ग्रहों पर दिन की अवधि

प्रीलिम्स के लिये

ग्रहों का घूर्णन काल

चर्चा में क्यों?

खगोलशास्त्रियों के अनुसार, ‘शुक्र ग्रह’ व ‘शनि ग्रह’ की एक दिन की अवधि के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है तथा इस बारे में दी जाने वाली जानकारियाँ प्रायः गलत साबित हुई हैं।

मुख्य बिंदु

  • किसी खगोलीय पिंड द्वारा अपने अक्ष पर एक घूर्णन पूर्ण करने में लगने वाले समय को एक दिन कहा जाता है। पृथ्वी पर एक दिन 23 घंटे 56 मिनट का होता है।
  • वैज्ञानिक अन्य ग्रहों की एक दिन की अवधि की गणना के लिये पृथ्वी के एक दिन की अवधि को आधार के तौर पर प्रयोग करते हैं। इस मानक के प्रयोग से ग्रहों पर दिन की अवधि की गणना स्पष्ट तौर पर की जा सकती है।

सारणी में सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों की एक दिन की अवधि को दर्शाया गया है।

ग्रह बुध शुक्र पृथ्वी मंगल बृहस्पति शनि अरुण वरुण
दिन की अवधि 58.6 दिन 243 दिन 23 घं. 56 मि. 24 घं 37 मि. 9 घं. 55 मि. 10 घं. 33 मि. 17 घं. 14 मि. 15 घं. 57 मि.

शुक्र ग्रह का घूर्णन

  • इस ग्रह की स्थिति अन्य ग्रहों से भिन्न है। इसकी सतह का अधिकांश हिस्सा बादलों से आच्छादित रहता है जिसकी वजह से इस पर उपस्थित भू-आकृतियों (क्रेटर या उच्चावच्च भूमि) को देखना मुश्किल होता है। ये भू-आकृतियाँ ग्रहों के घूर्णन को मापने के लिये एक आधार बिंदु (Reference Point) का कार्य करती हैं।
  • 1963 में राडार द्वारा किये गए सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि शुक्र ग्रह के घूर्णन की दिशा अन्य ग्रहों के घूर्णन की दिशा के विपरीत है। तत्कालीन सर्वेक्षणों से पता चला कि शुक्र पर एक दिन की अवधि पृथ्वी के 243 दिनों (5832 घंटे) के बराबर है।
  • 1991 में ‘मैगलन स्पेसक्राफ्ट’ द्वारा किये गए अध्ययन से ज्ञात हुआ कि शुक्र का वास्तविक घूर्णन काल 243.0185 दिन है जिसमें लगभग 9 सेकंड की अनिश्चितता पाई गई।
  • वैज्ञानिकों द्वारा 1988 से 2017 के बीच पृथ्वी से किये गए राडार पर्यवेक्षणों से शुक्र की सतह पर उपस्थित भू-आकृतियों की पहचान की गई तथा उसके आधार पर अक्षांशीय रेखाओं का निर्माण किया गया। इससे शुक्र के घूर्णन की दर को मापना आसान हुआ है।
  • वर्तमान शोधों के अनुसार, शुक्र का घूर्णन काल 243.212 दिन है जिसमें 0.00006 सेकंड की अनिश्चितता पाई गई तथा यह माना जा रहा है कि इसमें भी आने वाले कुछ दशकों में बदलाव हो सकता है।

शनि ग्रह का घूर्णन

  • बृहस्पति की भाँति यह भी एक विशाल गैसीय पिंड है तथा इसकी कोई ऊपरी ठोस सतह नहीं है। हालाँकि इसका कोर ठोस स्थिति में है परंतु इसकी बाहरी परत हाइड्रोजन, हीलियम तथा धूल कणों का मिश्रण है। यद्यपि बृहस्पति में घूर्णन अवधि की गणना उससे उत्सर्जित होने वाले रेडियो सिग्नलों की सहायता से की जाती है। इसके विपरीत शनि ग्रह से उत्सर्जित होने वाले रेडियो सिग्नल की आवृत्ति कम होती है जो पृथ्वी के वायुमंडल को भेद नहीं पाते इसकी वजह से इसके घूर्णन अवधि की गणना करना एक चुनौती रहा है।
  • 1980 व 1981 में क्रमशः भेजे गए अंतरिक्ष मिशन वोयेगर-1 तथा वोयेगर-2 से प्राप्त आंकड़ों से ही पहली बार पता चल सका कि शनि ग्रह पर एक दिन की अवधि लगभग 10 घंटे 40 मिनट की है।
  • 23 वर्षों के बाद कैसिनी स्पेसक्राफ्ट द्वारा भेजे गए आंकड़ों से पता चला कि शुक्र के घूर्णन काल में 6 मिनट की वृद्धि हुई है परंतु अनुमान के आधार पर इतनी वृद्धि में करोड़ों वर्ष लग सकते हैं।
  • शनि ग्रह पृथ्वी के समान ही अपने अक्ष पर झुका हुआ है जिसकी वजह से वहाँ ऋतु परिवर्तन होता है। ऋतुओं के आधार पर इसके उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों की प्राप्ति भी अलग-अलग होती है। यह शनि के वायुमंडल के किनारों पर उपस्थित प्लाज़्मा को प्रभावित करता है जो इसके वायुमंडल की विभिन्न परतों के बीच में घर्षण पैदा करता है।
  • शुक्र के वायुमंडल की ऊपरी परत और निचली परत में घूर्णन की रफ़्तार एक समान होती है परंतु उनके बीच के घर्षण की वजह से ऊपरी परत को घूर्णन करने में अधिक समय लगता है।
  • अतः निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशनों द्वारा पर्यवेक्षित शनि की घूर्णन अवधि उसके कोर की न होकर उसकी बाहरी परतों की है जो स्थिर नहीं है तथा रेडियो सिग्नल के प्रयोग से इसकी घूर्णन अवधि की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकती।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस