RBI खरीदेगा सरकारी प्रतिभूतियाँ
संदर्भ
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने टिकाऊ लिक्विडिटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये खुले बाज़ार परिचालन (OMO) के तहत 120 बिलियन डॉलर की सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदने की घोषणा की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा खुले बाज़ार परिचालन (OMO) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदना व्यवस्था में लिक्विडिटी को बढ़ावा देगा।
- भारत में लिक्विडिटी की स्थिति आमतौर पर वित्तीय वर्ष (मध्य अक्तूबर के बाद) के दूसरे छमाही के दौरान मज़बूत हो जाती है।
- लिक्विडिटी आवश्यकताएँ दो प्रकार की होती हैं- अस्थायी और टिकाऊ।
♦ परिसंपत्तियों और देनदारियों के बीच अस्थायी विसंगतियों से अल्प-कालिक या अस्थायी लिक्विडिटी उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये बैंक मुद्रा बाजार का इस्तेमाल करते हैं।
♦ एक साल की अवधि में कुल विदेशी संपत्तियों और शुद्ध घरेलू परिसंपत्तियों की संवृद्धि को व्यवस्थित करते हुए दीर्घकालिक या टिकाऊ लिक्विडिटी की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।
- ये प्रस्ताव भारतीय रिज़र्व बैंक के कोर बैंकिंग समाधान (ई-कुबेर) प्रणाली पर इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में प्रस्तुत किये जाएंगे।
सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Sec)
- सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Sec) वे सर्वोच्च प्रतिभूतियाँ हैं जो भारत सरकार की ओर से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा केंद्र/राज्य सरकार के बाज़ार उधार प्रोग्राम के एक भाग के रूप में नीलाम की जाती हैं।
- सरकारी प्रतिभूतियों की एक निश्चित या अस्थायी कूपन दर हो सकती है। इन प्रतिभूतियों की गणना बैंकों द्वारा SLR बनाए रखने के लिये की जाती है।
- यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेजरी बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
- भारत में, केंद्र सरकार ट्रेजरी बिल और बॉन्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है।
ई-कुबेर
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