प्रारंभिक भारतीय साहित्य
प्रत्येक भाषा एक सांस्कृतिक इकाई की उपज होती है, किंतु कालांतर में प्रत्येक भाषा अपनी एक अलग संस्कृति का निर्माण करती हुई चलती है।
- भाषा और संस्कृति राज्य और सभ्यताओं की तरह जड़ और मरणशील नहीं होती।
- भारत की साहित्यिक परंपरा 4000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है और इस दौरान संस्कृत की प्रधानता थी- पहले वैदिक और बाद में शास्त्रीय रूप में।
- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उदय 1000 ई. सन् के बाद हुआ, जब क्षेत्रीय भाषाओं का विभाजन एक निश्चित स्वरूप अख्तियार कर रहा था। यही स्वरूप आज भी विद्यमान है। इन भाषाओं का समूह उत्तर भारत से मध्य भारत तक पैला है।
- द्रविड़ भाषाओं में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम हैं जिनमें साहित्यिक विधा के लिये सबसे पहले तमिल का विकास हुआ। विद्वानों के अनुसार द्रविड़ भाषाएँ भारतीय-आर्य भाषाओं से पहले अस्तित्व में आईं।
- तमिल भाषा का विकास संस्कृत या प्राकृत के बिना किसी प्रतियोगिता से हुआ क्योंकि तमिल क्षेत्र आर्यों के विस्तार के केंद्र से काफी दूर था। अन्य तीनों द्रविड़ भाषाओं की तुलना में तमिल पर ही संस्कृत का सबसे कम प्रभाव पड़ा।
- वैदिक साहित्य: वैदिक ग्रंथ मूलत: मौखिक थे व संस्कृत भाषा में रचे गए। काफी समय तक श्रुति परंपरा में रहने के पश्चात् इन्हें कलमबद्ध किया गया है।
- वैदिक ग्रंथ के अधीन चार वेद, आठ ब्राह्मण, छह अरण्यक और तेरह प्रारंभिक उपनिषद आते हैं।
- चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है तथा अथर्ववेद सबसे नवीन है।
- ऋग्वेद मंत्रों का संकलन है जिसे यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिये ऋषियों द्वारा संगृहीत किया गया था। ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या 10 हज़ार से अधिक है।
- यजुर्वेद ऐसे मंत्रों का संग्रह है जिनसे पुरोहित द्वारा यज्ञ विधि को संपन्न कराया जाता था।
- कर्मकांड प्रधान यजुर्वेद को मंत्रों की प्रकृति के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- शुक्ल यजुर्वेद तथा कृष्ण यजुर्वेद।
- कृष्ण यजुर्वेद में छंदबद्ध मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्यों का संग्रह है, जबकि शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्र ही हैं।
- सामवेद, ऋग्वेद से लिये गए एक खास प्रकार के स्तुति पद्यों का संग्रह मात्र है जिसे लय में ढाल दिया गया है।
- अंतिम वेद अथर्ववेद है जिसमें लौकिक फल देने वाले कर्मकांड तथा जादू-टोना-टोटका और इंद्र मायाजाल से संबंधित मंत्रों की उपस्थिति है।
- अथर्ववेद की रचना (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) आर्य तथा आर्येत्तर तत्त्वों के सम्मिलन के दौरान हुई है।
- ब्राह्मण ग्रंथ सुव्यवस्थित गद्य में लिखे गए हैं तथा ऐसे संस्करणों में लिखे गए हैं जो एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं। प्रमुख ब्राह्मणों में शामिल हैं-ऐतरेय ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण आदि।
- ब्राह्मण ग्रंथों के उत्तरकालीन विकास के प्रतीक हैं अरण्यक ग्रंथ। ये ग्रंथ विशुद्ध रूप से विद्यापरक हैं। इनकी रचना वन (जंगल) में हुई थी।
- वैदिक साहित्य में अरण्यकों का मुख्य महत्त्व यह है कि यह उपनिषदों की ओर एक स्वाभाविक संक्रमण है।
- उपनिषद् की शिक्षा है वेदांत जो सारे तत्त्वज्ञान का सार है जो दैवीय अभिव्यक्ति द्वारा सर्वोच्च तथा सबसे अव्यक्त उपदेश या ज्ञान है।
- उपनिषद् ऐसा साहित्य है जिसमें प्राचीन मनीषियों ने यह महसूस किया था कि अंतिम विश्लेषण में मनुष्य को स्वयं को पहचानना होता है।
- उपनिषदों का केंद्रीभूत सिद्धांत है ब्रह्म तथा आत्मा एक है तथा ब्रह्म को छोड़कर बाकी सब मिला हुआ है।
- ऋग्वेद एवं सामवेद एक समतामूलक समाज के मनोभावों को व्यक्त करते हैं वहीं यजुर्वेद एवं अथर्ववेद उत्तरवैदिक समाज में शुरू हुए विभाजन को दर्शाते हैं।
- अरण्यक एवं उपनिषद आर्य जीवन की उस अवस्था को व्यक्त करते हैं जब लोग भौतिक जीवन के स्तर से ऊपर उठकर मनन एवं चिंतन के प्रति भी अपना रुझान दिखाने लगे थे।