बीटी कपास से ट्रेट शुल्क हटाने की मांग उचित या अनुचित?

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में यह देखा गया कि कुछ बीज कंपनियों द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्रालय से BT तकनीक उपलब्ध कराने वालों को दी जाने वाली 49 रुपए प्रति पैकेट ट्रेट शुल्क (Trait Fee) को हटाने की मांग की जा रही है।
  • विशेषता मूल्य अथवा ट्रेट शुल्क बीटी जीन प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त कीट प्रतिरोधकता के लक्षण का अनुमानित मूल्य है। यह बीटी कपास के बीज की कीमतों का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।

ट्रेट शुल्क हटाने की मांग के पीछे तर्क

  • कपास की पिछली फसल ऋतु के दौरान पिंक बोलवॉर्म (Pink Bollworm-PBW) को प्रभावी रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सका, विशेष रूप से महाराष्ट्र के लगभग 700 गाँवों में जहाँ इस कीट को नियंत्रित करने के लिये कीटनाशक की उच्च मात्रा का प्रयोग किया गया था।
  • यह दर्शाता है कि PBW से कपास की फसलों की रक्षा में BT तकनीक प्रभावी सिद्ध नहीं हो रही है। इसलिये बीज फर्मों द्वारा यह मांग की जा रही है कि किसानों से वसूली जाने वाली रॉयल्टी यानी ट्रेट शुल्क को समाप्त कर दिया जाना चाहिये 

क्या ट्रेट शुल्क हटाने के लिये यह तर्क पर्याप्त है?

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार PBW प्रकोप कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित था और BT तकनीक अन्य बोलवॉर्म कीटों के विरुद्ध प्रभावी है। 
  • मुख्य रूप से अमेरिकी बोलवॉर्म के नियंत्रण के लिये अनुमोदित बीटी कपास के लक्षण अन्य विनाशकारी कीटों जैसे स्पॉटेड बोलवॉर्म, आर्मीवॉर्म और PBW को रोकने में भी सफल रहे।
  • वर्तमान में भी कुछ क्षेत्रों में PBW को छोड़कर इन कीटों पर नियंत्रण अच्छे तरीके से किया जा रहा है। चूँकि ट्रेट शुल्क सभी बोलवॉर्म्स के नियंत्रण के लिये है, न कि केवल PBW के लिये। इसलिये इसे हटाने का यह तर्क पर्याप्त नहीं है। 
  • PBW के लिये सुभेद्यता के पीछे एक मुख्य कारक किसानों द्वारा गैर-बीटी कपास का रोपण है जो कि इन कीटों को आश्रय उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त कुछ कंपनियों द्वारा खराब गुणवत्ता के गैर-बीटी बीज की आपूर्ति ने इस समस्या को और गंभीर किया है। 
  • इसके साथ ही अपने संकर बीजों में बीटी प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाली सीड फर्में भी इस प्रतिरोधकता के विकास के लिये ज़िम्मेदार हैं जो प्रौद्योगिकी के उचित उपयोग के लिये जवाबदेह नहीं हैं और सभी संबंधित नियामक और शीर्ष निदेशालयों के आदेशों का अनुपालन नहीं करती हैं। ICAR के अनुसार भी मुख्य बीटी फसल के आसपास प्रयुक्त 30% गैर-बीटी कपास के बीजों के नमूने निम्न गुणवत्ता के थे।  
  • वर्ष 2002-03 में BT तकनीकी के भारत में आगमन के साथ ही बोलवॉर्म के कारण कपास को होने वाले नुकसान को कम किया जा सका और भारत को अपने कपास उत्पादन को दुगुना करने में सफलता मिली है। कपास विकास निदेशालय (नागपुर) द्वारा जनवरी 2017 में प्रकाशित एक पत्र भी इस तथ्य की पुष्टि करता है।

निष्कर्ष 

  • BT प्रौद्योगिकी के सही समय पर भारत में आने के साथ ही भारत दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादक देशों के रूप में उभरने में सक्षम हो सका है।
  • यदि आधुनिक तकनीक तक किसानों की पहुँच को बाधित किया गया तो 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने के लक्ष्य तक पहुँचने में दिक्कतें आ सकती हैं। 
  • सरकार द्वारा मूल्य नियंत्रण और रॉयल्टी के निर्धारण जैसी विकृतियों के कारण प्रमुख वैश्विक प्रौद्योगिकी प्रदाताओं की समस्याएँ बढ़ जाती हैं। 
  • BT तकनीक पर ट्रेट शुल्क में कटौती या इसे हटाने से भारतीय किसानों की कोई सहायता नहीं हो पाएंगी। इसके विपरीत वे नए तकनीकी नवाचारों से वंचित रह जाएंगे जो कि उनकी उत्पादन लागत कम करने और कटाई पश्चात् पैदावार को बढ़ाने में मदद करती है। अत: इस संबंध में सरकार के किसी भी निर्णय को किसानों के दीर्घकालिक हितों के दृष्टिकोण से प्रेरित होना चाहिये

आगे की राह 

  • 2002 में बीटी प्रौद्योगिकी के परिचय के समय PBW एक प्रमुख कीट नहीं था। इसके अलावा प्रतिरोधकता का विकास एक प्राकृतिक प्रक्रिया और क्रमिक विकास का अंग है। यह सभी जीवित प्राणियों यथा-कीड़ों, रोगाणुओं आदि पर भी लागू होती है।
  • इसलिये PBW द्वारा प्रतिरोधकता विकसित कर लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कोई कीटनाशक अथवा जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद हमेशा के लिये प्रभावी नहीं हो सकता है। इसलिये यह भी ज़रूरी है कि नई प्रौद्योगिकी के उत्पादों पर निरंतर शोध और विकास जारी रहना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त PBW के प्रबंधन के लिये मौजूदा बीटी प्रौद्योगिकी के उपयोग के अलावा नियत एग्रोनॉमिक विधियों का उपयोग किया जा सकता है, जिसका गुजरात में सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया था। गुजरात में राज्य सरकार ने इस कीट के फैलाव को नियंत्रित करने में सफलता पाई थी। कपास के आने वाले सीज़न में गुजरात राज्य के अनुभव का अन्य राज्यों में प्रयोग किया जाना चाहिये। 
  • कीटों को आश्रय देने वाली किस्मों की समस्या के समाधान के लिये बीटी बीज के बैग के साथ ही गैर-बीटी बीज की भी आपूर्ति की जा सकती है।

बीटी क्या है ? 

  • बीटी कपास (Bt-Cotton) को मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणु बैसीलस थूरीनजिएंसिस से जीन निकालकर निर्मित किया गया है। इस जीन को ‘Cry 1AC’ नाम दिया गया है।
  • यह कीटों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है जिससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती  है। बीटी की कुछ नस्लें ऐसे प्रोटीन का निर्माण करती हैं जो कुछ विशिष्ट कीटों को मारने में सहायक है।