जेलों में महिलाएँ : वर्तमान स्थिति, समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने ‘जेलों में महिलाएँ’ विषय पर एक रिपोर्ट जारी की है जिसका उद्देश्‍य महिला बंदियों के विभिन्‍न अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान करना, उनकी समस्‍याओं पर विचार करना और उनका संभव समाधान करना है।

  • इस रिपोर्ट में 134 सिफारिशें की गई हैं, ताकि जेल में बंद महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा सके। गर्भवती तथा जेल में बच्‍चे का जन्‍म, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, कानूनी सहायता, समाज के साथ एकीकरण और उनकी देखभाल ज़िम्‍मेदारियों पर विचार के लिये ये सिफारिशें की गई हैं।
  • रिपेार्ट में राष्‍ट्रीय आदर्श जेल मैन्‍युअल 2016 में विभिन्‍न परिवर्तन किये जाने का सुझाव दिया गया है ताकि इसे अंतर्राष्‍टीय मानकों के अनुरूप बनाया जा सके।

रिपोर्ट की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • रिपोर्ट में महिला बंदियों की अनेक समस्‍याओं को कवर किया गया है और इसमें बुजुर्गों तथा दिव्‍यांग लोगों की आवश्‍यकताओं को भी शामिल किया गया है।
  • रिपोर्ट में न केवल गर्भवती महिलाओं की आवश्‍यकताओं पर बल दिया गया है, बल्कि उन महिलाओं पर भी विचार किया गया है जिन्‍होंने हाल ही में बच्‍चे को जन्‍म दिया है लेकिन उनके बच्‍चे जेल में उनके साथ नहीं हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल में बंद किये जाने से पहले सेवा देखभाल ज़िम्‍मेदारी वाली महिलाओं को अपने बच्‍चों का प्रबंध करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • रिपोर्ट में उन विचाराधीन महिला कैदियों को जमानत देने की सिफारिश की गई है जिन्‍होंने अधिकतम सज़ा का एक-तिहाई समय जेल में बिताया है।
  • ऐसा कानूनी प्रक्रिया संहिता के अनुच्‍छेद 436 ए में आवश्‍यक परिवर्तन करके किया जा सकता है। इस अनुच्‍छेद में अधिकतम सज़ा की आधी अवधि पूरी करने पर रिहाई का प्रावधान है।
  • प्रसव पश्‍चात् के चरणों में महिलाओं की आवश्‍यकताओं पर विचार करते हुए रिपोर्ट में नवजात शिशु के जन्‍म के बाद माताओं के लिये पृथक आवासीय व्‍यवस्‍था की सिफारिश की गई है, ताकि साफ-सफाई का ध्‍यान रखा जा सके और नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके।
  • कानूनी सहायता को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी विचार-विमर्श गोपनीयता के साथ और बिना सेंसर के किया जाना चाहिये।
  • ऐसी महिलाओं का समाज में फिर से एकीकरण एक गंभीर समस्‍या है क्‍योंकि जेल में बंद होने से महिलाओं पर धब्‍बा लगता है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के एक अध्‍ययन में पाया गया है कि जेल में बंद महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा छोड़ दिया जाता है।
  • रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि जेल अधिकारी स्‍थानीय पुलिस के साथ समन्वय कर यह सुनिश्चित करें, कि महिला बंदी को रिहाई के बाद प्रताड़ित न होना पड़े। बंदी महिलाओं को मताधिकार देने की सिफारिश भी की गई है।
  • जेलों में शिकायत समाधान व्‍यवस्‍था अपर्याप्‍त है और इस व्‍यवस्‍था के दुरुपयोग और बदले की भावना से काम करने की गुंजाइश बनी हुई है। इस तरह एक मज़बूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाने की आवश्‍यकता महसूस की गई।
  • बंदी महिलायों की मानसिक स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए रिपेार्ट में सिफारिश की गई है कि कम-से-कम साप्‍ताहिक आधार पर बंदियों का संपर्क महिला काउंसिलरों और महिला मनोवैज्ञानिकों से हो सके।
  • यह सामान्‍य रूप से ज्ञात है कि जेल में बंद महिलाओं को पुरूष बंदियों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्‍योंकि जेल में बंद किये जाने से उन पर सामाजिक धब्‍बा लगता है। साथ ही बंदी महिला वित्‍तीय रूप से अपने परिवार और पति पर निर्भर रहती है। ऐसे में जब बंदी महिलाओं के बच्‍चे होते हैं तो कठिनाईयाँ और भी बढ़ जाती हैं ।
  • इस रिपोर्ट को गृह मंत्रालय के साथ साझा किया जाएगा ताकि गृह मंत्रालय रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने के लिये राज्‍य को परामर्श दे सके। 

रिपोर्ट के बारे में महिला और बाल विकास मंत्रालय का विचार है कि इस पहल से बंदी महिलाओं के प्रति जेल प्रशासन की धारणा बदलेगी।

महिला और बाल विकास मंत्रालय

  • महिला एवं बाल विकास विभाग की स्‍थापना वर्ष 1985 में महिलाओं एवं बच्‍चों के समग्र विकास हेतु अत्‍यधिक अपेक्षित प्रोत्‍साहन प्रदान करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक भाग के रूप में की गई थी। इस विभाग को 30 जनवरी, 2006 से मंत्रालय के रूप में स्‍तरोन्‍नत कर दिया गया है।

विज़न

  • हिंसा से मुक्त वातावरण में सम्मान के साथ रह रहीं तथा देश के विकास में पुरुषों के समान भागीदारी निभा रहीं सशक्त महिलाएँ और सुसंपोषित बच्चे, जिन्हें शोषण-मुक्त वातावरण में विकास एवं वृद्धि के सभी अवसर प्राप्त हों।

मिशन

  • विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित नीतियों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं के विकास संबंधी सरोकारों को मुख्यधारा में जोड़कर, महिला अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा महिलाओं के संपूर्ण विकास हेतु उन्हें संस्थागत एवं कानूनी समर्थन प्रदान कर उनके सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना।

नीतिगत पहल

  • बच्‍चों के समग्र विकास के लिये मंत्रालय द्वारा अनुपूरक पोषण, प्रतिरक्षण, स्‍वास्‍थ्‍य जाँच, रेफरल सेवाओं तथा स्‍कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा को शामिल करके सेवाओं का पैकेज उपलब्‍ध कराते हुए समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) नामक विश्‍व का सबसे बड़ा तथा अद्वितीय आउटरीच कार्यक्रम क्रियान्‍वित किया जा रहा है।
  • मंत्रालय ‘स्‍वयंसिद्धा’ का भी क्रियान्‍वन कर रहा है जो महिलाओं के सशक्‍तीकरण के लिये एक समेकित स्‍कीम है। इसके माध्यम से विभिन्‍न क्षेत्रीय कार्यक्रमों का कारगर समन्‍वयन तथा प्रबंधन किया जा रहा है।
  • मंत्रालय के अधिकांश कार्यक्रम गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित किये जाते हैं। इस प्रकार गैर-सरकारी संगठनों की अधिक कारगर भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास किये जाते है।
  • मंत्रालय द्वारा हाल ही में आरंभ की गई प्रमुख नीतिगत पहलों में आईसीडीएस तथा किशोरी शक्‍ति योजना का सर्वसुलभीकरण, किशोरियों के लिये पोषण कार्यक्रम शुरू करना, बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्‍थापना तथा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम को अधिनियमित करना शामिल है।

मंत्रालय को आवंटित विषय

  • परिवार कल्‍याण।
  • महिला और बाल कल्‍याण तथा इस विषय के संबंध में अन्‍य मंत्रालयों एवं संगठनों के कार्यकलापों का समन्‍वयन।
  • महिलाओं और बच्‍चों के अनैतिक व्‍यापार के संबंध में संलग्न संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के संगठनों से संदर्भ में।
  • प्राथमिक पूर्व शिक्षा सहित स्‍कूल पूर्व बच्‍चों की देख0रेख।
  • राष्‍ट्रीय पोषण नीति, राष्‍ट्रीय पोषण कार्य-योजना तथा राष्‍ट्रीय पोषण मिशन।
  • इस मंत्रालय को आवंटित विषयों से संबंधित धर्मार्थ तथा धार्मिक अक्षय निधियाँ।
  • मंत्रालय को आवंटित विषयों से संबंधित स्‍वैच्‍छिक प्रयासों का संवर्द्धन तथा विकास।