लोक उद्यम विभाग

प्रिलिम्स के लिये

लोक उद्यम विभाग, महारत्न, नवरत्न, मिनीरत्न, प्राक्कलन समिति, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, 

मेन्स के लिये

सार्वजनिक उद्यम विभाग के कार्य तथा इसे वित्त मंत्रालय के दायरे में लाने के निर्णय का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने सार्वजनिक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises-DPE) को भारी उद्योग मंत्रालय के दायरे से हटाकर पुनः वित्त मंत्रालय के दायरे में ला दिया है।

  • वित्त मंत्रालय में अब छह विभाग होंगे जबकि DPE के मूल मंत्रालय, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय को अब केवल भारी उद्योग मंत्रालय कहा जाएगा।

प्रमुख बिंदु

सार्वजनिक उद्यम विभाग के विषय में:

  • लोक उद्यम विभाग सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (Central Public Sector Enterprises-CPSEs) का नोडल विभाग है और CPSEs से संबंधित नीतियाँ तैयार करता है।
    • CPSEs ऐसी कंपनियाँ हैं जिनमें केंद्र सरकार या अन्य CPSEs की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी 51% या उससे अधिक है।
  • यह विशेष रूप से, CPSEs में निष्पादकता सुधार एवं मूल्यांकन, स्वायत्तता तथा वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन और कार्मिक प्रबंधन के बारे में नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करता है। 
  • इसके अलावा यह केंद्रीय सरकारी उद्यमों से संबंधित बहुत से क्षेत्रों के संबंध में सूचना एकत्र करता है और उसका रखरखाव भी करता है
  • DPE को वित्त मंत्रालय में स्थानांतरित किये जाने से CPSEs के पूंजीगत व्यय, परिसंपत्ति मुद्रीकरण और वित्तीय स्वास्थ्य की कुशल निगरानी में मदद मिलेगी।

पृष्ठभूमि:

  • तीसरी लोकसभा (1962-67) की प्राक्कलन समिति (Estimates Committee) ने अपनी रिपोर्ट में, एक केंद्रीकृत समन्वय इकाई स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया था, जो सार्वजनिक उद्यमों के प्रदर्शन का निरंतर मूल्यांकन भी कर सके
  • जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1965 में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो (Bureau of Public Enterprises-BPE) की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1985 में, BPE को उद्योग मंत्रालय का हिस्सा बनाया गया था। मई 1990 में BPE को एक पूर्ण विभाग बनाया गया जिसे लोक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises- DPE) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख कार्य:

  • सभी लोक उद्यमों (Public Sector Enterprises- PSEs) को प्रभावित करने वाले सामान्‍य नीति संबंधी मामलों का समन्‍वय।
  • लोक उद्यमों का पुनर्गठन करने या बंद करने तथा उनके लिये तंत्र से संबंधित सलाह देना।
  • पुनरुद्धार से संबंधित सलाह देना।
  • स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के अंतर्गत केंद्रीय सरकारी लोक उद्यमों में कर्मचारियों को परामर्श, प्रशिक्षण एवं उनका पुनर्वास
  • 'रत्‍न' का दर्जा देने सहित केंद्रीय सरकारी लोक उद्यमों का अन्य प्रकार का वर्गीकरण
    • CPSEs को 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- महारत्न, नवरत्न और मिनीरत्न। वर्तमान में 10 महारत्न, 14 नवरत्न और 74 मिनीरत्न CPSEs हैं।

CPSEs का वर्गीकरण

श्रेणी

  • महारत्न
  • नवरत्न
  • मिनीरत्न

शुरुआत

  • CPSEs के लिये महारत्न योजना मई, 2010 में शुरू की गई थी, ताकि मेगा CPSEs को अपने संचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गजों के रूप में उभरने के लिये सशक्त बनाया जा सके।
  • नवरत्न योजना वर्ष 1997 में शुरू की गई थी ताकि उन CPSEs की पहचान की जा सके जो अपने संबंधित क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ प्राप्त करते हैं और वैश्विक खिलाड़ी बनने के उनके अभियान में उनका समर्थन करते हैं।
  • मिनीरत्न योजना की शुरूआत वर्ष 1997 में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने और लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता तथा शक्तियों का प्रत्यायोजन प्रदान करने के नीतिगत उद्देश्य के अनुसरण में की गई थी।

मानदंड

महारत्न:

  • कंपनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त होना चाहिये।
  • कंपनी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) के नियामकों के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Prescribed Public Shareholding) के साथ भारतीय शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होनी चाहिये।
  • विगत तीन वर्षों की अवधि में औसत वार्षिक व्यवसाय (Average Annual Turnover) 25,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
  • पिछले तीन वर्षों में औसत वार्षिक निवल मूल्य (Average Annual Net Worth) 15,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
  • पिछले तीन वर्षों का औसत वार्षिक शुद्ध लाभ (Average Annual Net Profit) 5,000 करोड़ रुपये से अधिक होना चाहिये।
  • कंपनियों की व्यापार के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में महत्वपूर्ण उपस्थिति होनी चाहिये।
  • उदाहरण: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, गेल (इंडिया) लिमिटेड, आदि।

नवरत्न:

  • मिनीरत्न श्रेणी - I और अनुसूची 'A' के तहत आने वाली CPSEs, जिन्होंने पिछले पाँच वर्षों में से तीन में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छी' रेटिंग प्राप्त की है और छह प्रदर्शन मापदंडों में 60 या उससे अधिक का समग्र स्कोर प्राप्त किया हो। ये छह मापदंड हैं:
    • शुद्ध पूंजी और शुद्ध लाभ
    • उत्पादन की कुल लागत के सापेक्ष मैनपॉवर पर आने वाली कुल लागत
    • मूल्यह्रास के पहले कंपनी का लाभ, वर्किंग कैपिटल पर लगा टैक्स और ब्याज
    • ब्याज भुगतान से पहले लाभ और कुल बिक्री पर लगा कर
    • प्रति शेयर कमाई
    • अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन
  • उदाहरण: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, आदि।

मिनीरत्न:

  • मिनीरत्न श्रेणी- 1: मिनीरत्न कंपनी श्रेणी 1 का दर्जा प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि कंपनी ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ प्राप्त किया हो तथा तीन साल में एक बार कम से कम 30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया हो।
    • उदाहरण (श्रेणी- I): भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, आदि।
  • मिनीरत्न श्रेणी- 2 : CPSE द्वारा पिछले तीन साल से लगातार लाभ अर्जित किया हो और उसकी निवल संपत्ति सकारात्मक हो, वे मिनीरत्न- II का दर्जा देने के लिये पात्र हैं।
    • उदाहरण (श्रेणी- II): भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (ALIMCO ), भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड (BPCL), आदि।
  • मिनीरत्न  CPSE को सरकार के किसी भी ऋण पर ऋण / ब्याज भुगतान के पुनर्भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिये।
  • मिनीरत्न CPSE कंपनियाँ बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगे।

प्राक्कलन समिति

परिचय :

  • इसे प्रथम बार 1920 के दशक में ब्रिटिश काल के दौरान स्थापित किया गया था लेकिन स्वतंत्र भारत की पहली प्राक्कलन समिति वर्ष 1950 में स्थापित की गई थी।
  • यह समिति बजट में शामिल अनुमानों की जाँच करती है तथा सार्वजनिक व्यय में 'अर्थनीति' का सुझाव देती है।
  • संसद की अन्य वित्तीय समितियों में शामिल हैं - लोक लेखा समिति और सार्वजनिक उपक्रमों की समिति।

सदस्य:

  • इसमें 30 सदस्य होते हैं तथा ये सभी सदस्य लोकसभा से होने चाहिये।
  • सदस्यों को लोकसभा सदस्यों द्वारा प्रत्येक वर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों द्वारा एकल संक्रमणीय मत के माध्यम स्वीकृत किया जाता है, ताकि सभी दलों को इसमें उचित प्रतिनिधित्त्व मिल सके।
  • किसी मंत्री को प्राक्कलन समिति के सदस्य/अध्यक्ष के रूप निर्वाचित नहीं किया जा सकता है।
  • इसके अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सत्तारूढ़ दल या गठबंधन के सदस्यों में से की जाती है।

कार्य:

  •  यह समिति व्यय में मितव्ययिता और दक्षता की रिपोर्ट करने का प्रयास करती है। 
  • यह सुझाव देती है कि नीति या प्रशासनिक ढाँचे में क्या परिवर्तन किये जा सकते हैं तथा मितव्ययिता एवं दक्षता लाने के लिये किन वैकल्पिक नीतियों पर विचार किया जा सकता है।
    • इस समिति का कार्य वित्तीय वर्ष के दौरान निरंतर चलता रहता है तथा यह परीक्षण की प्रक्रिया के दौरान सदन को रिपोर्ट करती रहती है।
    • इसी कारण इस समिति को 'सतत् अर्थव्यवस्था समिति' भी कहा जाता है। 

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस