विशेष: UPSC: सिविल सेवा कैडर पॉलिसी में बदलाव का प्रस्ताव
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में 17 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को एक पत्र लिखकर फाउंडेशन कोर्स में मिले नंबरों के आधार पर चयनित आवेदकों को कैडर देने का सुझाव दिया है। अर्थात् IAS और IPS सरीखी प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं हेतु UPSC परीक्षा में चुने जाने के बाद सफल अभ्यर्थियों के कैडर और सर्विस क्षेत्र का आधार UPSC परीक्षा में मिली रैंकिग पर नहीं, बल्कि तीन महीने के फाउंडेशन कोर्स के बाद मिले अंकों के आधार पर तय किया जाना चाहिये। अब कार्मिक मंत्रालय ने पत्र लिखकर सभी कैडर-नियंत्रण प्राधिकरणों और मंत्रालयों से इस पर सुझाव मांगा है।
क्या है सिविल सेवा परीक्षा?
देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित और चुनौतीपूर्ण परीक्षा मानी जाती है संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा ली जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा। यह परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) सहित 24 शीर्ष सेवाओं हेतु अधिकारियों के चयन के लिये UPSC हर साल तीन चरणों (प्रारंभिक, मुख्य एवं साक्षात्कार) वाली सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करता है। देशभर के विभिन्न केंद्रों पर हर साल लाखों परीक्षार्थी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होते हैं।
अभी क्या है व्यवस्था?
- फिलहाल जो व्यवस्था है उसके तहत UPSC की त्रिस्तरीय (प्री, मेंस और इंटरव्यू) परीक्षा में कुल प्राप्ताकों के आधार पर सफल अभ्यर्थियों को IAS, IPS, IFS, IRS या अन्य कैडर आवंटित होते हैं।
- इस परीक्षा में चुने जाने के बाद सभी चयनित अभ्यर्थियों को तीन महीने का फाउंडेशन कोर्स कराया जाता है।
- यह कोर्स लाल बहादुर शास्त्री अकादमी तथा अन्य संस्थानों में करना होता है।
- इस फाउंडेशन कोर्स के शुरू होने से पहले ही सभी सफल अभ्यर्थियों का कैडर और सेवा क्षेत्र तय कर दिया जाता है।
- कैडर और सेवा क्षेत्र का यह चयन अभ्यर्थी इस परीक्षा के लिये आवेदन करते समय ही तय करते हैं और अपनी वरीयता के आधार पर इन्हें क्रम देते हैं।
क्या है सरकार का प्रस्ताव?
- प्रधानमंत्री कार्यालय ने जो सुझाव दिया है उसके तहत फाउंडेशन कोर्स के दौरान प्राप्त अंकों के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों को कैडर देने की बात कही जा रही है।
- UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में ज़्यादा अंक लाने या टॉप करने के बावजूद यह निश्चित नहीं होगा कि कोई IAS या IPS बनेगा, बल्कि फाउंडेशन कोर्स में मिले अंकों के आधार पर कैडर दिया जाएगा।
- इसके पीछे सरकार की सोच यह है कि एक बार UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के बाद अभ्यर्थी फाउंडेशन कोर्स यानी ट्रेनिंग को गंभीरता से नहीं लेता।
- यदि फाउंडेशन कोर्स में कोई चयनित अभ्यर्थी असफल भी हो जाए तो उसे पुनः अवसर मिलता है।
- कई बार ऐसे अभ्यर्थी अपनी रैंक सुधारने के लिये फाउंडेशन कोर्स में शामिल ही नहीं होते और इसकी वज़ह से उनकी बौद्धिक और कार्यशीलता की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- अब जो नई व्यवस्था प्रस्तावित की गई है उसमें चयनित अभ्यर्थियों का बेहतर मूल्यांकन हो सकेगा और उनके मुताबिक कैडर तथा सेवा दी जा सकेगी।
प्रस्ताव के पक्ष में तर्क
- यह सवाल पहले भी उठता रहा है कि भारत सरकार की धुरी जैसी भूमिका निभाने वाली इन अति महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिये व्यक्तियों के मूल्यांकन में एक परीक्षा विशेष में एक बार किये गए प्रदर्शन को इतना महत्त्व क्यों दिया जाना चाहिये।
- यह तर्क भी दिया जाता है कि कैडर, सेवा आदि का आवंटन पहले ही हो जाने से फाउंडेशन कोर्स का महत्त्व एक औपचारिकता मात्र रह जाता है।
- इस फाउंडेशन कोर्स का एक अच्छा ढाँचा बनाकर तीन महीने की इस अवधि के दौरान प्रशिक्षु अधिकारियों के व्यक्तित्व के अहम पहलुओं का ज्यादा सटीक मूल्यांकन किया जा सकता है।
- विभिन्न क्षेत्रों में उनका कौशल और कार्यक्षमता देखकर यह जाना जा सकता है कि कौन किस कैडर या सेवा के अनुरूप होगा।
प्रस्ताव के विरोध में तर्क
भाषागत कठिनाई: सरकार के इस प्रस्ताव की आलोचना करने वालों का कहना है कि लंबे समय से चली आ रही इस विश्वसनीय परीक्षा में किसी भी स्तर पर परिवर्तन करने से पहले इसके सभी पहलुओं पर विचार किया जाना बहुत ज़रूरी है। जैसे-चयनित अभ्यर्थियों का फाउंडेशन कोर्स अंग्रेज़ी में होता है। ऐसे में हिंदी या किसी क्षेत्रीय भाषा से चयनित आवेदकों के सामने मुश्किल पेश आ सकती है। उनको IAS या IPS कैडर मिलना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि वे UPSC की परीक्षा अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में देकर सफल हुए होते हैं।
एक अनुमान के अनुसार प्रशिक्षण संस्थान के डायरेक्टर के पद पर बैठे लोगों के पास प्रैक्टिकल के नाम पर कुल 400 नंबर तक देने का अधिकार होता है और इनका UPSC से कोई लेना-देना नहीं होता। UPSC की परीक्षा के लिये जब एक-एक नंबर के लिये मारामारी होती है तो प्रैक्टिकल के नाम पर इतने नंबर कुछ चुने हुए लोगों के पास होना कहीं-न-कहीं पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।
पारदर्शिता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है
इस प्रक्रिया के साथ पक्षपात की एक ठोस आशंका भी जुड़ी है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। प्रीलिम्स, मेन और इंटरव्यू के तीन कठिन स्तरों को पार कर आने वाले चयनित अभ्यर्थियों को यदि मनचाहे कैडर और सेवा के लिये फाउंडेशन कोर्स के दौरान या उसके बाद एक और परीक्षा से गुज़रना पड़े तो हर हाल में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह प्रक्रिया न केवल पूर्व तीनों चरणों जितनी ही पारदर्शी हो, बल्कि हर प्रतिभागी को यह ऐसी दिखाई भी दे।
सरकार की सभी योजनाएँ तथा कार्यक्रम प्रशासनिक अधिकारियों के बल पर ही कामयाब हो पाते हैं। अगर वे अपना कर्त्तव्य निभाने में लापरवाही बरतते हैं तो योजनाएँ चाहे जितनी दूरगामी हों, असफल हो जाती हैं। इसलिये अपेक्षा की जाती है कि प्रशासनिक अधिकारी जनता से निकटता बनाएँ, उसकी ज़रूरतों को समझें और स्थितियों के अनुरूप कदम बढ़ाएँ। बेशक इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ऐसे नीति-निर्माताओं की आवश्यकता है, जो बदलते भारत की ज़रूरतों से वाकिफ हों।
सिविल सेवाओं के लिये चयन का अधिकार संविधान के तहत केवल यूपीएससी को दिया गया है, इसलिये इससे बाहर जाकर नियुक्तियाँ करना लोकतांत्रिक मूल्यों पर तो आघात होगा ही, साथ ही इस परीक्षा से जुड़ी मेरिट आधारित, राजनीतिक रूप से तटस्थ सिविल सेवा के उद्देश्य को भी क्षति पहुँचेगी।
अब सरकार ने जो परिवर्तन प्रस्तावित किये हैं उनके तहत चयन प्रक्रिया को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखना सर्वोपरि होगा, जो हमारे देश में प्रायः देखने को नहीं मिलता।
(टीम दृष्टि इनपुट)
इस मुद्दे पर बनी सुरेंद्र नाथ समिति तथा अलघ समिति ने सिफारिश की थी कि सिविल सेवा में आने के बाद 40 वर्ष की आयु होने पर सभी को यह अवसर दिया जाना चाहिये कि वे किसी क्षेत्र विशेष का चुनाव कर सकें जिसमें उनकी रुचि है। इससे अपनी सेवा के शेष बचे 20 वर्षों में वे दक्षतापूर्वक अपनी सेवाएँ पसंदीदा क्षेत्र में दे सकेंगे।
प्रस्ताव के विरोध में तर्क
- देश में UPSC द्वारा ली जाने वाली इस परीक्षा पर लोगों को विश्वास है और आज तक ऐसा एक भी मौका नहीं आया है, जब किसी ने इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाया हो।
- इस कठिन परीक्षा के तीन चरणों से गुज़रने के बाद सफल अभ्यर्थी को अपनी पसंद की सेवा चुनने का जो अधिकार है, उसे छीना नहीं जाना चाहिये।
- यदि फाउंडेशन कोर्स के बाद चयनित अभ्यर्थियों को कैडर देने की बात मान ली जाती है तो यह सिविल सेवाओं का केंद्रीयकरण करने जैसा होगा और इस प्रतिष्ठित परीक्षा का अवमूल्यन करने वाला भी।
- ऐसा करना स्पष्ट तौर पर संविधान की अनदेखी करना होगा और इससे लोकतंत्र की मूल भावना आहत होगी और इस परीक्षा के प्रति जो सम्मान लोगों के मन में है वह भी कम होगा।
- सुधारों के नाम पर UPSC जैसी प्रतिष्ठित संवैधानिक संस्था द्वारा ली जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में नेताओं की सिफारिशों के आधार पर मनचाही नियुक्तियों को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रत्येक वर्ष कम होती जा रही नियुक्तियों की संख्या और बेरोज़गारी की उच्च दर के मद्देनज़र यह प्रस्ताव असमानता को बढाने वाला और योग्य युवाओं को हतोत्साहित करने वाला होगा।
- तीन महीने का फाउंडेशन कोर्स किसी एक स्थान पर नहीं होता; और अलग-अलग स्थानों पर मिले अंकों का मिलान करने में पक्षपात होने की संभावना हो सकती है।
- भारत की सिविल सेवा एक स्टील फ्रेम की तरह है, जिस पर मौसम अदि का प्रभाव नहीं पड़ता। ठीक इसी प्रकार सिविल सेवाओं पर भी राजनीति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वे जस-की-तस बनी रहती हैं, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो।
अनुच्छेद 320 क्या कहता है?
संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 तक संघ और राज्यों के लिये लोक सेवा आयोग, सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि, लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाना या निलंबित करना, आयोग के सदस्यों की सेवा शर्तों से जुड़े विनियम, लोक सेवा आयोग के कार्य, लोक सेवा आयोग के कार्यों का विस्तार आदि की जानकारी दी गई है।
इनमें से अनुच्छेद 320 में लोक सेवा आयोग के कार्यों का विवरण इस प्रकार दिया गया है:
- संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों का यह कर्त्तव्य होगा कि वे क्रमशः संघ और राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिये परीक्षाओं का संचालन करें।
- यदि संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अधिक राज्य ऐसा करने का अनुरोध करते हैं तो उसका यह भी कर्त्तव्य होगा कि वह ऐसी किन्हीं सेवाओं के लिये, जिनके लिये विशेष अर्हताओं वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, संयुक्त भर्ती की योजनाएँ बनाने और उनका प्रवर्तन करने में उन राज्यों की सहायता करे।
(टीम दृष्टि इनपुट)
लेटरल एंट्री हो सकता है एक बेहतर विकल्प
कुछ कार्य क्षेत्र ऐसे होते हैं जहाँ किसी क्षेत्र विशेष में दक्ष अधिकारियों की आवश्यकता होती है, जैसे-पर्यावरण, विज्ञान या वित्त। ऐसे पदों पर नियुक्ति के लिये पिछ्ले वर्ष सरकार ने कैडर–नियंत्रक प्राधिकरण से सिविल सेवाओं में सचिव स्तर पर लेटरल एंट्री के ज़रिये नियुक्तियों के संदर्भ में प्रस्ताव पत्र तैयार करने को कहा था। इसके तहत सरकार का विचार था कि निजी क्षेत्र के कार्यकारी अधिकारियों को लेटरल एंट्री के ज़रिये विभिन्न विभागों में उपसचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव रैंक के पदों पर नियुक्त किया जाए।
किसी निजी निकाय में वर्षों तक किसी क्षेत्र विशेष में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कार्यकारी प्रमुखों को लेटरल एंट्री के ज़रिये सचिव स्तर के सिविल सेवक का पद देना प्रशासन को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे नीति-निर्माण और प्रभावी प्रशासन के लिये विशेष कौशल और अनुभव प्राप्त लोगों को नियुक्त किया जा सकता है।
लेटरल एंट्री के मुद्दे पर द्वितीय प्रशासनिक आयोग तथा बासवान समिति की रिपोर्ट
- 2005 में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग को सरकार के सभी स्तरों पर देश के लिये एक सक्रिय, प्रतिक्रियाशील, जवाबदेह, संधारणीय और कुशल प्रशासन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सुझाव देने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।
- इस आयोग ने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर लेटरल एंट्री के लिये एक संस्थागत, पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करने की बात कही थी।
इसके अलावा 2016 में गठित बासवान समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि लगभग सभी बड़े राज्यों में IAS अधिकारियों की कमी है और राज्य प्रतिनियुक्ति के तौर पर अधिकारियों को केंद्र में भेजे जाने के भी इच्छुक नहीं हैं। ऐसे में इस कमी को पूरा करने के लिये लेटरल एंट्री पर विचार किया जा सकता है।
निष्कर्ष: सिविल सेवा देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित व सम्मानित सेवा के रूप में जानी जाती है और शायद यही एक कारण है कि रोज़गार के अन्य विकल्पों के बावजूद इस परीक्षा की ओर हाल के वर्षों में इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट पृष्ठभूमि के युवाओं का रुझान बढ़ा है। इसके पीछे इन सेवाओं में मिलने वाला वेतन या अन्य सुविधाएं ही एकमात्र कारण नहीं हैं, बल्कि इस सेवा के ज़रिये नेतृत्व करने, सामाजिक प्रतिष्ठा और देश की सामान्य जनता से सीधे जुड़ने जैसे अवसर भी मिलते हैं।
हर साल UPSC के ज़रिये चुने जा रहे IAS, IPS, IFS और अन्य सेवाओं के हजारों अभ्यर्थियों के लिये उपरोक्त बदलाव (यदि होता है तो) परेशान करने वाला हो सकता है। सरकार जिस कैडर आवंटन पॉलिसी का प्रस्ताव लेकर आई है, उस पर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ का कहना है कि यह कोई बुरा विचार नहीं है, जबकि कुछ का मानना है कि इससे सेवाओं के आवंटन में पक्षपात होगा और भाई-भतीजावाद बढ़ जाएगा। यह भी आशंका जताई जा रही है कि ऐसा करके सरकार अपने पसंदीदा सफल अभ्यर्थियों को अपनी मनपसंद जगह पर तैनात करने का प्रयास कर सकती है, जिससे इस सेवा में राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप होने लगेगा। ऐसे में किसी भी सुधार की ओर कदम बढ़ाने से पहले उसके सभी गुण-दोषों पर विचार कर लेना ज़रूरी है।