कोर सेक्टर आउटपुट
चर्चा में क्यों?
फरवरी, 2021 में 3.8% की गिरावट के बाद मार्च 2021 (32 महीनों में उच्चतम) में आठ प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन यह वृद्धि काफी हद तक मार्च 2020 से ‘बेस इफेक्ट’ के कारण मानी जा रही है।
- वर्ष 2020-21 (अप्रैल-मार्च) के दौरान आठ क्षेत्रों के उत्पादन में 7% की गिरावट आई है, जबकि वर्ष 2019-20 में इसमें 0.4% की सकारात्मक वृद्धि हुई थी।
प्रमुख बिंदु:
आठ कोर क्षेत्र:
- इनमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल वस्तुओं के कुल वेटेज का 40.27% शामिल है।
- अपने वेटेज के घटते क्रम में आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्र: रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> स्टील> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।
बेस इफेक्ट:
- ‘बेस इफेक्ट’ का आशय किसी दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर, तुलना के आधार या संदर्भ के प्रभाव से होता है।
- उदाहरण के लिये, ‘बेस इफेक्ट’ मुद्रास्फीति दर या आर्थिक विकास दर जैसे आँकड़ों के अति एवं कम विस्तार के कारण हो सकता है, यह प्रायः तब होता है जब तुलना के लिये चुना गया बिंदु मौजूदा अवधि या समग्र डेटा के सापेक्ष असामान्य रूप से उच्च या निम्न मूल्य प्रदर्शित करता है।
- मार्च 2021 में प्राकृतिक गैस, स्टील, सीमेंट और बिजली का उत्पादन 12.3%, 23%, 32.5% और 21.6% बढ़ा जो कि तुलनात्मक रूप से मार्च 2020 में क्रमशः (-) 15.1%, (-) 21.9%, (-) 25.1% और (-8.2) था।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP):
- IIP एक संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में बदलाव को मापता है।
- यह सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
- यह एक समग्र संकेतक है, जो कि निम्न रूप से वर्गीकृत किये गए उद्योग समूहों की वृद्धि दर को मापता है:
- व्यापक क्षेत्र, अर्थात्-खनन, विनिर्माण और बिजली।
- बेसिक गुड्स, कैपिटल गुड्स और इंटरमीडिएट गुड्स जैसे उपयोग आधारित क्षेत्र।
- IIP के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।
- IIP का महत्त्व:
- इसका उपयोग नीति निर्माण के लिये वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- IIP त्रैमासिक और अग्रिम जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अनुमानों की गणना के लिये बेहद प्रासंगिक है।