सक्षम भारत: प्रोजेक्ट उद्भव | भारतीय सेना भारत की सैन्य विरासत का अन्वेषण कर रही है
प्रिलिम्स के लिये:प्रोजेक्ट उद्भव, भारतीय सेना, यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन (USI), वेद, पुराण और महाकाव्य महाभारत, मौर्य, गुप्त और मराठा, रक्षा और शासन, गुरिल्ला युद्ध रणनीति, सीमा पार आतंकवाद, हाइब्रिड युद्ध, जिनेवा कन्वेंशन और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून। मेन्स के लिये:प्रोजेक्ट उद्भव का उद्देश्य और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय सेना प्रमुख ने 'भारतीय सामरिक संस्कृति में ऐतिहासिक पैटर्न' शीर्षक सम्मेलन में प्रोजेक्ट उद्भव की घोषणा की।
- इस परियोजना के तहत सेना वेदों, पुराणों और महाकाव्य महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित प्राचीन युद्ध रणनीति और रणनीतियों की खोज कर रही है।
प्रोजेक्ट उद्भव क्या है?
- परिचय:
- यह भारतीय सेना और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन (USI) की एक पहल है, जिसका उद्देश्य शासन कला तथा रणनीतिक विचार की समृद्ध भारतीय सैन्य विरासत का पुनः अन्वेषण करना है, जो शासन कला, युद्ध, कूटनीति एवं भव्य रणनीति पर प्राचीन भारतीय ग्रंथों से प्राप्त हुई है।
- उद्भव का उद्देश्य प्राचीन सामरिक ज्ञान को समकालीन सैन्य प्रथाओं में एकीकृत करके सेना को भविष्य के लिये तैयार करना है।
- प्रोजेक्ट उद्भव का प्राथमिक उद्देश्य:
- अंतिम उद्देश्य प्राचीन ज्ञान को आधुनिक सैन्य शिक्षाशास्त्र में एकीकृत करना है, जिससे भारतीय सेना आज के जटिल रणनीतिक परिदृश्य में सदियों पुराने सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम हो सके।
- इसका उद्देश्य मौर्य, गुप्त और मराठों के शासनकाल के दौरान महाभारत महाकाव्य के युद्धों तथा रणनीतिक प्रतिभा का पता लगाना है।
- इसमें स्वदेशी सैन्य प्रणालियों, ऐतिहासिक ग्रंथों, क्षेत्रीय ग्रंथों और राज्यों, विषयगत अध्ययन तथा विस्तृत कौटिल्य अध्ययन सहित विषयों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
- इसका उद्देश्य नागरिक-सैन्य सहयोग को मज़बूत करना तथा प्राचीन भारत की रक्षा और शासन के अध्ययन को व्यापक करना है।
- इसका उद्देश्य प्राचीन रणनीतिक ज्ञान को समकालीन सैन्य प्रथाओं में एकीकृत करके सैन्य बलों को भविष्य के लिये तैयार करना है।
प्रोजेक्ट उद्भव से जुड़े प्राचीन युद्ध कला के सिद्धांत क्या हैं?
- महाभारत और रामायण से रणनीतियाँ:
- चक्रव्यूह संरचना महाभारत में वर्णित एक जटिल सैन्य संरचना है। नेतृत्त्व, वीरता के सिद्धांत और योद्धाओं के लिये आचार संहिता (धर्म) जो प्रोजेक्ट उद्भव के उद्देश्यों को सुविधाजनक बनाते हैं।
- मनोवैज्ञानिक युद्ध, धोखे और कूटनीति तथा जासूसी के उपयोग की अवधारणाएँ।
- लंबे समय तक संघर्ष के दौरान संसाधनों, रसद और आपूर्ति प्रणाली के प्रबंधन के लिये रणनीतियाँ।
- धर्मशास्त्रों से योद्धाओं के लिये आचार संहिता की अंतर्दृष्टि। रामायण से युद्ध की रणनीति, जिसमें विशेष हथियारों और रणनीति का उपयोग शामिल है।
- अर्थशास्त्र के सिद्धांत:
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जासूसी, गुप्त कार्यवाहियाँ और मनोवैज्ञानिक युद्ध की अवधारणाओं पर चर्चा की गई है जो प्रोजेक्ट उद्भव के उद्देश्य को प्रेरित करती है।
- किलेबंदी की रणनीतियाँ, घेराबंदी की रणनीति और विभिन्न प्रकार की सेनाओं (पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी और रथ सेना) का उपयोग।
- कूटनीति, खुफिया जानकारी एकत्र करना और युद्ध का समर्थन करने के लिये आर्थिक नीतियों सहित शासन कला के सिद्धांत।
- वैदिक ग्रंथ के सिद्धांत:
- उपनिषदों में उल्लिखित दार्शनिक संकल्पनाएँ, जैसे कि एकता, अनुशासन और युद्ध में नीतिपरायणता (धर्म) का पालन।
- आत्मानुशासन, मानसिक दृढ़ता और योद्धाओं के लिये आध्यात्मिक मार्गदर्शन के महत्त्व के सिद्धांत।
- इसी प्रकार, तमिल दार्शनिक तिरुवल्लुवर द्वारा रचित शास्त्रीय तमिल ग्रंथ तिरुक्कुरल, युद्ध सहित विभिन्न संदर्भों में नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है। यह समकालीन सैन्य नैतिकता के अनुरूप है, जिसमें न्यायपूर्ण युद्ध जैसे सिद्धांत शामिल हैं।
- लौकिक व्यवस्था संबंधी अवधारणाएँ और युद्ध में दैवीय शक्तियों की भूमिका।
- मराठा सैन्य रणनीति के सिद्धांत:
- मराठा गुरिल्ला युद्ध की रणनीति में पारंगत थे, क्षेत्र की दिशाओं के ज्ञान और त्वरित गति का उपयोग करके वे बड़ी और अधिक संरचित सेनाओं पर प्रभावी हमला करते थे। यह पहलू प्रोजेक्ट उद्भव में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देशज रूप से विकसित सैन्य प्रणालियों और स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के साथ उनके अनुकूलन की जाँच करता है।
प्रोजेक्ट उद्भव में प्राचीन युद्ध कला को शामिल करने की क्या आवश्यकता है?
- वर्तमान एवं आगामी खतरों का सामना:
- भारतीय सेना को विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें सीमा-पार आतंकवाद, हाइब्रिड युद्ध और पड़ोसी देशों के साथ संभावित संघर्ष शामिल हैं।
- अपरंपरागत युद्ध, गुरिल्ला रणनीति और मनोवैज्ञानिक अभियानों से संबंधित प्राचीन युद्ध रणनीति उक्त खतरों तथा विशेष रूप से असममित युद्ध, आतंकवाद-रोधी अभियान एवं शहरी युद्धों का सामना करने के लिये एक प्रभावशाली दृष्टिकोण प्रदान करेगी।
- मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक पहलू:
- प्राचीन ग्रंथों में प्रायः युद्ध के मनोवैज्ञानिक पहलुओं जैसे छल, कूटनीति और मनोबल तथा नेतृत्व के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाता है।
- ये सिद्धांत आधुनिक परिवेश के संघर्षों का सामना करने में मूल्यवान हो सकते हैं, जहाँ मनोवैज्ञानिक संचालन और रणनीतिक संदेश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सांस्कृतिक प्रासंगिकता और मूल ज्ञान:
- वेद, पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथ भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संदर्भ में गहराई से निहित हैं।
- इन स्रोतों के अन्वेषण से युद्ध की रणनीतियों और सिद्धांतों के संबंध में सूचना मिल सकती है जो स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत तथा पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों से संबद्ध हैं।
- अनुकूलनशीलता और नवाचार:
- आधुनिक युद्धनीति निरंतर विकसित हो रही है और विरोधी नित्य नया युद्द कौशल तथा रणनीति विकसित कर रहे हैं। प्राचीन युद्ध सिद्धांतों का अध्ययन करके, भारतीय सेना का लक्ष्य ऐसे अभिनव तरीकों का अन्वेषण करना है जिन्हें समकालीन सैन्य सिद्धांतों में अनुकूलित और एकीकृत किया जा सके, जिससे उन्हें संघर्ष के दौरान लाभ मिल सके।
प्राचीन युद्ध पद्धतियों को क्रियान्वित करने से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- आधुनिक सिद्धांत के साथ एकीकरण:
- प्राचीन सिद्धांतों को मौजूदा आधुनिक सैन्य सिद्धांतों, रणनीतियों और प्रशिक्षण ढाँचों के साथ एकीकृत करना एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है, जिसके लिये संभावित रूप से परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन, अनुकूलन तथा सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता होती है।
- जैसे, सेना में आधुनिक पदानुक्रम और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित नेतृत्व अथवा कमांड प्रणालियों के साथ संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- नैतिक और विधिक पहलू:
- कुछ प्राचीन युद्ध रणनीतियाँ अथवा सिद्धांत आधुनिक परिवेश में नागरिकों, युद्ध बंदियों के साथ व्यवहार अथवा विशेष हथियारों के उपयोग से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विधियों, सम्मेलनों और युद्ध को नियंत्रित करने वाले नैतिक मानदंडों के साथ संरेखित नहीं हो सकते हैं।
- प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कुछ रणनीतियाँ, जैसे कि छल अथवा मनोवैज्ञानिक युद्धनीति का उपयोग, सैन्य अभियानों को नियंत्रित करने वाले आधुनिक कानूनों और नैतिक मानकों के विपरीत हो सकती।
- सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन:
- प्राचीन युद्ध सिद्धांत विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों में विकसित हुए थे, जो समकालीन भारतीय समाज तथा सैन्य संस्कृति में पूर्ण रूप से प्रासंगिक अथवा अनुप्रयोज्य नहीं हो सकते हैं।
- जैसे जाति-आधारित भूमिकाओं अथवा सामाजिक पदानुक्रम पर ज़ोर देने वाले प्राचीन सिद्धांत सशस्त्र बलों में समानता और समावेशिता के आधुनिक सिद्धांतों के साथ संरेखित नहीं हो सकते हैं।
- संदर्भगत अंतर:
- प्राचीन युद्ध आधुनिक युद्ध की तुलना में अलग-अलग हथियारों, रणनीति और तकनीकों के साथ लड़े जाते थे। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांत तथा रणनीतियाँ आधुनिक हथियारों, साइबर युद्ध एवं आधुनिक सैन्य सिद्धांतों से जुड़े समकालीन युद्ध परिदृश्यों पर सीधे लागू नहीं हो सकती हैं।
- प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रथों, हाथियों और तीरंदाज़ी के उपयोग जैसे उदाहरणों की आज के मशीनीकृत तथा तकनीकी रूप से उन्नत युद्ध में सीमित प्रासंगिकता हो सकती है।
- व्याख्या और अनुवाद:
- महाभारत में चक्रव्यूह संरचना का वर्णन प्रतीकात्मक या रूपकात्मक अर्थ रखता है, जिसे व्यावहारिक आधुनिक सैन्य रणनीति में बदलना कठिन हो सकता है।
यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया:
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आगे की राह
- नैतिक और कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करना:
- यह सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत तंत्र स्थापित करना कि कोई भी अनुकूलित प्राचीन सिद्धांत युद्ध को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, सम्मेलनों और नैतिक मानदंडों का अनुपालन करता हो।
- इसमें इन सिद्धांतों के किसी भी संभावित दुरुपयोग या अनैतिक अनुप्रयोग को रोकने के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देश, प्रोटोकॉल और निरीक्षण उपाय विकसित करना शामिल हो सकता है।
- नागरिकों के साथ व्यवहार या कुछ हथियारों के उपयोग से संबंधित सिद्धांतों को जिनेवा सम्मेलनों और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों के साथ सख्ती से संरेखित किया जाना चाहिये।
- एक बहुविषयक टीम का गठन करना:
- सैन्य रणनीतिकारों, इतिहासकारों, भाषाविदों, दार्शनिकों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों तथा मार्शल आर्ट में विशेषज्ञता रखने वाले विद्वानों सहित विशेषज्ञों की एक विविध टीम को एक साथ लाना।
- यह अंतःविषयक दृष्टिकोण प्राचीन सिद्धांतों की व्यापक समझ और सटीक व्याख्या सुनिश्चित करेगा।
- एक समर्पित अनुसंधान केंद्र स्थापित करना:
- भारतीय सेना के अंदर एक समर्पित शोध केंद्र या थिंक टैंक बनाएँ जो प्राचीन भारतीय सैन्य ज्ञान का अध्ययन और विश्लेषण करने पर केंद्रित हो।
- यह केंद्र गहन शोध और विश्लेषण की सुविधा के लिये शैक्षणिक संस्थानों, सांस्कृतिक संगठनों तथा विषय वस्तु विशेषज्ञों के साथ सहयोग कर सकता है। इसमें उन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों की आलोचनात्मक जाँच शामिल होनी चाहिये जिनमें ये ग्रंथ लिखे गए थे, साथ ही उनके शाब्दिक तथा रूपक अर्थों का मूल्यांकन भी शामिल होना चाहिये।
- प्रासंगिक सिद्धांतों एवं रणनीतियों की पहचान कीजिये:
- इसमें नेतृत्व, रणनीति, रसद, मनोवैज्ञानिक युद्ध या रणनीतिक निर्णय लेने से संबंधित अवधारणाएँ शामिल हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, प्राचीन ग्रंथों में वर्णित संसाधन प्रबंधन और आपूर्ति शृंखला रसद के सिद्धांतों को आधुनिक सैन्य रसद प्रणालियों के लिये संभावित अनुकूलन के लिये खोजा जा सकता है।
- सिमुलेशन और युद्ध-खेल अभ्यास आयोजित करना:
- सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सिमुलेशन और युद्ध-खेल अभ्यासों में अनुकूलित प्राचीन सिद्धांतों को शामिल करना। इससे संभावित वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों से पहले सिम्युलेटेड वातावरण में सिद्धांतों के व्यावहारिक परीक्षण, मूल्यांकन और परिशोधन की अनुमति मिलेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) क्या है? (2018) (a) इज़रायल की एक रडार प्रणाली उत्तर: (c) प्रश्न. भारतीय रक्षा के संदर्भ में 'ध्रुव' क्या है? (2008) (a) विमान ले जाने वाला युद्धपोत उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021) प्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (2020) |