किसानों की आय को दोगुना करने में मनरेगा की भूमिका
चर्चा में क्यों?
- किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मनरेगा में किस प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तन किये जाने चाहिये?
प्रमुख बिंदु
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के प्रति वर्तमान सरकार का दृष्टिकोण पिछली सरकार के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण तरह से अलग है। इस सरकार के द्वारा "सामुदायिक" संपत्ति के निर्माण की अपेक्षा "व्यक्तिगत घरेलू" संपत्ति के निर्माण पर अधिक ज़ोर दिया गया है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को स्वेच्छा से मांगने पर 100 दिनों के अकुशल रोज़गार प्रदान करने की गारंटी दी गई है।
- दो वर्षों (2012-13 और 2013-14) में, ‘व्यक्तिगत संपत्तियों का निर्माण’ मनरेगा के तहत किये गए कार्यों की कुल संख्या का पाँचवां हिस्सा था। इसके तहत निर्मित संपत्तियों के कुल मूल्य के संबंध में यह हिस्सा 7 प्रतिशत से भी कम था।
- लेकिन वर्तमान सरकार के अंतर्गत वर्ष 2014-15 से 2016-17 के दौरान व्यक्तिगत संपत्तियों का हिस्सा 38 प्रतिशत और मूल्य के मामले में 15 प्रतिशत औसतन रहा है।
- वित्तीय वर्ष 2016-17 में कुल परिसंपत्तियों (पूर्ण, चालू और स्वीकृत) का लगभग 46 प्रतिशत हिस्सा व्यक्तिगत था और लागत के मामले में इसकी हिस्सेदारी केवल 18 प्रतिशत ही रही है।
- सामुदायिक संपत्ति बड़ी आबादी को कवर करती है और इसलिये इनके निर्माण में अधिक धन की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत संपत्तियों के साथ ऐसा नहीं है- मवेशियों के लिये बनाए जाने वाले शेड की लागत सिर्फ 10,000-15,000 रुपये है, जबकि खेतों में तालाबों या खोदे जाने वाले कुओं को लगभग 2 लाख रुपए में बनाया जा सकता है।
- उपरोक्त आँकड़े, मनरेगा के अंतर्गत व्यक्तिगत परिवार के लिये परिसंपत्ति सृजन को बढ़ावा देते हैं। यह दृष्टिकोण पिछली सरकार के दृष्टिकोण के विपरीत है जो कि मुख्य रूप से सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर केंद्रित थी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 28 फरवरी, 2016 को बरेली (उत्तर प्रदेश) में एक सार्वजनिक बैठक के दौरान 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का एक लक्ष्य बनाया गया था।
- इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में व्यक्तिगत परिसंपत्तियों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- मनरेगा अधिनियम की अनुसूची- I में ए, बी, सी और डी चार श्रेणियों का वर्गीकरण किया गया। चार श्रेणियों में से केवल श्रेणी बी "व्यक्तिगत संपत्ति" से संबंधित है।
- इसके अलावा अनुसूची का पैरा 5, कमज़ोर श्रेणी के परिवारों की पहचान करता है, जिनकी भूमि या घरों में ऐसी व्यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण कार्य किया जा सकता है।
- इनमें अनुसूचित जाति/जनजाति, खानाबदोश और वंचित जनजातियाँ, गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों, महिलाओं और शारीरिक रूप से विकलांग मुखिया वाले परिवारों, तथा भूमि सुधारों के लाभार्थियों, इंदिरा/प्रधानमंत्री आवास योजना और वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आने वाले परिवारों इत्यादि को शामिल किया गया हैं। इनके बाद "छोटे और सीमांत किसान" भी इस सूची में शामिल होने के पात्र है। इस कार्यक्रम में भूमि रहित कृषक परिवारों को भी शामिल किया गया है।
- एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि मनरेगा जैसी योजना का लाभ विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों एवं केवल निजी निवास कृषक परिवारों को व्यक्तिगत स्तर पर घरेलू संपत्ति के निर्माण के माध्यम से अधिक प्राप्त हुआ है।
- 2016-17 के कृषि वर्ष के दौरान किये गए एक अध्ययन में देश के छह ज़िलों उत्तर प्रदेश (मिर्ज़ापुर और श्रावस्ती), राजस्थान (सवाई माधोपुर एवं बांसवाड़ा) और तमिलनाडु (कृष्णागिरि एवं कुड्डालोर) के 240 परिवारों को कवर किया गया।
- नमूनें में छोटे और सीमांत किसानों (92 प्रतिशत) तथा भूमिहीन परिवारों (8 प्रतिशत) को शामिल किया गया।
- सवाई माधोपुर में औसत लाभार्थी परिवार के कुल वार्षिक राजस्व में 35.24 प्रतिशत योगदान मनरेगा के तहत बनाई गई व्यक्तिगत संपत्तियों का पाया गया। वहीं यह बांसवाड़ा में 24.47 प्रतिशत, श्रावस्ती में 61.21 प्रतिशत, मिर्ज़ापुर में 22.27 प्रतिशत, कृष्णागिरि में 37.01 प्रतिशत और कुड्डालोर में 26.51 प्रतिशत था।
- कृषि-मौसम संबंधी परिस्थितियों के आधार पर बनाई गई संपत्तियों के प्रकार व्यक्तिगत स्तर पर अलग-अलग हो सकते हैं। सवाई माधोपुर, बांसवाड़ा (शुष्क भूमि) और मिर्ज़ापुर ज़िलों में व्यक्तिगत संपत्तियों के अंतर्गत बड़े पैमाने पर खेतों में तालाबों, कुओं और अन्य जल संचयन संरचनाओं का निर्माण कार्य किया जाना शामिल था, यहाँ पर पशुओं के शेड का निर्माण नहीं किया गया ।
- जबकि श्रावस्ती में सिंचाई के लिये अलग-अलग बोर कुओं(bore wells) का निर्माण करने के लिये काम किया गया।
- कृष्णागिरि में लाभार्थियों के लिये पशु शेड बनाए गए हैं, जबकि तटीय ज़िले कुड्डालोर में बनाई गई सबसे आम संपत्ति मछली के लिये तलाब थी।
- मनरेगा के माध्यम से व्यक्तिगत परिसंपत्तियों के सृजन का सबसे बड़ा प्रभाव फसली भूमि में वृद्धि होना रहा है। इसके अंतर्गत भूमि को समतल करना, भूमि कटाव को रोकना और बंजर भूमि के विकास आदि कार्यों के द्वारा औसतन 0.53 एकड़ और खेत में खोदे गए तालाब या कीचड़/क्षेत्रीय बांध से औसतन 0.41 एकड़ फसली क्षेत्र को बढ़ावा देने में मदद मिली।
- सिंचाई सुविधाओं के विकास से कृषि पैदावार में वृद्धि विशेष रूप से सब्जियों, तिलहन और कपास की खेती में हुई है।
- मछली के तालाबों और पशु शेडों के निर्माण से लाभार्थी परिवारों की सकल आय में काफी वृद्धि हुई है।
- परिसंपत्ति-वार किये गए लागत-लाभ विश्लेषण अनुपात (cost-benefit analysis) में मछली के तालाबों के लिये अनुपात 0.61, बागवानी के लिये 0.53 (फलों के बगीचे, फूल, पौधे, आदि), सिंचाई (0.34) और पशुधन आश्रयों के लिए अनुपात (0.32) का पता चलता है। भूमि विकास के लिये अनुपात केवल 0.15 था, हालाँकि यह सिंचाई उपलब्धता के द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
- उपर्युक्त परिणामों के अनुसार विकेंद्रीकृत उत्पादन केंद्रित दृष्टिकोण (decentralised production-centric approach) के माध्यम से मनरेगा के तहत व्यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण करके किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
- छोटे और सीमांत किसानों की भूमि पर भूमि विकास कार्यों और सिंचाई संपत्तियों के निर्माण द्वारा वास्तव में फसली क्षेत्र में वृद्धि, उच्च पैदावार और फसल विविधीकरण जैसे तीन लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
- इस कार्यक्रम में भूमिहीन कृषि परिवारों की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। कार्यान्वयन एजेंसियाँ, सक्रिय चयन के जरिये भूमिहीन कृषि परिवारों को भी शामिल कर सकती हैं, जैसा कि कृष्णागिरि ज़िले में किया गया था।
- सभी व्यक्तिगत संपत्तियों को कृषि भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। व्यक्तिगत संपत्तियों का निर्माण व्यक्तिगत घरों पर भी किया जा सकता है। जैसे मवेशियों के शेड या सूअर/बकरी के आश्रय।
- इसके अलावा भूमिहीन परिवारों को सामुदायिक भूमि पर भी परिसंपत्तियाँ प्रदान की जा सकती हैं।
- किसानों की आय के दोगुना करने के लिये भूमि रहित ग्रामीण परिवारों (लगभग 56.4 प्रतिशत) को भी योजना के अंतर्गत शामिल करना आवयश्क है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के रूप में इसकी शुरुआत 2 फरवरी, 2006 को आंध्र प्रदेश से की गई, जबकि यह अधिनियम संसद द्वारा सितम्बर 2005 में ही पारित हो गया था।
- 2 अक्तूबर, 2009 से इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया।
- यह कानून किसी वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वैसे सभी वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल श्रम के लिये तैयार हों,100 दिनों के रोज़गार (सूखा प्रभावित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्रों में 150 दिनों का रोज़गार) की गारंटी प्रदान करता है।
- इस कानून में यह प्रावधान है कि लाभार्थियों में कम-से-कम 33 प्रतिशत महिलाएँ होनी चाहिये।
- इस योजना का क्रियान्वन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है तथा लाभ प्राप्तकर्त्ता इकाई परिवार है।
- यह योज़ना रोज़गार पाने के कानूनी अधिकार के रूप में शुरु की गई है, अतः यह अन्य योज़नाओं से भिन्न है।
- रोज़गार पाने के लिये आवेदन के 15 दिनों के अंदर रोज़गार दिया जाएगा तथा यह रोज़गार श्रमिक के निवास स्थान से 5 किलोमीटर के भीतर उपलब्ध होगा यदि कार्य इससे अधिक दूरी पर उपलब्ध हो तो उसे परिवहन भत्ता भी दिया जाएगा।
- यदि इस समयसीमा के भीतर रोज़गार नही प्रदान किया गया तो आवेदक को बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त होगा।
- मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण अवसंरचना के विकास से संबंधित क्षेत्रों जैसे- जल संभरण, नहरों का निर्माण, गाँवों में सड़क निर्माण, बांध निर्माण, सामुदायिक भवन निर्माण इत्यादि में रोज़गार प्रदान किया जाता है।