ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा उभयलिंगी (transgender) लोगों के संबंध में संसदीय समिति की रिपोर्ट में प्रस्तुत सिफारिशों को अप्रत्याक्षित रूप से त्यागने का निर्णय लिया गया है। ध्यातव्य है कि यह उभयलिंगी समुदाय के अधिकारों से संबद्ध पहला सरकारी दस्तावेज़ है।
प्रमुख बिंदु
- संसद के अगले सत्र में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक (Transgender Persons (Protection of Rights) Bill) को इसके मूल रूप में पुन: प्रस्तुत किया जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि धारा 377 के तहत “उभयलिंगी व्यक्तियों को अपराधीकरण के ज़ोखिम में रखा गया है”।
- इसी बात को ध्यान में रखते हुए उक्त विधेयक के अंतर्गत उनके नागरिक अधिकारों को (चाहे वह विवाह हो अथवा तलाक या गोद लेने जैसे अधिकार) व्यक्तिगत अथवा धर्मनिरपेक्ष कानूनों के तहत शामिल किये जाने की बात कही गई है।
- हालाँकि, अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोपनीयता के अधिकार संबंधी अपने निर्णय में आई.पी.सी. की धारा 377 (इसके अंतर्गत वर्तमान में "प्रकृति के आदेश के खिलाफ" यौन संबंधों को दंडित करने का प्रावधान किया गया है) का गैर – अपराधीकरण करने की आवश्यकता पर दृढ टिप्पणियाँ की गई, यह मामला अब भी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
समिति द्वारा क्या सिफारिशें की गई थीं?
- उक्त समिति की सिफारिशों में उभयलिंगियों को कानूनी मान्यता प्रदान करने तथा धारा 377 के समक्ष उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के अनुरूप बनाने की बात कही गई थी।
- संसदीय समिति द्वारा उभयलिंगियों के लिये आरक्षण, भेदभाव के खिलाफ मज़बूत प्रावधान, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले सरकारी अधिकारियों हेतु दंड का प्रावधान, उन्हें भीख माँगने से रोकने के लिये कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना तथा उनके लिये अलग से सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था करना।
- इसके अतिरिक्त समिति द्वारा अधिकारों और कल्याण से परे यौन पहचान के मुद्दे को भी संबोधित किया गया।
- साथ ही इसके द्वारा इंटरसेक्स भ्रूण (intersex fetuses) होने की स्थिति में गर्भपात के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाही करने तथा इंटरसेक्स शिशुओं (intersex infants) के संबंध में जबरन शल्य कार्य के संदर्भ में भी प्रावधान किये जाने की बात कही गई।
- इसके अतिरिक्त सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस समिति द्वारा विधेयक में निहित अन्य कई शर्तों को फिर से परिभाषित किया गया ।
- हिजड़ा या अरवानी समुदायों द्वारा ट्रांसजेन्डर बच्चों के गोद लेने जैसी वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं की पहचान के लिये इस विधेयक में परिवार को "रक्त, विवाह या गोद लिये गए ट्रांसजेन्डर व्यक्ति से संबंधित लोगों के समूह” के रूप में लेने को परिभाषित किया गया है ।
जनगणना के अनुसार प्रदत्त आँकड़े
- जनगणना 2011 के अनुसार, “अन्य लोग” वर्ग (ऐसे लोग जो न तो स्वयं की पहचान पुरुष के रुप में करते हैं और न ही महिला के रूप में) में शामिल लोगों की संख्या 4.87 लाख बताई गई है, जबकि वर्ष 2011 में एक एन.जी.ओ. साल्वेशन ऑफ़ ओप्रेसेड इनुच्स द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में इनकी संख्या 19 लाख के करीब बताई गई है।
उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2016
- उभयलिंगी व्यक्ति को परिभाषित करना।
- उभयलिंगी व्यक्ति के विरुद्ध विभेद का प्रतिषेध करना।
- ऐसे व्यक्ति को उस रूप में मान्यता देने के लिये उसे अधिकार प्रदत्त करने और स्वत: अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार प्रदत्त करना।
- पहचान पात्र जारी करना।
- यह उपबंध करना कि उभयलिंगी व्यक्ति को किसी भी स्थापन नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों के विषय में विभेद का सामना न करना पड़े।
- प्रत्येक स्थापन में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
- विधेयक के उपबंधों का उल्लंघन करने के संबंध में दंड का प्रावधान सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
उभयलिंगी समुदाय देश में एक ऐसा समुदाय है जो सर्वाधिक हाशिये पर है। इसका कारण यह है कि ये न तो पुरुष और न ही स्त्री किसी भी लिंग के सामान्य प्रवर्गों में फिट नहीं होते हैं। इसके परिणामस्वरूप इन्हें सामाजिक बहिष्कार से भेदभाव, शैक्षिक सुविधाओं की कमी, बेरोज़गार, चिकित्सा सुविधाओं की कमी और इसी प्रकार की अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।