शंघाई सहयोग संगठन
Last Updated: July 2022
SCO के बारे में:
- SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
- यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है।
- इसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी।
- SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ।
- यह चार्टर एक संवैधानिक दस्तावेज है जो संगठन के लक्ष्यों व सिद्धांतों आदि के साथ इसकी संरचना तथा प्रमुख गतिविधियों को रेखांकित करता है।
- रूसी और चीनी SCO की आधिकारिक भाषाएँ हैं।
हालिया घटनाक्रम
- उज्बेकिस्तान में सितंबर 2022 में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में, वाराणसी को 2022-23 हेतु एससीओ क्षेत्र की पहली " पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी" के रूप में चुना गया है।
- भारत वर्ष 2023 में SCO शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
गठन
- वर्ष 2001 में SCO की स्थापना से पूर्व कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के सदस्य थे।
- वर्ष 1996 में ‘शंघाई-5’ का गठन विसैन्यीकरण वार्ता की श्रृंखलाओं से हुआ था, जो चीन के साथ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने सीमाओं पर स्थिरता के लिये किया था।
- वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में प्रवेश के बाद ‘शंघाई-5’ को SCO नाम दिया गया।
- वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला।
सदस्य देश
- SCO के आठ सदस्य देश
- कज़ाखस्तान
- चीन
- किर्गिज़स्तान
- रूस
- तज़िकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
- भारत
- पाकिस्तान
- एससीओ में ईरान और बेलारूस के दो नए सदस्य होने की संभावना है।
पर्यवेक्षक देश
- अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया SCO के पर्यवेक्षक देशों में शामिल हैं।
वार्ता साझेदार देश
- अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका इस संगठन के वार्ता साझेदार देश हैं।
SCO के लक्ष्य
- सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना।
- राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
- शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, इत्यादि में क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाना।
- संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना तथा सुनिश्चिता प्रदान करना।
- एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।
SCO के मार्गदर्शक सिद्धांत
- पारस्परिक विश्वास, आपसी लाभ, समानता, आपसी परामर्श, सांस्कृतिक विविधता के लिए सम्मान तथा सामान्य विकास की अवधारणा पर आधारित आंतरिक नीति।
- गुटनिरपेक्षता, किसी तीसरे देश को लक्ष्य न करना तथा उदार नीति पर आधारित बाह्य नीति।
SCO की संरचना
- राष्ट्र प्रमुखों की परिषद: यह SCO का सर्वोच्च निकाय है जो अन्य राष्ट्रों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अपनी आंतरिक गतिविधियों के माध्यम से तथा बातचीत कर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करती है।
- शासन प्रमुखों की परिषद: SCO के अंतर्गत आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर वार्ता कर निर्णय लेती है तथा संगठन के बजट को मंज़ूरी देती है।
- विदेश मंत्रियों की परिषद: यह दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है।
- क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS.): आतंकवाद, अलगाववाद, पृथकतावाद, उग्रवाद तथा चरमपंथ से निपटने के मामले देखता है।
- शंघाई सहयोग संगठन सचिवालय: यह सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक तथा संगठनात्मक सहायता प्रदान करने हेतु बीजिंग में अवस्थित है।
SCO की प्रमुख गतिविधियाँ
- प्रारंभ में SCO ने मध्य एशिया में आतंकवाद, अलगाववाद तथा उग्रवाद को रोकने हेतु परस्पर अंतर-क्षेत्रीय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया।
- वर्ष 2006 में, वैश्विक वित्त पोषण के स्रोत के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी को शामिल करने हेतु संगठन की कार्यसूची को विस्तार दिया गया।
- वर्ष 2008 में SCO ने अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया।
- लगभग इसी समय SCO ने विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया।
- इससे पहले वर्ष 2003 में अपने भौगोलिक क्षेत्र के भीतर मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना हेतु SCO सदस्य देशों ने बहुपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक सहयोग हेतु 20 वर्ष के कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए।
SCO की विशेषताएँ
- SCO में वैश्विक जनसंख्या का 40%, वैश्विक GDP का लगभग 20% तथा यह यूरेशिया के क्षेत्रफल का 60% है।
- अपने भौगोलिक महत्त्व के चलते SCO एशियाई क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
- अपनी इस विशेषता के कारण SCO मध्य एशिया को नियंत्रित करने तथा क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने में सक्षम है।
- SCO को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के समकक्ष के रूप में भी जाना जाता है।
SCO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- SCO की सुरक्षा चुनौतियों में आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगाववाद का मुकाबला करना; मादक पदार्थों तथा हथियारों की तस्करी को रोकना एवं अवैध आप्रवासन की रोकथाम करना इत्यादि शामिल हैं।
- भौगोलिक रूप से निकटता होते हुए भी संगठन के सदस्यों के इतिहास, पृष्ठभूमि, भाषा, राष्ट्रीय हितों एवं सरकार, संपन्नता व संस्कृति के रूप में समृद्ध विविधता SCO के निर्णयों लेने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बनाते है।
भारत के लिये SCO का महत्त्व
- SCO को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है और इसमें चीन तथा रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। इस संगठन में शामिल होने से भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है।
- भारतीय हितों की जो चुनौतियाँ हैं, चाहे वे आतंकवाद से जुड़ी हों, ऊर्जा की आपूर्ति हो या प्रवासियों का मुद्दा...ये सभी मुद्दे भारत और SCO दोनों के लिए अहम हैं और ऐसे में भारत के इस संगठन से जुड़ने से दोनों को परस्पर लाभ होगा।
- SCO की सदस्यता मिलने के साथ ही अब भारत को एक बड़ा वैश्विक मंच मिल गया है। SCO यूरेशिया का एक ऐसा राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका केंद्र मध्य एशिया और इसका पड़ोस है। ऐसे में इस संगठन की सदस्यता भारत के लिए कई मौके उपलब्ध करवाने वाली साबित हो सकती है।
- चूँकि चीन SCO के माध्यम से क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को पूरा करना चाहता है तो भारत भी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए चीन का सहयोग मांग सकता है, जैसा उसने हाल ही में अज़हर मसूद के मामले में किया और उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाया।
- मध्य एशिया के देश जो प्राकृतिक गैस-तेल भंडार के मामले में धनी हैं, उनके साथ संबंधों को विस्तार देने में SCO भारत के लिए एक अच्छा ज़रिया बन सकता सकता है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और रूस व यूरोप तक व्यापार के ज़मीनी मार्ग खोलने के लिये इस मंच का इस्तेमाल करना चाहिये।
- भारत के लिये SCO की सदस्यता क्षेत्रीय एकीकरण, सीमाओं के पार संपर्क एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान कर सकती है।
- SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) के माध्यम से भारत गुप्त सूचनाएँ साझा करने, कानून प्रवर्तन और सर्वोत्तम प्रथाओं अथवा प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में कार्य कर अपनी आतंकवाद विरोधी क्षमताओं में सुधार कर सकता है।
- SCO के माध्यम से भारत मादक पदार्थों की तस्करी तथा छोटे हथियारों के प्रसार पर भी रोक लगाने का प्रयास कर सकता है।
- आतंकवाद एवं कट्टरतावाद की सामान्य चुनौतियों को लेकर साझा प्रयास किये जा सकते हैं।
- लंबे समय से अटकी हुई तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं पर काम शुरू करने में तथा IPI (ईरान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन को SCO के माध्यम से सहायता मिल सकती है।
- भारत तथा मध्य एशिया के बीच व्यापार में आने वाली प्रमुख बाधाओं को दूर करने के लिये SCO सहायता कर सकता है, क्योंकि यह मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक मार्ग के रूप में कार्य करता है।
- SCO के माध्यम से सदस्य देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करते हुए भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, बैंकिंग, वित्तीय तथा फार्मा उद्योगों हेतु एक विशाल बाज़ार मिल सकता है।
- सावधानी से इस मंच का इस्तेमाल करते हुए भारत अपने इस विस्तारित पड़ोस (मध्य एशिया) में सक्रिय भूमिका निभा सकता है तथा साथ ही यूरेशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने का प्रयास भी कर सकता है।
- सबसे बड़ी बात यह कि SCO भारत को अपने पुराने तथा विश्वसनीय मित्र रूस के साथ अपने चीन और पाकिस्तान जैसे चिर प्रतिद्वंद्वियों के साथ जुड़ने के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है।
SCO में भारत के लिये चुनौतियाँ
पाकिस्तान भी SCO का सदस्य है और वह भारत की राह में दुश्वारियाँ तथा कठिनाइयों का कारण लगातार बनता है। ऐसे में भारत की स्वयं को मुखर तौर पर पेश करने की क्षमता प्रभावित होगी। इसके अलावा चीन एवं रूस के SCO के सह-संस्थापक होने और इसमें इन देशों की प्रभावी भूमिका होने की वज़ह से भारत को अपनी स्थिति मज़बूत बनाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही SCO का रुख परंपरागत रूप से पश्चिम विरोधी है, जिसकी वज़ह से भारत को पश्चिम देशों के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी में संतुलन कायम करना होगा।
SCO के लिये नए मौके और चुनौतियाँ
2001 में अपनी स्थापना के बाद से 2017 में भारत और पाकिस्तान को SCO में शामिल करना इसका पहला विस्तार था। दरअसल, SCO एक नए तरह का क्षेत्रीय संगठन है जो शीतयुद्ध के बाद के काल में सुरक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है। शंघाई विचारधारा द्वारा मार्गदर्शित “आपसी विश्वास, आपसी लाभ, समानता, परामर्श, विभिन्न सभ्यताओं के लिए सम्मान और साझा विकास” की तलाश में SCO एक आदर्श का पालन करता है। इसके तहत खुलेपन को बढ़ावा देते हुए न तो किसी प्रकार संधि की जाती है और न ही किसी देश या क्षेत्र के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी की जाती है। यही कारण है कि इसने सदस्य देशों के बीच एक नए तरह का संबंध और क्षेत्रीय सहयोग स्थापित किया है। इसमें स्थायी शांति और मैत्री, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये सुरक्षा की नई संकल्पनाएँ पेश करना, सहयोग और कूटनीति समाहित है, जो पुरानी हो चुकी शीतयुद्ध की मानसकिता के बिलकुल विपरीत है तथा अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों और प्रथाओं को समृद्ध बनाने वाली है।
SCO का सदस्य बन जाने से यदि भारत और चीन के आपसी तालमेल में बढ़ोतरी होती है तो अमेरिका के वैश्विक दबदबे का सामना करने के लिये यह दोनों ही देशों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करना अमेरिका के लिये आसान नहीं होगा।