चंद्रमा के डगमगाने का प्रभाव
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने निकट भविष्य में चंद्रमा के डगमगाने के प्रभाव को संभावित समस्या के रूप में उजागर किया है।
प्रमुख बिंदु
चंद्रमा का डगमगाना:
- जब चंद्रमा अपनी अंडाकार कक्षा बनाता है, तो इसका वेग भिन्न होता है जिससे "प्रकाश पक्ष" के हमारे दृष्टिकोण को यह थोड़ा अलग कोणों पर प्रकट कर बदल देता है जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा डगमगाता है या इस प्रकार की घटना को देखा जा सकता है।
- यह चंद्रमा की कक्षा में एक चक्रीय परिवर्तन है और चंद्रमा की कक्षा में नियमित रूप से चलायमान (दोलन) है।
- इसे पहली बार 1728 में प्रलेखित किया गया था। इस डगमगाने की प्रक्रिया को पूरा होने में 18.6 वर्षों का समय लगता है। इसे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के परिणाम के रूप में देखा जाता है।
पृथ्वी पर चंद्रमा के डगमगाने का प्रभाव:
- चंद्रमा का डगमगाना, चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव को प्रभावित करता है जो प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव को प्रभावित करता है।
- डगमगाने के प्रत्येक चक्रीय प्रक्रिया में पृथ्वी पर ज्वार को बढ़ाने और दबाने की शक्ति होती है।
- वर्तमान में इन 18.6 वर्षों के आधे समय में पृथ्वी के नियमित ज्वार दब जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उच्च ज्वार सामान्य से कम और निम्न ज्वार सामान्य से अधिक देखे जाते हैं।
- दूसरे भाग में प्रभाव उल्टा होता है, जिसे चंद्रमा का ज्वार-प्रवर्धक चरण कहा जाता है।
संबंधित चिंताएँ:
- इस चक्र के 2030 के मध्य में फिर से होने की उम्मीद है तथा आने वाले चरण में एक बार फिर से ज्वार में वृद्धि होगी।
- इस चक्र में आने वाले परिवर्तन गंभीर खतरा पैदा करेंगे, क्योंकि उच्च ज्वार में वृद्धि तथा बढ़ते समुद्री जल स्तर से दुनिया के सभी तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।
- यह आधार रेखा को ऊपर उठाता है और जितना अधिक आधार रेखा को ऊपर उठाया जाता है, उतनी ही न्यून मौसमीय घटनाएँ बाढ़ का कारण बनती हैं।
- उच्च ज्वार से आने वाली बाढ़– इसे उपद्रव बाढ़ या धूप बाढ़ के रूप में भी जाना जाता है जो क्लस्टर में हो सकती है और महीनों या लंबी अवधि तक भी रह सकती है।
- यह घटना या परिवर्तन चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य की स्थिति के साथ निकटता से जुड़ा होगा।
ज्वार
परिचय:
- ज्वार को समुद्र के पानी के नियतकालिक उठने और गिरने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
घटना:
- यह सूर्य तथा चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाए गए गुरुत्वाकर्षण बल और पृथ्वी के घूर्णन के संयुक्त प्रभावों के कारण होता है।
प्रकार:
- वृहत् ज्वार: पृथ्वी के संदर्भ में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति ज्वार की ऊँचाई को परोक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक ही सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत् ज्वार-भाटा कहा जाता है तथा ऐसा महीने में दो बार होता है- पहला पूर्णिमा के समय और दूसरा अमावस्या के दिन।
- निम्न ज्वार: यह स्थिति तब होती है जब चंद्रमा अपनी पहली और अंतिम तिमाही में होता है, इसमें समुद्र का पानी सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण तिरछे विपरीत दिशाओं की ओर खिंच जाता है जिसके परिणामस्वरूप निम्न ज्वार की स्थिति होती है।
ज्वारीय परिवर्तन के चरण:
- उच्च ज्वार वह चरण है जब ज्वारीय शिखा तट पर किसी विशेष स्थान पर पहुँचती है, जिससे स्थानीय समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है।
- निम्न ज्वार वह चरण है जब गर्त (Trough) की स्थिति उत्पन्न होती है, जो स्थानीय समुद्र के जल स्तर को कम करता है।
- ज्वारीय बाढ़ (Flood Tide) कम ज्वार और उच्च ज्वार के बीच उठने वाला या आने वाला ज्वार है।
- उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच का समय, जब जल स्तर गिरता है, ‘भाटा (Ebb)’ कहलाता है।
- उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच की ऊर्ध्वाधर दूरी ज्वार की सीमा होती है।
प्रभाव:
- ज्वार मछली और समुद्री पौधों की प्रजनन गतिविधियों सहित समुद्री जीवन के अन्य पहलुओं को प्रभावित करते हैं।
- उच्च ज्वार नेविगेशन में मदद करते हैं। वे तटों के करीब जल स्तर को बढ़ाते हैं जिससे जहाज़ों को बंदरगाह पर अधिक आसानी से पहुँचने में मदद मिलती है।
- ज्वार समुद्र के पानी से टकराते हैं जो रहने योग्य जलवायु परिस्थितियों का निर्माण करता है और ग्रहों पर तापमान को संतुलित करता है।
- अंतर्वाह और बहिर्वाह के दौरान पानी की तेज़ गति तट के किनारे रहने वाले समुदायों को अक्षय ऊर्जा का स्रोत प्रदान करेगी।