विविध
दिसंबर 2023
- 30 Jan 2024
- 76 min read
PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:
- माइक्रोइकोनॉमिक विकास
- चालू खाता घाटा GDP का 1%
- गृह मामले
- जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023
- महिलाओं के लिये सीट आरक्षित करने हेतु विधेयक पारित
- जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण कानून में संशोधन
- पुद्दुचेरी विधानसभा में महिलाओं हेतु सीटों का आरक्षण
- कानून और न्याय
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को विनियमित करने वाला विधेयक
- संविधान के अनुच्छेद 370 का निरसन
- वित्त
- करों के अनंतिम संग्रहण अधिनियम की जगह लेने वाला विधेयक संसद द्वारा पारित
- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा अधिनियम में संशोधन
- RBI द्वारा स्व-नियामक संगठनों के लिये मसौदा रूपरेखा
- अधिकृत व्यक्तियों हेतु मसौदा लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क जारी
- प्रतिभूतियों के तात्कालिक निपटान पर परामर्श-पत्र जारी
- संचार
- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को विनियमित करने वाला विधेयक
- डाकघर विधेयक, 2023
- शिक्षा
- तेलंगाना में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु विधेयक
- भारत में अनुसंधान-आधारित शिक्षा पर रिपोर्ट
- शिपिंग
- लॉजिस्टिक्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और शिपिंग पर विज़न दस्तावेज़ जारी
- स्वास्थ्य
- आयुष्मान भारत पर रिपोर्ट
- उद्योग
- EV के प्रचार पर रिपोर्ट जारी
- श्रम
- राष्ट्रीय बाल श्रम नीति की समीक्षा
- खाद्य और सार्वजनिक वितरण
- जूट बैग के अनिवार्य उपयोग को मंज़ूरी
- रसायन और उर्वरक
- कीटनाशकों के संवर्द्धन और विकास पर रिपोर्ट प्रस्तुत
- रक्षा
- DRDO के कामकाज पर रिपोर्ट
- विदेशी मामले
- G-20
- पेट्रोलियम
- कच्चे तेल के आयात पर रिपोर्ट
- खनन
- निजी एजेंसियों की नियुक्ति की योजना अधिसूचित
- खनिजों के लिये रियायतों के संबंध में नियमों पर टिप्पणियाँ
- पर्यावरण
- वन्यजीवन (संरक्षण) अंतर्राष्ट्रीय नमूना व्यापार नियम, 2023
- उपभोक्ता मामले
- पूर्वोत्तर में उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण पर रिपोर्ट
माइक्रोइकोनॉमिक विकास
चालू खाता घाटा GDP का 1%
- चालू खाता गतिशीलता: दूसरी तिमाही 2023-24:
- वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिये भारत के चालू खाते में उल्लेखनीय सुधार हुआ, जिसमें 8.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा दर्ज किया गया, जो सकल घरेलू उत्पाद के 1% के बराबर है।
- यह आँकड़ा पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में एक महत्त्वपूर्ण कमी को दर्शाता है, जिसमें 30.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा दर्ज किया गया था, जो सकल घरेलू उत्पाद (2022-23) के 3.8% के बराबर है।
- चालू खाता घाटे में तिमाही उतार-चढ़ाव
- 2023-24 की प्रारंभिक तिमाही (अप्रैल-जून) में चालू खाता घाटा थोड़ा बढ़कर 9.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1.1% है।
- यह दूसरी तिमाही में देखे गए सकारात्मक रुझान के विपरीत है, जो भारत के आर्थिक प्रदर्शन में गतिशीलता पर ज़ोर देता है।
- माल व्यापार संतुलन: दूसरी तिमाही 2023-24
- माल व्यापार संतुलन में एक सकारात्मक बदलाव देखा गया क्योंकि घाटा 2022-23 की दूसरी तिमाही में 78.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2023-24 की दूसरी तिमाही में 61 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- यह व्यापार गतिशीलता में एक उत्साहजनक प्रवृत्ति को उजागर करता है।
- पूंजी खाता लचीलापन
- पूंजी खाते ने लचीलेपन का प्रदर्शन करते हुए वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में 9.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह दर्ज किया, जो 2022-23 की इसी तिमाही में दर्ज 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के शुद्ध प्रवाह के बिल्कुल विपरीत है।
- 2023-24 की पहली तिमाही में 34.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के शुद्ध प्रवाह के साथ और भी अधिक मज़बूत प्रदर्शन देखा गया।
- विदेशी मुद्रा भंडार: दूसरी तिमाही 2023-24
- विदेशी मुद्रा भंडार में सकारात्मक वृद्धि देखी गई, इसमें 2023-24 की दूसरी तिमाही में 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई। यह पिछले वर्ष की इसी तिमाही के बिल्कुल विपरीत है, जिसमें 30.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी देखी गई थी।
- 2023-24 की पहली तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में 24.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि के साथ सकारात्मक गति, भारत की आर्थिक स्थिति के लचीलेपन पर ज़ोर देती है।
गृह मामले
जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023
संसद ने जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 को पारित कर दिया। विधेयक जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन करता है।
विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विधानसभा में सीटों की संख्या:
- 2019 के अधिनियम ने जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 83 निर्दिष्ट है। यह अनुसूचित जाति के लिये छह सीटें आरक्षित करता है। लेकिन अनुसूचित जनजाति हेतु कोई सीट आरक्षित नहीं की गई है।
- संशोधन सीटों की कुल संख्या बढ़ाकर 90 कर एक उल्लेखनीय बदलाव को प्रदर्शित करता है। इसमें अनुसूचित जाति के लिये सात सीटें और अनुसूचित जनजाति हेतु नौ सीटें आरक्षित हैं।
- इसके अतिरिक्त अधिनियम पाकिस्तान अधिकृत जम्मू एवं कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों के लिये 24 सीटें आवंटित करता है।
- कश्मीरी प्रवासियों के नामांकन की व्यवस्था:
- विधेयक में कहा गया है कि उपराज्यपाल कश्मीरी प्रवासी समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों को विधानसभा में नामित कर सकता है। नामित सदस्यों में से एक महिला होनी चाहिये।
महिलाओं के लिये सीट आरक्षित करने हेतु विधेयक पारित
जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन करता है।
- महिलाओं के लिये आरक्षण:
- विधेयक, जहाँ तक संभव हो, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा की सभी निर्वाचित सीटों में से एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करता है।
- यह आरक्षण विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
- आरक्षण की शुरुआत और अवधि:
- इस विधेयक के लागू होने के बाद आयोजित जनगणना के प्रकाशित होने के बाद आरक्षण प्रभावी होगा।
- जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष के लिये लागू रहेगा।
- हालाँकि यह संसदीय कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि संविधान वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना से पहले तक परिसीमन पर रोक लगाता है।
जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण कानून में संशोधन
जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। यह जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण एक्ट, 2004 में संशोधन करता है। अधिनियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सदस्यों को व्यावसायिक संस्थानों में नौकरियों तथा प्रवेश में आरक्षण प्रदान करता है।
- अधिनियम के तहत श्रेणियाँ:
- मौजूदा जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 के तहत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर द्वारा घोषित सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े गाँवों में रहने वाले व्यक्ति शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त इसमें आधिकारिक तौर पर अधिसूचित कमज़ोर और वंचित वर्गों (सामाजिक जातियों) के साथ-साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी शामिल हैं।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को एक आयोग की सिफारिशों के आधार पर इन श्रेणियों को संशोधित करने का अधिकार देता है।
- विधेयक द्वारा प्रस्तुत संशोधन:
- हालिया विधेयक केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर द्वारा निर्दिष्ट "अन्य पिछड़े वर्गों" के साथ "कमज़ोर और वंचित वर्ग" शब्द को प्रतिस्थापित करके एक परिवर्तनकारी बदलाव लाता है।
- इसके अलावा संशोधन में अधिनियम से कमज़ोर और वंचित वर्गों की परिभाषा को हटाना शामिल है। शब्दावली तथा वर्गीकरण में इस सूक्ष्म बदलाव का उद्देश्य आरक्षण ढाँचे को समकालीन सामाजिक-आर्थिक विचारों के साथ सुव्यवस्थित एवं संरेखित करना है।
पुद्दुचेरी विधानसभा में महिलाओं हेतु सीटों का आरक्षण
केंद्रशासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद ने पारित कर दिया। यह विधेयक केंद्रशासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 में संशोधन करता है। अधिनियम कुछ विशेष केंद्रशासित प्रदेशों के लिये विधानसभाओं की स्थापना और मंत्रिपरिषद के गठन का प्रावधान करता है।
- पुद्दुचेरी विधानसभा में महिलाओं हेतु आरक्षण: विधेयक पुद्दुचेरी विधानसभा की सभी निर्वाचित सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित करता है। यह विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
- आरक्षण की शुरुआत: यह आरक्षण विधेयक के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन के पश्चात् प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि यह उस तारीख तक जारी रहेगा, जिसका निर्धारण संसद के किसी कानून द्वारा किया जाता है।
- सीटों का रोटेशन: हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों का रोटेशन किया जाएगा, जैसा कि संसद के कानून द्वारा निर्धारित किया जाए।
कानून और न्याय
चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को विनियमित करने हेतु विधेयक
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं कार्यावधि) विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 का स्थान लेता है। संविधान के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) तथा अन्य चुनाव आयुक्त (EC) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। विधेयक मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिये एक प्रक्रिया निर्दिष्ट करता है।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
- संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रपति के पास मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने का अधिकार है। अधिनियमित नया विधेयक इस नियुक्ति प्रक्रिया के लिये एक व्यापक प्रक्रिया का वर्णन करता है, जिसमें चयन समिति की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया गया है।
- राष्ट्रपति चयन समिति द्वारा प्रदान की गई सिफारिशों के आधार पर नियुक्तियाँ करता है।
- चयन समिति की संरचना:
- चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता और सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता इस भूमिका को निभाता है।
- खोजबीन समिति (सर्च समिति):
- चयन समिति पर विचार करने के लिये खोजबीन समिति पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। खोजबीन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेगा।
- इसमें सचिव स्तर के दो अन्य सदस्य होंगे।
- चयन समिति उन उम्मीदवारों पर भी विचार कर सकती है जिन्हें खोजबीन समिति द्वारा तैयार पैनल में शामिल नहीं किया गया है।
- CEC और EC की योग्यता:
- जो व्यक्ति केंद्र सरकार के सचिव के पद के समकक्ष पद पर हैं या ऐसे पद पर रह चुके हैं, वे CEC और EC के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे। ऐसे व्यक्तियों के पास चुनाव प्रबंधन एवं संचालन में विशेषज्ञता होनी चाहिये।
- सेवा शर्तें:
- CEC का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा।
- सेवा की अन्य शर्तें जैसे चिकित्सा सुविधाएँ और यात्रा भत्ता को राष्ट्रपति द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 370 का निरसन
सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायधीशों की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर अपना फैसला सुनाया।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में विभिन्न आधारों पर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय को बरकरार रखा गया। इसने स्पष्ट किया कि जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व राज्य में संप्रभुता का अभाव था, इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।
- न्यायालय ने संविधान सभा की सिफारिश के बिना अनुच्छेद 370 की समाप्ति की घोषणा करने के राष्ट्रपति के अधिकार की पुष्टि की, जिसे भंग कर दिया गया था।
- इसके अलावा इसने विधायी और गैर-विधायी दोनों उद्देश्यों के लिये राज्य विधानमंडल की शक्तियों के प्रयोग करने हेतु संसद के अधिकार क्षेत्र की स्थापना की।
- न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के संविधान को निष्क्रिय और निरर्थक घोषित कर दिया।
- भविष्य के निहितार्थ और दिशाएँ:
- जम्मू एवं कश्मीर के राज्य के दर्जे की संभावित बहाली को संबोधित करते हुए न्यायालय ने राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने की संवैधानिक वैधता पर फैसला देने से परहेज किया। हालाँकि इसने राज्य का दर्जा शीघ्र बहाल करने के संबंध में सॉलिसिटर जनरल की दलील को स्वीकार कर लिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया और उम्मीद जताई कि राज्य का दर्जा शीघ्र बहाल किया जाएगा।
वित्त
करों के अनंतिम संग्रहण अधिनियम की जगह लेने वाला विधेयक संसद द्वारा पारित
पारित नया विधेयक पुराने करों के अनंतिम संग्रह अधिनियम, 1931 को निरस्त करने के लिये विधायी साधन के रूप में कार्य करता है। यह ऐतिहासिक निरसन कर प्रशासन को समकालीन ज़रूरतों के साथ संरेखित करने, पुराने प्रावधानों को त्यागने और कराधान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- प्रमुख प्रावधानों का प्रतिधारण:
- 1931 के अधिनियम को निरस्त करने के बावजूद करों का अनंतिम संग्रह विधेयक, 2023 अपने पूर्ववर्ती में निहित आवश्यक प्रावधानों को संरक्षित और शामिल करता है।
- संवैधानिक अनिवार्यताएँ:
- संवैधानिक ढाँचे के भीतर जनादेश लागू करने से एक विशिष्ट कानूनी आधार बनता है। करों का अनंतिम संग्रह अधिनियम, 2023, औपचारिक अधिनियमन से पहले ही एक विधेयक में प्रस्तावित उत्पाद शुल्क या सीमा शुल्क लगाने का अधिकार देकर इस आवश्यकता को पूरा करता है।
- यह कानूनी तंत्र विधायी इरादे और वित्तीय कार्यान्वयन के बीच एक निर्बाध संक्रमण सुनिश्चित करता है।
- अवधि और प्रभाव:
- अपने अस्थायी दायरे को रेखांकित करते हुए अधिनियम एक निर्धारित अवधि के लिये कर लगाने का अधिकार देता है, या तो जब तक कि संबंधित विधेयक आधिकारिक तौर पर पारित नहीं हो जाता है या इसके पेश होने के बाद अधिकतम 75 दिनों की अवधि होती है।
- यह प्रावधान कर कार्यान्वयन में एक गतिशील आयाम जोड़ता है, विधायी प्रक्रिया का सम्मान करते हुए उत्तरदायी वित्तीय उपायों को सक्षम बनाता है।
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा अधिनियम में संशोधन
केंद्रीय वस्तु और सेवा कर (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2023 मौजूदा केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिनियम, 2017 में संशोधन पेश करता है, जो वस्तुओं और सेवाओं की अंतर-राज्य आपूर्ति पर कराधान के परिदृश्य को आकार देता है।
- CGST अधिनियम, 2017 में संशोधन:
- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2023 का केंद्र बिंदु CGST अधिनियम, 2017 में इसके संशोधनों में निहित है।
- यह मूलभूत कानून एक ही राज्य की सीमाओं के भीतर वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति से जुड़े लेन-देन पर CGST लगाने तथा एकत्र करने हेतु रूपरेखा को दर्शाता है।
- न्यायिक सदस्यों की योग्यताओं में परिवर्तन:
- विधेयक द्वारा लाया गया एक उल्लेखनीय परिवर्तन GST अपीलीय न्यायाधिकरण में न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति के लिये आवश्यक योग्यताओं से संबंधित है।
- संशोधन पात्रता मानदंड को व्यापक बनाता है, जिससे न्यूनतम 10 वर्षों के पेशेवर अनुभव वाले अधिवक्ताओं को ऐसी नियुक्तियों के लिये अर्हता प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
- यह बदलाव पिछले मानदंडों से एक महत्त्वपूर्ण प्रस्थान का प्रतीक है और ट्रिब्यूनल के भीतर विशेषज्ञता को बढ़ाने का प्रयास करता है।
RBI द्वारा स्व-नियामक संगठनों के लिये मसौदा रूपरेखा
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में विनियमित इकाई क्षेत्र के भीतर स्व-नियामक संगठनों (Self-Regulatory Organizations- SRO) को मान्यता देने के उद्देश्य से एक मसौदा रूपरेखा का अनावरण किया है। यह रणनीतिक कदम विनियमित संस्थाओं की बढ़ती संख्या और पैमाने को देखते हुए उठाया गया है, जो स्व-नियमन के क्षेत्र में उन्नत उद्योग मानकों की आवश्यकता को प्रेरित करता है।
उद्योग मानकों की आवश्यकता:
- RBI द्वारा विनियमित संस्थाओं, जैसे- बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों को शामिल करने के साथ SRO की शुरुआत को नियमों की प्रभावशीलता को मज़बूत करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है। SRO अपनी तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए उद्योग की उभरती मांगों को पूरा करने के लिये नियामक नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- मान्यता प्रक्रिया: इच्छुक SRO निर्दिष्ट पात्रता मानदंडों को पूरा करके मान्यता प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें गैर-लाभकारी स्थिति, क्षेत्र प्रतिनिधित्व और पेशेवर क्षमता, वित्तीय सुदृढ़ता तथा निष्पक्षता और अखंडता जैसी प्रतिष्ठित निर्देशकीय विशेषताएँ शामिल हैं।
- सिद्धांतों का पालन: SRO को नैतिक और शासन मानकों को स्थापित करने के लिये सदस्यता समझौतों के तहत अधिकार प्राप्त करना अनिवार्य है। उन्हें नियम-निर्माण हेतु वस्तुनिष्ठ तथा परामर्शी प्रक्रियाओं को भी नियोजित करना चाहिये, अनुपालन-सुधार मानकों को विकसित करना चाहिये एवं प्रभावी निगरानी विधियों को नियोजित करना चाहिये।
- सदस्यों के प्रति उत्तरदायित्व: SRO का प्राथमिक फोकस सदस्यों के बीच सर्वोत्तम व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा देना है। इसमें आचार संहिता तैयार करना और उसकी निगरानी करना, एक समान सदस्यता शुल्क संरचना बनाना, शिकायत निवारण एवं विवाद समाधान/मध्यस्थता ढाँचे की स्थापना करना तथा वैधानिक/नियामक प्रावधानों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल है।
- सदस्यता मानदंड: SRO को सभी स्तरों पर विविध सदस्यता रखने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे क्षेत्र का समग्र प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। स्वैच्छिक प्रकृति की न्यूनतम निर्धारित सदस्यता मान्यता प्राप्ति के दो साल के भीतर हासिल की जानी चाहिये।
अधिकृत व्यक्तियों हेतु मसौदा लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क जारी
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 के तहत अधिकृत संस्थाओं को विनियमित करने के उद्देश्य से एक मसौदा लाइसेंसिंग ढाँचे का अनावरण किया है।
- यह ढाँचा RBI नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए विदेशी मुद्रा या प्रतिभूतियों में काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थानों को नियंत्रित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
विदेशी मुद्रा विनियमों का उदारीकरण:
- FEMA और अधिकृत व्यक्तियों का अवलोकन:
- FEMA के तहत केवल RBI द्वारा अधिकृत व्यक्तियों को ही विदेशी मुद्रा या प्रतिभूति लेन-देन में शामिल होने की अनुमति है। ये अधिकृत संस्थाएँ विभिन्न भूमिकाएँ निभा सकती हैं जैसे- अधिकृत डीलर, मनी चेंजर या ऑफ-शोर बैंकिंग इकाइयाँ, जिनमें से प्रत्येक वित्तीय परिदृश्य में एक अलग कार्य करती है।
- विदेशी मुद्रा विनियमों का उदारीकरण:
- विदेशी मुद्रा नियमों के उदारीकरण के साथ RBI स्वीकार करता है कि लेन-देन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अब केंद्रीय बैंक के सीधे हस्तक्षेप के बिना किया जा सकता है।
- यह अनुभाग प्रमुख प्रस्तावों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिसमें एक मॉडल एजेंसी के तहत काम करने वाले विदेशी मुद्रा संवाददाताओं के रूप में पहचाने जाने वाले मुद्रा परिवर्तकों की एक नई श्रेणी की शुरुआत भी शामिल है।
- सतत् प्राधिकरण और व्यापार सुविधा: यह अनुभाग श्रेणी-II अधिकृत डीलरों के लिये प्राधिकरण अवधि में प्रस्तावित परिवर्तनों पर केंद्रित है। RBI इन संस्थाओं को प्रति लेन-देन 15 लाख रुपए तक व्यापार-संबंधित लेन-देन की सुविधा की अनुमति देने के साथ-साथ मौजूदा प्राधिकरणों को लगातार नवीनीकृत करने का सुझाव देता है। इसके अतिरिक्त यह विदेशी बैंकों को श्रेणी-I अधिकृत डीलरों के रूप में काम करने की अनुमति देकर उनकी भूमिका के विस्तार पर चर्चा करता है।
- अधिकृत डीलरों के लिये पात्रता मानदंड
- श्रेणी-II या श्रेणी-III के तहत अधिकृत डीलरों के रूप में प्राधिकरण या उन्नयन चाहने वाली संस्थाओं को विशिष्ट पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा। इसमें एक कंपनी के रूप में पंजीकरण, इकाई के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के साथ संरेखण और न्यूनतम निवल मूल्य आवश्यकताओं का अनुपालन शामिल है।
प्रतिभूतियों के तात्कालिक निपटान पर परामर्श-पत्र जारी
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने हाल ही में देश में प्रतिभूतियों की निपटान प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता पर ध्यान दिया है। विकसित भुगतान प्रणालियों द्वारा प्रस्तुत अवसरों को पहचानते हुए सेबी ने तात्कालिक निपटान की शुरुआत का प्रस्ताव करते हुए एक परामर्श-पत्र जारी किया।
- निपटान प्रक्रिया का विकास:
- जनवरी 2023 से पारंपरिक निपटान प्रक्रिया लागू हो गई है, जहाँ आदेश निष्पादन के अगले दिन तक धन और प्रतिभूतियों का निपटान किया जाता है।
- सेबी ने समाशोधन और निपटान समय-सीमा में तेज़ी लाने के लिये भुगतान प्रणालियों में प्रगति का लाभ उठाने की क्षमता की पहचान की है, जिससे अधिक कुशल वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त होगा।
- त्वरित निपटान के लाभ:
- SEBI ने तत्काल निपटान से जुड़े कई फायदों पर प्रकाश डाला है, जिसमें धन और प्रतिभूतियों की तत्काल प्राप्ति, बेहतर निवेशक नियंत्रण, प्रतिभूति बाज़ार में पूंजी जारी करना तथा जोखिम प्रबंधन में समग्र वृद्धि शामिल है।
- चिंताएँ और प्रस्तावित तंत्र:
- संभावित लाभों के बावजूद सेबी कुछ चिंताओं को स्वीकार करता है जैसे बढ़ी हुई व्यापारिक लागत और निपटान चक्र के आधार पर मूल्य विचलन की संभावना।
- जवाब में सेबी ने शेयरों के लिये एक वैकल्पिक तत्काल निपटान तंत्र की शुरुआत का प्रस्ताव रखा है, जिसे दो चरणों में लागू किया जाएगा।
- पहले चरण का लक्ष्य एक ही दिन में धन और प्रतिभूतियों का निपटान करना है, जबकि दूसरे चरण का लक्ष्य व्यक्तिगत ट्रेडों का तत्काल निपटान करना है।
संचार
समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं को विनियमित करने वाला विधेयक
प्रेस और पत्रिकाओं का पंजीकरण विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। यह प्रेस और पत्रिकाओं का पंजीकरण अधिनियम, 1867 को निरस्त करता है।
- पत्रिकाओं का पंजीकरण: अधिनियम समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और पुस्तकों के पंजीकरण का प्रावधान करता है। यह पुस्तकों की कैटेलॉगिंग का भी प्रावधान करता है। विधेयक पत्रिकाओं के पंजीकरण का प्रावधान करता है, जिसमें सार्वजनिक समाचार या सार्वजनिक समाचार पर टिप्पणियों वाला कोई भी पब्लिकेशन शामिल है। पत्रिकाओं में किताबें या वैज्ञानिक और अकादमिक पत्रिकाएँ शामिल नहीं हैं।
- विदेशी पत्रिकाएँ:
- विधेयक का एक महत्त्वपूर्ण पहलू भारत के भीतर विदेशी पत्रिकाओं के पुनर्प्रकाशन से संबंधित है, जिसके लिये अब केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
- प्रेस रजिस्ट्रार जनरल:
- अधिनियम केंद्र सरकार के लिये एक प्रेस रजिस्ट्रार नियुक्त करने का प्रावधान करता है जो समाचार-पत्रों के पंजीकरण की देख-रेख करता है। विधेयक में भारत के प्रेस रजिस्ट्रार जनरल का प्रावधान है जो सभी पत्रिकाओं के लिये पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा।
डाकघर विधेयक, 2023
डाकघर विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। यह भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 को निरस्त करता है। अधिनियम डाक घर के कामकाज से संबंधित मामलों के लिये प्रावधान करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- डाकघर विधेयक, 2023 में उल्लेखनीय विशेषताएँ शामिल हैं जो डाक सेवाओं से जुड़े विशेषाधिकारों, शक्तियों और दंडों को फिर से परिभाषित करती हैं। मुख्य पहलुओं में एक विशिष्ट प्रावधान को छोड़कर केंद्र सरकार के कुछ विशेषाधिकारों को हटाना, शिपमेंट को रोकने के लिये सशक्तीकरण और अपराधों तथा दंडों को समाप्त करना शामिल है।
- कुछ विशेषाधिकारों को हटाना:
- विधेयक पिछले अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को दिये गए कुछ विशेषाधिकारों को समाप्त कर देता है। विशेष रूप से डाक टिकटों को जारी करने के अलावा पत्र और संबंधित सेवाओं को संप्रेषित करने का विशेषाधिकार अब प्रदान नहीं किया गया है, जो केंद्र सरकार के विशेष डोमेन के अंतर्गत रहता है।
- शिपमेंट को रोकने का अधिकार:
- डाकघर विधेयक का एक अनिवार्य घटक डाक प्रणाली के माध्यम से प्रेषित शिपमेंट को रोकने का अधिकार है। अवरोधन के आधार में राष्ट्रीय सुरक्षा, बाह्य राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, आपात स्थिति, सार्वजनिक सुरक्षा या विधेयक या अन्य कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन शामिल है। इस तरह के अवरोधन केंद्र सरकार, राज्य सरकारों या अधिकृत अधिकारियों द्वारा किये जा सकते हैं।
- अपराध और सज़ा को हटाना:
- यह अपने पूर्ववर्ती भारतीय डाकघर अधिनियम, डाकघर विधेयक, 2023 के विपरीत डाक गतिविधियों से जुड़े विभिन्न अपराधों और दंडों को समाप्त करता है। जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 सभी अपराधों और दंडों को हटाने के लिये भारतीय डाक घर अधिनियम, 1898 में संशोधन करता है। विधेयक एक को छोड़कर किसी भी अपराध या परिणाम का प्रावधान नहीं करता है। अगर उपयोगकर्त्ता किसी राशि का भुगतान नहीं करता या उसे नज़रंदाज़ करता है, तो वह राशि भू-राजस्व के बकाये के रूप में वसूली योग्य होगी।
शिक्षा
तेलंगाना में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु विधेयक
केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में संशोधन करता है, जो विभिन्न राज्यों में शिक्षण और अनुसंधान के लिये केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रावधान करता है। इस संशोधन का उद्देश्य तेलंगाना में एक नया केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करना है। इसका नाम 'सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय' रखा जाएगा। इसका क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र तेलंगाना तक विस्तारित होगा। यह मुख्य रूप से भारत की जनजातीय आबादी के लिये उच्च शिक्षा और अनुसंधान सुविधाओं का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- तेलंगाना में केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना:
- इस विश्वविद्यालय को मुख्य रूप से भारत में जनजातीय आबादी की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये शिक्षण और अनुसंधान के केंद्र के रूप में नामित किया गया है। विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र तेलंगाना तक सीमित है।
- विधायी पृष्ठभूमि:
- यह संशोधन आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुरूप है, जो केंद्र सरकार को तेलंगाना राज्य में एक जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का आदेश देता है।
भारत में अनुसंधान-आधारित शिक्षा पर रिपोर्ट
शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्थायी समिति ने 'विज्ञान एवं संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान आधारित शिक्षा तथा अनुसंधान परिदृश्य' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
समिति के प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ओवरहेड्स:
- समिति ने कहा कि अनुसंधान के बुनियादी ढाँचे, जैसे लेबोरेट्रीज़ और कंप्यूटर को बरकरार रखने की लागत काफी है। उसने कहा कि सरकार अनुसंधान के लिये जितनी धनराशि संवितरित करती है, वह वास्तविक परिचालन व्यय को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- उसने अनुसंधान की परिचालन लागत को पूरा करने के लिये व्यवस्थित सहायता योजना बनाने का भी सुझाव दिया।
- ज्ञान-विनिमय और परामर्श:
- मेंटरशिप कार्यक्रमों की सिफारिश करते हुए समिति का सुझाव है कि IIT और IISER जैसे स्थापित संस्थान ज्ञान के आदान-प्रदान और संसाधन साझा करने की सुविधा के लिये नए समकक्षों के साथ सहयोग करें।
- इस सिफारिश को प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों तक विस्तारित करते हुए समिति एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की कल्पना करती है, जिसका उद्देश्य संस्थानों में उच्च अनुसंधान मानकों को बढ़ावा देना है।
- प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो:
- प्रधानमंत्री अनुसंधान फेलोशिप के सकारात्मक प्रभाव को स्वीकार करते हुए समिति ने प्रस्तावित फेलोशिप और वितरित अनुदान की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रस्ताव रखा है।
- अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीकी प्रगति:
- अंतरिक्ष अनुसंधान के बहुमुखी लाभों को पहचानते हुए समिति अंतरिक्ष विज्ञान में विशेष पाठ्यक्रम शुरू करने की सिफारिश करती है।
- अंतरिक्ष अनुसंधान में रुचि और भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये इंटर्नशिप एवं कार्यशालाओं जैसी पहल के साथ-साथ विश्वविद्यालयों तथा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनों के बीच सहयोग का सुझाव दिया गया है।
शिपिंग
लॉजिस्टिक्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और शिपिंग पर विज़न दस्तावेज़ जारी
बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और शिपिंग के लिये अमृत काल विज़न 2047 जारी किया है। इस दस्तावेज़ का उद्देश्य समुद्री गवर्नेंस को बढ़ावा देना है जो हितधारकों, प्रशासनिक अधिकारियों और तटीय समुदायों के बीच समन्वय सुनिश्चित करता है।
- मुख्य विषय-वस्तु और कार्य बिंदु:
- अमृत काल विज़न 2047 के ढाँचे के भीतर दस्तावेज़ 11 महत्त्वपूर्ण विषयों की पहचान करता है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट कार्य बिंदुओं के साथ है। इन विषयों में भारत के टन भार को बढ़ावा देना, बढ़ी हुई दक्षता के लिये प्रौद्योगिकी तथा नवाचार का लाभ उठाना, विश्व स्तरीय बंदरगाहों की स्थापना करना, जहाज़ निर्माण, मरम्मत एवं रीसाइक्लिंग में देश को वैश्विक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना, तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जल मॉडल की हिस्सेदारी को बढ़ाने जैसे महत्त्वपूर्ण पहलू शामिल हैं। साथ ही परिवहन एवं महासागर, तटीय और नदी क्रूज़ क्षेत्र को बढ़ावा देना।
- समन्वय और शासन:
- दस्तावेज़ का प्राथमिक फोकस समुद्री शासन के लिये एक मज़बूत आधार स्थापित करना है, जिसमें विभिन्न हितधारकों, प्रशासनिक अधिकारियों और तटीय समुदायों के बीच निर्बाध समन्वय की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण से भारत के समुद्री क्षेत्र के समग्र और सतत् विकास को बढ़ावा देने, उल्लिखित कार्य बिंदुओं के सफल कार्यान्वयन की उम्मीद है।
स्वास्थ्य
आयुष्मान भारत पर रिपोर्ट
रिपोर्ट का ध्यान आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) पर केंद्रित है। जो सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना, 2011 के आधार पर लगभग 11 करोड़ गरीब और कमज़ोर परिवारों को लक्षित करते हुए माध्यमिक तथा तृतीयक देखभाल हेतु अस्पताल में भर्ती के लिये प्रति परिवार प्रतिवर्ष पाँच लाख रुपए का स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करता है।
- निधियों का आवंटन:
- समिति ने सकल स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.1% के मौजूदा स्तर से बढ़ाने का सुझाव दिया।
- कम उपयोग संबंधी चिंताएँ:
- AB-PMJAY के तहत धन के कम उपयोग के बारे में चिंताओं को उजागर करते हुए समिति ने संसाधनों को प्रभावी ढंग से अनुकूलित करने के लिये AB-PMJAY में पुरानी स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं को शामिल करने का प्रस्ताव करते हुए बजट आवंटन में वृद्धि का सुझाव दिया है।
- लाभार्थियों का विस्तार:
- अमेरिका के अफोर्डेबल केयर अधिनियम के अनुरूप समिति ने गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिये विचार करते हुए PMJAY में लाभार्थियों को व्यापक रूप से शामिल करने का प्रस्ताव रखा है।
- पैनल में वृद्धि:
- समिति स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के पैनल में विसंगतियों की ओर इशारा करती है, जिसमें कर लाभ प्राप्त एवं भूमि अनुदान प्राप्त करने वाले, या मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों को अनिवार्य रूप से शामिल करना अनिवार्य है।
उद्योग
EV के प्रचार पर रिपोर्ट जारी
उद्योग संबंधी स्थायी समिति ने 'देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने' हेतु अपनी व्यापक रिपोर्ट का अनावरण किया।
- फेम योजना:
- समिति ने फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक (एंड हाइब्रिड) व्हीकल्स (FAME-II) योजना के शुरुआती लक्ष्यों को पूरा करने में कमी की पहचान की और इस प्रकार इस योजना को कम-से-कम तीन वर्ष तक बढ़ाने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अधिक चार-पहिया EV को शामिल करने के लिये इसके दायरे को व्यापक बनाने का समर्थन किया, जिसमें वाहन की लागत और बैटरी क्षमता के आधार पर एक सीमा शामिल की गई।
- चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:
- समिति ने कहा कि फेम-II के तहत 22,000 चार्जिंग स्टेशन स्वीकृत किये गए हैं, हालाँकि 7,432 स्थापित किये गए हैं। इस प्रकार अधिक चार्जिंग स्टेशन बनाए जाने का सुझाव दिया गया ताकि व्यक्तिगत निवेशकों, महिला स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों को सुनिश्चित रिटर्न की पेशकश कर चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए। समिति ने यह सुझाव भी दिया कि सार्वजनिक उपक्रमों तथा सरकारी संस्थानों को अपने परिसरों में चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने चाहिये। समिति ने भारी उद्योग मंत्रालय को बैटरी मानकीकरण की व्यावहारिकता पर एक अध्ययन करने और बैटरी स्वैपिंग टेक्नोलॉजी नीति तैयार करने का भी सुझाव दिया।
- चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर कमियों को दूर करना:
- समिति की जाँच चार्जिंग बुनियादी ढाँचे तक विस्तृत है, जिसमें FAME-II के तहत स्वीकृत और स्थापित चार्जिंग स्टेशनों के बीच असमानता देखी गई है।
- 22,000 स्टेशनों को मंज़ूरी और 7,432 के परिचालन के साथ यह रिपोर्ट व्यक्तिगत निवेशकों, महिला स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों सहित विभिन्न संस्थाओं के लिये चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना को प्रोत्साहित करने की सिफारिश करती है।
- इसके अलावा भारी उद्योग मंत्रालय के लिये बैटरी मानकीकरण व्यवहार्यता का पता लगाने और बैटरी स्वैपिंग तकनीक पर एक नीति तैयार करने का प्रस्ताव रखा गया था।
- EV की लागत: समिति ने कहा कि इंटरनल कंबशन इंजन वाले वाहनों की तुलना में EV के ओनरशिप की लागत अभी भी तुलनात्मक रूप से ज़्यादा है। कमेटी ने कहा कि इनकम टैक्स एक्ट, 1961 व्यक्तियों को ईवी खरीद ऋण पर भुगतान किये गए ब्याज पर कर बचत का दावा करने की अनुमति देता है। हालाँकि यह लाभ 31 मार्च, 2023 तक स्वीकृत ऋणों तक ही सीमित था। कमेटी ने इस लाभ को कम-से-कम 31 मार्च, 2025 तक बढ़ाने का सुझाव दिया। कमेटी ने इस बात पर गौर किया कि EV खरीद की लगभग आधी लागत बैटरी की वज़ह से होती है। उसने केंद्र सरकार को बैटरी पर जीएसटी कम करने का सुझाव दिया है।
- EV की लागत: वित्तीय बाधाओं को कम करना:
- मौजूदा वित्तीय बाधाओं को पहचानते हुए समिति ने पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन वाहनों की तुलना में EV रखने की अपेक्षाकृत उच्च लागत पर प्रकाश डाला। इसे कम करने के लिये रिपोर्ट EV ऋण ब्याज पर कर बचत की अनुमति देने वाले आयकर अधिनियम के लाभ को कम-से-कम 31 मार्च, 2025 तक बढ़ाने पर ज़ोर देती है।
- इसके अतिरिक्त समिति ने EV स्वामित्व पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा बैटरी पर लगाए गए माल और सेवा कर (GST) में कटौती का प्रस्ताव दिया।
श्रम
राष्ट्रीय बाल श्रम नीति की समीक्षा
श्रम, कपड़ा और कौशल विकास संबंधी स्थायी समिति ने 'राष्ट्रीय बाल श्रम नीति- एक आकलन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने कई सुझाव दिये हैं जो कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बाल श्रम को समाप्त करने से संबंधित हैं। समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- बाल श्रम की व्यापकता: 2011 की जनगणना के अनुसार, नवीनतम उपलब्ध आँकड़े में 5-15 वर्ष के आयु वर्ग में लगभग एक करोड़ श्रमशील बच्चे हैं। समिति ने सुझाव दिया कि विभिन्न मंत्रालय बाल श्रमिकों की संख्या का अनुमान लगाने हेतु समय-समय पर समन्वित रूप से सर्वेक्षण करें। बच्चे आमतौर पर गैराज, ईंट-भट्ठों तथा निर्माण स्थलों जैसे असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। कुछ इस्टैबलिशमेंट्स मैन्युअल काम को ठेकेदारों के माध्यम से आउटसोर्स करते हैं। अगर ठेकेदार बाल मज़दूरों को काम पर रखते हैं, तो मुख्य नियोक्ता को जवाबदेह नहीं ठहराया जाता है। समिति ने सुझाव दिया कि ऐसे मामलों में प्रमुख नियोक्ता को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये।
- बाल श्रम के मामलों को रोकना: समिति ने कहा कि सामाजिक न्याय मंत्रालय को बाल श्रम को खत्म करने में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये। उसने कहा कि आर्थिक उत्थान अंततः बच्चों को मज़दूरी करने से रोकेगा। समिति ने मंत्रालय की मौजूदा योजनाओं को मज़बूत करने के लिये कई सुझाव दिये हैं। इन सुझावों में हाशिये पर रहने वाले बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु मुफ्त कोचिंग देना और नशीले पदार्थों के व्यसन की समस्या वाले बच्चों का पुनर्वास शामिल है।
- बाल मज़दूरों को बचाना:
- पिछले पाँच वर्षों में बाल श्रम में लगे लगभग दो लाख बच्चों को रेस्क्यू किया गया है। कमेटी ने कहा कि इसकी तुलना में बहुत कम FIR दर्ज की गईं और बहुत कम बच्चों को बाल कल्याण समितियों (किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत ज़रूरी) के सामने पेश किया गया।
- कमेटी ने एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस अधिकारियों को दंडित करने का सुझाव दिया। यौन अपराधों से बाल संरक्षण एक्ट, 2012 में भी ऐसा ही प्रावधान है।
खाद्य और सार्वजनिक वितरण
जूट बैग के अनिवार्य उपयोग की मंज़ूरी
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग के मानदंडों को मंज़ूरी दे दी है। इन मानदंडों को जूट पैकेजिंग सामग्री (वस्तुओं की पैकेजिंग में अनिवार्य उपयोग) अधिनियम, 1987 के तहत बनाया गया है। पैकेजिंग मानदंडों के अनुसार, सभी खाद्यान्न और 20% चीनी को अनिवार्य रूप से जूट बैग में पैक किया जाना चाहिये। ये मानदंड जूट वर्ष 2023-24, यानी जुलाई 2023 से जून, 2024 तक लागू होंगे।
रसायन और उर्वरक
कीटनाशकों के संवर्द्धन और विकास पर रिपोर्ट प्रस्तुत
रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्थायी समिति ने 'कीटनाशक- सुरक्षित उपयोग सहित प्रोत्साहन और विकास- कीटनाशकों के लिये लाइसेंस व्यवस्था' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- कानून को प्रभावी बनाने हेतु उपयुक्त निकाय: कीटनाशकों को कीटनाशी अधिनियम, 1968 के तहत विनियमित किया जाता है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग इसे लागू करता है और इसे रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग के दायरे से बाहर रखा गया है। समिति ने कहा कि रसायन विभाग कीटनाशकों को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह विभाग समय-समय पर कृषि रसायन उद्योग से संबंधित मामलों पर काम करता है। समिति ने सुझाव दिया कि रसायन विभाग इस मामले को उचित मंच पर ले जाए ताकि कम-से-कम उन प्रावधानों को लागू किया जा सके जो कृषि रसायनों से संबंधित हैं। कीटनाशकों को मोटे तौर पर कृषि रसायन कहा जाता है।
- कीटनाशकों का संतुलित उपयोग:
- कृषि घाटे को रोकने में कीटनाशकों के महत्त्व को पहचानते हुए समिति उनके व्यापक उपयोग से होने वाले संभावित नुकसान को संबोधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
- यह प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों को रोकने वाले संतुलित दृष्टिकोण को बनाए रखने के लिये कीटनाशक संवर्द्धन उपायों के कड़े कार्यान्वयन के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
- कीटनाशकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना:
- भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक होने के बावजूद यहाँ प्रति हेक्टेयर कीटनाशकों की खपत अन्य देशों की तुलना में काफी कम है।
- समिति जापान और चीन जैसे देशों की कृषि पद्धतियों का अध्ययन करने तथा इन देशों में अधिक गहन कृषि पद्धतियों को देखते हुए भारतीय कीटनाशक उद्योग को मज़बूत करने के उपाय शुरू करने का सुझाव देती है।
रक्षा
DRDO के कामकाज पर रिपोर्ट
रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने 'रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के कामकाज की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। DRDO सशस्त्र सेनाओं के लिये स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के विकास का काम करता है। समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अनुसंधान बजट संबंधी चिंताएँ:
- पिछले दो वर्षों में रक्षा विभाग को आवंटित अनुसंधान बजट अनुरोधित राशि से कम हो गया है।
- समिति भारत को रक्षा प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेतृत्व की स्थिति में लाने के लिये DRDO को बजटीय अनुदान बढ़ाने का समर्थन करती है।
- इसके अलावा मौजूदा अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिये धन के उपयोग के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं, जिसमें रक्षा PSU के लिये इन-हाउस अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता का सुझाव दिया गया।
- लंबित परियोजनाएँ:
- समिति ने परियोजना अवधि में देरी पर आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि 55 परियोजनाओं में से 23 समय पर पूरी नहीं हो सकीं।
- रिपोर्ट तकनीकी कर्मियों और मानकीकृत मूल्यांकन मानदंडों को शामिल करने पर ज़ोर देते हुए देरी और लागत वृद्धि को संबोधित करने के लिये मौजूदा तंत्र की गहन समीक्षा की सिफारिश करती है।
- स्वदेशीकरण चुनौतियाँ:
- खतरे की उभरती धारणाओं के आधार पर नई तकनीक और सिस्टम विकसित करने के DRDO के प्रयासों के बावजूद समिति विदेशी सैन्य प्लेटफाॅर्मों पर भारत की लगातार निर्भरता पर प्रकाश डालती है।
- रिपोर्ट में अगले दशक के भीतर संभावित 80%-90% स्वदेशीकरण का पूर्वानुमान है, लेकिन रक्षा योजना में अधिक व्यावसायिकता, अनुसंधान और विकास के बेहतर प्रबंधन तथा आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- समिति ने चेतावनी दी है कि आयातित हथियार प्रणालियों पर निरंतर निर्भरता मेक इन इंडिया पहल की सफलता में बाधा बन सकती है।
विदेशी मामले
G-20
विदेश मामलों से संबंधित स्थायी समिति ने 'G-20 देशों के साथ भारत की भागीदारी' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। भारत ने 9-10 सितंबर, 2023 को 18वें G-20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी।
प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- क्रिप्टो एसेट्स फ्रेमवर्क:
- समिति ने अधिकांश G-20 सदस्य देशों में क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिये एक व्यापक नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला।
- G-20 देशों ने IMF और वित्तीय स्थिरता बोर्ड के एक संश्लेषण-पत्र अपनाया, जिसमें क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिये नियामक दिशा-निर्देशों की रूपरेखा दी गई है।
- समिति ने सरकार से इस पत्र की सिफारिशों का मूल्यांकन करने और एक व्यापक नियामक ढाँचे को लागू करने का आग्रह किया।
- इसके अतिरिक्त इसने गैर-वित्तीय संपत्तियों के माध्यम से कर चोरी को रोकने के लिये G-20 सदस्यों के बीच एक क्रिप्टो परिसंपत्ति रिपोर्टिंग ढाँचे की शुरुआत की सिफारिश की।
- भारत-पश्चिम एशिया-यूरोपीय गलियारा (IMEC):
- IMEC एक नेटवर्क है जिसका उद्देश्य यूरोप और एशिया के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना है।
- समिति ने सुझाव दिया कि एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये गलियारे को समय-सीमा के भीतर चालू किया जाना चाहिये।
- ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस:
- G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर लॉन्च किया गया ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस प्रौद्योगिकी प्रगति, टिकाऊ उपयोग और मानकों तथा प्रमाणपत्रों के माध्यम से जैव ईंधन को अपनाने में तेज़ी लाने का प्रयास करता है।
- इथेनॉल बाज़ार की तीव्र वृद्धि को स्वीकार करते हुए समिति ने सिफारिश की कि भारत को गठबंधन के सदस्यों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर और चुनौतियों का तुरंत समाधान करके अवसर का लाभ उठाना चाहिये।
पेट्रोलियम
कच्चे तेल के आयात पर रिपोर्ट
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस संबंधी स्थायी समिति ने 'कच्चे तेल की आयात नीति की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- स्रोतों का विविधीकरण:
- भारत का अधिकांश हाइड्रोकार्बन आयात पश्चिम एशिया से होता है जो भू-राजनीतिक तनाव से ग्रस्त है। इससे आपूर्ति बाधित हो सकती है।
- समिति ने कहा कि कच्चे तेल और गैस आपूर्ति हेतु किसी भी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। उसने सुझाव दिया कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय कच्चे तेल तथा गैस के आयात में विविधता लाने के लिये कदम उठाए।
- आयात निर्भरता में कमी:
- भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में अपने कच्चे तेल की खपत का लगभग 87% आयात किया।
- समिति ने पाया कि भविष्य में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग बढ़ने की संभावना है। ऊर्जा के क्षेत्र में आयात पर निर्भरता कम करने के लिये सरकार ने रोडमैप तैयार किया है।
- रोडमैप में निम्नलिखित प्रावधान हैं:
- घरेलू उत्पादन बढ़ाना।
- जैव-ईंधन और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
- ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
- रिफाइनरी प्रक्रिया में सुधार।
- समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहनों और जैव-ईंधन को बढ़ावा दे। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय विशेषज्ञों का एक बहुविषयक समूह बनाए ताकि जीवाश्म ईंधन की मांग को कम करने के लिये नीतिगत उपाय किये जा सकें।
खनन
निजी एजेंसियों की नियुक्ति की योजना अधिसूचित
खान मंत्रालय ने महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की खोज के लिये निजी एजेंसियों की भागीदारी की योजना को अधिसूचित किया है। महत्त्वपूर्ण तथा रणनीतिक खनिजों को खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की अनुसूची में निर्दिष्ट किया गया है। इनमें लिथियम, निकल, कोबाल्ट, सेलेनियम, प्लैटिनम तथा सोना शामिल हैं। यह योजना ऐसे खनिजों की खोज को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (National Mineral Exploration Trust- NMET) के माध्यम से अन्वेषण कार्यों हेतु धन उपलब्ध कराने का प्रयास करती है। योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रमुख खनिज और उद्देश्य:
- अधिनियम में उल्लिखित महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिज, इन संसाधनों के अन्वेषण प्रयासों में तेज़ी लाने की मांग करते हुए योजना के केंद्र बिंदु हैं।
- यह पहल इन खनिजों की स्थायी और सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
- अनुमोदन प्रक्रिया:
- इच्छुक एजेंसियाँ भूविज्ञान डेटा के आधार पर अन्वेषण के लिये क्षेत्र का चयन कर सकती हैं और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) को एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकती हैं। आवेदन प्राप्त होने के एक महीने के भीतर NMET प्रस्ताव को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण एवं संबंधित राज्य सरकारों को उनकी टिप्पणियों के लिये भेज देगा।
- एक बार टिप्पणियों को प्राप्त करने की अवधि समाप्त हो जाने पर NMET को 15 दिनों के भीतर सैद्धांतिक मंज़ूरी देनी होगी या आवेदनों को अस्वीकार करना होगा। सैद्धांतिक अनुमोदन पर एजेंसी को NMET की अंतिम मंज़ूरी के लिये एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा।
- खनिज संबंधी छूट हेतु नियम और शर्तें:
- अन्वेषण के लिये मंज़ूरी खनन पट्टे सहित खनिज संबंधी छूट/कन्सेशंस हेतु कोई अधिकार प्रदान नहीं किया जाएगा। हालाँकि एजेंसी उस ब्लॉक या उसके द्वारा खोजे गए किसी हिस्से पर खनिज संबंधी छूट के लिये नीलामी में भाग ले सकती है।
- अगर अधिकृत एजेंसी से संबंधित कोई पक्ष, नीलामी में भाग ले रहा है तो उसे इसकी घोषणा पहले से करनी होगी।
- अन्वेषण परियोजना हेतु अग्रिम भुगतान:
- NMET इस योजना के तहत स्वीकृत परियोजनाओं को स्थापित मानदंडों के अनुसार वित्तपोषित करेगा।
- इसमें इन अन्वेषण परियोजनाओं की जाँच के विभिन्न चरणों जैसे- रीकानिसन्स सर्वेक्षण, प्रारंभिक अन्वेषण, सामान्य अन्वेषण और विस्तृत अन्वेषण को शामिल किया जाएगा।
- अधिकृत एजेंसी अग्रिम राशि के रूप में NMET से परियोजना लागत का 30% तक का लाभ उठा सकती है। एजेंसी को अग्रिम राशि प्राप्त करने के लिये उतनी ही राशि की बैंक गारंटी जमा करनी होगी।
खनिजों के लिये रियायतों के संबंध में नियमों पर टिप्पणियाँ
खान मंत्रालय ने दो मसौदा नियम जारी किये हैं: अपतटीय क्षेत्र खनिज (नीलामी) नियम, 2023 और अपतटीय क्षेत्र खनिज (खनिज संसाधनों का अस्तित्त्व) नियम, 2023। इन्हें अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2002 के तहत जारी किया गया है। यह अधिनियम समुद्री क्षेत्रों में खनन का विनियमन करता है।
मसौदा नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- आवंटन हेतु नीलामी: अपतटीय क्षेत्रों में खनिजों के लिये निम्नलिखित कन्सेशन/छुट प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से दिये जाएंगे:
- समग्र लाइसेंस, जो अन्वेषण के साथ-साथ खनन के लिये अधिकार प्रदान करता है।
- खनन करने के लिये उत्पादन पट्टा।
- इन कन्सेशन की नीलामी के लिये एक आरक्षित मूल्य निर्दिष्ट किया जाएगा। आरक्षित मूल्य प्रेषित खनिज के मूल्य के न्यूनतम प्रतिशत के अनुसार होगा।
- खनिज का मूल्य एक माह में डिस्पैच किये गए खनिजों के उत्पाद और भारतीय खान ब्यूरो द्वारा प्रकाशित खनिज के विक्रय मूल्य के बराबर होगा।
- रियायती क्षेत्रों की पहचान:
- उस क्षेत्र के लिये उत्पादन पट्टा दिया जा सकता है जिसके लिये कम-से-कम सामान्य अन्वेषण पूरा हो चुका है और एक भूवैज्ञानिक अध्ययन रिपोर्ट तैयार की गई है।
- सामान्य अन्वेषण में किसी खनिज भंडार की मुख्य भूवैज्ञानिक विशेषताएँ सुनिश्चित की जाती हैं।
- इसमें खनिज क्षेत्रों के आकार, आकृति और संरचना तथा खनिज भंडार की मात्रा एवं ग्रेड का प्रारंभिक अनुमान शामिल होता है।
पर्यावरण
वन्यजीवन (संरक्षण) अंतर्राष्ट्रीय नमूना व्यापार नियम, 2023
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में विशिष्ट पौधों और जानवरों के नमूनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के उद्देश्य से नियम जारी किये हैं।
ये नियम वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत स्थापित किये गए हैं, जो वैध परमिट या प्रमाण-पत्र के बिना लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक लगाता है। इस संदर्भ में नियम ऐसे परमिट प्राप्त करने और उन्हें प्रबंधित करने के लिये विभिन्न शर्तों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
नियमों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- परमिट की ट्रेडिंग: लुप्तप्राय पौधों और जानवरों के नमूनों के आयात, निर्यात या पुनः निर्यात के लिये परमिट दिया जा सकता है। अधिनियम के तहत स्थापित प्रबंधन प्राधिकरण इन परमिटों को देने के लिये ज़िम्मेदार होगा। एक आवेदन कानूनी खरीद प्रमाण-पत्र जैसे दस्तावेज़ों के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिये। एक निर्यात तथा पुनः निर्यात परमिट छह महीने हेतु वैध होगा एवं एक आयात परमिट 12 महीने के लिये वैध होगा।
- उत्तरजीविता मूल्यांकन अध्ययन:
- आयात परमिट जारी करने से पहले प्रबंधन प्राधिकरण को उत्तरजीविता मूल्यांकन के लिये आवेदन को वैज्ञानिक प्राधिकरण के पास भेजना होगा।
- एशियाई हाथियों, भारतीय अजगर और गिब्बन जैसे निर्दिष्ट जानवरों के लिये निर्यात परमिट आवेदन प्रक्रिया के दौरान उनकी जीवन स्थिति का मूल्यांकन किया जा सकता है।
- वैज्ञानिक प्राधिकरण को 30 दिनों के भीतर सलाह के साथ जवाब देना आवश्यक है।
- आवेदन अनुमोदन प्रक्रिया:
- प्रबंधन प्राधिकरण को वैज्ञानिक प्राधिकरण से सलाह प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करना होगा।
- लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन को नहीं अपनाने वाले देशों में निर्यात निषिद्ध है।
- परमिट रद्द करना:
- प्रबंधन प्राधिकरण विभिन्न आधारों पर परमिट रद्द करने का अधिकार रखता है, जिसमें संभावित व्यावसायिक उपयोग, प्राप्तकर्त्ता की कुछ प्रजातियों की देखभाल करने में असमर्थता और जीवित नमूनों को संभालने के दौरान जोखिम को कम करने में विफलता शामिल है।
उपभोक्ता मामले
पूर्वोत्तर में उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण पर रिपोर्ट
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति ने 'उपभोक्ता अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में पूर्वोत्तर में पहल' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
समिति के प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- उपभोक्ता संरक्षण परिषद:
- उपभोक्ता संरक्षण परिषदें उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की निगरानी और प्रवर्तन, उपभोक्ताओं को शिक्षित करके और उपभोक्ता संरक्षण मुद्दों पर सरकार को सलाह देकर उपभोक्ता हितों की रक्षा करती हैं।
- समिति ने गौर किया कि पूर्वोत्तर में राज्य और ज़िला उपभोक्ता संरक्षण परिषदें कानून के तहत अपेक्षित कार्य नहीं कर रही हैं। उन्हें या तो स्थापित नहीं किया गया है या नियमित रूप से उनकी बैठक नहीं होती।
- उसने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार प्रभावी तरीके से उनकी स्थापना और नियमित कामकाज सुनिश्चित करे।
- उपभोक्ता आयोग:
- केंद्र सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र में उपभोक्ता आयोगों के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये दो योजनाएँ चला रही है। विवादों को सुलझाने के लिये ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आयोग स्थापित किये गए हैं। समिति ने गौर किया कि वर्ष 2022-23 में केवल चार पूर्वोत्तर राज्यों ने इन योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता मांगी थी।
- सबसे पहले, उत्तर-पूर्व में उपभोक्ता आयोगों के कामकाज और बुनियादी ढाँचे का व्यापक मूल्यांकन प्रस्तावित किया गया था।
- दूसरे, समिति ने मंत्रालय को इन आयोगों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये आवश्यक केंद्रीय सहायता प्रदान करने की सलाह दी।
- लीगल मेट्रोलॉजी के लिये लैब:
- कानूनी मेट्रोलॉजी के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए, जो कि वज़न और माप के लिये मानक निर्धारित करता है, समिति ने पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं की उपलब्धता में भौगोलिक असमानता की ओर इशारा किया।
- केवल असम के पास ऐसी प्रयोगशाला होने के कारण समिति ने पूर्वोत्तर के विशाल भौगोलिक आकार को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त प्रयोगशालाओं की स्थापना हेतु समर्थन किया।