सोमालिया-केन्या समुद्री विवाद
प्रीलिम्स के लिये:महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग (CLCS) मेन्स के लिये:महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग के कार्य |
चर्चा में क्यों?
COVID-19 महामारी के मद्देनज़र, सोमालिया तथा केन्या के बीच समुद्री सीमा विवाद पर 8 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय' (International Court of Justice- ICJ) में होने वाली सुनवाई स्थगित किये जाने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 महामारी के कारण सोमालिया के दो बड़े मामलों, प्रथम केन्या के साथ समुद्री सीमा विवाद तथा द्वितीय वहाँ होने वाले सामान्य चुनावों को अनिश्चित काल के लिये स्थगित किया जा सकता है।
- विवादित समुद्री क्षेत्र में ऊर्जा की व्यापक संभावना होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी मामले में रूचि ले रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम और नॉर्वे ने सोमालिया के दावे का समर्थन किया है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्राँस ने केन्या के दावे का समर्थन किया है।
समुद्री विवाद का कारण:
- सोमालिया और केन्या के बीच हिंद महासागर में समुद्री सीमा के परिसीमन को लेकर विवाद है। विवाद का मूल कारण दोनों देशों द्वारा महाद्वीपीय शेल्फ के आधार पर सामुद्रिक सीमा का निर्धारण है।
- दोनों देशों के मध्य लगभग 1,00,000 वर्ग किमी. क्षेत्र को लेकर विवाद है। इस क्षेत्र में तेल और गैस के विशाल भंडार मौजूद है।
विवाद समाधान के प्रयास:
- वर्ष 2009 में दोनों देशों द्वारा एक 'समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किया गया। जिसके तहत दोनों देश 'महाद्वीपीय शेल्फ सीमा पर आयोग’ (Commission on the Limits of the Continental Shelf- CLCS) को अलग-अलग दावों की प्रस्तुतियाँ पेश करने पर सहमत हुए। दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि दोनों देश एक-दूसरे के दावों का विरोध नहीं करेंगे।
- दोनों देशों ने CLCS की सिफारिशों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार समझौता खोजने के प्रति भी प्रतिबद्धता जाहिर की है।
- लेकिन वर्ष 2014 में सोमालिया विवाद समाधान के लिये मामले को 'अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय' (ICJ) में ले गया जहाँ अक्तूबर 2019 में ICJ द्वारा मामले में सुनवाई 8 जून, 2020 तक के लिये स्थगित कर दी गई।
महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग (CLCS):
- ‘महाद्वीपीय शेल्फ सीमा पर आयोग’ (CLCS), का कार्य ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के कार्यान्वयन में मदद करना है।
- यह समुद्री आधार रेखा से 200 नॉटिकल मील से आगे के महाद्वीपीय शेल्फ के आधार पर महाद्वीपीय सीमाओं को निर्धारित करने हेतु सिफारिश करता है।
- आयोग में भू विज्ञान, भू भौतिकी, जल विज्ञान आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले 21 सदस्य होते हैं। आयोग के सदस्यों का चुनाव कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों द्वारा किया जाता है। सदस्यों का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि वे विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
महाद्वीपीय शेल्फ और ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’:
- ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone-EEZ) का निर्धारण आधार रेखा से 200 नॉटिकल समुद्री मील तक किया जाता है परंतु महाद्वीपीय शेल्फ की लंबाई इससे अधिक हो तो समुद्री सीमा का निर्धारण महाद्वीपीय शेल्फ के अनुसार किया जाता है।
- EEZ बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।
निष्कर्ष:
- CLCS का कार्य उन तटीय राज्यों द्वारा प्रस्तुत वैज्ञानिक और तकनीकी आँकड़ों पर विचार करना है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ की लंबाई 200 नॉटिकल मील से अधिक होने पर देशों के मध्य समुद्री सीमा को लेकर विवाद है।
- CLCS को समुद्री सीमाओं के परिसीमन करते समय बिना किसी पूर्वाग्रह के कार्य करना चाहिये तथा समुद्री सीमा विवादों में शामिल सभी पक्षों की दलीलों पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिये।