विधानसभा सत्र के आह्वान में राज्यपाल की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल द्वारा केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर चर्चा के लिये विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
विधानसभा सत्र बुलाने में राज्यपाल की भूमिका संबंधी संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद-174: इसके अनुसार राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो कि वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिये आहूत करेगा।
- यह प्रावधान राज्यपाल को यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी भी देता है कि सदन को प्रत्येक छह माह में कम-से-कम एक बार अवश्य आहूत किया जाए।
- अनुच्छेद-163: यद्यपि अनुच्छेद-163 के तहत राज्यपाल को सदन को बुलाने का विशेषाधिकार प्राप्त है, परंतु राज्यपाल को मंत्रिमंडल की "सहायता और सलाह" पर कार्य करना आवश्यक है।
- अतः जब राज्यपाल अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करता है तो यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि मंत्रिमंडल की "सहायता और सलाह” पर किया जाता है।
- अपवाद (Exception):
- किसी स्थिति में जब ऐसा प्रतीत हो कि मुख्यमंत्री के पास सरकार चलाने के लिये आवश्यक सीटों का बहुमत नहीं है और विधानसभा के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है, तब राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन (या सदनों) को आहूत करने के संदर्भ में निर्णय ले सकता है।
- राज्यपाल द्वारा अपनी विवेकाधीन शक्तियों के तहत लिये गए निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- किसी स्थिति में जब ऐसा प्रतीत हो कि मुख्यमंत्री के पास सरकार चलाने के लिये आवश्यक सीटों का बहुमत नहीं है और विधानसभा के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है, तब राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन (या सदनों) को आहूत करने के संदर्भ में निर्णय ले सकता है।
राज्यपाल की भूमिका के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने के राज्यपाल के निर्णय के कारण उत्पन्न हुए संवैधानिक संकट की समीक्षा की गई।
- सामान्य परिस्थितियों में जब मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद को सदन में पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो, तो ऐसे में राज्यपाल को अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करने, स्थगित और भंग करने की अपनी शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से समन्वय बनाए रखते हुए करना चाहिये।
- सदन को आहूत (Summon) करना: सदन को आहूत करने से आशय संसद/विधानसभा के सभी सदस्यों को मिलने के लिये बुलाने की प्रक्रिया है।
- स्थगित करना (Prorogue): स्थगन से आशय सदन के एक सत्र की समाप्ति से है।
- भंग करना (Dissolve): सदन को भंग/विघटन करने से आशय मौजूदा सदन को पूरी तरह समाप्त करने से है, जिसका अर्थ है कि आम चुनाव होने के बाद ही नए सदन का गठन किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सदन को 'आहूत करने की शक्ति' की व्याख्या राज्यपाल के "कार्य" के रूप में की है, न कि उसे प्राप्त 'शक्ति' के रूप में।
- सामान्य परिस्थितियों में जब मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद को सदन में पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो, तो ऐसे में राज्यपाल को अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करने, स्थगित और भंग करने की अपनी शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से समन्वय बनाए रखते हुए करना चाहिये।
राज्यपाल की भूमिका पर सरकारिया आयोग (वर्ष 1983) की रिपोर्ट:
- जब तक एक राज्य की मंत्रिमंडल को विधानसभा में पर्याप्त बहुमत प्राप्त होता है, उसके द्वारा दी जाने वाली सलाह (जब तक स्पष्ट तौर पर असंवैधानिक न हो) का अनुसरण करना राज्यपाल के लिये बाध्यकारी होगा।
- केवल ऐसी स्थिति में जहाँ इस तरह की सलाह के अनुरूप की गई कार्रवाई किसी संवैधानिक प्रावधान के उल्लंघन का कारण बन सकती हो या जहाँ मंत्रिपरिषद ने विधानसभा में बहुमत खो दिया हो, तभी यह सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार कार्य कर सकता है अथवा नहीं।
केरल के मामले में संभावित परिणाम:
- यदि केरल सरकार सदन का विशेष सत्र बुलाए जाने की अपनी मांग पर अड़ी रहती है तो सदन को आहूत करने से मनाही का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता। क्योंकि:
- सदन को आहूत करने के संदर्भ में राज्यपाल की शक्तियाँ सीमित हैं।
- यदि राज्यपाल द्वारा फिर भी सदन को आहूत करने से मना किया जाता है तो इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राज्यपाल
- राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियाँ और राज्यपाल के कार्यालय से संबंधित सभी प्रावधानों का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से अनुच्छेद 162 के तहत किया गया है।
- एक व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- राज्य में राज्यपाल की भूमिका राष्ट्रपति के समान ही होती है।
- राज्यपाल, राज्य के लिये राष्ट्रपति के समान कर्तव्यों का ही निर्वाह करता है।
- राज्यपाल राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है।
- ऐसा माना जाता है कि राज्यपाल पद की दोहरी भूमिका होती है:
- वह राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जो राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य है।
- वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
राज्यपाल पद के लिये योग्यता
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 157 और अनुच्छेद 158 में राज्यपाल पद के लिये पात्रता को निर्दिष्ट किया गया है। जो एस प्रकार है:
- उसे भारत का नागरिक होना चाहिये।
- उसकी आयु कम-से-कम 35 वर्ष होनी चाहिये।
- वह संसद के किसी सदन का सदस्य या राज्य विधायिका का सदस्य न हो।
- किसी राज्य अथवा संघ सरकार के भीतर लाभ का पद न धारण करता हो।
नियुक्ति
- संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति की मुहर लगे आज्ञा-पत्र के माध्यम से होती है।
कार्यकाल
- सामान्यतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किंतु उसके कार्यकाल को निम्नलिखित स्थिति में इससे पूर्व भी समाप्त किया जा सकता है:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
- संविधान में वैध कारण के बिना राज्यपाल के कार्यकाल को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी गई है।
- हालाँकि राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे राज्यपाल को बर्खास्त करे, जिसके कृत्यों को न्यायालय ने असंवैधानिक तथा गैर-कानूनी माना है।
- राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
विवेकाधीन शक्तियाँ
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति: सामान्यतः राज्य में बहुमत वाले दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है, किंतु ऐसी स्थिति में जहाँ किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिला हो तो राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति के लिये अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करता है।
- मंत्रिपरिषद को भंग करना: राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल न करने पर वह मंत्रिपरिषद का विघटन कर सकता है।
- आपातकाल की घोषणा के लिये राष्ट्रपति को सलाह देना: संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल जब इस तथ्य से संतुष्ट हो जाता है कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहाँ राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है तो वह राष्ट्रपति को ‘राज्य में आपातकाल’ अथवा ‘राष्ट्रपति शासन’ लागू करने की सलाह दे सकता है।
- राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित करना: यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 200 में ऐसी स्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित किया जा सकता है, किंतु वह इस मामले में अपने विवेक का भी प्रयोग कर सकता है।
- विधानसभा का विघटन: राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत राज्य के विधानमंडल का सत्र आमंत्रित, सत्रावसान और उसका विघटन करता है। जब राज्यपाल इस बात से संतुष्ट होता है कि मंत्रिपरिषद ने अपना बहुमत खो दिया है तो वह सदन को भंग कर सकता है।