वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर तथा उससे उत्पन्न चिंताएँ

चर्चा में क्यों?


हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर व धुंध (स्मॉग) की समस्या के कारण लोगों के समक्ष गंभीर स्वास्थ्य चिंताएँ उत्पन्न होने लगीं। इससे पर्यावरणविदों एवं सरकार के समक्ष उठे गंभीर सवालों ने इस मुद्दे को चर्चा में ला दिया।

वायु प्रदूषण क्या है?


वायुमंडल में गैसों के विभिन्न घटकों के मध्य आनुपातिक सम्मिश्रण होता है। जब इस स्थिति में रासायनिक रूप से अवांछित परिवर्तन होने लगते हैं; जिससे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से पृथ्वी दुष्प्रभावित होने लगती है तो इस स्थिति को ‘वायु प्रदूषण’ कहा जाता है।

वायु प्रदूषण के कारण
प्राकृतिक कारण

  • इसमें सर्वाधिक प्रमुख है ‘दावानल’, जिसमें अकारण ही लगने वाली आग सैकड़ों हेक्टेयर वनों को जला कर भस्म कर देती है। जिससे एक तरफ अत्यधिक मा त्रा में धुएँ व (राख) कार्बन कण वायुमंडल में तैरने लगते हैं, साथ ही हरे-भरे वनस्पतियों के नष्ट होने से गैसीय असंतुलन आ जाता है। इसी तरह ज्वालामुखी प्रस्फुटन से निकलने वाला धुआँ तथा लावा वातावरण में इतनी ऊँचाई तक प्रसारित हो जाता है कि वे सूर्य की रोशनी को भी आच्छादित कर देते हैं।
  • साथ ही दलदल एवं अनूपों में अपघटित होने वाले पदार्थों से निकलने वाली मीथेन गैस, विभिन्न बैक्टीरिया तथा शैवालों से विमुक्त होने वाली CO2 भी प्रदूषण में योगदान देते हैं।
  • धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह एवं उल्काओं आदि के पृथ्वी से टकराने के कारण उत्पन्न होने वाली धूल भी वायु के मिश्रण में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न करती है।

मानव निर्मित कारक

  • औद्योगिक इकाइयों, होटलों, ग्रामीण घरों में जलने वाले कोयले व लकडि़यों से उत्पन्न धुएँ।
  • राजधानी दिल्ली के संदर्भ में पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों में पराली प्रथा (पुआल जलाने) से उपजे धुएँ। साथ ही सीमा से सटे सैकड़ों ईंट-भट्ठों से वायु में प्रदूषण बढ़ रहा है।
  • तेजी से बढ़ते यातायात वाहनों की संख्या व इससे उत्पन्न धुएँ।
  • सड़कों के किनारे सूखे पत्तों के ढेर को जलाना या आतिशबाज़ी करना, वायु प्रदूषण में सहायक सिद्ध होते हैं।

सूक्ष्म कण (Particulate) क्या है?

  • वायु प्रदूषण में सूक्ष्म कणों की भूमिका सर्वाधिक है। ये कण 2.5 माइक्रोमीटर/माइक्रोग्राम से भी छोटे आकार के हो सकते हैं।
  • ये अति सूक्ष्म कण श्वास के द्वारा मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाएँ तो रक्त वाहिकाओं के साथ-साथ हृदय की कार्य प्रणाली को भी प्रभावित कर सकते हैं।
  • WHO के 2005 के गाइड लाइन के अनुसार PM-2.5 तथा PM-10 के लिये कोई स्वीकार्य सीमा औसत मान 10 माइक्रोमीटर/माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वार्षिक होना चाहिये।

स्थिति चिंताजनक क्यों है?

  • हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर’ ने भारत तथा चीन के शहरों को विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सबसे आगे होने की बात कही है। वायुमंडल में उपस्थित हानिकारक तत्त्व मनुष्य में ब्रोंकईटिस, फेफड़े का कैंसर व हृदय रोग के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी प्रभाव डाल रहे हैं।
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हमेशा मुँह पर मास्क लगाने का भय एवं बच्चों व बजुर्गों द्वारा असुरक्षित श्वसन उनके आचरण में तनाव उत्पन्न करता है।

वायु प्रदूषण रोकने के उपाय

  • प्राकृतिक कारकों को तो रोकना असंभव है; किंतु आधुनिक तकनीकों व तैयारियों से हम दावानल जैसे कारकों पर काबू पा सकते हैं।
  • कचरे को जलाना, पराली प्रथा से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिये।
  • चिमनियों से निकलने वाले धुएँ एवं वाहनों से उत्सर्जित धुएँ को अत्याधुनिक यंत्रों की मदद से स्वच्छ करके ही निर्गत करना चाहिये।
  • यातायात में कार-पूल, ऑड-ईवन जैसे नवाचार को बढ़ावा देना चाहिये। स्टॉकहोम, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल से लेकर हाल के पेरिस सम्मेलन की कार्ययोजना को प्रतिबद्धता से लागू करना चाहिये।

आगे की दिशा


इस समस्या से मुक्ति का एक ही मार्ग है- समेकित प्रयत्न व सह-अस्तित्व। यदि प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ हवा चाहिये तो अपने स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति को योगदान करना होगा। साथ ही संपूर्ण विश्व को प्रगति की अंधाधुंध होड़ की बजाय प्रकृति से सह-अस्तित्व का मार्ग अपनाना होगा ताकि जो हमें प्राप्त हुआ, वह शुद्धता हमारी आने वाली पीढि़यों को भी प्राप्त हो।