देश देशांतर : फोन टैपिंग और प्राइवेसी
संदर्भ
देश में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के कथित फोन टैपिंग के एक मामले में गृह मंत्रालय ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि देश की संप्रभुता औऱ अखंडता के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ (Law Enforcement Agencies) फोन टेप करती हैं।
- फोन टैपिंग का यह कोई पहला मामला नही है, इससे पहले भी देश में कई बार इसे लेकर विवाद होता रहा है तथा नियमों और इसके उद्देश्य को लेकर बहस भी होती रही है।
- कुछ लोग इसे निजता का हनन मानते हैं तो कुछ लोग फोन टैपिंग के कानून और दिशा-निर्देशों की मंशा पर ही सवाल खड़े करते रहे हैं। हालाँकि इंडियन टेलीग्राफ संशोधन नियम, 2007 केंद्र और राज्य सरकारों को फोन टैपिंग कराने का अधिकार देता है।
- अगर किसी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी को लगता है कि जन सुरक्षा या राष्ट्रीय हित में फोन टैप करने की ज़रूरत है तो उस हालात में फोन कॉल रिकॉर्ड की जा सकती है।
पृष्ठभूमि
- हमारे देश में फोन टैपिंग का भी एक इतिहास है। अंग्रेज़ों के जमाने से चले आ रहे 1885 के टेलीग्राफ कानून की नज़र में फोन टैपिंग पूरी तरीके से अवैध कार्यकलाप नहीं है।
- चूँकि एक अरसे से इस कानून में कोई संशोधन नहीं हुआ है। इसलिये कुछ साल पहले इस बाबत दिशा-निर्देश भी जारी किये गए थे।
- इसके तहत यह व्यवस्था की गई थी कि टेलीफोन टैपिंग के लिये केंद्र या राज्य सरकार के गृह सचिव स्तर के अधिकारी से पूर्वानुमति लेनी ज़रूरी होगी।
- यह अनुमति केवल 60 दिनों के लिये वैध होती है। इस अवधि को विषेष परिस्थितियों में 180 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
फोन टैपिंग क्या है?
- फोन टैपिंग का मतलब है गुप्त रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिये किसी संचार चैनल (विशेष रूप से टेलीफोन) को सुनना या रिकॉर्ड करना। इसे कुछ देशों (मुख्य रूप से यूएसए में) ‘वायर-टैपिंग’ (Wiretapping) या अवरोधन (Interception) के रूप में भी जाना जाता है।
- यह केवल अधिकृत तरीके से संबंधित विभाग से अनुमति लेकर ही किया जा सकता है।
- यदि अनधिकृत तरीके से किया जाता है तो यह अवैध है और इससे गोपनीयता भंग होने के लिये ज़िम्मेदार व्यक्ति पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।
फ़ोन टैपिंग पर कानूनी प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, ‘किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।‘
- अभिव्यक्ति 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' (Personal Liberty) में 'निजता का अधिकार' (Right to Privacy) शामिल है।
- एक नागरिक को व्यक्तिगत निजता के अलावा अपने परिवार, शिक्षा, विवाह, मातृत्व, बच्चे और वंश वृद्धि आदि के संबंध में गोपनीयता का अधिकार है।
- मानवाधिकारों की भी मान्यता है कि व्यक्ति को उसकी निजता में घुसपैठ से बचाना ज़रूरी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने अनेक निर्णयों में भी स्पष्ट रूप से कहा है कि निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता और यदि ऐसा करना आवश्यक हो जाए तो उसे संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नियमों का पालन करते हुए ही किया जा सकता है।
- इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई है। इसमें भी कुछ प्रतिबंध लगाने हैं तो उसे अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया है लोक हित तथा राज्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तथा इस संदर्भ में अन्य कानूनों के अंतर्गत नियम बनाए जा सकते हैं।
- इन्हीं प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, 1885 में संशोधन कर धारा 5 (2) का प्रावधान किया गया है ताकि राज्य की सुरक्षा तथा लोक हित में आवश्यकता पड़ने पर टेलीफोन इंटरसेप्ट (टेप) किया जा सके।
क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है?
- टेलीफोन टैपिंग का कार्य निजता के अधिकार के साथ-साथ वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी प्रभावित करता है। ये दोनों ही संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार हैं।
- फ़ोन टैपिंग के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गईं और कहा गया कि यह बिना किसी उचित कारण के भी किया जाता है।
- इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में PUCL बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के केस में कुछ दिशा-निर्देश तय किये तथा इन निर्देशों के अनुपालन में सरकार ने एक कमेटी बनाई और राज्यों में भी इस तरह की कमेटियाँ बनाई गईं।
- सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसी व्यक्ति के टेलीफोन टैपिंग के संबंध में उस राज्य के गृह सचिव की अनुमति लेना अनिवार्य होगा तथा टैपिंग करने वाली एजेंसी को टैपिंग का कारण स्पष्ट करना होगा।
- इसके अतिरिक्त टैपिंग के बाद उसे कितने समय तक रखा जाएगा तथा किस उद्देश्य के लिये इसका प्रयोग किया जाएगा, से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
- समस्या तब आती है जब निजी टेलीफोन कंपनियाँ प्रक्रिया का पालन किये बिना इसका दुरुपयोग करती हैं तथा प्रक्रिया के प्रवर्तन की दिक्कत इसलिये आती है क्योंकि फ़ोन टैपिंग किये जाने वाले व्यक्ति को खुद पता नहीं होता कि उसका फ़ोन टेप या उसकी बातचीत रिकॉर्ड हो रही है या उसका दुरुपयोग हो रहा है।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों को भारतीय टेलीग्राफिक अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) के तहत टेलीफोन को बाधित (Intercept) करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
- ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब एक जाँच प्राधिकारी/एजेंसी को उस व्यक्ति के फोन वार्तालाप को रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होती है जो संदेह के घेरे में होता है।
- इस तरह के कार्य करने से पहले ऐसे अधिकारियों को गृह मंत्रालय की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
- निजता का अधिकार राष्ट्र हित और राष्ट्र सुरक्षा से ऊपर नहीं है। किसी भी कानून, हथियार, उपकरण का दुरुपयोग होना अवश्यंभावी है।
उपचार (remedies)
- गैर-कानूनी तरीके से फ़ोन टैपिंग निजता के अधिकार का उल्लंघन है और पीड़ित व्यक्ति मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कर सकता है।
- कोई भी व्यक्ति अवैध रूप से फोन टैपिंग की जानकारी होने पर निकटतम पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है।
- इसके अलावा, पीड़ित व्यक्ति भारतीय टेलीग्राफिक अधिनियम की धारा 26 (b) के तहत किसी अनधिकृत रूप से फोन टैपिंग करने वाले व्यक्ति/कंपनी के खिलाफ न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है और इसमें आरोपी को तीन साल की सज़ा हो सकती है।
टेलीफोन टैपिंग के संबंध में निजता का अधिकार
- जैसा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि निजता का अधिकार जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित है।
- किसी भी सूचना के बिना किसी व्यक्ति के टेलीफोन को इंटरसेप्ट करना उस व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन है। लेकिन किसी विशेष परिस्थिति में सरकार द्वारा ऐसा किया जा सकता है।
- सरकार को टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत ऐसा करने की शक्ति प्रदान की गई है।
निष्कर्ष
टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के अनुसार, यदि लोक हित या राष्ट्र हित में फोन टैपिंग की जाती है तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। इस तकनीकी युग में ऐसे भी इक्विपमेंट आ गए हैं जिनकी मदद से घर बैठे 10 किमी. की रेंज में किसी का भी फ़ोन टेप किया जा सकता है। यह संतोष की बात है कि भारत में ऐसा करना अवैध है। लेकिन इस क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स आ जाने से इसके दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अतः इस पर और प्रभावी नियंत्रण की ज़रूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो प्राइवेट प्लेयर्स संकट उत्पन्न कर सकते हैं और ब्लैकमेलिंग का एक साम्राज्य तैयार हो सकता है।