद्रशासित प्रदेशों में नियमों को लागू करने हेतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ज़िम्मेदार होगा।
- निर्माताओं का पंजीकरण:
- कैरी बैग, रीसाइकिल प्लास्टिक बैग या बहुस्तरीय पैकेजिंग के निर्माताओं को SPCB या UT के PCC से पंजीकरण प्राप्त करना होगा। संशोधन में प्रावधान है कि ऐसे निर्माताओं को निम्नलिखित से पंजीकरण प्राप्त करना होगा:
- केंद्रशासित प्रदेश के SPCB/PCC, अगर एक या दो राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में काम कर रहे है
- CPCB, अगर दो से अधिक राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में काम कर रहे हैं।
- कैरी बैग, रीसाइकिल प्लास्टिक बैग या बहुस्तरीय पैकेजिंग के निर्माताओं को SPCB या UT के PCC से पंजीकरण प्राप्त करना होगा। संशोधन में प्रावधान है कि ऐसे निर्माताओं को निम्नलिखित से पंजीकरण प्राप्त करना होगा: