त्रि-भाषा फॉर्मूला
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिक डॉ. कस्तूरीरंगन (Dr. Kasturirangan) की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (Draft National Education Policy), 2019 के मसौदे में त्रि-भाषा के फार्मूले (Three-Language Formula) को अपनाने की सिफारिश की गई है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में प्राथमिक स्तर पर इस फॉर्मूले को अपनाने की सिफारिश की गई है।
त्रि-भाषाई फॉर्मूला
- पहली भाषा: यह मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी।
- दूसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेज़ी होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेज़ी होगी।
- तीसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेज़ी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेज़ी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
त्रि-भाषाई सूत्र की आवश्यकता क्यों है?
- समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भाषा सीखना बच्चे के संज्ञानात्मक विकास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसका प्राथमिक उद्देश्य बहुउद्देश्यीयता (Multilingualism)और राष्ट्रीय सद्भाव (National Harmony) को बढ़ावा देना है।
इसके कार्यान्वयन में आने वाली समस्याएँ
- तमिलनाडु, पुडुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य अपने स्कूलों में हिंदी सिखाने के लिये तैयार नहीं हैं। और न ही किसी हिंदी भाषी राज्य ने अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा को शामिल किया है।
- इतना ही नहीं बल्कि अक्सर राज्य सरकारों के पास त्रि-स्तरीय भाषाई फॉर्मूले को लागू करने के लिये पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं होते हैं। संसाधनों की अपर्याप्तता संभवतः इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है।
संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। अनुच्छेद में कहा गया है कि नागरिकों के किसी भी वर्ग "जिसकी स्वयं की विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है" को उसका संरक्षण करने का अधिकार होगा।"
- अनुच्छेद 343 भारत संघ की आधिकारिक भाषा से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अनुसार, हिंदी देवनागरी लिपि में होनी चाहिये और अंकों के संदर्भ में भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का अनुसरण किया जाना चाहिये। इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान को अपनाए जाने के शुरुआती 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी का आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग जारी रहेगा।
- अनुच्छेद 346 राज्यों और संघ एवं राज्य के बीच संचार हेतु आधिकारिक भाषा के विषय में प्रबंध करता है। अनुच्छेद के अनुसार, उक्त कार्य के लिये "अधिकृत" भाषा का उपयोग किया जाएगा। हालाँकि यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि उनके मध्य संचार की भाषा हिंदी होगी, तो आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 347: किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में एक भाषा को चुनने की शक्ति प्रदान करता है, यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
- अनुच्छेद 350A प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 350B भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। विशेष अधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगी, यह भाषाई अल्पसंख्यकों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा तथा सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपेगा। तत्पश्चात् राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है या उसे संबंधित राज्य/राज्यों की सरकारों को भेज सकता है।
- अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स