गंगा नदी में प्रदूषण की स्थिति
प्रीलिम्स के लिये:बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, घुलित ऑक्सीजन, रासायनिक ऑक्सीजन मांग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:गंगा नदी में जल प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में लॉकडाउन से वायु प्रदूषण में कमी आई है किंतु कुछ जगहों पर गंगा नदी में जल प्रदूषण का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है।
प्रमुख बिंदु:
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, 22 मार्च से 15 अप्रैल के बीच गंगा नदी में घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO) की मात्रा में मामूली सुधार हुआ है।
- गंगा नदी में ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ (Biological Oxygen Demand-BOD) तथा केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Chemical Oxygen Demand-COD) दोनों की मात्रा में कमी आई है।
- गौरतलब है कि COD तथा BOD की मात्रा में कमी आना जल प्रदूषण को कम करने के लिहाज से अच्छे संकेत हैं।
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश की नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं।
- ध्यातव्य है कि 23 हज़ार करोड़ की लागत से 11 स्थानों पर अपशिष्ट जल को साफ करने के संयंत्र लगे हुए हैं किंतु नदी की सफाई में उल्लेखनीय वृद्धि अभी तक दृष्टिगोचर नहीं है।
- हालाँकि रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी में जल की गुणवत्ता तथा DO, BOD और COD में काफी सुधार हुआ है।
- गंगा नदी में जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत नदी के समीप 97 शहर और औद्योगिक क्षेत्र स्थित हैं। इन क्षेत्रों से प्रति दिन नाले के माध्यम से गंगा में 3500 ML/D (मिलियन लीटर प्रति दिन) अपशिष्ट जल प्रवाहित होता है जिसमें 1100 MLD रसायनिक प्रक्रिया से साफ कर, जबकि 2400 MLD जल को बिना किसी उपचार के नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
- गंगा नदी में प्रवाहित औद्योगिक अपशिष्ट जल की मात्रा 300MLD है जो नदी में प्रवाहित कुल अपशिष्ट जल का 9% है।
BOD तथा COD की स्थिति:
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी के डाउनस्ट्रीम (Downstream) की दिशा में BOD की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। पश्चिम बंगाल में BOD की मात्रा अत्यधिक है। जहाँ कुछ स्थानों पर COD की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है वहीं कुछ स्थानों पर इसकी मात्रा में मामूली कमी आई है।
- उल्लेखनीय है कि औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से COD की मात्रा में कमी आई है।
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biological Oxygen Demand-BOD):
- ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, वह BOD कहलाती है।
- जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है। परंतु BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है साथ ही यह बहुत लंबी प्रक्रिया है। इसलिये BOD को प्रदूषण मापन में प्रयोग नहीं किया जाता है।
- गौरतलब है कि उच्च स्तर के BOD का मतलब पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा को विघटित करने हेतु अत्यधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO):
- यह जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन के लिये आवश्यक होती है।
- जब जल में DO की मात्रा 8.0mg/l से कम हो जाती है तो ऐसे जल को संदूषित (Contaminated) कहा जाता है। जब यह मात्रा 4.0 mg/l से कम हो जाती है तो इसे अत्यधिक प्रदूषित (Highly Polluted) कहा जाता है।
रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Chemical Oxygen Demand-COD):
- यह जल में ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थो (घुलनशील अथवा अघुलनशील) के ऑक्सीकरण के लिये आवश्यक होती है। यह जल प्रदूषण के मापन के लिये बेहतर विकल्प है।
जल की गुणवत्ता के समक्ष चुनौतियाँ:
- कृषि की गहनता (Intensification of Agriculture) का प्रभाव
- भूमि उपयोग में परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक परिवर्तनशील वर्षा पैटर्न
- देशों के विकास के कारण बढ़ता औद्योगीकरण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
(Central Pollution Control Board-CPCB):
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
- इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।
आगे की राह:
- जल गुणवत्ता की चुनौती से निपटने के लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि जल गुणवत्ता से संबंधित नीति निर्माण में सुधार किया जाए। जलभराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिये। जल तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम केवल सरकार पर न छोड़कर इसमें प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सहयोग करना चाहिये।