राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम
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चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) से जुड़े छह लोगों पर अस्पताल में महिला स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act- NSA) के तहत कार्यवाही करने का फैसला लिया है।
मुख्य बिंदु:
- नर्सों ने उनके साथ अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया तथा इसकी शिकायत जिला चिकित्सा अधीक्षक से की है। इसके बाद अधीक्षक द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस को इस घटना के बारे में जानकारी दी गई ।
- पुलिस ने उन छह लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, जो दिल्ली में तब्लीगी जमात की मंडली में शामिल हुए थे तथा बाद में उन्हें गाज़ियाबाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA):
- राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) का उपयोग केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निवारक निरोध उपायों के रूप में किया जाता है।
- NSA किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करने से रोकने हेतु केंद्र या राज्य सरकार को व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार देता है।
- सरकार किसी व्यक्ति को आवश्यक आपूर्ति एवं सेवाओं के रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने के लिये NSA के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती है।
- किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने हिरासत में रखा जा सकता है। लेकिन सरकार को मामले से संबंधित नवीन सबूत मिलने पर इस समय सीमा को बढ़ाया जा सकता है।
निवारक निरोध (Preventive Detention)
- भविष्य के अपराध करने या अभियोजन से बचने के लिये किसी व्यक्ति की हिरासत में लिया जाना निवारक में शामिल है। यह 'गिरफ्तारी’ (Arrest) से अलग होता है। गिरफ्तारी तब की जाती है जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया जाता है।
NSA की पृष्टभूमि:
- भारत में निवारक निरोध कानून की शुरुआत औपनिवेशिक युग के बंगाल विनियमन- III, 1818 (Bengal Regulation- III, 1818) से मानी जाती है। इस कानून के माध्यम से सरकार, किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रियाओं से गुज़रे बिना सीधे ही गिरफ्तार कर सकती थी।
- एक सदी बाद ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट, 1919 (Rowlatt Acts-1919) को लागू किया, जिसके तहत बिना किसी परीक्षण (Trial) के संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई।
- स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1950 में निवारक निरोधक अधिनियम (Preventive Detention Act- PDA) बनाया गया, जो 31 दिसंबर, 1969 तक लागू रहा।
- वर्ष 1971 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act- MISA) लाया गया जिसे वर्ष 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया। बाद में कॉंग्रेस सरकार द्वारा पुन: NSA लाया गया।
NSA के साथ विवाद:
- मूल अधिकारों से टकराव:
- सामान्यत: जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे कुछ मूल अधिकारों की गारंटी दी जाती है। इनमें गिरफ्तारी के कारण को जानने का अधिकार शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में कहा गया है कि एक गिरफ्तार व्यक्ति को परामर्श देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता से टकराव:
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code- Cr.PC) की धारा 50 के अनुसार गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार तथा जमानत के अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये। इसके अलावा Cr.PC की धारा 56 तथा 76 के अनुसार गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर एक व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाना चाहिये। इनमें से कोई भी अधिकार NSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को उपलब्ध नहीं है।
- आँकड़ों की अनुपलब्धता:
- ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau- NCRB); जो देश में अपराध संबंधी आँकड़े एकत्रित तथा उनका विश्लेषण करता है, NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने आँकड़ों में शामिल नहीं करता है क्योंकि इन मामलों में कोई FIR दर्ज नहीं की जाती है। अत: NSA के तहत किये गए निवारक निरोधों की सटीक संख्या के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
आगे की राह:
- वर्तमान समय कानून पर पुनर्विचार करने का है, क्योंकि अपने अस्तित्व के चार दशकों में NSA हमेशा राजनीतिक दुरुपयोग के कारण चर्चा में रहता है।
- मूल अधिकारों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के मध्य संतुलित तथा पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाए जाने; जिसमें NCRB को NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने आँकड़ों में शामिल करना भी शामिल हो, की आवश्यकता है।