दिल्ली क्षेत्राधिकार विवाद
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दिल्ली के क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
हाल ही में दिल्ली सरकार ने इस वर्ष फरवरी माह में राज्य में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामले में लोक अभियोजकों (Public Prosecutors) को नियुक्त करने संबंधी दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया था। दिल्ली सरकार ने गृह विभाग को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में, सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिये देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों का एक पैनल बनाने का निर्देश दिया है। दिल्ली सरकार का मानना था कि सांप्रदायिक हिंसा के मामले में दिल्ली पुलिस की जाँच को न्यायालय ने निष्पक्ष नहीं पाया है, इसलिये दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी दी गयी तो मामलों की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाएगी।
तदुपरांत उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर असहमति जताई और संविधान के अनुच्छेद 239 AA के परंतुक (4) के अनुसार, अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस विषय को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर दिया और स्वयं ही लोक अभियोजकों की नियुक्ति कर दी। उपराज्यपाल के इस कार्य से दिल्ली सरकार के साथ टकराव बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है।इस आलेख में दिल्ली की संवैधानिक स्थिति, संविधान के अनुच्छेद-239AA की व्याख्या, केंद्र सरकार का पक्ष, दिल्ली सरकार का पक्ष तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के संबंध में विचार-विमर्श किया जाएगा।
दिल्ली की संवैधानिक स्थिति
- बाल कृष्ण समिति ने सुझाव दिया था कि दिल्ली को संघ राज्य क्षेत्र ही बनाए रखा जाना चाहिये, किंतु उसके लिये एक विधानसभा और मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद ने 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद-239 AA तथा 239 AB शामिल करके इसमें दिल्ली से संबंधित नए प्रावधान किये।
- संसद ने अनुच्छेद-239 AA के प्रवधानों का अनुसरण करते हुए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र अधिनियम, 1991 पारित किया। इसी अधिनियम तथा अनुच्छेद-239 AA, 239 AB तथा अनुच्छेद-239 B में निर्दिष्ट प्रावधानों के अनुसार वर्तमान में दिल्ली का प्रशासन चलाया जाता है।
क्या कहता है अनुच्छेद 239AA?
- सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने संविधान के अनुच्छेद-239AA की व्याख्या की थी, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे, यदि कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकते हैं, परंतु यह अपवाद दुर्लभतम श्रेणी का होना चाहिये।
क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद में केंद्र सरकार का पक्ष
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली ऐसी विशिष्टताओं से युक्त है कि इस पर केंद्र सरकार का प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है और 69वाँ संविधान संशोधन इस बात की पुष्टि करता है।
- दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्ति अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग है।
- संविधान के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को विशेषाधिकार मिला हुआ है।
- विधानसभा होने का यह अर्थ नहीं है कि दिल्ली एक राज्य है और उसे अन्य राज्यों की तरह अधिकार प्राप्त हैं।
- दिल्ली पूर्णतया केंद्र द्वारा शासित प्रदेश है और अंतिम अधिकार केंद्र के ज़रिये राष्ट्रपति के पास है।
- अनुच्छेद-239 AA (4) में प्रयुक्त भाषा उपराज्यपाल और उसकी मंत्रिपरिषद, पर गौर करने पर स्पष्ट होता है कि दिल्ली के प्रशासन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उपराज्यपाल को दी गयी है।
दिल्ली सरकार का पक्ष
- दिल्ली की विशिष्ट स्थिति पर गौर करे तो यहाँ जिस वेस्टमिन्सटर पद्धति को अपनाया गया है उसमें चुनी हुई सरकार ही सर्वोपरि होती है। यही व्यवस्था पूरे देश में है। इसे देखते हुए दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के ऊपर मनोनीत सरकार को
- वरीयता कैसे दी जा सकती है? यह संवैधानिक मूल्यों के विपरीत होगा।
- उपराज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करना चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत चुनी हुई सरकार होती है, जो जनता के प्रति जवाबदेह होती है।
- ज़मीन, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस के अलावा राज्य और समवर्ती सूची में शामिल मामलों में दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
- संवैधानिक प्रावधानों पर गौर करने पर पाते है कि यह राज्यपाल को भी सीमित शक्ति प्रदान करती है। क्योंकि 239 कक के द्वारा Assist and Advice को बदलकर Aid and Advice कर दिया गया गया। इसलिये उपराज्यपाल द्वारा हर मामले को अपने पास अनुमति के लिये मांगना असंवैधानिक है।
विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- अनुच्छेद-239 AA (3) यह प्रावधान करता है कि दिल्ली विधानसभा पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था छोड़कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता की सीमाओं को चित्रित करते हुए कहा कि उपराज्यपाल भूमि, पुलिस और पब्लिक आर्डर के मामलों को छोड़कर दिल्ली सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और मंत्रिपरिषद की “सहायता और सलाह” उन पर बाध्यकारी है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए कहा कि उपराज्यपाल को कोई भी स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है। उन्हें या तो मंत्रिपरिषद की 'सहायता और सलाह' पर कार्य करना होगा या उनके द्वारा राष्ट्रपति को संदर्भित किसी मामले पर राष्ट्रपति द्वारा लिये गए निर्णय को लागू करना होगा।
- संविधान पीठ ने अपनी अलग किंतु समेकित राय में लेफ्टिनेंट-गवर्नर को सरकार के साथ "सामान्य" विवाद को राष्ट्रपति के पास भेजने के खिलाफ चेतावनी भी दी।
- न्यायालय ने कहा, उप-राज्यपाल को सरकार के साथ सौहार्द्रपूर्ण तरीके से काम करना चाहिये। निर्णय में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि उप-राज्यपाल यांत्रिक रूप से सभी मामले स्व-विवेक के बिना राष्ट्रपति को संदर्भित नहीं कर सकते हैं।
- निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार निर्वाचित सरकार के पास है क्योंकि वह जनता के प्रति जवाबदेह है। उप-राज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिये।
लोक अभियोजकों की नियुक्ति के संबंध में सरकार का पक्ष
- दिल्ली सरकार का मानना है कि किसी भी आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत यह है कि जाँच पूरी तरह से स्वतंत्र होनी चाहिये और जाँच को न्यायिक प्रक्रिया के बाकी हिस्सों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार का मानना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-24 में यह भी उल्लिखित है कि दिल्ली सरकार को सरकारी वकील नियुक्त करने का अधिकार है।
- संविधान के तहत उपराज्यपाल के पास दिल्ली की निर्वाचित सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप करने की विशेष शक्तियाँ हैं, परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उपराज्यपाल दुर्लभतम मामलों में ही इस अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। अन्यथा, यह लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध है। लोक अभियोजकों के पैनल की नियुक्ति किसी भी दुर्लभ श्रेणी में नहीं आती है और यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इस कारण से दिल्ली सरकार लोक अभियोजकों को नियुक्त करने के लिये पूरी तरह से आश्वस्त है।
क्या उपराज्यपाल प्रशासकीय मामलों को राष्ट्रपति के समक्ष संदर्भित कर सकते हैं?
- वर्ष 2018 में दिये गए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यानपूर्वक पढने से यह पता चलता है कि संविधान के तहत उपराज्यपाल के पास दिल्ली की निर्वाचित सरकार के निर्णय को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने की विशेष शक्तियाँ हैं, परंतु
- उपराज्यपाल दुर्लभतम मामलों में ही इस अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, उपराज्यपाल अनुच्छेद 239 AA के परंतुक (4) के अंतर्गत अपवाद स्वरुप ‘किसी मामले (Any Matter)’ के संबंध में ही राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है न कि ‘प्रत्येक मामले (Every Matter)’ में।
- सर्वोच्च न्यायालय का यह भी मानना था कि उपराज्यपाल को इस शक्ति का प्रयोग सामान्य नियम की भांति न कर अपवादस्वरूप ही करना चाहिये।
- राष्ट्रपति सर्वोच्च संवैधानिक प्राधिकारी हैं और उनके निर्णय को संवैधानिक रूप से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ही मांगा जाना चाहिये।
आगे की राह
- दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन रहते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिये।
- सहकारी संघवाद की भावना को मज़बूत करने के लिये सरकार व उपराज्यपाल को संयुक्त रूप से कार्य करने की दिशा में आगे आना होगा।
प्रश्न- ‘दिल्ली की स्थिति इसलिये विशिष्ट है क्योंकि इसे न तो राज्य की तरह शक्तियाँ प्राप्त हैं और न ही यह केंद्र से सीधे प्रशासित होती है।’ दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल के बीच हुए हालिया विवाद का हवाला देते हुए इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण करें।