सौर वातावरण के चुंबकीय क्षेत्र का मापन
प्रीलिम्स के लिये:सूर्य की आंतरिक संरचना, सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र मेन्स के लिये:सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
‘जर्नल साइंस’ (Journal Science) में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, सौर भौतिकविदों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम; जिसमें चीन तथा अमेरिका के वैज्ञानिक शामिल थे, ने पहली बार सूर्य के कोरोना अर्थात सूर्य के बाहरी वातावरण के चुंबकीय क्षेत्र का वैश्विक पैमाने पर मापन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
प्रमुख बिंदु:
- ऐसा खगोलीय पिंड जिसकी अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, उसे तारा (Star) कहा जाता है। सूर्य पृथ्वी के सबसे नज़दीक स्थित तारा है।
- वैज्ञानिक समुदाय लंबे समय से सूर्य का अध्ययन कर रहे हैं परंतु अभी भी इससे संबंधित कई पहेलियों (Puzzles) को अभी तक सही से नहीं समझा गया है।
शोध प्रक्रिया:
- शोध टीम द्वारा कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र का मापन करने के लिये ‘कोरोनल सिस्मोलॉजी’ या ‘मैग्नेटोसिस्मोलॉजी’ नामक तकनीक का प्रयोग किया गया।
- इस विधि में ‘मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक’ (MHD) तरंगों के गुणों तथा कोरोना के घनत्व के एक साथ मापन की आवश्यकता होती है।
- अतीत में इन तकनीकों का उपयोग उपकरणों की सीमाओं के कारण बहुत सीमित रूप में किया जाता था।
- शोध टीम ने कोरोनल चुंबकीय क्षेत्र के मापन के लिये उन्नत 'कोरोनल मल्टी-चैनल पोलरिमीटर' (CoMP) तथा उन्नत डेटा विश्लेषण तकनीक का प्रयोग किया है।
- सैद्धांतिक गणना से यह दिखाया जा सकता है कि अनुप्रस्थ MHD तरंगे प्रत्यक्षत: चुंबकीय क्षेत्रों की तीव्रता और कोरोना के घनत्व से संबंधित हैं।
- एक बार जब CoMP उपकरण के माध्यम से चुंबकीय तरंगों के गुणों और कोरोना के घनत्व का मापन कर लिया जाए तो गणितीय सूत्र (MHD सिद्धांत से व्युत्पन्न) के माध्यम से कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की गणना की जा सकती है।
मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक (MHD) तरंगें:
- तरंगों के गुण उस माध्यम पर निर्भर करते हैं जिसमें वे यात्रा करते हैं। तरंग के कुछ गुणों को मापकर उस माध्यम की विशेषताओं का अनुमान लगाया जा सकता है, जिस माध्यम से होकर उन्होंने यात्रा की है। तरंगे अनुदैर्ध्य तरंगें (ध्वनि तरंगें) या अनुप्रस्थ तरंगें (झील की सतह पर तरंगे) हो सकती हैं।
- एक चुंबकीय प्लाज्मा के माध्यम से गुजरने वाली तरंगों को मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक (MHD) तरंगें कहा जाता है।
उन्नत 'कोरोनल मल्टी-चैनल पोलरिमीटर' (CoMP):
- CoMP एक उपकरण है, जो हवाई द्वीप पर उच्च ऊँचाई पर स्थित वेधशाला द्वारा संचालित है। जिसका उपयोग कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन में किया जाएगा।
शोध का महत्त्व:
- सूर्य के कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की गणना निम्नलिखित सौर समस्याओं को समझने में मदद मिलेगी:
कोरोना की उष्णता (Coronal Heating):
- सूर्य के कोर का तापमान लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है जबकि इसकी बाहरी परत अर्थात फोटोस्फीयर (Photosphere) का तापमान मात्र 5700 डिग्री सेल्सियस है।
- कोरोना (Corona); जो सूर्य के ब्राह्य वातावरण का निर्माण करता है, का तापमान फोटोस्फीयर की तुलना में बहुत अधिक अर्थात एक मिलियन डिग्री सेल्सियस या उससे भी अधिक है।
- वैज्ञानिक समुदाय लंबे समय से इस पहेली को समझने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कौन-से कारक हैं जिनके कारण कोरोना अर्थात सूर्य के वायुमंडल का तापमान फोटोस्फीयर अर्थात सूर्य की सतह की तुलना में इतना अधिक है।
- वैज्ञानिकों के अध्ययन में ‘कोरोना की उष्णता’ पहेली को समझाने के लिये कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की पहचान की है। इसलिये यह शोधकार्य इन सिद्धांतों को बेहतर ढंग से समझने और सत्यापित करने में मदद करेगा।
सूर्य में विस्फोट की प्रक्रिया (Mechanisms of Eruptions of the Sun):
- सूर्य के विस्फोट की प्रक्रिया से संबंधित समस्याएँ जैसे कि 'सौर फ्लेयर्स' (Solar Flares) और 'कोरोनल मास इजेक्शन' (Coronal Mass Ejections- CME) आदि को समझना भी वैज्ञानिक समुदाय के समक्ष चुनौतीपूर्ण रहा है।
- शोध के अनुसार, ये घटनाएँ सूर्य के कोरोना में होने वाले ‘चुंबकीय सामंजस्य’ (Magnetic Reconnection) द्वारा संचालित होती हैं।
- ‘चुंबकीय सामंजस्य’ या मैग्नेटिक रिकनेक्शन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विपरीत ध्रुवीयता वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे में मिल जाती हैं जिससे कुछ 'चुंबकीय ऊर्जा', 'ऊष्मा ऊर्जा' और 'गतिज ऊर्जा' में बदल जाती है, जो कोरोना की उष्णता तथा सोलर फ्लेयर्स आदि का कारण बनती है।
भारत का प्रयास:
- भारत सूर्य से संबंधित परीक्षण के लिये ‘आदित्य L-1 मिशन’ को भेजने की तैयारी कर रहा है। यह सूर्य के वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र का नज़दीक से अध्ययन करेगा। यह न केवल कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र को समझने में अपितु सौर विस्फोटों और संबंधित अंतरिक्ष आधारित घटनाओं की पूर्व घोषणा करने में भी मदद करेगा।
निष्कर्ष:
- कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र का नियमित मापन बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सौर कोरोना अत्यधिक गतिशील है तथा लगातार परिवर्तित होता रहता है। इसमें कुछ सेकंड या कुछ मिनट में ही व्यापक पैमाने पर परिवर्तन देखने को मिलता है। नवीन परिष्कृत तकनीक का उपयोग से कोरोना के चुंबकीय क्षेत्रों का व्यापक पैमाने पर मापन करने में मदद मिलेगी।