गिद्धों की वापसी : एक आशातीत संकेत
चर्चा में क्यों?
भारत एक जैव विविधताओं से परिपूर्ण देश है। जैसा कि हम सभी जानते हैं प्रकृति में सभी जीव एक दूसरे से खाद्य श्रंखला के माध्यम से जुड़े होते हैं। ऐसे में इस खाद्य श्रंखला में से किसी एक का विलुप्त हो जाना, पूरी पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकता है। गिद्ध खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर आता है।
- वर्तमान में भारत में इनकी लगभग 99 फीसदी आबादी समाप्त हो चुकी है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिज़र्व में गिद्धों की बढ़ती संख्या एक सुखद संकेत प्रतीत होती है।
- इस क्षेत्र में गिद्धों की एकाएक बढ़ती संख्या को लेकर वन विभाग बेहद गंभीर एवं सचेत हो गया है। यही कारण है कि वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र में गिद्धों के लिये एक प्रजनन केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है।
गिद्धों की विलुप्ति का कारण क्या है?
- खेतों में फर्टिलाइज़र के अत्यधिक प्रयोग एवं पालतू जानवरों को बीमारियों से बचाने के लिये दी जाने वाली डाईक्लोफेनॉक दवा ने गिद्धों को विलुप्ति की कगार पर पहुँचा दिया है।
- डाईक्लोफेनॉक के पशु चिकित्सा संबंधी प्रयोग के लिये प्रतिबंधित होने के बावजूद इसका दुरूपयोग बड़े पैमाने पर किया गया, जिससे गिद्धों की जनसंख्या पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
- पशुओं के लिये सामान्य तौर पर प्रज्वलनरोधी इस दवा को हाल के वर्षों में गिद्धों की जनसंख्या में तेज़ी से हो रही कमी के लिये ज़िम्मेदार माना जाता है।
- यह दवा पशुओं के लिये नुकसानदेह नहीं होती है, लेकिन यह गिद्धों के लिये घातक साबित होती है, क्योंकि ये सामान्य तौर पर मृत पशुओं के शवों का भोजन करते हैं। इस संबंध में किये गए अध्ययनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस दवाई से गिद्धों की किडनी और लीवर खराब हो जाते हैं।
खाद्य श्रंखला में गिद्धों का होना क्यों ज़रुरी है?
- गिद्ध एक मृतोपजीवी पक्षी है, जिसका पाचनतंत्र काफी मज़बूत होता है, इससे यह रोगाणुओं से परिपूर्ण सड़े-गले माँस को आसानी से पचा पाता है।
- यदि पर्यावरण में गिद्ध न हों तो जंगली पशु-पक्षियों में विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोग फैलने का खतरा काफी बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर खाद्य श्रंखला पर पड़ता है।
- भारत सरकार द्वारा गिद्धों के संरक्षण के लिये एक एक्ससीटू संरक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक भारत में गिद्धों की संख्या में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि दर्ज करना है।
- इसके अंतर्गत गिद्धों के लिये आवश्यक संरक्षित प्रजनन क्षेत्र के साथ-साथ सुरक्षित प्राकृतिक आवास मुहैया कराने जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के संदर्भ में कार्य किया जा रहा है।
- वर्तमान में कई ऐसे प्राकृतिक क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है जहाँ काफी मात्रा में गिद्धों की प्राकृतिक आबादी मौजूद है तथा जहाँ इनकी प्रजनन दर में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।
- ऐसे क्षेत्रों के आस-पास डाईक्लोफेनॉक मुक्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करके इन क्षेत्रों को गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया जा रहा है।
एसिक्लोफेनीक नामक एक नया खतरा
- वर्तमान में पशुओं को बड़े पैमाने पर एसिक्लोफेनॉक नामक दवा दी जा रही है। इस दवा की आणविक संरचना प्रतिबंधित दवा डाईक्लोफेनॉक जैसी ही है।
- डाईक्लोफेनॉक का प्रयोग दर्द निवारक दवा के रूप में किया जाता है। इस दवाई का सेवन करने के बाद मरने वाले पशुओं को खाने से गिद्धों के गुर्दे खराब हो जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
- डाईक्लोफेनॉक दवा के घातक प्रभाव को देखते हुए इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया था।
- एसिक्लोफेनॉक प्रतिबंधित डाईक्लोफेनॉक का ही दूसरा रूप हैं, यह पशुओं के मेटाबॉलिज्म पर डाईक्लोफेनॉक के जैसा ही प्रभाव डालती हैं।
अचानकमार टाइगर रिज़र्व
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत वर्ष 1975 में छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले में अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना की गई। वर्ष 2009 में इसे अचानकमार टाइगर रिज़र्व वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया।
- 551.55 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस वन्यजीव अभ्यारण्य के समीप का अधिकतर भाग पहाड़ी है।
- यह छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध अभयारण्यों में से एक है।
- यह अभयारण्य अचनकमार-अमरकंटक बायोस्फीयर रिज़र्व (Achanakmar-Amarkantak Biosphere Reserve) का ही एक हिस्सा है।
- इस वन्यजीव अभ्यारण्य में तेंदुआ, बंगाल टाइगर, जंगली भैंसें जैसी बहुत सी लुप्तप्राय प्रजातियों के साथ-साथ चीतल (chital), धारीदार लकड़बग्घा (striped hyena), गौर (gaur), सांभर हिरण (sambar), नील गाय (nilgai), भारतीय चार सींग वाला मृग (four-horned antelope) और चिंकारा (chinkara) आदि पाए जाते हैं।
- इस वन्यजीव अभयारण्य के जंगल में साल, साजा, बीजा और बांस के पेड़ पाए जाते हैं।