देश-देशांतर: EVM या BALLOT...?
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में नई दिल्ली में हुए कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में बैलट के माध्यम से चुनाव करवाने का प्रस्ताव पारित किया गया। हालिया वर्षों में देश में हुए चुनावों-उपचुनावों में ईवीएम अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM-Electronic Voting Machine) की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। EVM के इस्तेमाल को लेकर देश में एक बहस बराबर छिड़ी रहती है और अधिकांशतः सत्ता से बाहर रहने वाले दलों द्वारा इसका विरोध किया जाता है। कुछ क्षेत्रीय दल भी बैलट के माध्यम से चुनाव करवाने का समर्थन करते रहे हैं।
तमाम दलों को EVM के खिलाफ एकजुट होता देख केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने भी संकेत दिए कि अगर सभी दलों में सहमति बनती है तो भविष्य में EVM के बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराए जाने पर विचार किया जा सकता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि बैलट पेपर के स्थान पर EVM को सभी दलों की सहमति के बाद ही लाया गया था।
क्यों ज़रूरत पड़ी?
स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव किसी भी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसमें निष्पक्ष, सटीक तथा पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया में ऐसे परिणाम शामिल हैं जिनकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है। परंपरागत मतदान प्रणाली (बैलट) इन लक्ष्यों में से अधिकांश को पूरा करती है, लेकिन फर्जी मतदान तथा मतदान केंद्रों पर कब्जा जैसा दोषपूर्ण व्यवहार निर्वाची लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरे हैं। निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार के प्रयास निरंतर करता रहा है। इसी कड़ी में जब लगभग सभी दलों में सहमति बनी और बात EVM पर आकर रुकी तो सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रतिष्ठानों--भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलौर तथा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से निर्वाचन आयोग ने EVM की खोज तथा डिज़ाइनिंग की।
भारत में EVM का क्रमिक विकास
(टीम दृष्टि इनपुट) |
EVM की प्रमुख विशेषताएँ
- इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यह छेड़छाड़ मुक्त तथा संचालन में सरल है और मज़े की बात यह है कि इसकी इसी विशेषता पर सवाल खड़े किये जाते रहे हैं।
- नियंत्रण इकाई के कामों को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम को 'एक बार प्रोग्राम बनाने योग्य आधार पर' माइक्रो चिप में नष्ट कर दिया जाता है। नष्ट होने के बाद इसे पढ़ा नहीं जा सकता, इसकी कॉपी नहीं हो सकती या कोई बदलाव नहीं हो सकता।
- EVM मशीनें अवैध मतों की संभावना कम करती हैं, गणना प्रक्रिया तेज बनाती हैं तथा मुद्रण लागत घटाती हैं।
- EVM मशीन का इस्तेमाल बिना बिजली के भी किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैटरी से चलती है।
- यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक नहीं होती तो EVM के इस्तेमाल से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- एक EVM मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है।
EVM सुरक्षा का मुद्दा (छेड़छाड़ संभव नहीं)
(टीम दृष्टि इनपुट) |
EVM के साथ VVPAT
EVM से छेड़छाड़ के निरंतर लगने वाले आरोपों के चलते निर्वाचन आयोग ने फैसला किया है कि भविष्य में होने वाले लोकसभा एवं राज्य विधानसभा के सभी चुनावों में VVPAT अर्थात् मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (Voter Verified Paper Audit Trail-VVPAT) का इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है VVPAT?
VVPAT मशीनें EVM के माध्यम से डाले जाने वाले प्रत्येक मत का प्रिंटआउट देती हैं, जो एक बॉक्स में एकत्र होते रहते हैं। इनका उपयोग चुनावों से संबंधित किसी भी विवाद का निराकरण करने के लिये किया जा सकता है। EVM की तरह इसे भी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया है। VVPAT का सर्वप्रथम प्रयोग 2013 में नगालैंड के निर्वाचन में किया गया था।
- VVPAT एक प्रकार की मशीन है, जिसे EVM के साथ जोड़ा जाता है।
- यह मशीन वोट डाले जाने की पुष्टि करती है और इससे मतदान की पुष्टि की जा सकती है।
- VVPAT के साथ प्रिंटर की तरह का एक उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ा होता है।
- इसमें मतदाता द्वारा उम्मीदवार के नाम का बटन दबाते ही, उस उम्मीदवार के नाम और राजनीतिक दल के चिह्न की पर्ची अगले 10 सेकेंड में मशीन से बाहर निकल जाती है।
- पर्ची एक बार दिखने के बाद EVM से जुड़े सुरक्षित बॉक्स में चली जाती है। EVM में लगी स्क्रीन पर यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है।
- VVPAT की मदद से प्रत्येक मत से संबंधित जानकारियों को प्रिंट करके मशीन में स्टोर कर लिया जाता है और विवाद की स्थिति में इस जानकारी की मदद से इन विवादों का निपटारा किया जा सकता है।
नोटा-उपरोक्त में कोई नहीं (None Of The Above-NOTA) (टीम दृष्टि इनपुट) |
भारत में लोकतंत्र की अवधारणा तथा निर्वाचक कानून
संविधान में लोकतंत्र की अवधारणा निर्वाचन के ज़रिये संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं में जनप्रतिनिधित्व को मानती है। लोकतंत्र के बने रहने के लिए विधि का शासन आवश्यक है और यह भी आवश्यक है कि देश के उचित शासन के लिए सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुना जाना चाहिये। सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुनने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने चाहिये तथा चुनाव ऐसे वातावरण में कराए जाने चाहिये जिसमें मतदाता अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
इस तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र का आधार है। भारत ने संसदीय प्रणाली की सरकार की ब्रिटिश वेस्टमिन्सटर प्रणाली अपनाई है। देश में निर्वाचित राष्ट्रपति, निर्वाचित उपराष्ट्रपति, निर्वाचित संसद तथा प्रत्येक राज्य के लिए निर्वाचित राज्य विधानमण्डल है। निर्वाचित नगरपालिकाएँ, पंचायतें तथा अन्य स्थानीय निकाय हैं। इन पदों तथा निकायों के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तीन पूर्व आवश्यकताएँ हैं--1. इन चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए एक प्राधिकार जो राजनीतिक तथा कार्यपालक हस्तक्षेप से मुक्त हो, 2. ऐसे कानून जो चुनाव संचालन को शासित करें और जिनके अनुसार इन चुनावों को कराने के लिए जिम्मेदार प्राधिकार हो, 3. एक ऐसी व्यवस्था हो जो इन चुनावों से संबंधित सभी संदेहों तथा विवादों का समाधान करे।
निर्वाचन आयोग
संविधान ने एक स्वतंत्र भारत निर्वाचन आयोग का गठन किया है। आयोग में भारत के राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति तथा संसद और राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी तथा चुनाव की देखरेख, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निहित है(अनुच्छेद-324)।
निर्वाचक कानून
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा संसद और राज्य विधानपालिकाओं के चुनावों के लिए कानून बनाने का अधिकार संसद द्वारा दिया गया है (अनुच्छेद-71 तथा 327)।
- इसी प्रकार नगरपालिकाओं, पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकार का गठन किया गया है। इनके चुनाव कराने संबंधी कानून राज्य विधानपालिकाएं बनाती हैं (अनुच्छेद 243K तथा 243ZA)।
- राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के चुनावों से संबंधित सभी संदेहों, विवादों का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद-71)।
- संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव से संबंधित सभी संदेहों तथा विवादों को निपटाने का अधिकार संबद्ध राज्य के उच्च न्यायालय को है। इनमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार भी है (अनुच्छेद-329)।
- नगरपालिकाओं आदि के चुनावों से संबंधित विवाद के मामलों का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार निचली अदालतें करती हैं।
- राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव से संबधित कानून संसद द्वारा राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 बनाए गए हैं। इस अधिनियम की प्रतिपूर्ति राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम, 1974 द्वारा की गई है और इसके आगे सभी पक्षों पर निर्देश निर्वाचन आयोग द्वारा दिए जाते हैं।
- संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव करने संबंधी प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निहित हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मुख्यतः निर्वाचन सूचियों की तैयारी तथा पुनरीक्षण से संबंधित है, जबकि चुनाव के वास्तविक संचालन से संबंधित सभी विषय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों से शासित होते हैं।
बैलट पेपर से मतदान की मांग कितना सही?
1962 से लेकर 2001 तक देश में बैलट पेपर के ज़रिये चुनाव हुए थे। इस दौर में राजनीति में बाहुबल और गुंडागर्दी (चुनावी हिंसा) की शुरुआत के साथ ही बूथ कब्जाने, बैलट बॉक्स में पहले ही बैलट पेपर से भर दिये जाने जैसी घटनाएँ भी सामने आई थीं। भारी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बाद भी बैलट बॉक्स लूटे जाते थे। देश के कई राज्यों से इस प्रकार की घटनाएं बराबर सामने आती रहीं।
जब बैलट से मतदान होता था तब बिहार तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह माना जाता था कि जो बाहुबल के धनी नहीं हैं उनके लिये चुनाव जीतना असंभव-सा है। कई बार ऐसा भी देखा जाता था कि बूथ कब्ज़ाने या छापने की वज़ह से कुछ सीटों पर कुल वोटरों की संख्या से ज्यादा मतदान हो जाता था। ऐसी घटनाओं में न केवल जान-माल का नुकसान होता था, बल्कि देश के लोकतंत्र का भी उपहास होता था।
मतदान को आसान, कम समय में और धांधली मुक्त बनाने के लिये EVM का इस्तेमाल शुरू हुआ जो बेहद सफल रहा है। EVM का इस्तेमाल होने से नेता और अपराधियों की साँठगाँठ लगभग समाप्त हो गई और इसके साथ ही बूथ कैप्चरिंग के लिये अपराधियों को संरक्षण देने का भी अंत हो गया। चुनाव जीतने के लिये नेता, अपराधियों से साँठगाँठ रखते थे और यही अपराधी बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे, जिसके परिणामस्वरूप चुनाव के बाद भी अपराधियों पर नेताओं का वरदहस्त बना रहता था और इससे कानून व्यवस्था प्रभावित होती थी।
पहला आम चुनाव
(टीम दृष्टि इनपुट) |
विदेशों में क्या है स्थिति?
कम-से-कम 24 देश ऐसे हैं जहाँ किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग या इस तरह की अन्य प्रणाली को अपनाया गया है। इनमें एस्टोनिया जैसे छोटे देशों से लेकर सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका तक शामिल है। लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ शत-प्रतिशत मतदान EVM के माध्यम से होता है। जर्मनी जैसे कुछ देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाई थी और बाद में मतपत्र प्रणाली पर लौट गए। किसी-न-किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राज़ील, कनाडा, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, कज़ाखस्तान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, फिलिपींस, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेनेज़ुएला शामिल हैं। अमेरिका 241 साल पुराना लोकतंत्र है, लेकिन वहाँ अब भी कोई एक समान मतदान प्रणाली नहीं है। कई राज्य मतपत्रों का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ वोटिंग मशीनों से चुनाव कराते हैं।
निष्कर्ष: बैलट से चुनाव कराने के समर्थक कहते हैं कि इसमें आपत्ति क्यों है? दुनिया के सभी विकसित देशों में बैलट पेपर से चुनाव होते हैं, तो क्या वे पिछड़े और तकनीकी रूप से अक्षम हैं? लेकिन बात तकनीक की नहीं है, समय के पहिये को दो दशक पहले की तरफ घुमाने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। आज के 18-20 वर्ष के अधिकांश युवा मतदाताओं ने तो बैलट पेपर देखा ही नहीं है। इसलिये जो लोग इसके समर्थक हैं और जो इसके विरोधी हैं, उन्हें यह समझना होगा कि 'सिस्टम खराब है' या 'सिस्टम में खराबी है' दो निहायत अलग बातें हैं। यदि कोई खामी है भी तो सुधारात्मक 'सुझावों' की ओर जाना चाहिये, न कि वापस पुराने ढर्रे पर लौटना चाहिये। भारतीय EVM एक स्वतंत्र प्रणाली है, जो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़ी है। इसलिये व्यक्तिगत रूप से किसी के लिये भी 1.4 मिलियन मशीनों के साथ छेड़छाड़ करना असंभव है। मतदान के दौरान देश में पहले होने वाली चुनावी हिंसा एवं फर्जी मतदान, बूथ कैप्चरिंग आदि जैसी अन्य चुनाव संबंधी गलत प्रचलनों को देखते हुए EVM भारत के लिये सर्वाधिक अनुकूल है।