‘एवरी चाइल्ड अलाइव’ रिपोर्ट : भारत की स्थिति चिंताज़नक

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund-Unicef) द्वारा ‘एवरी चाइल्ड अलाइव’ (Every Child Alive) नामक रिपोर्ट में नवजात मृत्यु दर पर देश वार रैंकिंग जारी की गई है।
  • नवजात मृत्यु दर को जन्म के पहले 28 दिनों (0-27 दिनों) के दौरान प्रति 1000 नवजातों पर होने  वाली मौतों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • रिपोर्ट में भारत को उन दस देशों की सूची में रखा गया है जहाँ पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि नवजात बच्चे जीवित रह सकें। वहीं, नवजात बच्चों के जन्म के संदर्भ में पाकिस्तान सबसे ज़्यादा असुरक्षित देश है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले देशों में औसत नवजात शिशु मृत्यु दर उच्च आय वाले देशों की तुलना में नौ गुना ज़्यादा है।
  • हालाँकि कई देशों का प्रदर्शन इस प्रवृत्ति के अनुरूप नहीं है। उदाहरण के लिये भारत की तरह कम-मध्यम आय अर्थव्यवस्थाओं के रूप में वर्गीकृत श्रीलंका और यूक्रेन में 2016 में नवजात मृत्यु दर लगभग 5/1000 थी।
  • इसकी तुलना में एक उच्च-आय वाली अर्थव्यवस्था के रूप में वर्गीकृत अमेरिका का भी 3.7 की दर के साथ उत्साहवर्द्धक प्रदर्शन नहीं रहा है।
  • इसी बीच प्रति व्यक्ति 1,005 डॉलर से भी कम आय वाले रवांडा ने गरीब और सुभेद्य माताओं पर केन्द्रित कार्यक्रमों के माध्यम से नवजात मृत्यु दर को 1990 के दशक में 41/1000 से 16.5 तक कम कर दिया है।
  • इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग बांग्लादेश, नेपाल और रवांडा जैसे देशों से भी नीचे है। यह रैंकिंग दर्शाती है कि स्वास्थ्य सूचकांकों पर सुधार करने में वित्तीय संसाधन की बजाय राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रमुख बाधा है।
  • रिपोर्ट में यह कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन लगभग 7000 नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
  • इनमें से 80% से अधिक मामलों में प्रशिक्षित डॉक्टरों, नर्सों आदि के माध्यम से किफायती, गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करके, प्रसव-पूर्व माता की और प्रसव-पश्चात् माता और शिशु दोनों के लिये पोषण, स्वच्छ जल जैसी बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करके बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

सबसे अच्छी स्थिति वाले तीन देश

  • रिपोर्ट के अनुसार कम मृत्यु दर की बात करें तो जन्म लेने के संदर्भ में जापान, आइसलैंड और सिंगापुर सर्वाधिक सुरक्षित देश हैं जहाँ प्रति हज़ार जन्म पर मृत्यु दर क्रमश: 0.9, 1 और 1.1 रही।
  • अर्थात् इन देशों में जन्म लेने के पहले 28 दिनों में प्रति हज़ार बच्चों पर मौत का केवल एक मामला ही सामने आता है।

भारत की स्थिति

  • वर्ष 2016 में (संख्या के संदर्भ में) नवजातों की मृत्यु के मामले में 6,40,000 नवजातों की मृत्यु के साथ भारत शीर्ष पर रहा।
  • भारत में नवजात मृत्यु दर 25.4 प्रति हज़ार रही अर्थात् प्रत्येक 1000 जीवित बच्चों में से 25.4 की मृत्यु हो जाती है। 
  • वैश्विक स्तर पर जन्म लेने के कुछ समय या दिनों में नवजातों की मृत्यु के 24% मामले भारत में दर्ज किये गए थे। 
  • वहीं, संख्या के संदर्भ में पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2016 में 2,48,000 नवजातों की जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई।

नवजातों की मृत्यु का कारण

  • रिपोर्ट के मुताबिक़ नवजातों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण प्री-मैच्योर बर्थ है जबकि दूसरा सबसे बड़ा कारण प्रसव के दौरान श्वास लेने में कठिनाई (Asphyxia), सेप्सिस तथा न्यूमोनिया सहित जन्मजात संक्रमण जैसी जटिलताएँ है।
  • इन समस्याओं का समय रहते इलाज हो सकता है और इनसे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। 

समाधान 

  • इनकी रोकथाम के लिये गर्भावस्था के दौरान माता के स्वास्थ्य पर ध्यान देना और प्रशिक्षित डॉक्टरों या नर्सों की निगरानी में प्रसव संपन्न करवाना प्रमुख समाधान है।
  • भारत में इसके लिये जननी सुरक्षा योजना जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों में इन कार्यक्रमों के विस्तार की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, स्वास्थ्य शिक्षा प्रणाली के बाहर भी महिला साक्षरता दर जैसे कुछ कारक हैं जिनसे स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। लेकिन शिक्षा के स्तर में बदलाव धीरे-धीरे आएगा।
  • केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य इस बात के उदाहरण हैं कि इन कारकों पर ध्यान केंद्रित करके भारतीय परिस्थितियों में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को 15 से नीचे लाया जा सकता है।