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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

अक्तूबर, 2019

  • 23 Nov 2019
  • 58 min read

पीआरएस की प्रमुख हाइलाइट्स

  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
    • 2019-20 की दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति
    • मौद्रिक नीति समिति की चौथी बैठक
  • वित्त
    • राजस्व बढ़ाने के उपायों पर सुझाव देने के लिये समिति
    • CPSEZ में रणनीतिक विनिवेश के लिये संशोधित प्रक्रिया को मंज़ूरी
    • मनी लॉन्ड्रिंग पर अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन
    • डिपॉज़िटरी रेसिट्स को जारी करने से संबंधित फ्रेमवर्क
    • भारतीय विदेशी नागरिकों को राष्ट्रीय पेंशन सेवा में नामांकित करने की अनुमति
    • बैंकों को इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश ट्रस्ट्स हेतु ऋण देने की अनुमति
    • KYC रजिस्ट्रेशन एजेंसियों के लिये साइबर सिक्योरिटी फ्रेमवर्क
  • कानून और न्याय
    • ग्रुप इन्सॉल्वेंसी पर कार्यसमूह की रिपोर्ट
  • कॉरपोरेट मामले
    • सीएसआर (CSR) व्यय
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
    • ई-सिगरेट्स पर मसौदा विधेयक
    • सभी मेडिकल उपकरणों को दवाओं के समान विनियमित करने का मसौदा
    • नैनो फार्मास्यूटिकल्स के मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश
  • कृषि
    • मसौदा सीड्स विधेयक
    • रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों को मंज़ूरी दी
    • कैबिनेट ने पी.एम.-किसान योजना के लिये आधार की अनिवार्यता में ढिलाई दी
  • गृह मामले
    • विशेष विवाह एक्ट सिक्किम में भी
    • अरुणाचल प्रदेश में AFSPA के दायरे में वृद्धि
  • परिवहन
    • नेशनल काउंटर रोग ड्रोन के दिशा-निर्देश जारी
    • अनधिकृत वाहनों की स्क्रेपिंग पर मसौदा दिशा-निर्देश जारी
  • बिजली
    • इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन
    • विंड-सोलर हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स से बिजली खरीद की नीलामी प्रक्रिया हेतु दिशा-निर्देश जारी
  • संचार
    • BSNL और MTNL के रिवाइवल प्लान कोमंज़ूरी
    • टेलीकॉम कंपनियों को दूरसंचार विभाग को बकाया देय चुकाने का निर्देश

समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

2019-20 की दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (CPI Inflation) आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार जुलाई 2019 में 3.2% से वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर सितंबर 2019 में 4% हो गई। 

  • सितंबर 2019 में खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) 5.1% थी। यह जुलाई 2019 में 2.4 थी। 
  • थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (WPI Inflation) आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार जुलाई 2019 में 1.1% से वर्ष-दर-वर्ष गिरकर सितंबर 2019 में 0.3% हो गई। 

 Food inflation

मौद्रिक नीति समिति की चौथी बैठक

मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने 2019-20 का चौथा द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य जारी किया। पॉलिसी रेपो रेट (RR), जिस दर पर RBI बैंकों को ऋण देता है, 5.4% से गिरकर 5.15% हो गया। MPC के अन्य निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • रिवर्स रेपो रेट (RRR), जिस दर पर RBI बैंकों से उधार लेता है, 5.15% से गिरकर 4.9% हो गया।
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी रेट (MSF Rate), जिस दर पर बैंक अतिरिक्त धन उधार ले सकते हैं और बैंक दर (Bank Rate), जिस दर पर RBI बिल्स ऑफ एक्सचेंज को खरीदता है, 5.65% से गिरकर 5.4% हो गई।
  • MPC ने मौद्रिक नीति के समायोजन के रुख को बरकरार रखने का फैसला किया।

वित्त

राजस्व बढ़ाने के उपायों पर सुझाव हेतु समिति

GST परिषद ने GST राजस्व बढ़ाने के उपायों पर सुझाव देने के लिये समिति का गठन किया।

  • परिषद ने विचार के लिये निम्नलिखित क्षेत्रों के संबंध में सुझाव दिये: 
  1. रोक एवं संतुलन सहित व्यवस्थागत परिवर्तन
  2. नीतिगत उपाय और कानूनों में आवश्यक प्रासंगिक परिवर्तन
  3. कर आधार (Tax Base) का विस्तार
  4. स्वैच्छिक अनुपालन (Voluntary Compliance) में सुधार
  5. अनुपालन की निगरानी और बेहतर डेटा एनालिटिक्स का प्रयोग करते हुए कर चोरी विरोधी उपायों में सुधार
  6. बेहतर प्रशासनिक समन्वय। 
  • इसके अतिरिक्त समिति को अनेक प्रकार के सुधारों पर विचार करने और उन पर सुझाव देने को कहा गया।

समिति में केंद्र सरकार के पाँच अधिकारी और महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल के पाँच राज्यों GST आयुक्त शामिल हैं। दूसरे अन्य राज्य भी समिति में अधिकारियों को नामित कर सकते हैं या लिखित में सुझाव भेज सकते हैं।

CPSEZ में रणनीतिक विनिवेश को मंज़ूरी

केंद्रीय कैबिनेट ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (CPSEZ) में रणनीतिक विनिवेश (Strategic Disinvestment) की प्रक्रिया में परिवर्तनों को मंज़ूर किया।

  • इससे पूर्व रणनीतिक विनिवेश के लिये CPSEZ को चिह्नित करने की ज़िम्मेदारी नीति आयोग की थी और वही इस संबंध में सुझाव देता था कि कितने शेयरों को बेचा जाना चाहिये। 
  • संशोधित प्रक्रिया के अंतर्गत, यह कार्य अब सलाहकारी समूह करेगा जिसमें निम्नलिखित विभागों के सचिव शामिल होंगे: 
  1. निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM)
  2. प्रशासनिक मंत्रालय
  3. कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय
  4. सार्वजनिक उपक्रम विभाग
  5. सीईओ, नीति आयोग
  • समूह के सुझावों को अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा जाँचा और लागू किया जाएगा, जिसके सह अध्यक्ष DIPAM के सचिव और प्रशासनिक मंत्रालय के सचिव होंगे। इससे पूर्व सिर्फ प्रशासनिक मंत्रालय इन कार्यों के लिये ज़िम्मेदार होता था।
  • संशोधित प्रक्रिया उन मामलों में लागू होगी, जहाँ वित्तीय नीलामियाँ आमंत्रित नहीं की गईं या पूर्व लेन-देन के असफल होने के कारण उन्हें आमंत्रित किया जाना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है कि DIPAM ने सलाहकारों को शामिल करने के लिये प्रस्ताव आमंत्रित किये हैं, जो कि CPSEZ के पुनर्गठन के लिये विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

मनी लॉन्ड्रिंग पर अंतर-मंत्रालयी समिति

वित्त मंत्रालय ने मनी लॉन्ड्रिंग पर अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया।

  • समिति को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत गठित किया गया है, जो कि केंद्र सरकार को संबंधित एजेंसियों के बीच सहयोग और समन्वय के लिये अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन की अनुमति देता है।
  • समिति के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
  1. सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, विनियामकों और भारतीय वित्तीय आसूचना इकाई (वित्त मंत्रालय के अंतर्गत) के बीच ऑपरेशनल समन्वय
  2. वित्तीय क्षेत्र में प्राधिकरणों के बीच परामर्श
  3. मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी नीतियों या आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने वाली नीतियों को विकसित करना और उन्हें लागू करना।
  • 19 सदस्यों वाली समिति की अध्यक्षता राजस्व सचिव द्वारा की जाएगी। समिति के अन्य सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
  1. आर्थिक मामलों के विभाग, वित्तीय सेवा विभाग, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय और विदेशी मामलों के मंत्रालय के सचिव
  2. SEBI के चेयरमैन
  3. RBI के डिप्टी गवर्नर
  4. इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक।

डिपॉज़िटरी रेसिट्स से संबंधित फ्रेमवर्क

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने डिपॉज़िटरी रेसिट्स को जारी करने से संबंधित फ्रेमवर्क जारी किया। 

  • डिपॉज़िटरी रेसिट्स विदेशी मुद्रा वाले इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जो कि अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंज में सूचीबद्ध होते हैं। इन इंस्ट्रूमेंट्स को विदेशी डिपॉज़िटरी जारी और घरेलू कस्टोडियन (सिक्योरिटीज़ को होल्ड करने वाली एंटिटी) द्वारा हस्तांतरित किया जाता है। उल्लेखनीय है कि ये शर्तें डिपॉज़िटरी रेसिट्स योजना, 2014 के अंतर्गत आने वाली शर्तों के अतिरिक्त हैं।
  • फ्रेमवर्क के अंतर्गत केवल सूचीबद्ध कंपनियों (भारत में पंजीकृत और भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियाँ) को डिपॉज़िटरी रेसिट्स को जारी करने के उद्देश्य से प्रतिभूतियों को जारी करने की अनुमति है। 
  • सूचीबद्ध कंपनियाँ कुछ शर्तों के अधीन होंगी। 
  • कंपनी के निदेशक या प्रमोटर इरादतन डिफॉल्टर या भगोड़े आर्थिक अपराधी नहीं होने चाहिये। SEBI द्वारा उन्हें पूंजी बाज़ार में प्रवेश से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये। 
  • फ्रेमवर्क के अंतर्गत प्रतिभूतियों के मौजूदा होल्डर्स भी डिपॉज़िटरी रेसिट्स जारी करने के लिये अपनी प्रतिभूतियों को हस्तांतरित करने के पात्र होंगे। 
  • सूचीबद्ध कंपनियों की शर्तें मौजूदा होल्डर्स के लिये भी लागू होंगी।
  • सूचीबद्ध कंपनियाँ केवल अनुमति प्राप्त क्षेत्रों में डिपॉज़िटरी रेसिट्स जारी करने के उद्देश्य से प्रतिभूतियों को जारी या हस्तांतरित कर सकती हैं। 
  • अनुमत न्याय क्षेत्रों की सूची केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी की जाएगी। डिपॉज़िटरी रेसिट्स योजना 2014 के अनुसार, अनुमत न्याय क्षेत्रों में केवल फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के सदस्य शामिल हैं (उदाहरण के लिये जापान, यूनाइटेड स्टेट्स, जर्मनी और चीन)। 

हाल ही में केंद्र सरकार ने डिपॉज़िटरी रेसिट्स योजना, 2014 में संशोधन किये थे, ताकि योजना के अंतर्गत अनुमत न्याय क्षेत्रों में भारत के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) को शामिल किया जा सके। 

OCI को NPS में नामांकित करने की अनुमति

पेंशन निधि विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) ने भारतीय विदेशी नागरिकों (OCI) को राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) में नामांकित करने की अनुमति दी है। 

  • राष्ट्रीय पेंशन योजना एक स्वैच्छिक अंशदान आधारित पेंशन योजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को वृद्धावस्था सुरक्षा प्रदान करना है।
  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 के अंतर्गत दिशा-निर्देशों के अधीन इस योजना के तहत वार्षिकी या संचित बचत प्रत्यावर्तनीय (स्वदेश भेजने योग्य) हो सकती है (अर्थात् इसे भारत से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है)।
  • एक विदेशी नागरिक (बांग्लादेश या पाकिस्तान के विदेशी नागरिकों को छोड़कर) OCI के अंतर्गत पंजीकरण करा सकता है, यदि वह: 
  1. संविधान की शुरुआत में भारत का नागरिक बनने के योग्य था
  2. संविधान की शुरुआत पर या उसके बाद किसी भी समय भारत के नागरिक था 
  3. 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बनने वाले किसी क्षेत्र से संबंधित था, या 
  4. किसी ऐसे व्यक्ति की संतान या पौत्र है।

बैंकों को इनविट्स को ऋण देने की अनुमति

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश ट्रस्ट्स (InvITs) को ऋण देने की अनुमति दी। 

  • InvITs सामूहिक बीमा योजनाएँ होती हैं, जिनके ज़रिये लोग और संस्थाएँ इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश कर सकते हैं। अब तक बैंकों को InvITs में निवेश करने की अनुमति थी, लेकिन उधार देने की नहीं।
  • यह ऋण कुछ शर्तों पर ही दिया जा सकेगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
  1. बैंकों को उन InvITs में निवेश नहीं करना चाहिये, जहाँ कोई स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (SPV) वित्तीय समस्याओं का सामना कर रहा है
  2. बैंक को InvITs के एक्सपोज़र पर बोर्ड समर्थित नीति लागू करनी चाहिये, जिसमें अन्य विवरणों के अतिरिक्त मंज़ूर शर्तों और निगरानी तंत्र को शामिल करना चाहिये और
  3. बैंकों को सभी महत्त्वपूर्ण मानदंडों का आकलन करना चाहिये, जिसमें समय पर ऋण सेवा सुनिश्चित करने के लिये नकदी का पर्याप्त प्रवाह शामिल है। 

इसके अतिरिक्त बैंकों के बोर्ड की लेखांकन समिति (Audit Committee) को उपरिलिखित शर्त के अनुपालन की छमाही समीक्षा करनी चाहिये।

KYC पंजीकरण एजेंसियों के लिये साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने KYC (Know Your Customer) पंजीकरण एजेंसियों के लिये साइबर सुरक्षा और साइबर रेज़िलियेंस पर फ्रेमवर्क जारी किया।  

  • ये संस्थाएँ SEBI के अंतर्गत पंजीकृत (KYC पंजीकरण एजेंसी विनियम, 2011) हैं जो कि निवेशकों के KYC रिकॉर्ड्स रखती हैं। 
  • SEBI के अनुसार, इन एजेंसियों के पास एक व्यापक साइबर सुरक्षा और रेज़िलियेंस फ्रेमवर्क होना चाहिये, क्योंकि ये संस्थाएँ प्रतिभूति बाज़ार में ग्राहकों के KYC रिकॉर्ड्स को रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • उपाय और प्रक्रियाएँ: साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क में ऐसे उपाय और प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो कि साइबर हमले को रोकती हैं और साइबर रेज़िलियेंस में सुधार करती हैं। 
  • साइबर हमला: साइबर हमले ऐसी कोशिशों को कहते हैं, जो कि कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क और डेटाबेस की पहुँच या विश्वसनीयता को संकट में डालती हैं। 
  • साइबर रेज़िलियेंस: साइबर रेज़िलियेंस में ऐसे हमलों का मुकाबला करने और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप तैयारी करने, उसके दौरान कामकाज करने और उससे उबरने की क्षमता होती है।

फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • व्यापक नीति: केवाईसी रजिस्ट्रेशन एजेंसियों को व्यापक साइबर सुरक्षा और रेज़िलियेंस नीति बनानी चाहिये, जिसमें निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल होनी चाहिये: 
  1. महत्त्वपूर्ण जोखिमों को चिह्नित करना
  2. महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों की रक्षा
  3. साइबर हमलों का पता लगाना
  4. ऐसे हादसों पर प्रतिक्रिया देना एवं उनसे उबरना।
  • गवर्नेंस: KYC पंजीकरण एजेंसियों को वरिष्ठ अधिकारियों को चीफ इन्फॉरमेशन ऑफिसर नामित करना चाहिये, जो कि: 
  1. साइबर सुरक्षा के जोखिमों का आकलन, उन्हें चिह्नित और कम करेंगे
  2. उपयुक्त मानदंडों और नियंत्रणों को चिह्नित करेंगे
  3. साइबर सुरक्षा नीति के अंतर्गत प्रक्रियाओं को प्रत्यक्ष रूप से लागू करेंगे।
  • KYC एजेंसियों के बोर्ड को विशेषज्ञों वाली तकनीकी समिति बनानी चाहिये। समिति त्रैमासिक आधार पर साइबर सुरक्षा नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगी।
  • एक्सेस कंट्रोल: पंजीकरण एजेंसी के सिस्टम्स, एप्लीकेशंस, डेटाबेस तक पहुँच का एक निश्चित उद्देश्य और निर्धारित अवधि होनी चाहिये। महत्वपूर्ण प्रणाली तक भौतिक पहुँच कम-से-कम होनी चाहिये और उस पर सीसीटीवी कैमरा एवं कार्ड एक्सेस प्रणाली जैसे कंट्रोल्स के ज़रिये निगरानी रखी जानी चाहिये।
  • सूचनाओं को साझा करना: साइबर हमले और धमकियों से संबंधित सूचनाओं एवं संवेदनशीलता को कम करने के उपाय वाली त्रैमासिक रिपोर्ट SEBI को सौंपी जानी चाहिये।

कानून और न्याय

ग्रुप इन्सॉल्वेंसी पर कार्यसमूह की रिपोर्ट 

ग्रुप इन्सॉल्वेंसी पर कार्यसमूह (अध्यक्ष: यू. के. सिन्हा) ने 23 सितंबर, 2019 को भारतीय इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड को अपनी रिपोर्ट सौंपी। 

पृष्ठभूमि: 

इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 के अंतर्गत कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रियाओं (CIRP) के दौरान उठने वाली ऐसी समस्याओं की जाँच करने के लिये वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया था, जब संकटग्रस्त कंपनी को दूसरी ग्रुप कंपनियों से लिंक कर दिया जाता है। 

कार्यसमूह के प्रमुख निष्कर्ष एवं सुझाव: कार्यसमूह के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • एक कॉमन फ्रेमवर्क की ज़रूरत: कार्यसमूह ने कहा कि संहिता में उन स्थितियों का समाधान करने का ऐसा कोई कॉमन फ्रेमवर्क नहीं है जहाँ इंटरलिंक्ड कंपनियाँ CIRP से गुज़र रही हों। ऐसे मामलों में प्रत्येक ग्रुप कंपनी की इन्सॉल्वेंसी को अलग-अलग तरीके से हल करना महँगा साबित हो सकता है और क्रेडिटर्स को कम मूल्य प्राप्त हो सकता है।
  • प्रस्तावित फ्रेमवर्क: कार्यसमूह ने सुझाव दिया कि ‘कॉरपोरेट ग्रुप’ की परिभाषा में होल्डिंग, सहायक और सहयोगी कंपनियाँ शामिल हैं। संबंधित प्राधिकरण इस परिभाषा में दूसरे ग्रुप्स को शामिल कर सकता है। कार्यसमूह ने ग्रुप इन्सॉल्वेंसी के लिये व्यापक फ्रेमवर्क का सुझाव दिया है जो कि पहले चरण में प्रक्रियागत समन्वय प्रणाली के साथ शुरू होगा।
  • प्रस्तावित फ्रेमवर्क की प्रक्रियाएँ: प्रस्तावित फ्रेमवर्क में निम्नलिखित शामिल हैं
  1. सभी कॉरपोरेट देनदारों, जिन्होंने डिफॉल्ट किया है और ग्रुप का हिस्सा हैं, के खिलाफ एक संयुक्त आवेदन
  2. एक सिंगल इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल और एक एकल प्राधिकरण (मुकदमेबाजी और लागत को कम करना, और समय की बचत)
  3. लेनदारों (क्रेडिटर्स) की समिति का गठन। 
  • ये सभी प्रक्रियाएँ स्वैच्छिक हो सकती हैं। कुछ मामलों में अपवाद की अनुमति दी जा सकती है, जब हितधारक बुरी तरह प्रभावित हो रहे हों। इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनलों, क्रेडिटर्स की समिति और निर्णय प्राधिकरण के बीच समन्वय, संवाद और सूचनाओं को साझा किया जाना अनिवार्य होना चाहिये।
  • फ्रेमवर्क को चरणबद्ध तरीके से लागू करना: कार्यसमूह का सुझाव है कि ग्रुप इन्सॉल्वेंसी के फ्रेमवर्क को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सकता है। पहले चरण में सिर्फ घरेलू कंपनियों को शामिल और केवल प्रक्रियागत कन्सॉलिडेशन प्रणालियों को लागू किया जा सकता है।

कॉरपोरेट मामले

CSR व्यय का दायरा

कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कुछ कंपनियों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अधिनियम की अनुसूची 7 में विनिर्दिष्ट गतिविधियों से संबंधित परियोजनाओं पर अपनी तीन साल की औसत शुद्ध आय का कम-से-कम 2% हिस्सा खर्च करेंगी। 

  • इस अनुसूची में ग्यारह प्रविष्टियाँ हैं, जिनमें गरीबी उन्मूलन और पर्यावरणीय स्थायित्व से संबंधित गतिविधियों में योगदान देना शामिल है। इनमें से एक प्रविष्टि में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित शैक्षणिक संस्थानों में स्थित प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटरों के लिये CSR योगदान की अनुमति दी गई है। इन प्रविष्टियों को संशोधित किया गया है।
  • संशोधित प्रविष्टि में निम्नलिखित को CSR योगदान देना शामिल है: 
  1. केंद्र सरकार, या केंद्र अथवा राज्य सरकार की कोई एजेंसी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा वित्तपोषित इनक्यूबेटर्स
  2. अखिल भारतीय तकनीकी संस्थान
  3. राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ एवं कुछ स्वायत्त निकाय (जैसे- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत स्थापित निकाय), जो कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और मेडिसिन में अनुसंधान करते हैं तथा सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखते हैं।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण

ई-सिगरेट्स पर मसौदा विधेयक

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, स्टोरेज और विज्ञापन) पर प्रतिबंध विधेयक, 2019 के मसौदे को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये जारी किया है। 

  • विधेयक इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स के उत्पादन, निर्माण, व्यापार, स्टोरेज और विज्ञापन को प्रतिबंधित करता है। उल्लेखनीय है कि ई-सिगरेट्स को प्रतिबंधित करने पर एक अध्यादेश 28 सितंबर, 2019 को जारी किया गया था जो कि अभी लागू है।

इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स: विधेयक के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (e-Cigarette) एक बैटरी चालित उपकरण होता है, जो कि किसी पदार्थ को (प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से) गर्म करता है, ताकि कश लेने के लिये वाष्प पैदा हो। ई-सिगरेट्स में निकोटिन और फ्लेवर हो सकते हैं तथा इनमें इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम के सभी प्रकार, हीट-नॉट बर्न उत्पाद, ई-हुक्का और ऐसे ही दूसरे उपकरण शामिल हैं।

ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध: विधेयक भारत में ई-सिगरेट्स के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक का कारावास की सज़ा भुगतनी पड़ेगी या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा या दोनों सज़ा भुगतनी होगी। एक से अधिक बार अपराध करने पर तीन वर्ष तक के कारावास की सज़ा भुगतनी पड़ेगी और पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा।

ई-सिगरेट्स का स्टोरेज: ई-सिगरेट्स के स्टॉक के भंडारण के लिये कोई व्यक्ति किसी स्थान का प्रयोग नहीं कर सकता। अगर कोई व्यक्ति ई-सिगरेट्स का भंडार रखता है तो उसे छह महीने तक के कारावास की सज़ा भुगतनी होगी या 50,000 रुपए तक का जुर्माना भरना होगा, या दोनों सज़ा भुगतनी पड़ेगी।

विधेयक के लागू होने के बाद ई-सिगरेट का मौजूदा स्टॉक रखने वालों को इन स्टॉक्स की घोषणा करनी होगी और उन्हें अधिकृत अधिकारी के निकटवर्ती कार्यालय में जमा कराना होगा। यह अधिकृत अधिकारी पुलिस अधिकारी (कम-से-कम सब इंस्पेक्टर स्तर का) या केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई अन्य अधिकारी हो सकता है।

सभी चिकित्सा उपकरणों का दवाओं के समान विनियमन

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की है, ताकि सभी मेडिकल उपकरणों को दवाओं की तरह औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अंतर्गत विनियमित किया जा सके। 

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रक संगठन (CDSCO) के अनुसार, चिकित्सा उपकरण मनुष्यों या पशुओं में रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या रोकथाम में आंतरिक या बाहरी उपयोग के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं। उन्हें केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट किया जा सकता है। 
  • वर्तमान में भारत में 36 अधिसूचित मेडिकल उपकरण हैं, जिनमें हार्ट वाल्व्स, बोन सीमेंट्स और स्कैल्प वेन सेट्स शामिल हैं।
  • इस अधिसूचना में उपकरण, इम्प्लांट्स और एप्लाइंसेज़ सहित सभी उपकरण शामिल हैं, जो कि निम्नलिखित में मदद करते हैं: 
  1. बीमारी, चोट या विकलांगता का निदान, रोकथाम या उपचार
  2. शरीर रचना विज्ञान की जाँच, रिप्लेसमेंट या परिवर्तन
  3. जीवन को सुगमता प्रदान करना
  4. चिकित्सा उपकरणों का कीटाणु शोधन
  5. औषधियों की परिभाषा के अंतर्गत अवधारणात्मक नियंत्रण

इस संबंध में मंत्रालय ने चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 में संशोधन के लिये मसौदा नियम जारी किये।  मसौदा नियमों में पहले से अधिसूचित 36 उपकरणों के अतिरिक्त सभी मेडिकल उपकरणों के पंजीकरण का प्रावधान है।

नैनो फार्मास्यूटिकल्स के मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MoST) ने भारत में नैनो फार्मास्यूटिकल्स के मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। 

  • ये दिशा-निर्देश भारत में नैनो फार्मास्यूटिकल्स के लिये मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

नैनो फार्मास्यूटिकल्स: 

  • नैनो टेक्नोलॉजी में नैनो स्केल रेंज (नैनोमीटर, एक मीटर का एक अरबवाँ हिस्सा होता है) में आने वाले पदार्थ के अध्ययन की तकनीक को विकसित और प्रयोग किया जाता है। 
  • नैनो फार्मास्यूटिकल्स एक ऐसा उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें नैनो तकनीकी को जैवचिकित्सा और औषधि विज्ञान से जोड़ा जाता है। 
  • निदान और उपचार के क्षेत्र में इसके अनेक संभावित अनुप्रयोग हैं, चूँकि इस प्रौद्योगिकी का उपयोग बीमारी के स्थान पर ज़्यादा अच्छी तरह लक्ष्य करके और उच्च प्रभाव द्वारा दवा के उपयोग को बेहतर बनाने में किया जा सकता है। 

ये दिशा-निर्देश नैनो तकनीक आधारित आविष्कारों के व्यवसायीकरण को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ नैनो फार्मास्यूटिकल्स की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभाव सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं। ये उन उत्पादों वाली पारंपरिक दवाओं पर लागू नहीं होते, जिनमें सूक्ष्मजीव या प्रोटीन होते हैं। क्योंकि वे स्वाभाविक रूप से नैनो स्केल रेंज में मौजूद होते हैं। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • नवीन औषधि और क्लिनिकल ट्रायल्स नियम, 2019 की दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट सुरक्षा संबंधी शर्तें नैनो फार्मास्यूटिकल्स पर लागू होती हैं।
  • नैनो फार्मास्यूटिकल्स की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभाव के मूल्यांकन के लिये हर मामले पर अलग तरह के दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिये, जो कि विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा, जैसे-जैविक नाम, औषधि सामग्री पर आँकड़ों की उपलब्धता।
  • नैनोफार्मास्यूटिकल के विकास के औचित्य का स्पष्टीकरण किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त परंपरागत दवाओं की तुलना में नैनो फार्मास्यूटिकल्स के लाभ और हानियों को अध्ययनों के ज़रिये प्रदर्शित किया जाना चाहिये।

कृषि

सीड्स/बीज विधेयक का मसौदा

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoAFW) ने सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये मसौदा सीड्स विधेयक, 2019 जारी किया। 

  • मसौदा विधेयक बीजों के उत्पादन, वितरण, बिक्री, आयात और निर्यात के दौरान उनकी गुणवत्ता को विनियमित करने का प्रयास करता है। 
  • प्रस्तावित विधेयक सीड्स विधेयक, 1966 का स्थान लेने का प्रयास करता है। 
  • मसौदा विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

पंजीकरण: 

  • किसानों द्वारा उत्पादित बीज की किस्मों को छोड़कर बुवाई या रोपण के उद्देश्य से बेचे जाने वाले सभी प्रकार के बीज पंजीकृत होने चाहिये। 
    • किसानों की किस्में, वे किस्में होती हैं जिन्हें पारंपरिक रूप से किसानों द्वारा अपने खेतों में उगाया और विकसित किया गया है या वे उन किस्मों के समान हैं जिनके बारे में किसानों को सामान्य समझ होती है। 
  • ब्रांड नेम के अंतर्गत बिकने वाले बीजों की बजाय किसानों द्वारा उत्पादित बीजों को पंजीकृत करने की भी आवश्यकता नहीं है। 
  • बीजों की ट्रांसजेनिक किस्मों (जो अन्य किस्मों की आनुवंशिक संरचना को संशोधित करके विकसित की जाती हैं) को केवल पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत मंज़ूरी मिलने के बाद पंजीकृत किया जा सकता है।

मानदंड: 

  • केंद्र सरकार बीजों की सभी किस्मों के अंकुरण, आनुवंशिक और भौतिक शुद्धता, एवं स्वास्थ्य की न्यूनतम सीमा को अधिसूचित कर सकती है। 
  • ट्रांसजेनिक किस्मों के लिये अतिरिक्त मानदंड विनिर्दिष्ट किये जा सकते हैं। 
  • ब्रांड नेम के अंतर्गत बिकने वाले बीजों के अतिरिक्त ये मानदंड किसानों द्वारा उत्पादित बीजों पर लागू नहीं होंगे।

किसानों को मुआवज़ा: 

  • अगर बीज की पंजीकृत किस्म अपने अपेक्षित मानक के अनुसार कार्य नहीं करती (जैसा कि उत्पादक, वितरक या वेंडर ने खुलासा किया है) तो किसान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत उत्पादक, डीलर, वितरक या वेंडर से मुआवज़े का दावा कर सकता है।

अपराध और सज़ा: 

  • विधेयक के किसी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले और निर्दिष्ट मानकों का अनुपालन न करने वाले विक्रेताओं को 25,000 रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना होगा। 
  • मानकों, बीजों के ब्रांड के संबंध में गलत सूचना देने वाले या नकली या गैर-पंजीकृत बीजों की सप्लाई करने वाले व्यक्तियों को एक साल के कारावास की सज़ा दी जाएगी या पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा, या दोनों सज़ा भुगतनी पड़ेंगी।

2019-20 में रबी फसलों के लिये MSP

केंद्रीय कैबिनेट ने 2019-20 में बोई जाने वाली रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSP) को मंज़ूरी दी। 

तालिका 1 में 2018-19 की तुलना में 2019-20 में रबी फसलों के एमएसपी में परिवर्तनों को प्रदर्शित किया गया है:

रुपए प्रति क्विंटल

फसल 2018-19 2019-20 परिवर्तन
गेहूँ
1,840 1,925 4.6%
जौ
1,440 1,525 5.9%
चना
4,620 4,875 5.5%
दाल मसूर
4,475 4,800 7.3%
सफेद और पीली सरसों
4,200 4,425 5.4%
कुसुम्भ
4,945 5,215 5.5%
  • अनाज के लिये भारतीय खाद्य निगम (FCI) और दूसरी नामित राज्य एजेंसियाँ खरीद जारी रखेंगी। मोटे अनाज के लिये राज्य सरकारें केंद्र से पूर्व मंज़ूरी लेने के बाद खरीद करेंगी। 
  • खरीदे गए पूरे अनाज को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत राज्यों द्वारा वितरित किया जाएगा। 
  • अधिनियम के अंतर्गत जारी अनाज के लिये ही सब्सिडी दी जाएगी। 
  • भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारिता विपणन संघ (NAFED), छोटे किसानों के एग्रीबिजनेस कन्सोर्टियम और दूसरी नामित केंद्रीय एजेंसियाँ दालों और तिलहन की खरीद जारी रखेंगे। 
  • नोडल एजेंसियों को इस खरीद में होने वाले नुकसान की पूरी भरपाई केंद्र सरकार द्वारा की जा सकती है।

PM-KISAN के लिये आधार की अनिवार्यता में छूट

केंद्रीय कैबिनेट ने पीएम-किसान योजना (PM-KISAN) के अंतर्गत लाभार्थियों को धनराशि जारी करने के लिये आधार सीडिंग (आधार को बैंक खाते से लिंक करना) की अनिवार्य शर्त में ढिलाई को मंज़ूरी दे दी है। 

  • पीएम-किसान योजना में पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए के आय समर्थन का प्रावधान है। 
  • इससे पूर्व आधार सीडिंग 1 अगस्त, 2019 के बाद धनराशि जारी करने की अनिवार्य शर्त थी (असम, जम्मू एवं कश्मीर और मेघालय को छोड़कर)। चूँकि शत-प्रतिशत आधार सीडिंग इस समय-सीमा तक पूरी नहीं हो सकती, इसलिये इस अनिवार्य शर्त में 30 नवंबर, 2019 तक छूट दी गई है। असम, जम्मू एवं कश्मीर और मेघालय के मामलों में यह छूट 31 मार्च, 2020 तक है।

गृह मामले

सिक्किम में विशेष विवाह अधिनियम

भारत के राष्ट्रपति ने सिक्किम में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के विस्तार को अधिसूचित किया है। 

  • अधिनियम में दो व्यक्तियों के विवाह की मान्यता और पंजीकरण का प्रावधान है, भले ही उनका धर्म कोई भी हो।  
  • सिक्किम में अधिनियम के प्रावधान सरकार द्वारा अधिसूचित दिनांक से लागू होंगे।

अरुणाचल प्रदेश में AFSPA का विस्तार

गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा अरुणाचल प्रदेश के तीन ज़िलों (तिरप, चंगलांग और लांगडिंग) में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958 को पूर्व में ही विस्तारित किया गया है। 

  • गृह मंत्रालय ने चार अन्य पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाकों को अधिनियम के तहत शामिल करने के लिये (अधिनियम के अंतर्गत आने वाले) क्षेत्र का विस्तार भी किया है। 
  • ये पुलिस स्टेशन हैं: 
  1. नमसई ज़िले में नमसई एवं महादेवपुर
  2. दिबांग घाटी ज़िले में रोइंग स्टेशन
  3. लोहित ज़िले में सुनपूरा स्टेशन।

परिवहन

नेशनल काउंटर रोग ड्रोन के दिशा-निर्देश जारी

नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने नेशनल काउंटर रोग ड्रोन (National Counter Rogue Drones) के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। 

  • दिशा-निर्देश ड्रोन के अविनियमित उपयोग से उठने वाले संभावित खतरों और उन खतरों को कम करने के उपायों को रेखांकित करने का प्रयास करते हैं। 
  • ड्रोन (नागरिक उपयोग के लिये) को उनके अधिकतम टेक-ऑफ भार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जो कि निम्नलिखित हैं: 
  1. नैनो (250 ग्राम के बराबर या उससे कम)
  2. माइक्रो (250 ग्राम और 2 किलो के बीच)
  3. छोटा (2 किलो से 25 किलो के बीच)
  4. मध्यम (25 किलो से 150 किलो के बीच
  5. बड़ा (150 किलो से अधिक)।

दिशा-निर्देशों की विशेषताएँ:

अवांछित ड्रोन के अनुप्रयोग: 

  • माइक्रो ड्रोन्स का गैर-कानूनी उपयोग फोटोग्राफी और चौकसी तक सीमित हो सकता है, पर छोटे से बड़े ड्रोन्स का चौकसी के साथ-साथ विस्फोटक लाने के लिये दुरुपयोग किया जा सकता है। इन दुरुपयोगों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: 
  1. हथियारों की डिलीवरी
  2. हवाई क्षेत्र में दखल
  3. व्यक्तियों या संपत्ति पर हमला
  4. सिग्नल देना या प्रचार संबंधी संदेश देना
  5. सामूहिक विनाश के हथियारों के लिये डिलीवरी प्रणाली

अवांछित ड्रोन्स के प्रकार: 

  • अवैध तरीके से लक्ष्य करने के लिये निम्न प्रकार के ड्रोन्स का उपयोग हो सकता है: 
  1. स्वायत्त ड्रोन्स (निश्चित लक्ष्य को दिशा-निर्देश देने के लिये ऑन बोर्ड कंप्यूटरों द्वारा नियंत्रित)
  2. ड्रोन स्वार्म्स (एक यूनिट के रूप में कई ड्रोन्स को नियंत्रित करना)
  3. स्टील्थ ड्रोन्स (वे स्वयं को रडार की पहुँच से दूर कर सकते हैं, जिससे उनका पता लगाना मुश्किल होता है)

अवांछित ड्रोन्स का मुकाबला: 

  • इन ड्रोन्स का मुकाबला करने के लिये प्रभावी प्रणाली का पता लगाया जाना चाहिये और कुछ विशिष्टताओं के आधार पर उन्हें नियमित रूप से ट्रैक किया जाना चाहिये। ये विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं: 
  1. न्यूनतम इंफ्रारेड सिग्नेचर्स
  2. सीमित रेडियो फ्रीक्वेंसी
  3. निम्न एक्यूइस्टिक एमीशन

हालाँकि ऐसे ड्रोन का पता लगाने की चुनौतियों में नियमित और अवांछित ड्रोन को अलग करने में कठिनाई और प्रतिक्रिया में लगने वाला कम समय शामिल है।

संस्थागत संरचना: 

  • अनेक एजेंसियाँ (जैसे रक्षा, गृह मामले, नागरिक उड्डयन मंत्रालय) गैर पारंपरिक हवाई खतरों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसलिये अवांछित ड्रोन्स का मुकाबला करने हेतु फ्रेमवर्क बनाने और संबंधित मंत्रालयों को सलाह देने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक संचालन समिति का गठन किया जाना चाहिये। 
  • समिति देश में वाणिज्यिक नागरिक ड्रोन अनुप्रयोगों को भी विनियमित करेगी। इसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे: 
  1. भारतीय वायु सेना
  2. गृह मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय
  3. खुफिया एजेंसियाँ। 
  • खतरों की नियमित निगरानी और अवांछित ड्रोन से मुकाबला करने के उपायों को लागू करने के लिये एक क्रियान्वयन समिति इसकी सहायता करेगी।

 अनधिकृत वाहनों की स्क्रेपिंग पर दिशा-निर्देश 

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देश में अनधिकृत वाहनों के स्क्रेपिंग केंद्रों की स्थापना, अनुमति और संचालन के लिये मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं।  

वाहनों की स्क्रेपिंग का अर्थ: वाहनों की स्क्रेपिंग का अर्थ होता है, कानूनी रूप से निश्चित आयु वर्ष के समाप्त होने पर वाहनों को तोड़कर या पुनर्चक्रित करके उसका उपयोग धातु अथवा अन्य घटकों के रूप में करने योग्य बनाना। 

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत केंद्र सरकार उन मोटर वाहनों और उनके भागों को रीसाइकिल करने के तरीकों को निर्धारित करने वाले नियम बना सकती है जो कि अपने निश्चित जीवन काल से अधिक के हो चुके हैं।

मसौदा दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

पात्रता: 

  • अधिकृत वाहन स्क्रेपिंग केंद्र स्थापित करने के पात्रता संबंधी दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
  1. उस राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (UT) से स्थापना की सहमति का अधिकार हासिल करना, जहाँ वह स्थित होगा
  2. कामकाज के छह महीने के अंदर राज्य प्रदूषण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) हासिल करना। 
  • इसके अतिरिक्त केंद्र में वाहनों की तोड़-फोड़ और स्क्रेपिंग के लिये अधिकृत स्क्रेपिंग यार्ड होना चाहिये। इस यार्ड में निम्नलिखित सुविधा होनी चाहिये: 
  1. एक ऐसी प्रणाली जो कि ईंधन और गैस निकालने के दौरान सभी प्रदूषकों को हटाए
  2. बेकार वाहनों से निपटने के लिये उपयुक्त स्थान इत्यादि

अनुमति और निरीक्षण: 

  • केंद्र को प्रदत्त अनुमति 10 वर्षों के लिये वैध होगी और इसके बाद 10 वर्षों के लिये उसे नवीनीकृत किया जा सकता है। 
  • लाइसेंसिंग अथॉरिटी या राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार के नामित अधिकारी द्वारा केंद्र का निरीक्षण किया जा सकता है। 
  • व्यवसायगत स्वास्थ्य एवं सुरक्षा अनुपालन और व्यावसायिक, पर्यावरणीय तथा श्रम मानकों के लिये केंद्र का ऑडिट भी किया जाएगा।

वाहनों की स्क्रेपिंग का मानदंड: 

  • जिन वाहनों की स्क्रेपिंग की जा सकती है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
  1. जिन्होंने अपने पंजीकरण प्रमाण-पत्र नवीनीकृत नहीं किये
  2. जिनके पास 1988 के अधिनियम के अनुसार, फिटनेस प्रमाण-पत्र नहीं हैं।

स्क्रेपिंग की प्रक्रिया: 

  • वाहनों को विनिर्दिष्ट दिशा-निर्देशों के अनुसार स्क्रेप किया जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद वाहन के स्टेट्स को राष्ट्रीय वाहन रजिस्टर और वाहन डेटाबेस में अपडेट किया जाएगा।

बिजली

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन

बिजली मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर संशोधित दिशा-निर्देश और मानक जारी किये हैं।  मूल दिशा-निर्देश दिसंबर 2018 में जारी किये गए थे।  मूल दिशा-निर्देशों में मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

सुरक्षा मानक:

  • पहले के दिशा-निर्देशों में निजी चार्जिंग स्टेशनों (घरों और कार्यालयों में) से यह अपेक्षा की गई थी कि वे निर्दिष्ट प्रदर्शन और तकनीकी मानदंडों को पूरा करेंगे। 
  • संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अपेक्षा की गई है कि वे निर्दिष्ट सुरक्षा मानकों का अनुपालन भी करेंगे।

सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन: 

  • पहले के दिशा-निर्देशों में पब्लिक चार्जिंग स्टेशनों से अपेक्षा की गई थी कि वे सभी पाँच निर्दिष्ट चार्जर मॉडल इंस्टॉल करेंगे। 
  • संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अपेक्षा की गई है कि वे केवल एक या अधिक प्रकार के निर्दिष्ट चार्जर मॉडल लगाएंगे। 
  • ई-टू-व्हीलर और थ्री-व्हीलर के चार्जिंग स्टेशनों को विनिर्दिष्ट चार्जर मॉडल के अतिरिक्त किसी और मॉडल को इंस्टॉल करने की अनुमति होगी, जो कि केंद्रीय बिजली प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानदंडों का विषय होगा।

स्टैंडअलोन बैटरी स्वैपिंग सुविधा हटाई गई: 

  • पूर्व के दिशा-निर्देशों में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों को स्टैंडअलोन बैटरी स्वैपिंग सुविधा प्रदान करने की अनुमति थी। इस प्रावधान को संशोधित दिशा-निर्देशों से हटा दिया गया है।

शुल्क की सीमा हटाई गई: 

  • केंद्र या राज्य बिजली विनियामक आयोग सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों को बिजली की आपूर्ति का शुल्क तय करते हैं। 
  • शुल्क सीमा को संशोधित दिशा-निर्देश से हटा दिया गया है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिये अलग मीटरिंग का प्रबंध किया जाएगा।

केंद्रीय नोडल एजेंसी निर्दिष्ट: 

  • संशोधित दिशा-निर्देशों के अंतर्गत देश में सार्वजनिक चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को केंद्रीय नोडल एजेंसी के तौर पर निर्दिष्ट किया गया है।

विंड-सोलर हाइब्रिड परियोजनाओं से बिजली खरीद की नीलामी प्रक्रिया हेतु दिशा-निर्देश

नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने विंड-सोलर हाइब्रिड परियोजनाओं से बिजली खरीद की नीलामी प्रक्रिया हेतु दिशा-निर्देश जारी किये। 

  • दिशा-निर्देशों को वितरण कंपनियों (Discom) द्वारा प्रतिस्पर्द्धात्मक नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये इन परियोजनाओं से बिजली की दीर्घकालीन खरीद के लिये लागू किया जाएगा। 
  • यह वर्ष 2018 में घोषित राष्ट्रीय विंड-सोलर हाइब्रिड नीति के अनुरूप है। 
  • नीति बड़े ग्रिड-कनेक्टेड विंड-सोलर हाइब्रिड प्रणाली के संवर्द्धन के लिये फ्रेमवर्क प्रदान करने का प्रयास करती है। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:  

नीलामी प्रक्रिया: 

  • नीलामी प्रक्रिया में तकनीकी रूप से टेक्निकल और प्राइज बिड सौंपा जाएगा। खरीदार (Discom) बोली लगाने वालों के अंतिम चयन के लिये ई-रिवर्स नीलामी, जिसमें विक्रेता खरीदार के समक्ष खरीद का प्रस्ताव रखता है, का विकल्प भी चुन सकता है।
  • नीलामी में कुल हाइब्रिड पावर क्षमता मेगावॉट में खरीदी जाएगी। बोली लगाने वाले निम्नलिखित प्रकार के टैरिफ के लिये बोली लगाएंगे: 
  1. 25 वर्ष या उससे अधिक के लिये रुपए/किलोवॉट में एक निश्चित शुल्क
  2. शुल्क रुपए/किलोवॉट में तथा हर वर्ष शुल्कों में वृद्धि, साथ ही यह स्पष्ट करना कि कितने वर्षों तक टैरिफ में वृद्धि होती रहेगी। 
  • बोली लगाने वालों से निम्नलिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाएगी: 
  1. भूमि अधिग्रहण
  2. पर्यावरण और वन मंज़ूरियाँ, इत्यादि

समझौते की अवधि: 

  • बिजली खरीद समझौते (PPA) के लिये न्यूनतम अवधि 25 वर्ष होगी। यह कुछ शर्तों और नियमों के अधीन PPA पर हस्ताक्षर करने वाले पक्षों के बीच परस्पर सहमति से बढ़ाई जा सकती है। 
  • उत्पादक से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह PPA पर हस्ताक्षर के समय वार्षिक उपयोग क्षमता की घोषणा करेगा।

संचार

BSNL और MTNL के रिवाइवल प्लान को मंज़ूरी

केंद्रीय कैबिनेट ने BSNL और MTNL के लिये पुनरुद्धार योजना (Revival Plan) को मंज़ूरी दे दी है।  

  • इस योजना में इन PSU के वित्तीय तनाव को संबोधित किया गया है और उन्हें गुणवत्तापूर्ण और भरोसेमंद सेवाएँ प्रदान करने लायक बनाने पर ज़ोर दिया गया है। पुनरुद्धार योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

BSNL और MTNL का विलय: 

  • केंद्रीय कैबिनेट ने BSNL और MTNL के विलय को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी है।

4जी स्पेक्ट्रम का आवंटन: 

  • दोनों PSU को 4जी स्पेक्ट्रम आवंटित किये जाएंगे। 
  • केंद्र सरकार इन्हें आवंटित स्पेक्ट्रम की लागत का वित्तपोषण करेगी। 
  • केंद्र सरकार इसके लिये 23,814 करोड़ रुपए प्रदान करेगी।

ऋण के बोझ में कमी: 

  • केंद्र सरकार 15,000 करोड़ रुपए के दीर्घकालीन बॉण्ड्स को पेश करने के लिये दोनों PSU को संप्रभु गारंटी प्रदान करेगी। 
  • इससे प्राप्त धनराशि को मौजूदा ऋण को पुनर्गठित करने तथा पूंजीगत एवं परिचालनगत व्यय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इस्तेमाल किया जाएगा।
  • दोनों PSU अपनी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करेंगे। मुद्रीकरण से प्राप्त धनराशि को पूंजीगत एवं परिचालनगत व्यय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उपयोग किया जाएगा।

वेतन के बोझ में कमी करना: 

  • वेतन के दबाव को कम करने के लिये दोनों PSU अपने 50 वर्ष और उससे अधिक के कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) का प्रस्ताव देंगे। 
  • VRS योजना की लागत का वहन केंद्र सरकार करेगी। 
  • स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग करने वाले कर्मचारियों को एक मुश्त मुआवज़ा दिया जाएगा। इसके लिये 17,169 करोड़ रुपए की धनराशि की ज़रूरत पड़ेगी। 
  • इसके अतिरिक्त सरकार पेंशन, ग्रेच्युटी और लाभ प्रतिपूर्ति की लागत भी चुकाएगी।

 सर्वोच्च न्यायालय का टेलीकॉम कंपनियों को निर्देश 

सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीकॉम कंपनियों और दूरसंचार विभाग (DoT) के बीच राजस्व साझाकरण से संबंधित एक मामले पर निर्णय दिया है।

  • राष्ट्रीय टेलीकॉम नीति, 1999 के अंतर्गत टेलीकॉम कंपनियों को DoT को राजस्व के हिस्से के रूप में वार्षिक लाइसेंस फीस चुकानी होती है। 
  • यह लाइसेंस फीस टेलीकॉम कंपनी और विभाग के बीच हस्ताक्षरित लाइसेंस समझौते के नियमों और शर्तों का एक हिस्सा है और इसे कंपनी के सकल राजस्व का 8% निर्धारित किया गया था।

पृष्ठभूमि:

  • विभिन्न दूरसंचार कंपनियों और DoT ने सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला दायर किया, जिसमें लाइसेंस समझौतों के तहत ‘सकल राजस्व’ की परिभाषा की व्याख्या करने के लिये कहा गया था। 
  • दूरसंचार कंपनियों ने तर्क दिया था कि DoT ने अवैध रूप से आय के विभिन्न तत्त्वों को सकल राजस्व की परिभाषा में शामिल किया है, जिन्हें लाइसेंस के तहत परिचालन से अर्जित नहीं किया जाता। इनमें लाभांश आय, अल्पावधि निवेश पर ब्याज, आय और कॉल पर छूट शामिल हैं।

न्यायालय का निर्णय: 

  • अपने निर्णय में न्यायालय ने DoT की ‘सकल राजस्व’ की व्याख्या को बरकरार रखा और टेलीकॉम कंपनियों को सभी बकाया राशि और दंड का भुगतान करने का निर्देश दिया। यह लगभग 92,000 करोड़ रुपए अनुमानित है।
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