द बिग पिक्चर: ईरान के साथ दोस्ती दाँव पर
परिचर्चा के प्रमुख बिंदु
- भारत-ईरान की दोस्ती पर संकट
- ईरान की प्रमुख चिंता
- क्या हैं ईरान द्वारा प्रदत्त भारत के विशेषाधिकार
- अमेरिकी तानाशाही कहाँ तक जायज़
- भारत के लिये आगे की राह
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
भारत और ईरान के संबंध प्राचीन काल से ही अत्यंत प्रगाढ़ रहे हैं। सदियों से भारतीय और ईरानी समाज कला, स्थापत्य, विचार और परंपराओं, संस्कृति एवं वाणिज्य के माध्यम से आपस में जुड़े रहे हैं। गुजरात में 2001 में भीषण भूकंप आया था तो ईरान सहायता करने वाले प्रमुख देशों में से एक था। इसी प्रकार भारत ने भी ईरान की विपदा के समय उसकी मदद की। किंतु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही दो देशों के बीच संबंध बनते या बिगड़ते हैं।
- हाल ही में ईरान ने सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह के विस्तार में निवेश करने के अपने वादे को पूरा नहीं करने के लिये भारत की आलोचना की और कहा कि यदि भारत ईरान से आयातित तेल में कटौती करके इसकी पूर्ति सऊदी अरब, रूस, इराक, अमेरिका और अन्य देशों से करता है तो ईरान भारत को उपलब्ध कराए गए विशेषाधिकारों को समाप्त कर देगा।
- ध्यातव्य है कि अमेरिका ने ईरान से होने वाले तेल के आयात को लेकर भारत, चीन समेत कई देशों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अमेरिका ने ईरान से तेल खरीदने वाले सभी देशों के लिये चार नवंबर तक की समय-सीमा निर्धारित की है और इस तारीख तक सभी देशों को अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहे ईरान के साथ तेल आयात को पूरी तरह बंद करना होगा।
क्यों लगाए हैं अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध?
- वियना में आयोजित बैठक के दौरान ईरान और P5+1 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी) के मध्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम समझौते (JCPOA) पर जुलाई 2015 में सहमति हुई।
- मई 2018 में अमेरिका ने इज़राइल द्वारा उपलब्ध कराए गए खुफिया दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए ईरान पर आरोप लगाया कि ईरान परमाणु हथियार बनाने पर काम कर रहा है, साथ ही वह सीरिया, यमन और इराक में शिया लड़ाकों और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को लगातार हथियार सप्लाई कर रहा है।
- इसी वज़ह से अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया और ईरान पर फिर से आर्थिक तथा राजनीतिक प्रतिबंध लगा दिये। अमेरिका द्वारा ईरान पर इन प्रतिबंधों को लगाने का मुख्य उद्देश्य ईरान को आर्थिक रूप से कमज़ोर करना है।
- अमेरिका ने इस समझौते को तोड़ने के पीछे दूसरी वज़ह इसका बेहद उदार होना बताया है। अमेरिका के मुताबिक यह समझौता ईरान को तय सीमा से कहीं अधिक हैवी वॉटर (परमाणु रिएक्टरों के संचालन में इसका इस्तेमाल होता है) प्राप्त करने और अंतर्राष्ट्रीय जाँचकर्त्ताओं को जाँच के मामले में सीमित अधिकार देता है।
- ईरान समझौते के अनुसार काम कर रहा है या नहीं, इस बात की जाँच की ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को दी गई थी। IAEA को हर तीन महीने में एक रिपोर्ट दर्ज करनी होती है। अब तक किसी भी रिपोर्ट में ईरान पर शक की बात नहीं की गई है।
‘संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action, JCPOA) या ‘वियना समझौता’
- ईरान के परमाणु कार्यक्रमों पर नज़र रखने के लिये वर्ष 2015 में ईरान तथा P5+1 देशों (अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और जर्मनी) के मध्य एक समझौता किया गया।
- समझौते के अनुसार ईरान अपने परमाणु संयंत्रों की नियमित जाँच के लिये राजी हुआ ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वहाँ परमाणु हथियार बनाने पर काम नहीं चल रहा है।
- समझौते में ईरान द्वारा परिष्कृत यूरेनियम भंडार को 96 प्रतिशत तक घटाना और अपने सभी संयंत्रों को अतंर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के लिये खोलना शामिल है।
- इस समझौते के तहत ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्द्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार की थी।
- इस समझौते का मकसद था परमाणु कार्यक्रमों को रोकना। इन शर्तों के बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुए थे।
(टीम दृष्टि इनपुट)
अमेरिकी प्रतिबंधों का ईरान पर प्रभाव
- ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों की वज़ह से ईरान से तेल का आयात करने वाले देशों को भी अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिये वे देश अपने तेल आयात में कटौती कर सकते हैं जिसका सीधा असर ईरानी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
- अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के कारण पटरी पर लौटती ईरान की अर्थव्यवस्था को फिर से गहरा धक्का लगा है। ईरानी रियाल की कीमत डॉलर के मुकाबले लगातार कम होती जा रही है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा उत्पादित सामानों (दवाइयों और मशीनों इत्यादि) की ईरान में भारी कमी हो गई है।
- अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान का बैंकिंग सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इन कदमों का मकसद ईरान के वित्तीय संस्थानों को वैश्विक पूंजी बाज़ार से दूर करना है। ये वही पूंजी बाज़ार हैं जिनमें ईरान को परमाणु समझौते के बाद कुछ जगह मिली थी।
- जून 2018 के अंत तक अधिकतर यूरोपीय बैंकों ने ईरान के साथ अपने वित्तीय लेन-देन बंद कर दिये। नतीजतन, यूरोपीय कंपनियों को भी ईरान के साथ आयात-निर्यात के अपने सौदों का हिसाब करने में मुश्किलें आ रही हैं।
भारत को लेकर ईरान की चिंता
- चीन ने अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए ईरान से तेल आयात में कटौती नहीं करने का निर्णय लिया है, जबकि भारत ने अभी इस संदर्भ में अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। ईरान भारत से भी उसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद करता है।
- भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह के निर्माण में सहयोग किया है, साथ ही चाबहार से लेकर जाहेदान तक रेल पथ के निर्माण के लिये 500 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त राशि के निवेश का वादा किया है। ईरान इस बात से चिंतित है कि अमेरिकी प्रतिबंधों की वज़ह से भारत अपने निवेश में कमी कर सकता है।
- कुछ रिपोर्ट यह दर्शाते हैं कि भारत सरकार ने 4 नवंबर की अमेरिकी समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए सरकारी तेल कंपनियों को वैकल्पिक स्रोतों की एक रूपरेखा तैयार करने के लिये कहा है।
- अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से जून महीने में भारत के ईरान से तेल आयात में 15.9 फीसदी की कमी आई है। जून महीने में भारत ने ईरान से प्रतिदिन 5,92,800 बैरल तेल का आयात किया, जबकि मई महीने में यह 7,05,200 बैरल प्रतिदिन था।
- ईरान ने आरोप लगाया है कि चाबहार बंदरगाह के विस्तार के लिये भारत अपने वादे के मुताबिक निवेश करने में असफल रहा है। भारत से उम्मीद की जाती है कि वह इस संबंध में ज़रूरी कदम उठाएगा क्योंकि चाबहार बंदरगाह में उसका सहयोग और भागीदारी सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- ईरान इस बात से भी चिंतित है कि इससे पहले भी भारत ने कई मौकों पर अमेरिका के दबाव में अपनी रणनीति बदली है, जैसे- वर्ष 2005 और 2009 में भारत ने अमेरिका के दबाव में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रस्ताव में ईरान के विरुद्ध मतदान किया था।
क्या है ईरान द्वारा प्रदत्त भारत के विशेषाधिकार
- ईरान अन्य देशों के लिये 30 दिन की तुलना में भारत को 60 दिन की क्रेडिट सीमा देता है।
- साथ ही ईरान ने भारत को सीधे रुपए में भुगतान करने की भी सुविधा प्रदान की थी। इसमें यह व्यवस्था की गई थी कि कुल राशि का 55% भुगतान यूरोपीय बैंकों में किया जाएगा तथा शेष 45% राशि का भुगतान भारत स्थित बैंक में किया जाएगा जिसका उपयोग भारत से आयात के लिये किया जाएगा।
- बाद में यूरोपीय बैंकों द्वारा भुगतान बंद किये जाने की स्थिति में ईरान ने भारत को 100% भुगतान रुपए में करने की सुविधा दी, यह व्यवस्था ईरान के साथ P5+1 देशों की संधि होने तक जारी रही।
- इसके बाद पुनः 55% भुगतान यूरो और 45% रुपए में करने की व्यवस्था की गई।
- इसके अतिरिक्त ईरान द्वारा भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति के लिये माल ढुलाई में भी छूट प्रदान की जाती है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
भारत का रुख
- भारत ने इस संबंध में कहा है कि वह केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को ही मानेगा, इसके इतर भारत और किसी राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को मानने के लिये बाध्य नहीं है और पूर्व में भी भारत ने ईरान पर लगे संयुक्त राष्ट्र के ही प्रतिबंधों को मान्यता दी थी।
- वर्ष 2010 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लाए गए मानवाधिकार के मसले पर म्याँमार, उत्तर कोरिया और ईरान के पक्ष में अमेरिकी प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया था।
- हाल ही में भारत ने येरुसलम को इज़राइल की राजधानी बनाने के अमेरिकी प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया था तथा उत्तर कोरिया में उच्चायोग बंद करने के अमेरिकी फैसले को भी मानने से इनकार कर दिया था। अतः अमेरिका के दबाव में आने की बात पूरी तरह सत्य नहीं है।
- सरकार ने कहा है कि भारतीय बास्केट में कई देशों का क्रूड शामिल है। भारत को दुनिया में किसी देश से तेल खरीदने में आपत्ति नहीं है। लेकिन जहाँ तक ईरान से तेल खरीदने का सवाल है तो भारत इस बारे में अपनी ऊर्जा सुरक्षा को देखते हुए कदम उठाएगा।
भारत से ईरान को लाभ
- मई 2016 में अफगानिस्तान और ईरान के साथ त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ईरान में विकास कार्यों में तेज़ी देखी गई और 1.5 वर्ष में ही शहीद बहेस्ती पोर्ट का परिचालन शुरू कर दिया गया जिससे इसकी कार्गो हैंडलिंग क्षमता सालाना 8.5 मिलियन टन यानी पिछले वर्ष के 2.5 मिलियन टन की तुलना में तीन गुना अधिक बढ़ गई।
- ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक राष्ट्र है। भारत के कुल तेल आयात में ईरान का हिस्सा तकरीबन 10.4 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 10 महीनों में यानी अप्रैल 2017 से जनवरी 2018 के बीच भारत ने ईरान से 184 लाख टन कच्चा तेल ख़रीदा।
- ईरान वर्तमान में ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक राष्ट्र है जो कि 2.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का निर्यात करता है। भारत चीन के बाद ईरान का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है।
- ईरान पर यूरोपीय देशों के प्रतिबंध हटने के बाद ईरान के साथ भारत के तेल व्यापर में लगातार वृद्धि देखी गई है। प्रतिबंध हटाने से पूर्व ईरान भारत का आठवाँ बड़ा तेल आयातक था लेकिन प्रतिबंधों के हटने के पश्चात् ईरान अब तीसरा सबसे बड़ा आयातक बनकर उभरा है।
क्या यह अमेरिका की मनमानी है?
- पिछले कई वर्षों से अमेरिका ने ईरान पर इसलिये आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे ताकि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम बंद कर दे और जब 2016 में ईरान ने JCPOA पर सहमति जताई तो इसका हर तरफ स्वागत किया गया।
- किंतु डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका की यह रणनीति रही है कि ईरान का विरोध किया जाए, इसलिये उसने JCPOA को एक उदार समझौता कहा और इससे बहार निकल गया, अमेरिका न सिर्फ भारत पर बल्कि उन सभी देशों पर दबाव बना रहा है जो ईरान के साथ व्यापार करते हैं।
- पिछले कुछ समय में अमेरिका ने कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से खुद को अलग किया है जैसे- पेरिस जलवायु समझौता और UNESCO इत्यादि।
- अमेरिका ने कई वर्षों से उत्तर कोरिया पर कई प्रतिबंध लगाए थे लेकिन हाल ही में किम जोंग तथा डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद अमेरिका ने भविष्य में प्रतिबंधों में कई तरह की ढील देने की बात कही है।
- अतः इन सब घटनाओं ने विश्व में अमेरिका की साख ख़राब की है, साथ ही अमेरिका के एकाधिकारवादी रवैये को दर्शाया है।
आगे की राह
- भारत एक संप्रभु राष्ट्र है जो अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है। भारत अगले 10-20 वर्षों में विश्व का सबसे बड़ा उर्जा संसाधन बाज़ार होगा, अतः कई आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये भारत से अपने संबंधों में स्थिरता बनाए रखना आवश्यक होगा।
- भारत का ईरान में बड़ा निवेश है, साथ ही चाबहार बंदरगाह भी सामरिक रूप से भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है जो कि मध्य एशिया तक भारत की पहुँच सुनिश्चित करता है। अतः भारत को ईरान के साथ मिलकर एक बेहतर समाधान निकालने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- भारत ने यूरोपीय देशों के साथ बातचीत शुरू कर दी है जिससे यह तय किया जा सके कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध कितने उचित हैं क्योंकि ईरान ने न तो कोई सैन्य कार्यवाही की है और न ही ईरान द्वारा परमाणु बम बनाने के किसी दावे की पुष्टि IAEA द्वारा की गई है।
- ईरान के साथ तेल व्यापार को नवंबर तक शून्य किया जाना पूरी तरह से व्यावहारिक नहीं है इससे भारत के चालू खाता घाटे में वृद्धि होने की संभावना है साथ ही, तेल की कीमतों में वृद्धि से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष: हालाँकि अपने बयान के कुछ समय बाद ही वरिष्ठ ईरानी राजनयिक ने कहा कि उनके बयान को गलत समझा गया। ईरान और भारत के संबंध अत्यंत पुराने हैं, अतः अस्थिर तेल बाज़ार में भारत की स्थिति को समझा जा सकता है। यद्यपि भारत आधिकारिक तौर पर यह मानता है कि नई प्रतिबंध व्यवस्था का पालन करने की बाध्यता नहीं है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसका समर्थन नहीं किया गया है फिर भी इन सब विवादों के मध्य भुगतान का मुद्दा सर्वाधिक विचारणीय होगा। यह देखते हुए कि ईरान भारत के कुल तेल आयात का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा %E