भारत में प्रारंभिक मानव

प्रीलिम्स के लिये:

सोन नदी घाटी, ज्वालामुखी शीतकाल संकल्पना, पाषण-काल, पाषाण काल

मेन्स के लिये:

आधुनिक मानव का विकास क्रम, पाषाण काल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने भारत की सोन नदी घाटी में 80,000-65,000 वर्ष पूर्व के मनुष्यों की निरंतर उपस्थिति के प्रमाण खोजे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • ये शोध कार्य मध्य भारत के ऊपरी सोन नदी-घाटी में ढाबा (Dhaba) नामक स्थल की की ‘ट्रेंचेज़’ (Trenches) में किये गए।
  • इस पुरातात्त्विक उत्खनन से लगभग 80,000 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में मानव व्यवसाय (लिथिक या पत्थर उद्योग) के प्रमाण मिले हैं।
  • मेगालिथिक उपकरण लगभग 80,000-65,000 वर्ष पूर्व के हैं, जबकि सूक्ष्म-पाषाण उपकरण लगभग 50,000 वर्ष पूर्व के हैं।

Ganga-River-Basin

पाषाण काल:

  • पुरातत्वविदों ने आरंभिक काल को पुरा पाषण काल कहा है, यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजारों के महत्त्व को बताता है।

पुरापाषाण काल:

  • 20 लाख-12 हज़ार वर्ष पूर्व का समय।
  • इसको भी तीन काल आरंभिक, मध्य तथा उत्तर पुरापाषाण काल में विभाजित किया जाता है।

मध्यपाषण काल (मेसोलिथ):

  • इसे माइक्रोलिथिक या सूक्ष्मपाषण काल भी कहा जाता है क्योंकि औजारों में लकड़ी या हड्डियों के मुट्ठे लगे होते हैं।

नवपाषाण काल:

  • 10 हज़ार वर्ष पूर्व के बाद का समय।

शोध का महत्त्व:

  • यह शोध दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में मानव आबादी की पहली उपस्थिति तथा अफ्रीका से मानव विसरण (Dispersal) को समझने में मदद करेगा।
  • ढ़ाबा का लिथिक उद्योग अफ्रीकी एवं अरब के मध्य पाषाण युग के विभिन्न उपकरणों तथा ऑस्ट्रेलिया की शुरुआती कलाकृतियों से मिलते हैं, जिससे यह पता चलता है की ये संभवतः होमो सेपियन्स के उत्पाद है क्योंकि उनका अफ्रीका से बाहर पूर्व दिशा में विसरण हुआ था।
  • यह अध्ययन इस सामान्य दृष्टिकोण का खंडन करता है कि आधुनिक मानव का 50,000 वर्ष पूर्व ही अफ्रीका से बाहर विसरण हुआ है जबकि बताता है की टोबा ज्वालामुखी महाविस्फोट के दौरान भी यहाँ मानव की उपस्थिति रही है।
  • अफ्रीका और अरब में पहले पाए गए उपकरणों की समानता के आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि वे होमो सेपियन्स द्वारा बनाए गए थे।

टोबा ज्वालामुखी विस्फोट तथा मानव प्रजाति:

  • लगभग 74,000 वर्ष पूर्व, सुमात्रा के टोबा ज्वालामुखी में सुपर-विस्फोट हुआ जिससे पृथ्वी के कई हिस्सों में लगभग एक दशक से अधिक लंबी अवधि के लिये शीत मौसम की दशाएँ व्याप्त हो गई। यह विस्फोट पिछले 2 मिलियन वर्षों में सबसे बड़ा था।
  • ऐसा माना जाता है इस ज्वालामुखी जनित शीतकाल से पृथ्वी की सतह लगभग एक हज़ार साल तक ठंडी रही तथा इससे मानव (Hominins) की विशाल आबादी नष्ट हो गई।
  • यह माना गया कि इससे नाटकीय रूप से जलवायु परिवर्तन हुआ और इसने पूरे एशिया में आबादी को कम कर दिया। हालाँकि, भारत के पुरातात्विक साक्ष्य इन सिद्धांतों का समर्थन नहीं करते हैं।
  • 'ज्वालामुखी शीतकाल’ (Volcanic Winter) परिकल्पना के अनुसार, इस ज्वालामुखी के कारण मनुष्यों के जीन पूल (जीनों से संबंधित संपूर्ण सूचना) में बाधा उत्पन्न हुई तथा अफ्रीका के अलावा संपूर्ण मनुष्य जाति नष्ट हो गई तथा यह आबादी अफ्रीका से विसरित हो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बस गई।

ज्वालामुखी शीतकाल संकल्पना:

  • इसे वायुमंडलीय धूलि परिकल्पना (Atmospheric Dust Hypothesis) के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें ज्वालामुखी विस्फोट की क्रिया में एयरोसोल्स (Aerosols), ज्वालामुखी धूल-कण, सल्फ्यूरिक अम्ल आदि के उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापमान में कमी आती है क्योंकि ये सौर्यिक विकिरण को परावर्तित करके (जिसे ऐल्बिडो (Albedo) भी कहा जाता है) अल्पकालिक शीतलन प्रभाव पैदा करते है।
  • दीर्घकालिक शीतलन प्रभाव मुख्य रूप से समतापमंडल में सल्फर गैसों के उत्सर्जन पर निर्भर होते हैं, जहाँ वे सल्फ्यूरिक अम्ल बनने की प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला से गुजरकर एरोसोल का निर्माण कर सकते हैं।
  • यह समतापमंडलीय एरोसोल सौर्यिक विकिरण का ऐल्बिडो कर पार्थिव सतह को ठंडा तथा पार्थिव विकिरण को अवशोषित करके समतापमंडल को गर्म करते हैं।
  • इस प्रकार वायुमंडलीय ऊष्मन एवं शीतलन प्रभाव, क्षोभमंडल और समतापमंडल पर अलग अलग होता है।
  • इस शोध के अनुसार विस्फोट से पूर्व से ही उत्तरी भारत में बसे प्रारंभिक मनुष्यों की आबादी (74,000 वर्ष पूर्व ) थी और यह तबाही की अवधि के दौरान तथा बहुत बाद तक रही।
  • जीवाश्म साक्ष्य बताते हैं कि आधुनिक मानव का अफ्रीका से 200,000 वर्ष पूर्व ग्रीक, अरब और चीन में 80-100,000 वर्ष पूर्व, सुमात्रा में टोबा ज्वालामुखी विस्फोट से ठीक पूर्व तथा ऑस्ट्रेलिया में 65,000 वर्ष पूर्व विवरण हो चुका था।

सोन नदी

  • सोन नदी भारत के मध्य प्रदेश राज्य से निकल कर उत्तर प्रदेश, झारखंड की पहाड़ियों से गुजरते हुए पटना के समीप गंगा नदी में मिलती है।
  • इस नदी में बालू का रंग पीला होने से इसके सोने की तरह चमकने के कारण इसका नाम सोन पड़ा।
  • सोन घाटी भू-गर्भिक तौर पर दक्षिण-पश्चिम में नर्मदा नदी घाटी का लगभग अनवरत विस्तार है।

यह शोध मानव प्रजाति की उत्पति को समझने में वैज्ञानिक सोच को अधिक व्यापक करेगा तथा वैश्विक समुदाय का ध्यान पुन: अपनी और आकर्षित करेगा।

स्रोत: द हिंदू