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पीआरएस कैप्सूल्स

विविध

अगस्त 2023

  • 20 Sep 2023
  • 70 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:

  •  समष्टि अर्थशास्त्र का विकास:
    • औद्योगिक उत्पादन 4.5% बढ़ा
  • गृह मामले: 
    • दिल्ली GNCT (संशोधन) विधेयक, 2023 
    • जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
    • भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023
  • सूचना प्रौद्योगिकी:
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023
  • चुनाव आयोग:
    • मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में संशोधन 
    • निर्वाचन प्रक्रिया और सुधारों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
  • वित्त:
    • GST लगाने हेतु संशोधन 
  • खान:
    • खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023
  • शिक्षा:
    • शिक्षा हेतु नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा जारी
  • स्वास्थ्य:
    • CAG ने आयुष्मान भारत-PMJAY पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की 
  • कानून एवं न्याय:
    • मध्यस्थता विधेयक 2021 
  • समन्वय:
    • बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022 
  • रक्षा:
    • अंतर-सेवा संगठन विधेयक, 2023 
  • सामाजिक न्याय:
    • नशीली दवाओं के सेवन पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
  • श्रम:
    • कारीगरों और शिल्पकारों हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना को मंज़ूरी 
  • शहरी मामले:
    • पीएम-ई बस सेवा 
  • नागरिक उड्डयन:
    • विमान सुरक्षा नियम, 2023 
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र:
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र हेतु विकास योजनाओं के विस्तार 
  • वाणिज्य:
    • उत्तर पूर्वी क्षेत्र में व्यापार के विकास पर रिपोर्ट
  • महिला एवं बाल विकास:
    • राष्ट्रीय महिला आयोग के कामकाज पर स्थायी समिति की रिपोर्ट 

  समष्टि अर्थशास्त्र का विकास  

औद्योगिक उत्पादन 4.5% बढ़ा:

  • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 4.5% बढ़ा।
  • यह 2022-23 की पहली तिमाही में दर्ज 12.8% की वृद्धि से कम था। IIP में विनिर्माण, खनन और बिजली क्षेत्रों का भार क्रमशः 78%, 14% तथा 8% है।
  • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में खनन क्षेत्र में 6.4% की वृद्धि हुई, जबकि वर्ष 2022-23 की इसी तिमाही में यह वृद्धि 9.1% थी। 
  • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 4.7% की वृद्धि हुई, जो वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 12.8% से काफी कम है। 
  • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में बिजली क्षेत्र की वृद्धि सबसे धीमी 1.3% रही जो वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के 17.1% से काफी कम थी।


  गृह मामले   

दिल्ली GNCT (संशोधन) विधेयक, 2023: 

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 7 अगस्त, 2023 को संसद द्वारा पारित किया गया था। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करता है।
  • यह विधेयक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 का स्थान लेता है, जिसे 19 मई, 2023 को जारी किया गया था। यह विधेयक 19 मई, 2023 से पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।

इसकी मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण: विधेयक राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण की स्थापना करता है जोकि दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) को निम्नलिखित से संबंधित मामलों पर सुझाव देगा: 
    • तबादले और तैनाती।
    • विज़िलेंस से संबंधित मामले।
    • अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ।
    • अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय पुलिस सेवा को छोड़कर), और दिल्ली सरकार के अधिकारियों के अभियोजन को स्वीकृति। 
  • पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के विषयों के संबंध में सेवारत अधिकारी प्राधिकरण के दायरे में नहीं आएँगे।
  • प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार के प्रधान गृह सचिव और मुख्य सचिव शामिल होंगे।
  • प्राधिकरण के सभी निर्णय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिये जाएँगे। बैठक के लिये कोरम दो सदस्यों का होगा।
  • LG की शक्तियाँ: अधिनियम के तहत ऐसे मामले जिनमें LG अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं, वे हैं:
    • दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता के बाहर के मामले लेकिन जो LG को सौंपे गए हैं।
    • ऐसे मामले जहाँ उनसे कानून द्वारा अपने विवेक से कार्य करना या कोई न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक कार्य करना अपेक्षित है। 
  • विधेयक निर्दिष्ट करता है कि ऐसे मामलों में LG अपने विवेक से कार्य करेंगे। विधेयक LG की विवेकाधीन भूमिका का दायरा बढ़ाता है और उन्हें प्राधिकरण के सुझावों को मंज़ूरी देने या उन्हें पुनर्विचार के लिये वापस लौटाने की शक्तियाँ भी देता है। 
  • अगर LG और प्राधिकरण के विचारों में मतभेद होता है तो उस स्थिति में LG का निर्णय ही अंतिम होगा। इसके अतिरिक्त विधेयक के तहत LG के पास अपने सभी कार्यों पर पूर्ण विवेकाधिकार है।

जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023: 

  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद में पारित किया गया। यह विधेयक जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 में संशोधन करता है।
  • अधिनियम में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के विनियमन का प्रावधान है। 

विधेयक की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं: 

  • माता-पिता और सूचना देने वालों का आधार विवरण आवश्यक: अधिनियम में कुछ व्यक्तियों (सूचना देने वालों) को रजिस्ट्रार को जन्म और मृत्यु की जानकारी देनी होती है। उदाहरण के लिये जिस अस्पताल में बच्चा पैदा हुआ है, उसके प्रभारी चिकित्सा अधिकारी को जन्म की जानकारी देनी होती है।
    • विधेयक में कहा गया है कि जन्म के मामलों में निर्दिष्ट व्यक्तियों को माता-पिता और सूचना देने वाले, यदि उपलब्ध हो, का आधार नंबर भी प्रदान करना होगा। यह प्रावधान निम्नलिखित पर लागू होता है: 
      • जेल में जन्म होने की स्थिति में जेलर।
      • होटल या लॉज का प्रबंधक, अगर ऐसे स्थान पर जन्म हुआ है। 
  • इसके अलावा यह निर्दिष्ट व्यक्तियों की सूची का विस्तार करता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • गैर-संस्थागत एडॉप्शन की स्थिति में एडॉप्टिव माता-पिता
    • सरोगेसी के माध्यम से जन्म की स्थिति में जैविक माता-पिता
    • सिंगल पेरेंट या अविवाहित माँ से जन्मे बच्चे की स्थिति में पेरेंट।
  • जन्म और मृत्यु का डेटाबेस: अधिनियम भारत के रजिस्ट्रार-जनरल की नियुक्ति का प्रावधान करता है जो जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिये सामान्य निर्देश जारी कर सकता है। 
    • विधेयक में कहा गया है कि रजिस्ट्रार जनरल पंजीकृत जन्म और मृत्यु का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाएगा। मुख्य रजिस्ट्रार (राज्यों द्वारा नियुक्त) और रजिस्ट्रार (प्रत्येक स्थानीय क्षेत्र क्षेत्राधिकार के लिये राज्यों द्वारा नियुक्त) पंजीकृत जन्म एवं मृत्यु के डेटा को राष्ट्रीय डेटाबेस के साथ शेयर करने के लिये बाध्य होंगे। मुख्य रजिस्ट्रार राज्य स्तर पर ऐसा ही डेटाबेस बनाएगा। 
  • कनेक्टिंग डेटाबेस: विधेयक में कहा गया है कि राष्ट्रीय डेटाबेस को ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो दूसरे डेटाबेस तैयार या व्यवस्थित करते हैं। 
  • इन डेटाबेस में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • जनसंख्या रजिस्टर
    • मतदाता सूची
    • राशन कार्ड
    • अधिसूचित कोई अन्य राष्ट्रीय डेटाबेस। 
  • राष्ट्रीय डेटाबेस के उपयोग को केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये। 
  • इसी प्रकार राज्य डेटाबेस को उन अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो राज्य के दूसरे डेटाबेस को तैयार या मेनटेन करते हैं। यह राज्य सरकार की मंज़ूरी के अधीन होगा।

भारतीय न्याय संहिता, 2023: 

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया।
  • यह विधेयक भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) को निरस्त करता है और इसे गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया है।
  • IPC आपराधिक कृत्यों पर प्रमुख कानून है। 
  • विधेयक में IPC के कई हिस्सों को बरकरार रखा गया है। IPC के तहत कुछ अपराध, जिन्हें न्यायालयों ने हटा दिया है या खारिज़ कर दिया है, हटा दिये गए हैं। इनमें व्याभिचार और समलैंगिक संभोग के अपराध भी शामिल हैं।

विधेयक में प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं:

  • आतंकवाद और संगठित अपराध: विधेयक आतंकवाद को एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जिसका उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, आम जनता को डराना या सार्वजनिक व्यवस्था को क्षतिग्रस्त करना है। 
    • आतंकवादी कृत्यों में मौत का कारण बनने या भय फैलाने के लिये बंदूकों (आग्नेयास्त्रों), बमों या खतरनाक पदार्थों का उपयोग करना शामिल है।
    • संगठित अपराध को भौतिक या वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिये हिंसा या धमकी के उपयोग द्वारा की जाने वाली निरंतर गैरकानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • गैरकानूनी गतिविधि में अपहरण, कॉन्ट्रैक्ट हत्या, वित्तीय घोटाले और साइबर अपराध शामिल हो सकते हैं। इन्हें व्यक्तियों द्वारा अकेले या संयुक्त रूप से, किसी अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या उसकी ओर से किया जा सकता है।
  • राजद्रोह: विधेयक राजद्रोह के अपराध को हटा देता है, जिसमें तीन साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती थी।
    • इसके बजाय यह दंडित करता है: अलगाव को उत्तेजित करना या उकसाने का प्रयास करना, या विध्वंसक गतिविधियाँ, या सशस्त्र विद्रोह, अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना, या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना।
    • इनमें इलेक्ट्रॉनिक संचार, या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है। इसके लिये सात साल या आजीवन कारावास की सज़ा होगी और ज़ुर्माना भी लगेगा।
  • कुछ आधार पर व्यक्ति समूहों द्वारा हत्या: विधेयक निर्दिष्ट आधार पर पाँच या अधिक लोगों द्वारा की गई हत्या के लिये अलग-अलग दंड निर्दिष्ट करता है। 
    • इन आधारों में नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास शामिल हैं। प्रत्येक अपराधी को सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सज़ा दी जाएगी। 
  • नाबालिग के सामूहिक बलात्कार पर मृत्यु दंड: IPC 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के लिये मृत्युदंड देने की अनुमति देती है। विधेयक 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार हेतु मृत्युदंड देने की अनुमति देता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023:

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 लोकसभा में पेश किया गया।
  • यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को निरस्त करता है लेकिन संहिता के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखता है।
    • यह संहिता, भारतीय दंड संहिता, 1860 सहित विभिन्न अधिनियमों के तहत अपराधों के लिये गिरफ्तारी, अभियोजन और ज़मानत की प्रक्रिया प्रदान करती है।

विधेयक के तहत प्रस्तावित प्रमुख बदलावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • विचाराधीन कैदियों की हिरासत: संहिता के तहत, यदि किसी आरोपी ने जाँच या मुकदमे के दौरान किसी अपराध के लिये कारावास की अधिकतम अवधि का आधा समय हिरासत में बिताया है, तो उसे उसके निजी बॉण्ड पर रिहा किया जाना चाहिये। यह उन अपराधों पर लागू नहीं होता जिनमें मौत की सज़ा हो सकती है।
    • विधेयक में कहा गया है कि यह प्रावधान निम्नलिखित पर भी लागू नहीं होगा
      • आजीवन कारावास की सज़ा वाले अपराध
      • ऐसे व्यक्ति जिनके खिलाफ एक से अधिक अपराधों में कार्यवाही लंबित है। 
    • इसमें आगे कहा गया है कि पहली बार अपराध करने वाले लोगों को ज़मानत पर रिहा किया जाएगा, अगर उन्होंने अपराध के लिये दी जा सकने वाली अधिकतम कारावास की एक तिहाई अवधि हिरासत में पूरी कर ली है। जिस जेल में आरोपी को हिरासत में लिया गया है, उसके अधीक्षक को ऐसे विचाराधीन कैदियों को ज़मानत पर रिहा करने हेतु आवेदन करना होगा।
  • हस्ताक्षर और उंगलियों की निशान: संहिता मेट्रोपॉलिटन/न्यायिक मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है कि वह किसी भी व्यक्ति को हस्ताक्षर या हैंडराइटिंग के नमूने देने के आदेश दे सकते हैं। 
    • ऐसा आदेश संहिता के तहत किसी भी जाँच या कार्यवाही के लिये दिया जा सकता है। हालाँकि ऐसा नमूना उस व्यक्ति से जमा नहीं किया जा सकता जिसे जाँच के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया हो। 
    • विधेयक में इसका विस्तार करते हुए उंगलियों के निशान और आवाज़ के नमूनों (वॉयस सैंपल) को शामिल किया गया है। ये नमूने किसी ऐसे व्यक्ति से भी लिये जा सकते हैं जिसे गिरफ्तार नहीं किया गया हो।
  • फॉरेंसिक जाँच: विधेयक उन सभी अपराधों के लिये फॉरेंसिक जाँच को अनिवार्य करता है जिनकी सज़ा कम-से-कम सात वर्ष का कारावास है। ऐसे मामलों में फॉरेंसिक विशेषज्ञ क्राइम सीन पर जाएँगे ताकि फॉरेंसिक साक्ष्य को इकट्ठा किया जा सके और मोबाइल फोन या किसी दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर उस प्रक्रिया को रिकॉर्ड करेंगे। अगर राज्य के पास फॉरेंसिक सुविधा नहीं है तो उसे दूसरे राज्य की इस सुविधा का प्रयोग करना चाहिये।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023:

  • भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को निरस्त करता है।
    • अधिनियम कानूनी कार्यवाही में साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिये नियम प्रदान करता है।
  • विधेयक अधिनियम के कई हिस्सों को बरकरार रखता है और साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के दायरे को विस्तृत करता है।

विधेयक में प्रस्तावित प्रमुख बदलावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता: अधिनियम दो प्रकार के साक्ष्य प्रदान करता है- दस्तावेज़ी (डॉक्यूमेंटरी) और मौखिक (ओरल) साक्ष्य। 
    • दस्तावेज़ी साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की जानकारी शामिल होती है जो कंप्यूटर के माध्यम से ऑप्टिकल या चुंबकीय मीडिया में मुद्रित या संग्रहीत की गई हो। ऐसी जानकारी कंप्यूटर या विभिन्न कंप्यूटरों के संयोजन द्वारा संग्रहीत या संसाधित की जा सकती है।
    • विधेयक में प्रावधान है कि इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड का कानूनी प्रभाव कागज़ी रिकॉर्ड के समान ही होगा। 
    • यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का दायरा बढ़ाता है ताकि इसमें सेमीकंडक्टर मेमोरी या किसी संचार उपकरण (स्मार्टफोन, लैपटॉप) में संग्रहीत जानकारी को शामिल किया जा सके। इसमें ईमेल, सर्वर लॉग, स्मार्टफोन, लोकेशनल एविडेंस और वॉयस मेल के रिकॉर्ड्स शामिल होंगे। 
  • मौखिक साक्ष्य: अधिनियम के तहत मौखिक साक्ष्य में जाँच के तहत किसी तथ्य के संबंध में गवाहों द्वारा न्यायालय के समक्ष दिये गए बयान शामिल हैं। 
    • विधेयक के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक तरीके से दी गई जानकारी को भी मौखिक साक्ष्य माना जाएगा।  इससे गवाह, आरोपी व्यक्ति और पीड़ित इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाही दे सकता है। 

  सूचना प्रौद्योगिकी  

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023:

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023 संसद द्वारा पारित किया गया। विधेयक व्यक्तिगत डेटा और व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा का प्रावधान करता है।

मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रयोज्यता: विधेयक भारत के भीतर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर लागू होता है जहाँ यह डेटा: 
    • ऑनलाइन जमा किया जाता है। 
    • ऑफलाइन जमा किया जाता है और फिर उसे डिजिटलीकृत किया जाता है। यह भारत के बाहर पर्सनल डेटा प्रोसेसिंग पर भी लागू होगा, अगर यह प्रोसेसिंग भारत में वस्तुओं और सेवाओं को ऑफर करने के लिये की जाती है। 
  • व्यक्तिगत डेटा किसी व्यक्ति के उस डेटा को कहा जाता है, जिससे वह व्यक्ति पहचाना जाता है, या जो उससे संबंधित होता है। प्रसंस्करण उस पूर्ण या आंशिक ऑटोमेटेड ऑपरेशन या सेट ऑफ ऑपरेशंस को कहा जाता है जो व्यक्तिगत डेटा डेटा पर किये जाते हैं। इसमें संग्रह, उपयोग और साझाकरण शामिल है।
  • जिस व्यक्ति के डेटा को संसाधित किया जा रहा है (डेटा प्रिंसिपल), उसे निम्नलिखित का अधिकार होगा:
    • प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी हासिल करना।
    • व्यक्तिगत डेटा में सुधार और उसे हटाने की मांग करना।
    • मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में किसी दूसरे को इन अधिकारों का इस्तेमाल डेटा प्रिंसिपल के अधिकार और कर्तव्य: करने के लिये नामित करना।
    • शिकायत निवारण। 
  • डेटा प्रिंसिपलों के कुछ कर्तव्य होंगे। उन्हें:
    • झूठी या तुच्छ शिकायत दर्ज नहीं करानी चाहिये।
    • कोई गलत विवरण नहीं देना चाहिये या निर्दिष्ट मामलों में किसी दूसरे का रूप नहीं धरना चाहिये।
    • इन कर्तव्यों का उल्लंघन करने पर 10,000 रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जाएगा।
  • डेटा फिड्यूशरी के दायित्व: प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधन का निर्धारण करने वाली इकाई (डेटा फिड्यूशरी) को निम्नलिखित करना चाहिये:
    • उसे डेटा की सटीकता और पूर्णता सुनिश्चित करने के लिये उचित प्रयास करने चाहिये,
    • डेटा उल्लंघन को रोकने के लिये उचित सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिये,
    • उल्लंघन की स्थिति में भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड और प्रभावित व्यक्तियों को उसकी जानकारी देनी चाहिये,
    • उद्देश्य पूरा होने और लीगल उद्देश्यों के लिये रिटेंशन ज़रूरी न होने (स्टोरेज लिमिटेशन) पर पर्सनल डेटा को मिटा देना चाहिये। 
    • सरकारी संस्थाओं के मामले में भंडारण सीमा और डेटा प्रिंसिपल का डेटा मिटाने का अधिकार लागू नहीं होगा।

  चुनाव आयोग  

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में संशोधन:

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं कार्यावधि) विधेयक, 2023 को राज्यसभा में पेश किया गया। यह विधेयक निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।

यह चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।

  • निर्वाचन आयोग: संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और उतने ही अन्य चुनाव आयुक्त (EC) होते हैं, जितने राष्ट्रपति तय कर सकते हैं। CEC और अन्य EC की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 
    • विधयेक निर्वाचन आयोग की समान संरचना को निर्दिष्ट करता है। इसमें कहा गया है कि CEC और अन्य EC की नियुक्ति चयन समिति के सुझावों पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
  • चयन समिति: चयन समिति में निम्नलिखित शामिल होंगे:
    • अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री
    • सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता
    • प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री। 
      • अगर लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता इस भूमिका में होगा।
  • सर्च पैनल (खोजबीन समिति): चयन समिति पर विचार करने के लिये खोजबीन समिति पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। खोजबीन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे। 
    • इसमें दो अन्य सदस्य होंगे जो केंद्र सरकार के सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे। उनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होना चाहिये।
    • चयन समिति उन उम्मीदवारों पर भी विचार कर सकती है जिन्हें खोजबीन समिति द्वारा तैयार पैनल में शामिल नहीं किया गया है।

निर्वाचन प्रक्रिया और सुधारों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट:

  • कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय से संबंधित स्थायी समिति ने “चुनावी प्रक्रिया के विशिष्ट पहलू एवं उनमें सुधार” पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 
  • समिति ने निर्वाचन प्रक्रिया से संबंधित कुछ मुद्दों की पहचान की, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • सामान्य मतदाता सूची की स्थिति।
    • मतदान करने और चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु। 
  • भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने एक सामान्य मतदाता सूची बनाने का प्रस्ताव रखा था। 
  • सामान्य मतदाता सूची का उद्देश्य मतदाताओं की जानकारी वाली एक केंद्रीकृत भंडार के रूप में काम करना है, जिसका एक्सेस ECI और राज्य चुनाव आयोगों सहित सभी संबंधित अधिकारी के पास हो। 

समिति के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सामान्य मतदाता सूची: समिति ने कहा कि सामान्य मतदाता सूची का उद्देश्य संसाधनों को सुव्यवस्थित करना तथा मेहनत और खर्चों को कम करना है। हालाँकि उसे इसके कार्यान्वयन से संबंधित दो मुद्दों की पहचान की-
    • वर्तमान कानूनी ढाँचा
    • ECI द्वारा मतदाता सूची के निर्माण का मार्गदर्शन करने वाले संवैधानिक नियम। 
  • समिति ने राज्य की शक्तियों पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की, क्योंकि पंचायत चुनाव और नगरपालिका चुनाव राज्य चुनाव आयोगों के अधिकार में आते हैं। 
  • प्रत्येक स्थानीय चुनाव से पूर्व राज्य सरकारों और राज्य चुनाव आयोगों द्वारा स्थानीय वार्डों एवं पंचायतों का परिसीमन अनिवार्य किया जाता है। 
  • संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, स्थानीय चुनाव राज्य के विषय के अंतर्गत आते हैं। 
  • ECI के पास राज्य चुनाव आयोगों को निर्देश देने का अधिकार नहीं है। इसलिये समिति ने सुझाव दिया कि ECI को सामान्य मतदाता सूची तैयार करने से पूर्व संवैधानिक प्रावधानों पर विचार करना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त समिति ने कहा कि केंद्र सरकार और ECI द्वारा प्रस्तावित सामान्य मतदाता सूची का कार्यान्वयन संविधान के अनुच्छेद 325 के दायरे से बाहर है। समिति के अनुसार, अनुच्छेद 325 संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिये अलग-अलग मतदाता सूचियों के उपयोग को अनिवार्य बनाता है।
  • समिति ने केंद्र सरकार को कोई भी कार्रवाई करने से पहले संभावित परिणामों का सावधानीपूर्वक आकलन करने की सलाह दी।
  • चुनाव लड़ने की आयु: समिति ने कहा कि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार के लिये न्यूनतम आयु की अनिवार्यता को कम करने से युवाओं को लोकतंत्र में शामिल होने के समान अवसर मिलेंगे। उसने राज्य विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारी हेतु न्यूनतम आयु की अनिवार्यता को कम करने का सुझाव दिया।

  वित्त  

GST लगाने हेतु संशोधन: 

  • केंद्रीय वस्तु और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2023 तथा एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2023 संसद में पारित किये गए। ये विधेयक क्रमशः केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिनियम, 2017 और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) अधिनियम, 2017 में संशोधन करते हैं। 
  • संशोधनों के अनुसार, CGST कैसीनो, घुड़दौड़, जुआ और ऑनलाइन मनी गेमिंग पर लागू होगा।
  • IGST ऑनलाइन मनी गेमिंग पर लागू होगा। 
  • ऑनलाइन मनी गेमिंग उन ऑनलाइन गेम्स को कहा जाता है, जहाँ खिलाड़ी पैसे या पैसे के लायक जीत की उम्मीद के साथ पैसे का भुगतान या उसे जमा (वर्चुअल डिजिटल संपत्ति सहित) करते हैं।
  • यह किसी भी खेल, योजना, प्रतियोगिता या अन्य गतिविधि पर लागू होता है, भले ही इसका परिणाम कौशल, अवसर या दोनों पर आधारित हो। 
  • इसमें ऑनलाइन मनी गेम शामिल हैं जिन्हें किसी भी कानून के तहत अनुमति दी जा सकती है या प्रतिबंधित किया जा सकता है।

  खान  

खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023:

  • खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 को संसद में पारित कर दिया गया। 
  • विधेयक खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करता है।
  • अधिनियम खनन क्षेत्र को विनियमित करता है।

मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पूर्व परीक्षण में उप-सतही गतिविधियाँ शामिल: अधिनियम पूर्व परीक्षण से संबंधित कार्यों को प्रारंभिक पूर्वेक्षण के लिये किये जाने वाले कार्यों के तौर पर परिभाषित करता है। 
  • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • हवाई सर्वेक्षण
    • भू-भौतिकीय
    • भू-रासायनिक सर्वेक्षण। 
  • इसमें भूवैज्ञानिक मानचित्रण भी शामिल है। अधिनियम पूर्व परीक्षण के हिस्से के रूप में गड्ढा खोदने, खाई खोदने, ड्रिलिंग और उप-सतही उत्खनन पर प्रतिबंध लगाता है। विधेयक इन प्रतिबंधित गतिविधियों की अनुमति देता है। 
  • निर्दिष्ट खनिजों के लिये अन्वेषण लाइसेंस: अधिनियम निम्नलिखित प्रकार की रियायतें प्रदान करता है:
    • पूर्व परीक्षण हेतु  पूर्व परीक्षण परमिट
    • पूर्वेक्षण हेतु पूर्वेक्षण लाइसेंस
    • खनन करने हेतु खनन पट्टा (लीज़)। 
    • एक मिश्रित लाइसेंस, पूर्वेक्षण और खनन के लिये। 
  • विधेयक एक अन्वेषण लाइसेंस का प्रस्ताव रखता है जोकि निर्दिष्ट खनिजों के लिये पूर्व परीक्षण या पूर्वेक्षण, या दोनों गतिविधियों के लिये अधिकृत करेगा। 
  • सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट 29 खनिजों के लिये अन्वेषण लाइसेंस जारी किया जाएगा। 
  • इनमें सोना, चाँदी, ताँबा, कोबाल्ट, निकल, सीसा, पोटाश और रॉक फॉस्फेट शामिल हैं।
  • एक्ट के तहत परमाणु खनिजों के रूप में वर्गीकृत छह खनिज भी इनमें शामिल हैं: 
    • बेरिल और बेरिलियम, 
    • लिथियम, 
    • नाइओबियम
    • टाइटेनियम,
    • टैंटलियम
    • ज़िरकोनियम। 
  • विधेयक उन्हें परमाणु खनिजों के रूप में वर्गीकृत करता है। अन्य खनिजों के विपरीत, परमाणु खनिजों का पूर्वेक्षण और खनन अधिनियम के तहत सरकारी संस्थाओं के लिये आरक्षित है। 
  • कुछ खनिजों के लिये केंद्र सरकार द्वारा नीलामी: अधिनियम के तहत, कुछ निर्दिष्ट मामलों को छोड़कर, कन्सेशन की नीलामी राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। 
  • विधेयक में कहा गया है कि निर्दिष्ट महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के लिये मिश्रित लाइसेंस एवं खनन पट्टे की नीलामी केंद्र सरकार द्वारा आयोजित की जाएगी। 
  • इन खनिजों में लिथियम, कोबाल्ट, निकल, फॉस्फेट, टिन, फॉस्फेट और पोटाश शामिल हैं। हालाँकि राज्य सरकार की ओर से अभी भी रियायतें दी जाएँगी।

  शिक्षा  

शिक्षा हेतु नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा जारी:

  • शिक्षा मंत्रालय ने स्कूल शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF), 2023 को जारी किया है। इसका उद्देश्य स्कूल पाठ्यक्रम के विकास हेतु मार्गदर्शक सिद्धांत, लक्ष्य, संरचना और तत्व प्रदान करना है। यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 का स्थान लेता है। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के उद्देश्यों के अनुसार तैयार किया गया है।
  • NEP ने स्कूली शिक्षा में बदलाव की कल्पना की गई है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • चार चरणों में विभाजित स्कूली शिक्षा प्रणाली
    • बहु-विषयक शिक्षा
    • बहुभाषावाद
    • विषय चयन में लचीलापन। 

प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • 5+3+3+4 चरणीय डिज़ाइन: NEP ने स्कूली प्रणाली (10+2) के मौजूदा डिज़ाइन को एक ऐसे डिज़ाइन से बदलने का सुझाव दिया है जो चार चरणों में बाँटा गया है। प्रस्तावित डिज़ाइन में निम्नलिखित शामिल हैं-
    • बुनियादी चरण (उम्र 3-8)
    • प्रारंभिक चरण (आयु 8-11)
    • मध्य चरण (उम्र 11-14)
    • माध्यमिक चरण (उम्र 14-18)। 
  • NEP ने आगे माध्यमिक चरण को दो चरणों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया- कक्षा 9 और 10, तथा कक्षा 11 व 12। NCF, 2023 में इस डिज़ाइन को शामिल किया गया है। इसमें प्रत्येक चरण को विषयों और विशिष्ट शिक्षण उद्देश्यों के तहत संयोजित किया गया है। उदाहरण के लिये बुनियादी चरण का लक्ष्य शारीरिक, संज्ञानात्मक और भाषा क्षमताओं को विकसित करना है। इस चरण में विद्यार्थी दो भाषाएँ सीखेंगे और मूलभूत संख्यात्मकता विकसित करेंगे।
  • भाषा की शिक्षा:
    • NEP का लक्ष्य एक विद्यार्थी को तीन भाषाओं में एक स्वतंत्र वक्ता, लेखक और पाठक के रूप में विकसित करना है। 
    • NCF, 2023 इस उद्देश्य को शामिल करता है और भाषा दक्षता के लिये लक्ष्य निर्धारित करता है। 
    • एक विद्यार्थी जो पहली भाषा पढ़ता है, वह उस समुदाय की भाषा होगी जिसमें वह रहता है। 
    • अन्य भाषा, पहली भाषा के अलावा कोई भी भाषा हो सकती हैं। NCF के लिये आवश्यक है कि पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से दो भारतीय होनी चाहिये।
  • बहुअनुशासनात्मक शिक्षा: NCF, 2023 में कक्षा 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिये छह विषयों के अध्ययन का प्रावधान है। इनमें से दो भाषाएँ होंगी, जिनमें से एक भारतीय होनी चाहिये। इनके अलावा विद्यार्थी तीन समूहों में से कोई भी चार विषय चुन सकता है। प्रत्येक समूह में समान डोमेन के विषय शामिल हैं। 
  • उदाहरण के लिये विज्ञान, गणित और कम्प्यूटेशनल थिकिंग को एक साथ समूहीकृत किया गया है।

  स्वास्थ्य  

CAG ने आयुष्मान भारत-PMJAY पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की: 

  • भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) ने 'आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के प्रदर्शन ऑडिट' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • इस योजना का लक्ष्य माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती के लिये प्रति वर्ष प्रति परिवार पाँच लाख रुपए का स्वास्थ्य कवर प्रदान करना है। 
  • योजना के तहत लाभार्थियों का चयन सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC), 2011 के आधार पर किया जाता है। 

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • लाभार्थियों का समावेश: पंजीकरण के लिये आवेदन करने पर आवेदक के विवरण का मिलान पात्र लाभार्थियों की सूची वाले डेटाबेस से किया जाता है। 
  • 0 और 100 के बीच एक स्कोर जनरेट होता है और प्रासंगिक दस्तावेज़ अनुमोदन के लिये भेजे जाते हैं। अनुमोदन या अस्वीकृति हेतु स्कोर की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। 
  • CAG रिपोर्ट से पता चलता है कि कुल स्वीकृत मामलों (11 करोड़) में से 32% में कोई मिलान स्कोर नहीं था और 15% में मिलान स्कोर शून्य था। 
  • इसका तात्पर्य यह है कि आवेदकों द्वारा दिये गए विवरण डेटाबेस में दिये गए विवरण से समानता नहीं रखते हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि अपात्र लाभार्थियों, विशेषकर सरकारी कर्मचारियों के परिवारों को भी इसमें शामिल किया गया है।
  • डेटाबेस में त्रुटियाँ: रिपोर्ट SECC, 2011 डेटाबेस को पुराना मानती है और बताती है कि उसमें विसंगतियों मौजूद हैं। इनमें निम्नलिखित त्रुटियाँ शामिल हैं, जैसे: 
    • अमान्य नाम।
    • नाम और जेंडर वाले कॉलम का खाली होना।
    • अवास्तविक जन्म तिथियाँ और पारिवारिक इकाई का आकार। 
  • इन्हें मिलाकर लगभग दो करोड़ प्रविष्टियाँ बनती हैं। रिपोर्ट में लाभार्थियों के PMJAY डेटा में विसंगतियों का भी खुलासा किया गया है।
  • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • डुप्लीकेट PMJAY आईडी।
    • पारिवारिक इकाइयों का अवास्तविक आकार। 
    • एक जैसे/गलत आधार कार्ड नंबर। 
    • अमान्य मोबाइल नंबर।
  • दावों का प्रबंधन: वर्ष 2022 तक निपटाए गए दावों में से 53% दावे उन राज्यों के थे जिन्होंने अपनी बीमा स्वास्थ्य योजनाएँ लागू की हैं, जैसे आंध्र प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र। इन राज्यों में सभी राज्य योजनाओं के दावे उनके अपने IT प्रबंधन सिस्टम में फीड किये जाते हैं। जब यह डेटा PMJAY की प्रबंधन प्रणाली में स्थानांतरित किया जाता है, तो राज्य विशिष्ट योजनाओं के साथ PMJAY के ओवरलैप होने की आशंका होती है।

  कानून एवं न्याय  

मध्यस्थता विधेयक 2021: 

  • मध्यस्थता विधेयक, 2021 को संसद में पारित कर दिया गया। मध्यस्थता एक किस्म का वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) होता है जिसमें एक स्वतंत्रत व्यक्ति (मध्यस्थ) की सहायता से विभिन्न पक्ष अपने विवादों को निपटाने का प्रयास करते हैं। 
    • विधेयक मध्यस्थता (ऑनलाइन मध्यस्थता सहित) को बढ़ावा देने का प्रयास करता है तथा मध्यस्थता समझौते के परिणामस्वरूप निपटारे को लागू करने का प्रावधान करता है।
    • विधेयक को कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था। समिति ने विधेयक में कुछ परिवर्तनों का सुझाव दिया है। 
    • जैसे विधेयक के अनुसार मध्यस्थता की प्रक्रिया 180 दिनों के अंदर पूर्ण होनी चाहिये जिसे 180 दिनों के लिये और बढ़ाया जा सकता है। 
    • समिति ने इसे घटाकर 90 दिन करने तथा उसे 60 दिन और बढ़ाने के विकल्प का सुझाव दिया है।

विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • मध्यस्थता हेतु अनुपयुक्त विवाद: विधेयक भारत में संचालित कुछ मध्यस्थता कार्यवाहियों पर लागू होगा (उदाहरण के लिये अगर मध्यस्थता समझौते में कहा गया है कि मध्यस्थता इस विधेयक के अनुसार होगी या किसी वाणिज्यिक विवाद से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता पर)। विधेयक कुछ विवादों को मध्यस्थता के लिये उपयुक्त नहीं मानता है।
  • इनमें निम्नलिखित विवाद शामिल हैं: 
    • नाबालिगों या मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के खिलाफ दावों से संबंधित विवाद।
    • क्रिमिल अपराध के अभियोजन से जुड़े विवाद।,
    • तीसरे पक्ष के अधिकारों को प्रभावित करने वाले विवाद।
    • करों की वसूली या कलेक्शन से संबंधित विवाद। 

केंद्र सरकार विवादों की इस सूची में संशोधन कर सकती है।

  • मध्यस्थता की प्रक्रिया: नागरिक या वाणिज्यिक विवाद के मामले में व्यक्ति को अदालत या किन्हीं ट्रिब्यूनल्स (जिन्हें अधिसूचित किया जाएगा) से संपर्क करने से पूर्व मध्यस्थता के जरिये विवाद को सुलझाने का प्रयास करना चाहिये। मध्यस्थता की प्रक्रिया गोपनीय होगी। पहले दो सत्रों के बाद कोई पक्ष मध्यस्थता से पीछे हट सकता है। मध्यस्थता की प्रक्रिया 120 दिनों में समाप्त होनी चाहिये जिसे विभिन्न पक्षों द्वारा 60 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है। 
  • मध्यस्थ: मध्यस्थ विभिन्न पक्षों के विवाद सुलझाने में मदद करते हैं। मध्यस्थों को निम्नलिखित द्वारा नियुक्त किया जा सकता है: 
  • आपसी रजामंदी से शामिल पक्षों द्वारा
  • मध्यस्थता सेवा प्रदाता (मध्यस्थता का संचालन करने वाली संस्था) द्वारा।
  • मध्यस्थों को हितों के ऐसे किसी भी टकराव का खुलासा करना चाहिये जोकि उनकी स्वतंत्रता पर संदेह उत्पन्न करता हो। 
  • इसके अतिरिक्त भारतीय मध्यस्थता परिषद मध्यस्थों का पंजीकरण करेगी और मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं को मान्यता देगी।

  समन्वय  

बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022: 

बहु-राज्यीय सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक, 2022 को संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 में संशोधन करता है। बहु-राज्यीय सहकारी समितियाँ एक से अधिक राज्यों में काम करती हैं। विधेयक को 22 दिसंबर, 2022 को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी समिति को भेजा गया था। समिति ने विधेयक के प्रावधानों को मंज़ूर कर लिया। विधेयक के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बोर्ड के सदस्यों का निर्वाचन: अधिनियम के तहत बहु-राज्यीय सहकारी समिति के बोर्ड का निर्वाचन उसके मौजूदा बोर्ड द्वारा किया जाता है। 
  • विधेयक इसमें संशोधन करता है और निर्दिष्ट करता है कि केंद्र सरकार इन चुनावों को कराने के लिये सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण बनाएगी।
  • प्राधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होंगे। 
  • केंद्र सरकार चयन समिति के सुझावों के आधार पर इन सदस्यों की नियुक्ति करेगी।
  • शिकायतों का निवारण: विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के साथ एक या एक से अधिक सहकारी लोकपाल की नियुक्ति करेगी। लोकपाल निम्नलिखित के संबंध में सहकारी समितियों के सदस्यों की शिकायतों की जाँच करेगा
    • उनकी जमा
    • समिति के कामकाज के उचित लाभ
    • सदस्यों के व्यक्तिगत अधिकारों को प्रभावित करने वाले मुद्दे। 
  • लोकपाल शिकायत प्राप्त होने के तीन महीनों के भीतर जाँच और अधिनिर्णय की प्रक्रिया को पूरी करेगा। लोकपाल के निर्देशों के खिलाफ एक महीने के भीतर केंद्रीय रजिस्ट्रार (जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार करती है) में अपील दायर की जा सकती है।
  • सहकारी समितियों का एकीकरण: अधिनियम में बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के एकीकरण और विभाजन का प्रावधान है। 
  • आम बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके, ऐसा किया जा सकता है। इसके लिये मौजूद और वोट करने वाले कम से कम दो तिहाई सदस्यों की ज़रूरत होती है। 
  • विधेयक सहकारी समितियों (राज्य कानूनों के तहत पंजीकृत) को मौजूदा बहु-राज्यीय सहकारी समिति में विलय होने की अनुमति देता है। 
  • इस विलय के लिये आम बैठक में सहकारी समिति के मौजूदा और वोट देने वाले दो तिहाई सदस्यों को प्रस्ताव पारित करना होगा।

  रक्षा  

अंतर सेवा संगठन विधेयक, 2023: 

  • संसद ने अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक, 2023 को पारित कर दिया।
    • यह अंतर-सेवा संगठनों के कमांडर-इन-चीफ या ऑफिसर-इन-कमांड को यह अधिकार देता है कि वे अपनी कमान के तहत आने वाले सेवाकर्मियों पर अनुशासनात्मक या प्रशासनिक नियंत्रण रख सकते हैं, भले ही वे किसी भी सेवा के हों।
    • विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था, जिसने उसे मंज़ूर कर दिया। 

विधेयक की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • अंतर-सेवा संगठन: मौजूदा अंतर-सेवा संगठनों को विधेयक के तहत गठित माना जाएगा। 
    • इनमें अंडमान एवं निकोबार कमान, रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी शामिल हैं। 
    • केंद्र सरकार एक अंतर-सेवा संगठन का गठन कर सकती है जिसमें तीन सेवाओं में से कम-से-कम दो से संबंधित कर्मचारी हों: थलसेना, नौसेना और वायुसेना। 
    • इन्हें ऑफिसर-इन-कमांड के अधीन रखा जा सकता है। 
    • इन संगठनों में एक संयुक्त सेवा कमान भी शामिल हो सकती है, जिसे कमांडर-इन-चीफ के कमान के तहत रखा जा सकता है।
  • अंतर-सेवा संगठन का नियंत्रण: वर्तमान में अंतर-सेवा संगठनों के कमांडर-इन-चीफ या ऑफिसर-इन-कमांड को अन्य सेवाओं से संबंधित कर्मियों पर अनुशासनात्मक या प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है। 
    • विधेयक किसी अंतर-सेवा संगठन के कमांडर-इन-चीफ या ऑफिसर-इन-कमांड को इसमें सेवारत या इससे जुड़े कर्मियों पर कमान और नियंत्रण करने का अधिकार देता है।
      • वह अनुशासन बनाए रखने और सेवा कर्मियों द्वारा कर्तव्यों का उचित निर्वहन सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
  • अंतर-सेवा संगठन का अधीक्षण केंद्र सरकार में निहित होगा। 
    • सरकार ऐसे संगठनों को राष्ट्रीय सुरक्षा, सामान्य प्रशासन या जनहित के आधार पर निर्देश भी जारी कर सकती है।

  सामाजिक न्याय  

नशीली दवाओं के सेवन पर स्थायी समिति की रिपोर्ट:

  • सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण संबंधी स्थायी समिति ने 'युवाओं में नशीले पदार्थों का सेवन- समस्याएँ और समाधान' विषय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 

समिति के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बजटीय आवंटन में कमी: समिति ने कहा कि नेशनल एक्शन प्लान फॉर ड्रग डिमांड रिडक्शन (NAPDDR) में वर्ष 2020-21 और 2021-22 दोनों के लिये 260 करोड़ रुपए का बजटीय आवंटन था। 
    • संशोधित चरण के दौरान इसे घटाकर 2020-21 के लिये 150 करोड़ रुपए और 2021-22 के लिये 200 करोड़ रुपए कर दिया गया। 
    • यह भी गौर किया गया कि NAPDDR ने वर्ष 2021-22 में लगभग 91 करोड़ रुपए और वर्ष 2021-22 में 98 करोड़ रुपए खर्च किये थे। 
    • समिति ने सुझाव दिया कि सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग यह सुनिश्चित करे कि वर्ष 2023-24 में NAPDDR के तहत लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि हो। समिति ने संशोधित चरण में कटौती के बजाय 2023-24 हेतु बजट आवंटन को पूरा खर्च करने का सुझाव दिया।
  • युवाओं में नशीले पदार्थों का सेवन: समिति ने पाया कि 10-17 वर्ष के बच्चों द्वारा ओपिओइड, सेडेटिव्स और इनहेलेंट का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है तथा इस आयु वर्ग में एक करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं। 
  • सबसे अधिक प्रभावित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली  एवं पंजाब शामिल हैं। कमिटी ने यह भी गौर किया कि कुछ राज्यों में शराब की खपत पर प्रतिबंध के बावजूद भारत की लगभग 19% आबादी शराब का सेवन करती है। 
  • समिति ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में शराब की अवैध बिक्री को नियंत्रित करने के लिये कड़ी निगरानी का सुझाव दिया।
  • पुनर्वास में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका: समिति ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में नशीले पदार्थों का उपयोग व्यापक रूप से प्रचलित है। हालाँकि इन राज्यों में पुनर्वास कार्यक्रम संचालित करने वाले गैर सरकारी संगठनों को दी जाने वाली धनराशि पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2022-23 में कम हो गई है। समिति ने गौर किया कि बजट में कटौती आंशिक रूप से कुछ गैर सरकारी संगठनों के काम न करने के कारण हुई। समिति ने यह सुनिश्चित करने के लिये कि संकटग्रस्त राज्यों में पुनर्वास कार्यक्रम प्रभावित न हों, एक फास्ट-ट्रैक वैकल्पिक तंत्र का सुझाव दिया।

  श्रम  

कारीगरों और शिल्पकारों हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना को मंज़ूरी: 

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने कारीगरों और शिल्पकारों के लिये केंद्रीय क्षेत्र की योजना पीएम-विश्वकर्मा को मंज़ूरी दे दी है। यह योजना 5% की रियायती ब्याज दर पर ऋण प्रदान करती है, पहली किश्त में एक लाख रुपए तक और दूसरी किश्त में दो लाख रुपए तक। योजना के तहत अतिरिक्त सहायता जैसे कौशल उन्नयन, डिजिटल लेन-देन हेतु प्रोत्साहन और मार्केटिंग सहायता भी प्रदान की जाएगी।

वर्ष 2023-24 से 2027-28 तक इस योजना का वित्तीय परिव्यय 13,000 करोड़ रुपए है। इसमें बढ़ई, शस्त्रागार, लोहार, कुम्हार, राजमिस्त्री, नाई, गुड़िया/खिलौना निर्माता, माला निर्माता, दर्जी और मूर्तिकार जैसे 18 पारंपरिक व्यवसायों को शामिल किया जाएगा।


  शहरी मामले  

 PM ई-बस सेवा: 

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शहरी बस संचालन को बढ़ाने और स्थायी गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिये PM ई-बस सेवा को मंज़ूरी दी। 
  • यह योजना ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देगी और शहरों में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को सहयोग देगी। 
  • इसके दो खंड हैं: 
    • खंड ‘क’ में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर 10,000 ई-बसें होंगी।
    • खंड ‘ख’ में मल्टीमॉडल इंटरचेंज और स्वचालित किराया संग्रह प्रणाली जैसी हरित पहल शामिल हैं।
  • योजना के लिये कुल बजट परिव्यय 57,613 करोड़ रुपए है, जिसमें से 20,000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किये जाएँगे। 
  • यह योजना 10 वर्षों तक चलेगी और तीन लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को लक्षित करेगी। संगठित बस सेवाओं की कमी वाले शहरों को प्राथमिकता दी जाएगी।

  नागरिक उड्डयन  

विमान सुरक्षा नियम, 2023: 

  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विमान अधिनियम, 1934 के तहत विमान सुरक्षा नियम, 2023 को अधिसूचित किया है। 2023 के नियम विमान सुरक्षा नियम, 2011 का स्थान लेते हैं।

नियमों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • आयुक्त की शक्तियाँ महानिदेशक को हस्तांतरित: 2023 नियमों के तहत, नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (Bureau of Civil Aviation Security- BCAS) के महानिदेशक इन कार्यों के लिये ज़िम्मेदार होंगे:
    • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन सुरक्षा कार्यक्रम को विकसित करने और बरकरार रखने हेतु
    • विभागों के बीच गतिविधियों का समन्वय करने हेतु
    • हवाईअड्डों पर सुरक्षा नियंत्रण और प्रक्रियाएँ लागू करने के लिये अधिकारियों को नामित करना।
    • 2011 के नियमों के तहत, BCAS के आयुक्त इन कार्यों के लिये ज़िम्मेदार थे।
    • विमान अधिनियम, 1934 को 2020 में संशोधित किया गया जिसने BCAS को एक वैधानिक निकाय बनाया और निर्दिष्ट किया कि महानिदेशक इसका नेतृत्व करेंगे। 2023 नियम महानिदेशक के लिये अतिरिक्त कार्य निर्दिष्ट करते हैं, जैसे; सुरक्षा ऑडिट की व्यवस्था करना।
  • निजी सुरक्षा एजेंसियों का उपयोग: सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महानिदेशक द्वारा अधिकृत निजी सुरक्षा कर्मियों को लगाया जाएगा। निजी सुरक्षा कर्मियों की संख्या और प्रशिक्षण मानक केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किये जाएँगे।
  • कुछ उल्लंघनों पर दंड: नियमों के तहत, विमान ऑपरेटरों को कुछ कार्य करने होते हैं। उनका पालन न करना अपराध माना जाएगा।
  • ऐसे कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं-
    • एक सुरक्षा कार्यक्रम विकसित करना
    • महानिदेशक से अनुमोदन के साथ विमान संचालन शुरू करना।
  • इसके अतिरिक्त, किसी हवाईअड्डे या विमान में हथियार, बंदूक (आग्नेयास्त्र), गोला-बारूद या विस्फोटक ले जाना भी एक अपराध है। अपराध के लिये दो वर्ष तक की कैद या एक करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। 
    • नियम कुछ अपराधों के शमन के लिये रकम भी निर्दिष्ट करते हैं।
  • साइबर खतरों के खिलाफ उपाय: हवाईअड्डा और विमान ऑपरेटरों या ग्राउंड हैंडलिंग एजेंसी जैसी संस्थाओं को महत्त्वपूर्ण जानकारियों की पहचान करनी होगी तथा ऐसी जानकारी के अनाधिकृत एक्सेस की पहचान करने, संशोधन और उपयोग का पता लगाने तथा एक्सेस से बचाने के लिये सुरक्षा उपाय विकसित करने होंगे।

  उत्तर-पूर्वी क्षेत्र  

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र हेतु विकास योजनाओं के विस्तार:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो योजनाओं के विस्तार को मंज़ूरी दी: 
  • उत्तर पूर्व विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (NESIDS)
  • उत्तर पूर्वी परिषद योजना (NECS)।

इन दोनों योजनाओं के दिशानिर्देशों को भी संशोधित किया गया है।

  • उत्तर पूर्व विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना (NESIDS): इस योजना का लक्ष्य सभी पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढाँचे के विकास और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाना है। इसे 8,140 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ वर्ष 2025-26 तक बढ़ा दिया गया है। विस्तारित योजना को दो घटकों में पुनर्गठित किया जाएगा।
  • NESIDS-सड़कों, पर्यटन और आर्थिक केंद्रों के लिये सड़क, रेल एवं जल कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करना।
  • NESIDS-सड़क बुनियादी ढाँचे के अलावा जलाशयों, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और बिजली से संबंधित परियोजनाओं को कवर करना।
  • उत्तर पूर्वी परिषद योजना (NECS): NECS का लक्ष्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के समग्र विकास में अंतराल को कम करना है। इस योजना में उच्च शिक्षा, जैविक खेती, स्वास्थ्य और क्षेत्रीय पर्यटन जैसे फोकस क्षेत्र शामिल हैं। इसे 3,200 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ 2026 तक बढ़ा दिया गया है।
  • योजनाओं की निगरानी: केंद्रीय स्तर पर अधिकार प्राप्त अंतर-मंत्रालयी समिति दोनों योजनाओं के तहत परियोजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन करना जारी रखेगी।
  • राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति राज्य स्तर पर NESIDS- सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर और NEC के अलावा अन्य परियोजनाओं की निगरानी करेगी।

  वाणिज्य  

उत्तर पूर्वी क्षेत्र में व्यापार के विकास पर रिपोर्ट:

वाणिज्य संबंधी स्थायी समिति ने ‘उत्तर पूर्वी क्षेत्र में व्यापार और उद्योगों का विकास’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।

समिति के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कनेक्टिविटी: उत्तर पूर्वी क्षेत्र में राज्यों के भीतर और परस्पर परिवहन की खराब व्यवस्था है। उनके बीच कनेक्टिविटी की समस्याएँ हैं। इससे इस क्षेत्र में रोजमर्रा का जीवन और औद्योगिक विकास बाधित हुआ है। कनेक्टिविटी में सुधार के लिये समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये:
    • नए राज्य राजमार्गों और छोटी/ज़िला सड़कों का निर्माण।
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क को चौड़ा करना।
    • मालगाड़ियों की फ्रीक्वेंसी बढ़ाना।
    • हवाई अड्डों पर एयर कार्गो हैंडलिंग और कोल्ड स्टोरेज केंद्र बनाना।
    • राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यावहारिकता से संबंधित अध्ययनों को पूर्ण करना।
  • औद्योगिक उपयोग हेतु भूमि: अधिकांश उत्तर पूर्वी राज्यों में गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरित नहीं की जा सकती। औद्योगिक उपयोग के लिये भूमि का कोई डेटाबेस भी नहीं है। 
    • समिति ने GIS से जुड़े औद्योगिक भूमि बैंक के निर्माण का सुझाव दिया। इसमें उपलब्ध औद्योगिक भूमि की प्लॉट-स्तरीय जानकारी और भूमि पुनर्वर्गीकरण जैसे प्रावधान हो सकते हैं। 
    • समिति ने पट्टे के अधिकारों को हस्तांतरणीय और गिरवी रखने योग्य बनाने के प्रावधानों का भी सुझाव दिया।
  • आसियान के साथ व्यापार: दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के साथ भारत के व्यापार को बढ़ाने में उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाया जा सकता है। आसियान के साथ निर्यात संबंधों को मज़बूत करने के लिये समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये:
  • उड़ान (अंतर्राष्ट्रीय) योजना के तहत आसियान देशों के लिये सीधी उड़ानें शुरू करना।
  • अधिक संख्या में लैंड कस्टम स्टेशन स्थापित करना।
  • उत्तर पूर्वी क्षेत्र में आसियान देशों के वाणिज्य दूतावास कार्यालय खोलना। 
  • सरकार को उत्तर पूर्वी क्षेत्र में ऐसे उद्योगों की पहचान करनी चाहिये तथा उन्हें बढ़ावा देना चाहिये जो आसियान और अन्य पड़ोसी देशों के बाज़ारों की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकें।

महिला एवं बाल विकास

राष्ट्रीय महिला आयोग के कामकाज पर स्थायी समिति की रिपोर्ट: 

महिला सशक्तीकरण से संबंधित स्थायी समिति ने "राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग का कामकाज" पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) का काम महिलाओं की शिकायतों को दूर करना तथा महिलाओं के लिये विशिष्ट विधायी और नीतिगत उपायों पर सुझाव देना है।
समिति के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990: समिति ने कहा कि NCW को अधिक स्वतंत्र और प्रभावी बनाने के लिये राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 की समीक्षा करने की तत्काल आवश्यकता है। 
  • अधिनियम ने NCW को ऐसे अधिकार देने का सुझाव दिया जिससे वह कुछ हद तक पुलिस को जवाबदेह बना सके, यानी पुलिस NCW के निर्देशों को लागू करे और गैर अनुपालन पर सज़ा का प्रावधान हो। 
  • समिति ने NCW को 1990 के अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव देने और उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) को सौंपने का भी सुझाव दिया।
  • राज्य महिला आयोग: समिति ने कहा कि कई राज्य महिला आयोग अध्यक्षों की नियुक्ति न होने या धन के आवंटन की कमी के कारण पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हैं। 
  • उसने कहा कि बिहार और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में राज्य महिला आयोग नहीं हैं।
    समिति ने कहा कि अगर राज्य महिला आयोग काम करेंगे तो NCW को संबंधित राज्यों से मिलने वाली शिकायतों के निपटान में सहायता मिलेगी। 
  • समिति ने सहज समन्वय सुनिश्चित करने के लिये राज्य महिला आयोगों के साथ वैधानिक संबंध स्थापित करने का सुझाव दिया। कमिटी के अनुसार, MWCD को राज्यों से अनुरोध करना चाहिये कि वे रिक्तियों को भरें और आयोगों को पर्याप्त धन आवंटित करें। 
  • सुझावों को लागू करना: समिति ने कहा कि NCW ने लगभग 161 कानूनों की समीक्षा की है और उनमें संशोधनों का सुझाव दिया है। इन संशोधनों में निम्नलिखित से संबंधित कानून शामिल हैं: 
    • बाल विवाह।
    • घरेलू हिंसा।
    • महिलाओं की सुरक्षा।
    • गर्भावस्था का मेडिकल टर्मिनेशन। 
  • हालाँकि समिति ने कहा कि NCW के सुझावों को लागू करने के लिये कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। उसने MWCD, कानून एवं न्याय मंत्रालय और अन्य संबंधित मंत्रालयों के भीतर एक तंत्र की स्थापना का सुझाव दिया ताकि एक निश्चित समय सीमा का पालन किया जा सके और NCW के सुझावों का कार्यान्वयन सुनिश्चित हो।
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