अक्टूबर 2018 | 17 Jan 2019
PRS की प्रमुख हाइलाइट्स
- केपटाउन कन्वेंशन बिल, 2018 का मसौदा जारी
- नागर विमानन मंत्रालय ने जारी की डिजी यात्री नीति
- रेलवे स्टेशन पुनर्विकास के लिये कैबिनेट ने IRSDC को नोडल एजेंसी के रूप में मान्यता दी
- भारतीय रेलवे ने माल एवं यात्री किराए को बनाया और अधिक तर्कसंगत
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2018 का मसौदा
- दिवालियापन कानून समिति ने प्रस्तुत की सीमा-पार ऋणशोधन पर रिपोर्ट
- राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण
- लेखापरीक्षा फर्मों के विनियमन पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने किफायती स्वास्थ्य सेवाओं पर नोट जारी किया
- 2019-20 विपणन वर्ष के लिये रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंज़ूरी
- मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष के निर्माण को मंज़ूरी
- गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किये नागरिकता संबंधी नियम
- रूस तथा उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों का भारत दौरा
- भारतीय प्रधानमंत्री का जापान दौरा
- राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद तथा राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी के विलय को मंज़ूरी
केपटाउन कन्वेंशन बिल, 2018 का प्रारूप जारी किया गया
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने केपटाउन कन्वेंशन बिल, 2018 का मसौदा जारी किया। मसौदा/ड्राफ्ट बिल/विधेयक में केपटाउन कन्वेंशन (मोबाइल उपकरणों में अंतर्राष्ट्रीय हितों पर सम्मेलन) तथा प्रोटोकॉल (विमान उपकरण के लिये विशिष्ट मामलों पर कन्वेंशन प्रोटोकॉल) को भारत में लागू करने की बात की गई है।
- केपटाउन कन्वेंशन/प्रोटोकॉल को केपटाउन में नवंबर, 2001 में अपनाया गया था।
- भारत ने जुलाई 2008 में इस कन्वेंशन/प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
- यह कन्वेंशन/प्रोटोकॉल मुख्य रूप से परिचालन लागत को प्रभावी एवं सस्ती बनाने के उद्देश्य से एयरफ्रेम, हेलिकॉप्टर तथा इंजन जैसे उन्नत मोबाइल उपकरणों के लिये पर्याप्त वित्त की व्यवस्था सुनिश्चित करता है।
कन्वेंशन/प्रोटोकॉल के उद्देश्य हैं:
- विमान उपकरणों में अंतर्राष्ट्रीय रुचि पैदा करना, जिसे सभी अनुबंधित देशों में मान्यता दी जाएगी।
- अंतर्राष्ट्रीय हितों के पंजीकरण के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्री की स्थापना करना तथा किसी विमान की विशेषता से संबंधित जानकारी प्रदान करना।
- त्वरित अंतरिम राहत प्रदान करने के लिये लेनदारों को कुछ बुनियादी मूलभूत उपाय प्रदान करना।
- एक ऐसी वैधानिक शासन व्यवस्था बनाना जो सभी पर लागू हो तथा विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों के लिये न्याय सुनिश्चित कर सकें।
विधि निर्माण की आवश्यकता:
- कन्वेंशन/प्रोटोकॉल के कुछ प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता, 2008, विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963; कंपनी अधिनियम, 2013 तथा दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 जैसे कानूनों के कुछ प्रावधानों से विसंगत हैं।
- इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसी भी देश द्वारा लागू किये गए कन्वेंशन/प्रोटोकॉल को तब तक उचित मान्यता नहीं देता है, जब तक कि यह कानून बदले हुए स्वरूप के साथ लागू न किया जाए।
- उदाहरण के लिये, OECD उस देश की एयरलाइंस को विमान अधिग्रहण के लिये ऋण के प्रसंस्करण शुल्क में 10% की छूट प्रदान करता है जिसने इस कन्वेंशन/प्रोटोकॉल के क्रियान्वयन के लिये कानून लागू किया है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने जारी की डिजी यात्रा नीति
- यह नीति सभी भारतीय हवाई अड्डों के चेक-पॉइंट्स पर सभी यात्रियों को एक सहज, पेपरलेस तथा सुविधाजनक अनुभव प्रदान करेगी।
नीति की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
उद्देश्य:
- यात्री अनुभव को बेहतर बनाना।
- डिजिटल ढाँचे का उपयोग करके बेहतर परिणाम (throughput) प्राप्त करना।
- चेक-पॉइंट्स पर अनावश्यक औपचारिकताओं को दूर करके लागत संचालन को कम करना।
- आधार तथा पासपोर्ट की तर्ज़ पर सरकार द्वारा जारी डिजिटल पहचान पत्र के साथ डिजी यात्रा प्रणाली की शुरुआत करना।
प्रयोज्यता: नई प्रक्रिया भारत के सभी हवाई अड्डों पर सभी यात्रियों पर लागू होगी।
डिजि यात्रा प्लेटफॉर्म:
- डिजी यात्रा प्लेटफॉर्म (सभी डिजिटल पहचान पत्रों के साथ) एक संयुक्त उद्यम कंपनी (Joint Venture Company-JVC) या एक विशेष उद्देश्य वाहन (Special Purpose Vehicle-SPV) द्वारा तैयार किया जाएगा।
- JVC/SPV की स्थापना भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (अल्प-हिस्सेदारी के साथ) तथा सभी निजी हवाई अड्डों के संचालकों द्वारा की जाएगी।
- डिजी यात्रा ID प्लेटफॉर्म पर यात्री सेवाओं जैसे नामांकन, अधिप्रमाणन तथा सहमति के साथ प्रोफ़ाइल को साझा किया जाएगा। यह केवल एक ID प्लेटफॉर्म होगा तथा अधिप्रमाणन सेवा प्रदान करेगा, जिन्हें विभिन्न हवाई अड्डों द्वारा अपनी सुविधानुसार लागू किया जा सकता हैं।
यात्री की सहमति:
- एक यात्री द्वारा डिजी यात्रा ID बनवाना तथा उसका उपयोग करना, पूरी तरह से स्वैच्छिक होगा। एयरपोर्ट चेकपॉइंट क्लीयरेंस के लिये फेस डेटा साझा करने हेतु प्लेटफॉर्म यात्री से सहमति लेनी होगी।
- हवाई अड्डे उपयोगकर्त्ताओं की प्रोफ़ाइल नहीं बना सकते हैं या विपणन उद्देश्य से उपयोगकर्त्ता की सहमति के बिना विपणन के लिये इस अधिप्रमाणन का उपयोग भी नहीं कर सकते हैं।
रेलवे स्टेशन पुनर्विकास के लिये कैबिनेट ने IRSDC को नोडल एजेंसी के रूप में मान्यता दी
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (IRSDC) को नोडल एजेंसी तथा रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास के लिये मुख्य परियोजना विकास एजेंसी के रूप में मंज़ूरी दी।
- ऐसी परियोजनाओं के लिये पट्टे की अवधि 99 वर्ष होगी। IRSDC एक स्टेशन या स्टेशनों के समूह के पुनर्विकास के लिये समग्र रणनीतिक योजना तथा व्यावसायिक योजना तैयार करेगा।
- रेल मंत्रालय द्वारा व्यावसायिक योजनाओं के अनुमोदन के बाद ही IRSDC या अन्य परियोजना विकास एजेंसियों द्वारा स्टेशन पुनर्विकास का कार्य किया जाएगा।
- भारतीय रेलवे, रेल भूमि विकास प्राधिकरण या IRSDC रेलवे भूमि से संबंधित योजनाएँ बनाएंगी तथा उनका विकास करेंगी। यह शहरी स्थानीय निकायों, स्थानीय विकास प्राधिकरणों या अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के परामर्श से किया जाएगा, ताकि भारतीय रेलवे को फ्री होल्ड आधार पर भूमि हस्तांतरित की जा सके।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 जून, 2015 को जोनल रेलवे द्वारा स्टेशनों की कुछ श्रेणियों के विकास को मंज़ूरी दी थी।
हालाँकि, ऐसी परियोजनाओं पर बोली लगाने वालों द्वारा पर्याप्त रुचि नहीं दिखाई गई थी तथा बहुत सारे उप-पट्टे (multiple sub leasing), जैसे मुद्दे उठाए गए थे। इस तरह की परियोजनाओं के लिये एक विशेष निष्पादन एजेंसी (IRSDC) को इन मुद्दों से निपटने के लिये प्रयास करना चाहिये।
भारतीय रेलवे ने माल एवं यात्री किराए को बनाया और अधिक तर्कसंगत
भारतीय रेलवे ने (i) फ्लेक्सी-किराया योजना और (ii) माल भाड़ा को तर्कसंगत बनाया है। किराए में निम्नलिखित बदलाव किये गए हैं:
फ्लेक्सी-किराया योजना:
- पिछले साल 50% से कम वार्षिक औसत मासिक अधिभोग (occupancy) वाली गाड़ियों में (आगामी वर्ष के लिये) फ्लेक्सी-किराया बंद कर दिया जाएगा।
- अधिभोग (occupancy) को बढ़ाने के लिये कम संरक्षित अथवा अधिराजित वर्गों (जैसे 2A, 3A, और CC) में फ्लेक्सी-किराए में कुछ छूट की शुरुआत की गई हैं। फ्लेक्सी-किराया योजना 9 सितंबर, 2016 को शुरू की गई थी।
- ये परिवर्तन एक समिति की सिफारिशों के आधार पर किये गए हैं जो योजना की समीक्षा, कैग तथा यात्रियों के प्रतिनिधित्त्व की सिफारिशों पर स्थापित की गई थी।
माल-भाड़े की दर:
- भारतीय रेलवे नेटवर्क ने अतिरिक्त राजस्व सृजन सुनिश्चित करने के लिये अपनी माल दरों को युक्तिसंगत बनाया है। इस तरह के युक्तिकरण से 3,344 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है।
- इस राजस्व का उपयोग यात्री सुविधाओं में सुधार के लिये किया जाएगा। इस युक्तिकरण से कोयला, लोहा एवं इस्पात, लौह अयस्क तथा इस्पात संयंत्रों के लिये कच्चे माल जैसी प्रमुख वस्तुओं के लिये माल की दरों में 8.75% की वृद्धि होगी।
- इसके अलावा, कंटेनरों की ढुलाई शुल्क में 5% की वृद्धि की गई है तथा अन्य छोटे सामानों के भाड़े में 8.75% की वृद्धि की गई है। खाद्यान्न, आटा, दाल, उर्वरक, नमक, चीनी, सीमेंट, पेट्रोलियम और डीज़ल जैसे सामानों के लिये माल भाड़े की दरों में वृद्धि नहीं की गई है।
राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2018 का मसौदा
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति, 2018 का मसौदा जारी किया है। मसौदा नीति का उद्देश्य भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणाली के डिज़ाइन और विनिर्माण (ESDM) में वैश्विक हब के रूप में पेश स्थापित करना है, जिससे संबंधित उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा के लिये तैयार किया जा सके। मसौदा नीति की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
उद्देश्य:
♦ 2025 तक 400 बिलियन डालर के कारोबार लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ESDM के विनिर्माण को बढ़ावा देना।
♦ ESDM उद्योग के लिये ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस में सुधार करना।
♦ इलेक्ट्रॉनिक्स के सभी उप-क्षेत्रों में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना।
- प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना: मसौदा नीति घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करके एक प्रतिस्पर्द्धी ESDM क्षेत्र बनाने की सिफारिश करती है। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे:
♦ नई विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्षेत्र में मौजूदा इकाइयों के विस्तार के लिये प्रत्यक्ष कर लाभ प्रदान करना।
♦ विश्व व्यापार संगठन के सूचना प्रौद्योगिकी समझौते के तहत शामिल इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्माण को बढ़ावा देना।
♦ भारत में निर्मित नहीं होने वाले पूंजीगत उपकरणों पर आयात शुल्क में छूट देना।
- विनिर्माण के लिये योजनाएँ: घरेलू विनिर्माण में नुकसान की भरपाई के लिये संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना 2012 में शुरू की गई थी। यह योजना गैर-SEZ क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग स्थापित करने के लिये 25% तथा SEZ क्षेत्रों में 20% की पूंजी सब्सिडी प्रदान करती है। मसौदा नीति इस योजना की जगह ऐसी योजनाओं को लागू करने का प्रस्ताव करती है, जिन्हें लागू करना आसान हो, जैसे- ब्याज सब्सिडी और क्रेडिट डिफॉल्ट गारंटी।
- मानक: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में एक मानक स्थापित करने वाली संस्था स्थापित की जाएगी। इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के मानकों के अनुपालन के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाएगा।
- निर्यात प्रोत्साहन: मसौदा नीति का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात को बढ़ावा देना है:
♦ इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये ड्यूटी ड्रा बैक की दर को बढ़ाना।
♦ सेकंड हैंड कैपिटल गुड्स के ड्यूटी फ्री आयात को अनुमति देना।
♦ यूरोपीय संघ तथा अफ्रीका जैसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौतों में प्रवेश करना।
दिवालियापन कानून समिति ने प्रस्तुत की सीमा-पार ऋणशोधन पर रिपोर्ट
- दिवालियापन कानून समिति (अध्यक्ष: श्री इंजेती श्रीनिवास) ने दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 (इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016) में सीमा-पार ऋणशोधन (इन्सॉल्वेंसी) प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश करते हुए यह रिपोर्ट सौंपी।
- समिति ने UNCITRAL सीमा-पार ऋणशोधन, 1997 मॉडल कानून के विश्लेषण के आधार पर मौजूद संहिता में एक मसौदा 'पार्ट Z’ प्रस्तावित किया है।
- मॉडल कानून एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, जिसे राज्यों द्वारा सीमा-पार ऋणशोधन संबंधी मुद्दों से निपटने के लिये उनके घरेलू कानून के साथ लागू किया जा सकता है।
समिति की प्रमुख सिफारिशें:
- प्रयोज्यता: समिति ने सिफारिश की कि 'भाग Z' का मसौदा विदेशी कंपनियों सहित केवल कॉर्पोरेट देनदारों तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- शासनों की द्वैधता (Duplicity): समिति ने उल्लेख किया कि वर्तमान में कंपनी अधिनियम, 2013 में विदेशी कंपनियों के शोध-अक्षमता से निपटने के प्रावधान है। यह अवलोकन किया गया है कि एक बार सीमा-पार ऋणशोधन संबंधी प्रावधानों को संहिता में प्रस्तावित किये जाने के बाद, यह विदेशी कंपनियों द्वारा ऋणशोधन संबंधी मुद्दों से निपटने के लिये एक दोहरे शासन का प्रावधान करेगी। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कॉरपोरेट मामलो का मंत्रालय 2013 के अधिनियम में वर्णित ऐसे प्रावधानों का अध्ययन करें ताकि उन्हें बनाए रखने की प्रभावकारिता का विश्लेषण किया जा सके।
- पारस्परिकता (Reciprocity): समिति ने शुरू में पारस्परिक आधार पर मॉडल कानून को अपनाने की सिफारिश की है। पारस्परिकता का अर्थ यह है कि एक घरेलू अदालत एक विदेशी अदालत के फैसले को तभी मान्यता देगी और लागू करेगी जब उस विदेशी देश ने घरेलू देश के समान कानून को अपनाया हो।
- मुख्य रुचियों का केंद्र (COMI): आदर्श कानून यह प्रावधान करता है कि यदि घरेलू अदालतें यह निर्धारित करती हैं कि किसी विदेशी देश में ऋणी का COMI (Centre of Main Interests) है; इस तरह की विदेशी कार्रवाई को मुख्य कार्रवाई के रूप में मान्यता दी जाएगी। इस मान्यता के परिणामस्वरूप स्वतः राहत मिल जाएगी, जैसे कि विदेशी प्रतिनिधियों को देनदार की संपत्तियों में संचालन की अधिक-से-अधिक शक्तियों की अनुमति देना। COMI युक्त सांकेतिक कारकों की एक सूची नियम बनाने वाली शक्तियों के माध्यम से डाला जा सकता है। ऐसे कारकों में देनदारों के खाते एवं रिकॉर्ड, वित्तपोषण का स्थान आदि शामिल हो सकते हैं।
- सार्वजनिक नीति के विचार (Public policy considerations): भाग Z प्रावधान करता है कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण भाग Z के तहत कार्रवाई करने से इनकार कर सकता है, यदि यह सार्वजनिक नीति से असंगत है। समिति की सिफारिश हैं कि जहाँ कार्रवाई में ट्रिब्यूनल की राय है कि सार्वजनिक नीति का उल्लंघन शामिल हो रहा है, तो केंद्र सरकार को अपनी राय रखने के लिये एक नोटिस जारी किया जाना चाहिये। यदि ट्रिब्यूनल नोटिस जारी नहीं करता है, तो केंद्र सरकार को इसे सीधे लागू करने का अधिकार दिया जा सकता है।
राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण
- कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (NFRA) का गठन किया है।
- राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (NFRA) लेखा परीक्षकों के लिये एक स्वतंत्र नियामक के रूप में स्थापित किया गया है।
अधिकार-क्षेत्र
- अधिनियम की धारा 132 के तहत चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा उनकी फर्मों की जाँच के लिये NFRA का अधिकार क्षेत्र सूचीबद्ध कंपनियों एवं बड़े गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों तक विस्तारित होगा, जिसके लिये सीमाओं का निर्धारण इनसे संबंधित नियमों में किया जाएगा।
- केंद्र सरकार जाँच के लिये किसी अन्य संस्था को भी नामित कर सकती है, जहाँ सार्वजनिक हित शामिल होंगे।
अध्यक्ष एवं सदस्य
- राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण में एक चेयरपर्सन होगा, जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा एवं एकाउंटेंसी, ऑडिटिंग, फाइनेंस या कानून में विशेषज्ञ व्यक्ति होगा तथा ऐसे अन्य सदस्य जो अंशकालिक और पूर्णकालिक सदस्यों होंगे, जिनकी संख्या पंद्रह से अधिक न हो और जैसा कि निर्धारित किया जाएगा।
- चेयरपर्सन एवं सदस्य, केंद्र सरकार को अपनी नियुक्ति के संबंध में हितों के टकराव या स्वतंत्रता की कमी के वजह से किसी प्रकार के विवाद के विषय में निर्धारित प्रपत्र में घोषणा करेंगे।
- चेयरपर्सन और सदस्य, जो राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण के साथ पूर्णकालिक सदस्य हैं, उनकी नियुक्ति के दौरान अथवा इस पद से सेवामुक्ति के दो साल बाद तक किसी भी ऑडिट फर्म (संबंधित कंसल्टेंसी फर्मों सहित) से संबद्ध नहीं होंगे।
लेखापरीक्षा फर्मों के विनियमन पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट
- एक विशेषज्ञ समिति ने ‘लेखा-परीक्षा फर्म तथा नेटवर्क के विनियमन’ पर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति का गठन अप्रैल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार किया गया था।
- रिपोर्ट में लेखा परीक्षकों के कानूनी फ्रेमवर्क की जाँच की गई तथा भारत में लेखा-परीक्षा पेशे के विकास को बढ़ावा देने के उपाय सुझाए गए हैं।
- समिति ने चार बड़ी लेखा-परीक्षा फर्मों के कानूनी ढाँचे तथा संचालन की विधि को समझने के लिये उनके द्वारा अपनाई गई नेटवर्किंग व्यवस्था की जाँच की।
- समिति ने लेखाकारों तथा उनके नेटवर्क द्वारा प्रदान की गई गैर-लेखा सेवाओं से उत्पन्न हितों और पारदर्शिता के टकराव के मुद्दों को भी उजागर किया तथा आवश्यक नियंत्रण एवं संतुलन के उपाय सुझाए हैं।
- इसके अलावा, रिपोर्ट में ऑडिट सेवा बाज़ार में बाज़ार-शक्ति के संकेंद्रण संबंधी मुद्दों को भी उजागर किया गया है।
- समिति ने राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (NFRA) की स्थापना को एक आवश्यक संस्थागत सुधार माना, जो लेखा परीक्षकों के लिये एक स्वतंत्र नियामक स्थापित कर वैश्विक स्थिति के साथ भारतीय लेखा परीक्षा परिदृश्य को संरेखित करेगा।
- NFRA लेखा परीक्षकों के लिये एक स्वतंत्र नियामक के रूप में स्थापित किया गया।
- समिति ने भारत में लेखा परीक्षकों, लेखा-परीक्षा फर्मों तथा नेटवर्क के संबंध में समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिये NFRA के संचालन को और मज़बूत बनाने के उपाय सुझाए हैं।
- रिपोर्ट में विज्ञापन, बहु-विषयक प्रैक्टिस फर्मों एवं ब्रांडिंग से संबंधित मुद्दों को भी उजागर किया गया तथा मौजूदा कानूनों को युक्तिसंगत बनाने के उपाय सुझाए गए।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने किफायती स्वास्थ्य सेवाओं पर नोट जारी किया
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने बाज़ार को स्वास्थ्य सेवाओं के लिये किफायती बनाने के लिये एक नीतिगत नोट जारी किया हैं।
- यह नोट फार्मास्यूटिकल तथा हेल्थकेयर क्षेत्र में उन मुद्दों का निरीक्षण करता है जो प्रतिस्पर्द्धा एवं उपभोक्ताओं के विकल्प को सीमित कर सकते हैं।
आयोग की प्रमुख टिप्पणियाँ एवं सिफारिशें इस प्रकार हैं:
बिचौलियों की भूमिका:
- आयोग ने कहा कि भारत में दवा कंपनियाँ अनुचित रूप से उच्च व्यापार लाभ (मार्जिन) लेती हैं जिससे दवा की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होती है।
- इसके अलावा, व्यापार संघों द्वारा किया जाने वाला स्व-नियमन भी उच्च मार्जिन को बढ़ावा देता है क्योंकि ये संपूर्ण दवा वितरण प्रणाली को नियंत्रित करते हैं जो प्रतिस्पर्द्धा को कम करता है।
- आयोग ने खुदरा विक्रेताओं के बीच मूल्य प्रतिस्पर्द्धा को प्रेरित करने के लिये दवाओं के इलेक्ट्रॉनिक व्यापार की सिफारिश की हैं।
ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयाँ:
- भारत के फार्मास्युटिकल मार्केट में ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं का बोलबाला है जो जेनेरिक दवाओं से प्रेरित मूल्य प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करता है। भारत में ब्रांडेड दवाएँ कथित गुणवत्ता आश्वासन के कारण प्रीमियम मूल्य का लाभ उठाती हैं।
- आयोग ने सिफारिश की है कि विनियामक ढाँचे हेतु गुणवत्तायुक्त नियंत्रण उपायों के निरंतर अनुप्रयोग को सुनिश्चित किया जाना चाहिये, ताकि गुणवत्ता की धारणा से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जा सके।
स्वास्थ्य सेवाओं में ऊर्ध्वाधर व्यवस्था (Vertical arrangements in healthcare services):
- आयोग ने कहा कि सुपर स्पेशियलिटी वाले अस्पतालों की अपनी फार्मेसियों को प्रतिस्पर्द्धा से पृथक रखा जाता है क्योंकि आमतौर पर मरीज़ों को बाहर से कोई उत्पाद खरीदने की अनुमति नहीं होती है। इसलिये, यह सिफारिश की गई हैं कि अस्पतालों को उपभोक्ताओं को खुले बाज़ार से मानकीकृत उपभोग्य सामग्रियों को खरीदने की अनुमति मिलनी चाहिये।
- इसके अलावा, आयोग ने कहा कि वर्तमान में ऐसा कोई नियामक ढाँचा मौजूद नहीं है जो अस्पतालों के बीच रोगियों के डेटा, उपचार संबंधी रिकॉर्ड और नैदानिक रिपोर्ट की पोर्टेबिलिटी को नियंत्रित करता हो। अतः इस संबंध में आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
नियमन एवं प्रतिस्पर्धा:
- दवा क्षेत्र में नियामकों की बहुलता के कारण, नियमों का कार्यान्वयन एक समान नहीं होता है। इससे एक ही उत्पाद के कई मानक तथा विनियामक अनुपालन के विभिन्न स्तर हो गए हैं।
- आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों द्वारा अनुपालन की जाने वाली प्रक्रियाओं के बीच सामंजस्य बनाने के लिये एक तंत्र विकसित किया जा सकता है।
2019-20 विपणन वर्ष के लिये रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंज़ूरी
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वर्ष 2019-20 के विपणन सत्र के लिये रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) को मंज़ूरी दी हैं।
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर विभिन्न कृषि फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का निर्धारण किया जाता है।
- तालिका में वर्ष 2018-19 विपणन सत्र की तुलना में रबी फसलों के MSP में बदलाव को दर्शाया गया है।
तालिका: 2019-20 विपणन सीजन (रुपए/क्विंटल में) के लिये रबी फसलों अधिसूचित MSP | |||
फसल | 2018-19 | 2019-20 | अंतर |
गेहूँ | 1,735 | 1,840 | 6.1 % |
जौ | 1,410 | 1,440 | 2.1 % |
ग्राम | 4,400 | 4,620 | 5.0 % |
मसूर | 4,250 | 4,475 | 5.3 % |
रेपसीड और मस्टर्ड | 4,000 | 4,200 | 5.0% |
सूरजमुखी | 4,100 | 4,945 | 20.6% |
मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष के निर्माण को मंज़ूरी
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि तथा अवसंरचना कोष के निर्माण को मंज़ूरी दी।
- यह कोष (i) राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों और संस्थाओं (ii) सहकारी समितियों और (iii) उद्यमियों को मत्स्य पालन के विकास में निवेश के लिये रियायती वित्त प्रदान करेगा।
- 2018-19 से 2022-23 तक 12 वर्षों की अवधि में किये जाने वाले पुनर्भुगतान के साथ पाँच वर्ष की अवधि के लिये ऋण प्रदान किया जाएगा। इस फंड की कूल कीमत 7,522 करोड़ रुपए आंकी गई है।
- नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD), नेशनल को-ऑपरेटिव्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन तथा शेड्यूल्ड बैंक इसकी प्रमुख ऋणदाता संस्थाएँ होंगी।
गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किये नागरिकता संबंधी नियम
- गृह मंत्रालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत एक अधिसूचना जारी की है। अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को एक नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है या आवेदन प्राप्त होने पर देशीयकरण का प्रमाण-पत्र प्रदान कर सकती है।
- अधिसूचना में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों के मामले में ज़िला कलेक्टर या गृह विभाग के सचिव को शक्तियाँ सौंपी गई है।
- इनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई शामिल हैं।
- अधिसूचना छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में रहने वाले व्यक्तियों पर लागू होती है।
रूस तथा उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों का भारत दौरा
- रूस और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने भारत का दौरा किया।
दोनों देशों के द्वारा हस्ताक्षरित प्रमुख समझौते:
- रूस: भारत तथा रूस ने रेलवे, फर्टिलाइजर्स, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग, आदि विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिये आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- उज़्बेकिस्तान : भारत तथा उज़्बेकिस्तान ने पर्यटन, कृषि और संबद्ध क्षेत्र, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विज्ञान, अवैध मादक पदार्थों की तस्करी आदि विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिये 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
भारतीय प्रधानमंत्री का जापान दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान की यात्रा की। भारत और जापान ने समुद्री डोमेन जागरूकता में सूचना का आदान-प्रदान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियाँ (AI), प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास करना, अक्षय ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण, इलेक्ट्रॉनिक्स, आदि विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिये 32 समझौतों पर हस्ताक्षर किये:
राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद तथा राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी के विलय को मंज़ूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद (National Council for Vocational Education and Training) की स्थापना को मंज़ूरी दी, जो कौशल विकास एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण को विनियमित करेगी।
यह दो मौजूदा नियामक संस्थानों का विलय करेगा:
♦ व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिये राष्ट्रीय परिषद
♦ राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी