सेंटिनली जनजाति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India- ANSI) द्वारा जारी नीति दस्तावेज़ में चेतावनी दी गई है कि वाणिज्यिक गतिविधियों के कारण सेंटिनली जनजाति (Sentinelese Tribe) के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- ANSI द्वारा इस नीति दस्तावेज को सेंटिनल जनजातियों द्वारा उत्तरी सेंटिलन द्वीप पर एक अमेरिकी नागरिक को मार दिये जाने के लगभग दो वर्ष बाद जारी किया गया है।
प्रमुख बिंदु
ANSI के दिशा-निर्देश:
- अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप (North Sentinel Island) का उपयोग वाणिज्यिक और सामरिक लाभ प्राप्त करने के कारण यह के मूल निवासियों और सेंटिनल जनजाति पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।
- इस द्वीप पर लोगों का अधिकार अपरक्राम्य, अभेद्य और अविस्मरणीय है। राज्य का कर्त्तव्य है कि लोगों के इन अधिकारों को शाश्वत और पवित्र मानते हुए वह इनका संरक्षण करे।
- उनके द्वीप को किसी भी वाणिज्यिक या रणनीतिक लाभ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
- इस दस्तावेज़ में सेंटिनल जनजाति पर एक ज्ञान बैंक के निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
- चूँकि ‘ऑन-द-स्पॉट स्टडी’ आदिवासी समुदाय के लिये संभव नहीं है। मानवविज्ञानी ऐसी स्थिति में दूर से ही ‘एक संस्कृति के अध्ययन’ का सुझाव देते हैं।
सेंटिनली जनजाति के बारे में:
- ये लोग अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर रहनी वाली निग्रिटो (अश्वेत तथा छोटे कद वाले) समुदाय के लोग हैं।
- वे बाहरी दुनिया से बिना किसी संपर्क के पूरी तरह से अलग-थलग हैं। लेकिन वर्ष 1991 में इस जनजातीय समुदाय द्वारा भारतीय मानव विज्ञानविदों और प्रशासकों की एक टीम से कुछ नारियल स्वीकार किये थे।
- सेंटिनली से किसी प्रकार का संपर्क नहीं होने के कारण दूर से ही इनकी तस्वीर लेकर जनगणना की जाती है।
- इनकी आबादी उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर लगभग 50 से 100 के बीच है।
- उत्तरी सेंटिनल द्वीप के सर्वेक्षणों में कृषि करने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। इसके अलावा यह समुदाय समूहों में शिकार करने वाला, मछली पकड़कर भोजन प्राप्त करने वाला और द्वीप पर रहने वाले जंगली पौधों को इकट्ठा करने वाला प्रतीत होता है।
- सेंटिनली को भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की ग्रेट अंडमानी, ओंग, जारवा और शोम्पेन PVTG के रूप में सूचीबद्ध अन्य चार जनजातियाँ हैं।
- इन सभी को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, 1956 द्वारा संरक्षण प्राप्त है।
- यह विनियमन जनजातियों के कब्ज़े वाले पारंपरिक क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करता है और अधिकारियों के अलावा अन्य सभी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है।
- जनजाति सदस्यों की फोटो लेना या उन पर किसी भी प्रकार के फिल्मांकन का कार्य करना एक अपराध है।
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण
- भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के अधीन एक अग्रणी अनुसंधान संगठन है जो भौतिक मानवशास्त्र तथा सांस्कृतिक मानवशास्त्र के क्षेत्र में कार्यरत है।
- इस संगठन को वर्ष 1945 में स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है। इसके अलावा जगदलपुर और रांची में दो क्षेत्रीय स्टेशन तथा पोर्ट ब्लेयर, शिलांग, देहरादून, उदयपुर, नागपुर और मैसूर में शाखाएँ अवस्थित हैं।
- इसे मानव विज्ञान और इससे संबद्ध विषयों में अनुसंधान तथा प्रशिक्षण के लिये सबसे उन्नत केंद्रों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- उद्देश्य:
- भारत की जनसंख्या में जैविक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण जनजातियों और अन्य समुदायों का अध्ययन करना।
- आधुनिक और पुरातात्त्विक तरीकों से मानव कंकाल अवशेषों का अध्ययन तथा संरक्षण करना।
- भारतीय जनजातियों के कला और शिल्प के नमूने एकत्रित करना।
- जनजातीय मेघावी छात्रों के लिये मानव विज्ञान और इसके प्रशासन हेतु एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करना।
- शोध परिणामों को प्रकाशित करना।
आगे की राह
- शिक्षाविदों के अनुसार, इन समुदायों के लिये "शून्य संपर्क" के स्थान पर "नियंत्रित संपर्क" की नीति को स्वीकार किया जाना चाहिये।
- इनके मध्य किसी बीमारी के संचरण को रोकने हेतु प्रबंधित संपर्क और यदि आवश्यक हो तो सहायता तथा चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराकर जनजातीय समुदायों के मध्य विश्वास प्राप्त किया जा सकता है।
- यदि ये बाहरी दुनिया के साथ संपर्क स्थापित करते हैं तो इससे सरकार को इनके जीवन के तरीके को उन्नत करने, इनके संस्कृति तथा समग्र विकास को संरक्षित करने में मदद मिल सकती है।