बेदखली का सामना कर रहे लाखों वनवासी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act 2006) के तहत दिये गए आदेश ने वन क्षेत्र पर वनवासियों के अधिकार के दावे को खारिज कर दिया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • देश के 21 राज्यों में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes-STs) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (Other Traditional Forest Dwellers-OTFDs) से संबंधित लाखों लोगों को वनों से बेदखल किया जा सकता है।
  • कुछ दिन पहले तीन जजों की बेंच ने उन राज्यों, जहाँ के वनवासियों के दावों को ख़ारिज किया गया है, के मुख्य सचिवों को इन वनवासियों को 24 जुलाई, 2019 तक या उससे पहले ही वनों से बेदखल करने का आदेश दिया है।
  • खंडपीठ ने राज्यों को तय समय के भीतर निष्कासन नहीं करने पर इस मामले में कठोर कार्यवाही करने की चेतावनी दी है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) को एक सैटेलाइट सर्वेक्षण करने और जहाँ पर बेदखली हो चुकी है वहाँ के ‘अतिक्रमणकारी स्थिति’ पर आँकड़े तैयार करने का भी आदेश दिया है।

पृष्ठभूमि

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धारा 6 के तहत राज्यों में अपीलीय समितियों के साथ-साथ ग्राम सभा के स्तर पर वन निवासियों के दावों की स्वीकृति या अस्वीकृति के लिये बहुस्तरीय एवं श्रेणीबद्ध प्रक्रिया को दर्शाया गया है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य ऐसे वनवासियों के वन भूमि पर अधिकार और कब्जे को सुनिश्चित करना है जो कई पीढ़ियों से जंगलों में रह रहे हैं लेकिन इनके अधिकार दर्ज नहीं किये जा सके हैं।

क्या है मामला?

  • आंध्र प्रदेश में निष्कासन के आदेश का अनुपालन करने का एक भी मामला दर्ज नही किया गया है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वहाँ के 1,14,400 एकड़ वन भूमि पर 66,351 दावों को खारिज कर दिया गया है।
  • इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असम, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल तथा पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के दावों को बड़ी संख्या में ख़ारिज किया गया है।
  • सुर्खियों में आने वाले अन्य राज्य महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा, छत्तीसगढ़, बिहार और गुजरात हैं।

स्रोत – द हिंदू