लॉकडाउन के दौरान अवैध शिकार में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया ,वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:लॉकडाउन के दौरान अवैध शिकार में वृद्धि से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान वन्यजीवों के शिकार में वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया के ‘ट्रैफिक’ (TRAFFIC) प्रभाग द्वारा यह अध्ययन किया गया है। ‘ट्रैफिक’ एक वन्यजीव तस्करी निगरानी नेटवर्क है जो वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया के कार्यक्रम प्रभाग के रूप में कार्य करता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन अवधि के दौरान वन्यजीवों के अवैध शिकार में दोगुने से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वन्यजीवों का अवैध शिकार भोजन और स्थानीय बाज़ारों में बिक्री हेतु किया गया है।
- लॉकडाउन के दौरान (23 मार्च-3 मई) वन्यजीवों के शिकार की संख्या बढ़कर 88 हो गई है, जबकि लॉकडाउन से पूर्व (10 फरवरी-22 मार्च) यह संख्या 35 थी।
- लॉकडाउन के दौरान कुल 9 तेंदुओं का शिकार किया गया है, जबकि लॉकडाउन से पहले यह संख्या 4 थी।
- रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा लगातार प्रयासों के बावजूद लॉकडाउन अवधि के दौरान वन्यजीव अत्यधिक खतरे में है।
- लॉकडाउन से पहले अंग्युलेट (Ungulate) के शिकार की संख्या 8 (35 में से) थी, जो लॉकडाउन के बाद बढ़कर 39 (88 में से) हो गई है। दूसरे शब्दों में कहे तो लॉकडाउन से पूर्व इन वन्यजीवों का 22% था, जबकि लॉकडाउन के बाद यह आँकड़ा 44% तक पहुँच गया।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कुल 222 लोगों को अवैध शिकार के मामलों में गिरफ्तार किया गया, जबकि लॉकडाउन के पहले 85 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
- लॉकडाउन अवधि के दौरान कछुओं की अवैध तस्करी के मामले कम आए है साथ ही इससे संबंधित कोई गिरफ्तारी भी नहीं हुई है।
- राजस्थान में विलुप्त होने के कगार पर खड़े चिंकारा जैसे वन्यजीवों के अवैध शिकार की सूचना मिली है। चिंकारा जैसे अन्य वन्यजीव ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के तहत संरक्षित हैं।
छोटे वन्यजीवों का शिकार:
- छोटे वन्यजीवों जैसे खरगोश, साही, पंगोलीन, बंदर, छोटी जंगली बिल्लियाँ, इत्यादि के भी अवैध शिकार में वृद्धि दर्ज की गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में छोटे वन्यजीवों की उच्च मांग रहती है लेकिन वर्तमान समय (लॉकडाउन के दौरान) में स्थानीय बाज़ारों में इनके मांस की आपूर्ति की गई है।
- लॉकडाउन से पूर्व इनके शिकार का प्रतिशत 17% था, जबकि लॉकडाउन के बाद यह आँकड़ा 25% तक पहुँच गया।
- रिपोर्ट के अनुसार, अगर इसी तरह छोटे वन्यजीवों का शिकार किया जाता रहा तो बाघ, शेर और तेंदुए जैसे वन्यजीवों को एक गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिये उचित नहीं है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
[The wildlife (Protection) Act,1972]:
- वर्ष 1972 में स्टॉकहोम कांफ्रेंस के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सरकार ने देश के वन्यजीवों की प्रभावी ढंग से रक्षा हेतु तस्करी, अवैध शिकार व वन्यजीव और वनोत्पादों के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को अधिनियमित किया।
- जनवरी 2003 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया और इसका नाम भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 2002 रखा गया इसके अंतर्गत दंड तथा ज़ुर्माने के प्रावधान को कठोर कर दिया गया।
- यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम भारत में लागू है।
- इस कानून में राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड, जंगली पशुओं और पक्षियों के शिकार पर नियंत्रण, वन्यजीवों से समृद्ध अभ्याराणों एवं राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना, जंगली पशुओं के व्यापार पर नियंत्रण, पशु उत्पादों पर कानून व कानून के उलंघन पर कानूनी सज़ा का प्रावधान है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India) |
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आगे की राह:
- वन्यजीवों के संरक्षण हेतु देश में निर्मित सख्त कानूनों के बावजूद इनके शिकार को रोक पाना अभी भी संभव नहीं हुआ है।
- इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सरकारी एजेंसियों को जवाबदेह बनाए जाने के साथ ही भारत के प्रत्येक नागरिकों की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे वन्यजीवों को किसी तरह का नुकसान न पहुँचाए। देश में वन्यजीवों के संरक्षण हेतु लागू नियम के बारे में लोगों को जागरूक करने की भी अवश्यकता है।