विशेष/इन-डेप्थ: विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस; ई-उपभोक्ता अधिकार
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 15 मार्च को पूरी दुनिया में उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये मनाया जाता है। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिये आवाज़ उठाना भी है। वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण के दौर में कारोबार के बदलते तरीक़ों के बीच उपभोक्ता संरक्षण का मुद्दा और भी अहम हो गया है। उपभोक्ता सभी आर्थिक गतिविधियों के लिये वास्तविक निर्णायक कारक है।
अब यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण का विस्तार किसी राष्ट्र की प्रगति के स्तर का एक वास्तविक संकेतक है। उत्पादन तथा वितरण प्रणालियों के बढ़ते आकार और जटिलता, वितरण और बिक्री की प्रथाओं में परिष्करण का उच्च स्तर तथा विज्ञापन आदि जैसे संवर्द्धन के रूपों ने उपभोक्ता संरक्षण की बढ़ती जरूरत में योगदान दिया है।
- वर्ष 2017 में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का विषय था Building a Digital World Consumers can Trust और इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए 2018 में इसका विषय Making Digital Marketplaces Fairer रखा गया है।
कौन है उपभोक्ता?
उपभोक्ता संरक्षण कानून अधिनियम 1986 की धारा 2 की उपधारा के अनुसार वस्तुओं, पदार्थों या सेवाओं का उपभोग करने वाला और इनका मूल्य चुकाने वाला या चु्काने का वादा करने वाला उपभोक्ता कहलाता है। उपभोक्ता वह है, जो उपभोग के लिये वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय करता है। सेवाओं को भाड़े पर लेने वाला या इस्तेमाल करने वाला भी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है, बशर्ते इनका वाणिज्यिक इस्तेमाल न किया जाए।
यदि कोई फुटकर व्यापारी किसी थोक विक्रेता से वस्तुएँ खरीदता है, तो वह उपभोक्ता नहीं है क्योंकि वह तो वस्तुओं को बेचने के लिये खरीदता है। कोई व्यक्ति, जो वस्तुओं एवं सेवाओं का चयन करता है, उन्हें प्राप्त करने के लिये पैसा खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उनका उपयोग करता है, उपभोक्ता कहलाता है।
इस लेन-देन में विक्रेता की ईमानदारी सबसे अहम है, क्योंकि इसी पर उपभोक्ता का विश्वास टिका होता है। लेकिन कई बार विक्रेता ऐसा काम कर देता है कि उपभोक्ता का विश्वास टूट जाता है; और यह बात ऑनलाइन मार्केटिंग करने वाले ई-उपभोक्ताओं पर भी लागू होती है।
क्या है ऑनलाइन शॉपिंग?
कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर आज पूरी दुनिया का बाज़ार सिमट आया है और लोग ऑनलाइन शॉपिंग का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। इंटरनेट और आधुनिक तकनीक ने हमारे जीने के अंदाज़ को पूरी तरह बदल दिया है। ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिये लोग घर बैठे अपने पसंद की चीज़ें कभी भी खरीद सकते हें। बाजार में जाकर सामान्य रूप से खरीददारी करने के मुकाबले ऑनलाइन शॉपिंग में हर उत्पाद में ज़्यादा विविधता देखने को मिलती है, जिसमें उपभोक्ता को चयन के अवसर अधिक मिलते हैं और कम समय में हर चीज़ के दाम, विवरण आदि का पता चल जाता है।
सुरक्षा का मुद्दा
यदि कुछ साल पहले की बात करें तो लोग ऑनलाइन शॉपिंग को सुरक्षित नहीं मानते थे और उन्हें निजी बैंक खातों की जानकारी या क्रेडिट कार्ड्स की जानकारी ऑनलाइन किसी साइट पर शेयर करने में कई प्रकार की शंकाएँ होती थीं। लेकिन आज ऐसा नहीं है, तकनीक उन्नत हुई है, ऑनलाइन खरीदारी को सुरक्षित बनाने के कई उपाय भी किये गए हैं। इसी का परिणाम है कि लोग ऑनलाइन खरीदारी ही पसंद करते हैं, विशेषकर युवा वर्ग।
उपभोक्ताओं की निजी जानकारी की गोपनीयता बनाए रखने के लिये सरकार और शॉपिंग साइट्स आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं और उपभोक्ता भी ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर सतर्कता बरतते हैं, लेकिन फिर भी धोखाधड़ी और छल-कपट के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं।
भारत में ऑनलाइन बाज़ार परिदृश्य
- 2017 में इंटरनेट के माध्यम से देश में 6500 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। 2016 में यह आँकड़ा 4500 करोड़ रुपए था।
- देश में होने वाले कुल ई-कॉमर्स कारोबार में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी ऑनलाइन ट्रेवल के क्षेत्र में है।
- शेष 30 प्रतिशत में फैशन, फर्नीचर, किराना, होटल, खाद्य, शिक्षा, प्रौद्योगिकी तथा ई-टेलिंग व अन्य क्षेत्रों का हिस्सा है।
- भारत में ई-कॉमर्स का बाज़ार 2026 तक 20 हज़ार करोड़ रुपए तक पहुँच जाने की संभावना है।
संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देश
(टीम दृष्टि इनपुट) |
ई-कॉमर्स की सीमाएँ
- विक्रेता से प्रत्यक्ष संपर्क न होने के कारण वह सारी सूचनाएँ नहीं मिल पाती जो वह जानना चाहता है।
- ई-कॉमर्स वेबसाइट की विश्वसनीयता को लेकर भ्रम, मंगाया गया सामान कई बार मिलता ही नहीं या घटिया दर्जे का होता है।
- वास्तु की गुणवत्ता को लेकर संदेह बना रहता है, क्योंकि सामने न होने के कारण इसका अनुमान लगाना कठिन हो जाता है।
- कई बार चीज़ों के दाम बढ़ाकर ले लिये जाते हैं और पुराना या खराब सामान मिलने की आशंका भी बनी रहती है।
- क्रेडिट/डेबिट कार्ड संबंधी गोपनीय जानकारी गलत हाथों में जाने का ख़तरा बना रहता है, जो कभी-कभी बड़ी आर्थिक हानि का कारण बन जाता है।
- ई-कॉमर्स से जुडी कंपनियों की नीतियों के बारे में कोई जानकारी प्रायः नहीं होती।
- अधिक दामों पर बेचने के लिये कंपनियाँ जानबूझकर उस सामान की कमी दिखाती हैं, जिनकी माँग अधिक होती है।
- अधिक लाभ कमाने के लिये सामान में मिलावट तक की जाती है ।
- अक्सर सामान की डिलीवरी समय से नहीं होती या डिलीवरी चार्ज ले लेने के बाद भी समय का पालन नहीं किया जाता।
- कई बार उपभोक्ता के पास न तो सामान पहुँचता है और न ही उसके पैसे वापस मिलते हैं।
- सामान यदि वापस करना/बदलना है तो भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
डिजिटल युग में उपभोक्ता अधिकार
सुरक्षा में सेंध, डाटा की निजता की सुरक्षा मुख्य क्षेत्र बन गए हैं जिनके संबंध में उपभोक्ताओं को बेहतर संरक्षण प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। ई-कॉमर्स संबंधित अनेक शिकायतें उपभोक्ता मंचों में प्राप्त होती रहती हैं। यह प्रौद्योगिकी का युग है और इस डिजिटल युग में उपभोक्ताओं को शिक्षित करना और उनके विवादों का निपटान करना एक चुनौती है।
भारत में उपभोक्ता अधिकार
(टीम दृष्टि इनपुट) |
अमेरिका में हुई थी उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत
इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई, जहाँ राल्फ नाडेर (Ralph Nader) ने एक आंदोलन चलाया था जिसके फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया गया। इसीलिये 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में शुरुआत में चार विशेष प्रावधान थे--1. उपभोक्ता सुरक्षा का अधिकार, 2. उपभोक्ता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार, 3. उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार, 4. उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार। बाद में इसमें समयानुसार और प्रावधान जोड़े जाते रहे।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन
भारत में फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन से उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत 1966 में मुंबई से हुई थी, जिसे उद्योगपति जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों ने शुरू किया था। इसकी शाखाएँ कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बी.एम. जोशी ने 1974 में पुणे में की थी। इसके बाद अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ और उपभोक्ता आंदोलन आगे बढ़ता रहा। 9 दिसंबर, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह सरल व सुगम हो गया, लेकिन वर्तमान में तकनीक के प्रसार के मद्देनज़र बाज़ार में आए बदलावों के चलते यह कुछ मामलों में लगभग अप्रासंगिक हो गया है। इसीलिये सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 लोकसभा में पेश किया है।
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 प्रस्तावित विधेयक के मुख्य प्रावधान उपभोक्ताओं के अधिकार: जीवन और संपत्ति के लिये खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार। वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक, और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना। प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना। अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करने का अधिकार। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority-CCPA): उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और लागू करने के लिये CCPA का गठन किया जाएगा। CCPA अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों तथा उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का विनियमन करेगा। इसके लिये यह विधेयक CCPA को पर्याप्त रूप से सशक्त करता है। मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता वाले CCPA के आदेश के विरुद्ध कोई भी अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष ही की जा सकेगी। भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना: CCPA झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिये विनिर्माता या उत्पाद को एन्डोर्स करने वाली सेलेब्रिटी पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकता है और दोबारा अपराध की स्थिति में इसे 50 लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है। विनिर्माता को दो वर्ष तक की कैद और दुबारा अपराध पर पाँच साल की कैद हो सकती है। यह विधेयक किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन करने से पहले उसके द्वारा किये जा रहे दावे की जाँच का दायित्व उस सेलेब्रिटी पर डालता है जो इसे एन्डोर्स कर रहा है। यदि कोई विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है तो CCPA उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित कर सकता है। एक से ज़्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि को तीन वर्ष तक बढाया जा सकता है। उपभोक्ता फोरम CDRC का क्षेत्राधिकार: शिकायत कहाँ की जाए, यह बात सामान, सेवाओं की लागत अथवा मांगी गई क्षतिपूर्ति पर निर्भर करती है। ज़िला CDRC 1 करोड़ रुपए तक के मामलों की, राज्य CDRC 1 करोड़ से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपए से कम वाले मामलों की और राष्ट्रीय CDRC 10 करोड़ रुपए से अधिक के मामलों की सुनवाई करेंगे। वर्तमान में यदि राशि 20 लाख रुपए से कम है तो ज़िला फोरम में, राशि 20 लाख से अधिक लेकिन एक करोड़ से कम है तो राज्य आयोग के समक्ष और यदि एक करोड़ रुपए से अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराने का प्रावधान है। अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायत केवल राष्ट्रीय और राज्य CDRC में ही की जा सकेगी। अनुचित अनुबंध में उपभोक्ता से अधिक डिपाज़िट की मांग करना, किसी अनुबंध को एकतरफा समाप्त कर देना आदि शामिल हो सकते हैं। संस्थागत व्यवस्था: यदि ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय आयोग को लगता है कि किसी मामले को मध्यस्थता के द्वारा सुलझाया जा सकता है तो वे इसके लिये एक मध्यस्थता सेल की स्थापना कर उसे मामला सौंप सकते हैं। इसके अलावा प्रोडक्ट लायबिलिटी की व्यवस्था की गई है, अर्थात् उत्पाद के विनिर्माता अथवा सेवा प्रदाता की ज़िम्मेदारी। इन्हें किसी खराब वस्तु या दोषपूर्ण सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा देना होगा। (टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: भारत जैसे विकासशील देश में व्याप्त विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, गरीबी, निरक्षरता और क्रय शक्ति में कमी के चलते उपभोक्ताओं के ठगे जाने, धोखाधड़ी, गुणों के विपरीत सामान दिये जाने आदि की शिकायतें प्राय: सुनने को मिलती रहती हैं। उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिये संस्थागत व्यवस्था की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। ऑनलाइन शॉपिंग को बदलते वक्त और कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कार कहा जा सकता है। ऐसे में देश में डिजिटल रूप से सक्षम समाज के बजाय डिजिटल रूप से सशक्त समाज पर ध्यान देने की ज़रूरत है। जिस प्रकार एक उपभोक्ता घर पर बैठे हुए उत्पादों को ऑनलाइन खरीदने में सक्षम है, उसी प्रकार वह उसी रीति से शिकायत दर्ज करने और समाधान प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिये। सरकार उपभोक्ताओं को डिजिटाइजेशन के पूर्ण लाभ उपलब्ध कराने और ऑनलाइन व्यवस्था से जुड़े जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षोपाय करने के लिये बराबर कार्य कर रही है। डिजिटल जागरूकता कार्यक्रमों का सृजन करने के लिये उपभोक्ता मामले विभाग और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं। फिर भी इंटरनेट का खुलापन, पहचान की कमी और उपयोगकर्त्ताओं (विशेषकर प्रथम बार उपयोगकर्त्ताओं) की सुरक्षा के प्रति समझ का कम स्तर ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं जिनके संबंध में केंद्रित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।