विश्व व्यापार संगठन (WTO)
चर्चा में क्यों?
नाइजीरिया की एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला (Ngozi Okonjo-Iweala) को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) का महानिदेशक नियुक्त किया गया है।
- एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला पहली अफ्रीकी अधिकारी होने के साथ-साथ विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला भी है।
प्रमुख बिंदु:
विश्व व्यापार संगठन का गठन:
- WTO को वर्ष 1947 में संपन्न हुए प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) के स्थान पर अपनाया गया।
- WTO के निर्माण की पृष्ठभूमि गैट के उरुग्वे दौर (वर्ष1986-94) की वार्ता में तैयार हुई तथा 1 जनवरी, 1995 को WTO द्वारा कार्य शुरू किया गया।
- जिस समझौते के तहत WTO की स्थापना की गई उसे "मारकेश समझौते" के रूप में जाना जाता है। इसके लिये वर्ष 1994 में मोरक्को के मारकेश में हस्ताक्षर किये गए।
WTO के बारे में:
- WTO एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो देशों के मध्य व्यापार के नियमों को विनियमित करता है।
- GATT और WTO में मुख्य अंतर यह है कि GATT जहाँ ज़्यादातर वस्तुओं के व्यापार को विनियमित करता था, वहीँ WTO और इसके समझौतों में न केवल वस्तुओं को बल्कि सेवाओं और अन्य बौद्धिक संपदाओं जैसे- व्यापार चिन्हों, डिज़ाइनों और आविष्कारों से संबंधित व्यापार को भी शामिल किया जाता है।
- WTO का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
सदस्य:
- WTO में यूरोपीय संघ सहित 164 सदस्य देश शामिल हैं तथा ईरान, इराक, भूटान, लीबिया आदि 23 देशों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- भारत वर्ष 1947 में GATT तथा WTO का संस्थापक सदस्य देश बना।
शासी संरचना:
- मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
- WTO की संरचना में मंत्री सम्मेलन सर्वोच्च प्राधिकरण है जिसका गठन WTO के सभी सदस्यों देशों से मिलकर होता है, इसके सभी सदस्यों को कम-से-कम हर दो वर्ष में मिलना आवश्यक है। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के सदस्य बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के तहत सभी मामलों पर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
- सामान्य परिषद:
- इसका गठन WTO के सभी सदस्य देशों से मिलकर होता है जो मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के प्रति उत्तरदायी है।
- विवाद समाधान निकाय और व्यापार नीति समीक्षा निकाय:
- सामान्य परिषद का आयोजन मुख्यत: दो विषयों को ध्यान में रखकर किया गया है:
- विवाद समाधान निकाय: इसके माध्यम से विवादों के समाधान हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का संचालन किया जाता है।
- व्यापार नीति समीक्षा निकाय: इसके द्वारा WTO के प्रत्येक सदस्य की व्यापार नीतियों की नियमित समीक्षा की जाती है।
- सामान्य परिषद का आयोजन मुख्यत: दो विषयों को ध्यान में रखकर किया गया है:
उद्देश्य:
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु नियमों को निर्धारित करना और लागू करना।
- व्यापार उदारीकरण के विस्तार के लिये बातचीत और निगरानी हेतु एक मंच प्रदान करना।
- व्यापार विवादों का समाधान करना।
- निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ाना।
- वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में शामिल अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित करना।
- विकासशील देशों को वैश्विक व्यापार प्रणाली से पूरी तरह से लाभान्वित होने में सहयोग करना।
WTO की उपलब्धियांँ:
- व्यापार की वैश्विक सुविधा:
- WTO वस्तुओं और सेवाओं के वैश्विक व्यापार हेतु बाध्यकारी नियमों का निर्माण और सीमा पार व्यापार गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु सुविधा प्रदान करता है।
- WTO ने न केवल व्यापार मूल्यों को बढ़ाया है, बल्कि व्यापार और गैर-व्यापार बाधाओं को समाप्त करने में भी मदद की है।
- बेहतर आर्थिक विकास :
- वर्ष 1995 के बाद से विश्व व्यापार मूल्यों में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है, जबकि विश्व व्यापार में वास्तविक वृद्धि 2.7 गुना तक हुई है।
- घरेलू सुधारों और खुले बाज़ार की प्रतिबद्धताओं के परिणामस्वरूप देशों की राष्ट्रीय आय में स्थायी वृद्धि हुई है।
- वैश्विक मूल्य शृंखला में वृद्धि:
- WTO के अनुमानित बाज़ार को वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ बढ़ावा देने हेतु बेहतर संचार व्यवस्था के साथ जोड़ा गया है। वर्तमान में कुल व्यापार का लगभग 70% इन मूल्य शृंखलाओं के अंतर्गत आता है।
- गरीब देशों का उत्थान:
- WTO में कम विकसित देशों पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाता है। WTO के सभी समझौतों में इस बात का ध्यान रखा गया है कि कम विकसित देशों को अधिक रियायत दी जानी चाहिये और जो सदस्य देश बेहतर स्थिति में हैं उन्हें कम विकसित देशों के निर्यात पर प्रतिबंधों को कम करने हेतु अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
वर्तमान चुनौतियाँ:
- चीन का राज्य पूंजीवाद:
- मुक्त बाज़ार वैश्विक व्यापार प्रणाली के समक्ष चीन के राज्य-स्वामित्व (China’s State-Owned) वाले उद्यम एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं और WTO की नियम पुस्तिका इन चुनौतियों से निपटने हेतु अपर्याप्त है।
- इसका कारण अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध है।
- मुक्त बाज़ार वैश्विक व्यापार प्रणाली के समक्ष चीन के राज्य-स्वामित्व (China’s State-Owned) वाले उद्यम एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं और WTO की नियम पुस्तिका इन चुनौतियों से निपटने हेतु अपर्याप्त है।
- संस्थागत मुद्दे:
- अपीलीय निकाय का संचालन दिसंबर 2019 से प्रभावी रूप से निलंबित है क्योंकि तभी से अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय में नियुक्तियों पर रोक लगाई जा रही है, जिसके कारण निकाय में सुनवाई करने के लिये आवश्यक कोरम पूरा नहीं हो रहा है।
- विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र की विफलता इसके बातचीत/परक्रामण (Negotiation) तंत्र की विफलता से काफी हद तक जुड़ी हुई है।
- पारदर्शिता का अभाव:
- WTO की वार्ताओं के संदर्भ में एक समस्या यह है कि WTO में शामिल विकसित या विकासशील देशों के संगठन की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है।
- वर्तमान में सदस्य देशों द्वारा WTO से विशेष रियायत प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वयं को विकासशील देशों के रूप में पदांकित किया जा रहा है।
- ई-कॉमर्स और डिजिटल ट्रेड:
- पिछले 25 वर्षों में वैश्विक व्यापार परिदृश्य में काफी बदलाव आया है बावजूद इसके WTO के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
- 1998 में यह महसूस करते हुए कि ई-कॉमर्स वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, WTO के सदस्यों ने वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित सभी व्यापार-संबंधी मुद्दों की जांँच करने के लिये WTO ई-कॉमर्स स्थगन (WTO E-Commerce Moratorium) की स्थापना की।
- लेकिन शुल्क स्थगन/ऋण स्थगन के राजस्व एकत्रित करने जैसे निहितार्थ के चलते हाल ही में विकासशील देशों ने इस पर प्रश्न उठाए।
- कृषि और विकास:
- भारत जैसे विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं के कारण कृषि पर समझौते का सामना करना पड़ रहा है।
आगे की राह:
- WTO के आधुनिकीकरण हेतु डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स के लिये नियमों के नए सेट विकसित करने की आवश्यकता होगी।
- WTO के सदस्य देशों को चीन की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के साथ अधिक प्रभावी ढंग से निपटना होगा, ताकि राज्य स्वामित्व वाले उद्यमों और औद्योगिक सब्सिडी को बेहतर तरीके से व्यवस्थित किया जा सके।
- जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापार और पर्यावरणीय स्थिरता को संरेखित करने के प्रयासों में वृद्धि करके जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने तथा WTO को फिर से मज़बूत करने में मदद मिल सकती है।