दिल्ली की जल गुणवत्ता में सुधार

प्रीलिम्स के लिये:

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, घुलित ऑक्सीजन 

मेन्स के लिये:

भारत में जल प्रदूषण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (Delhi Pollution Control Committee-DPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

  • दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने यमुना नदी के जल से नौ नमूने और नालियों के जल से 20 नमूने एकत्रित किये और विभिन्न मापदंडों के आधार पर वर्ष 2019 के नमूनों से इनकी तुलना की।
    • यमुना के नौ स्थानों से एकत्रित जल के नमूनों में से सिर्फ एक स्थान पर जल की गुणवत्ता जल के मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई।
    • नौ स्थानों में से पाँच स्थानों पर बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biological Oxygen Demand-BOD) में 18-33% की कमी आई है।

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड

(Biological Oxygen Demand-BOD):

  • ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है। जहाँ उच्च BOD है वहाँ DO निम्न होगा। 
  • जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है। परंतु BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है साथ ही यह बहुत लंबी प्रक्रिया है। इसलिये BOD को प्रदूषण मापन में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
  • गौरतलब है कि उच्च स्तर के BOD का मतलब पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा को विघटित करने हेतु अत्यधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में नौ स्थानों में से चार स्थानों पर घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO) की मात्रा शून्य थी, जबकि वर्तमान में DO स्तर 2.3-4.8 mg/l है।

Pollution-level

घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO):

  • यह जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन के लिये आवश्यक होती है। 
  • जब जल में DO की मात्रा 8.0mg/l से कम हो जाती है तो ऐसे जल को संदूषित (Contaminated) कहा जाता है। जब यह मात्रा 4.0 mg/l से कम हो जाती है तो इसे अत्यधिक प्रदूषित (Highly Polluted) कहा जाता है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2020 में यमुना में जल का औसत प्रवाह 3900 क्यूसेक है, जबकि अप्रैल 2019 में जल का औसत प्रवाह 1000 क्यूसेक था।

जल प्रदूषण: 

  • जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक अभिलक्षणों में प्राकृतिक एवं मानव-जनित प्रक्रियाओं द्वारा होने वाला ऐसा अवनयन जिससे कि वह मानव एवं अन्य जैविक समुदायों के लिये अनुपयुक्त हो जाता है, जल प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण के कारण:

  • कृषि का अपशिष्ट व जानवरों का नदी/तालाब को गंदा करना।
  • वनोन्मूलन ( इससे मिट्टी व अन्य पदार्थों नदी तंत्र में पहुँचकर उसे प्रदूषित करते हैं।)
  • अस्थियाँ व लाश को नदी में बहाना 
  • घरों का कूड़ा-करकट नदी तंत्र में बहाना।
  • विद्युत उर्जा केंद्र पर ठंडे पानी का प्रयोग एवं जल-स्रोत में उच्च ताप युक्त पानी का निकास ।
  • खनिज उद्योग में पानी का प्रयोग एवं अयस्क युक्त पानी को छोड़ना।
  • तेल अधिप्लाव (Oil Spillage)-रेडियोएक्टिव रसायनों का जलीय तंत्र तक पहुँचना।

जल प्रदूषण के प्रभाव:

  • जल के बहुत अधिक दूषित होने के कारण जलीय जंतु जैसे-मछलियाँ जल्दी मर जाती हैं।
  • जल प्रदूषण के कारण पर्यावरण-चक्र में परिवर्तन हो सकता है।
  • सेप्टिक टैंकों (Septic Tank) का निर्माण सही ढंग से न किये जाने के कारण भू-जल का स्रोत दूषित हो जाता है। दूषित भू-जल के कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  • इसके कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह:

  • जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है, जल प्रदूषण को कम करने एवं भू-जल स्तर को बढ़ाने संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय अतिशीघ्र लिये जाने चाहिये। जलभराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिये, साथ ही सीवेज के जल के पुनर्चक्रण के लिये अवसंरचना का विकास करने की आवश्यकता है जिससे ऐसे जल का पुनः उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू