न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली, भारत के मुख्य न्यायाधीश।

मेन्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली का विकास और इसकी आलोचना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी को मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है।

कॉलेजियम प्रणाली और इसका विकास:

  • यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित न होकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
  • कॉलेजियम प्रणाली का विकास:
    • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): 
      • इसने यह निर्धारित किया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की "प्रधानता" को "ठोस कारणों" से अस्वीकार किया जा सकता है।
      • इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
    • दूसरा न्यायाधीश मामला (1993):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की कि "परामर्श" का अर्थ वास्तव में "सहमति" है। 
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
    • तीसरा न्यायाधीश मामला (1998):
      • राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेज़िडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।

कॉलेजियम प्रणाली का प्रमुख:

  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI द्वारा की जाती है और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • एक उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
    • उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिये अनुशंसित नाम CJI और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम के अनुमोदन के बाद ही सरकार तक पहुँचते हैं।
  • उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से ही की जाती है और इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद की प्रक्रिया में ही होती है।

विभिन्न न्यायिक नियुक्तियों के लिये निर्धारित प्रक्रिया:

  • भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI):
    • CJI और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • अगले CJI के संदर्भ में निवर्तमान CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करता है।
    • हालाँकि वर्ष 1970 के दशक के अतिलंघन विवाद के बाद से व्यावहारिक रूप से इसके लिये वरिष्ठता के आधार का पालन किया जाता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ::
    • सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के लिये नामों के चयन का प्रस्ताव CJI द्वारा शुरू किया जाता है।
    • CJI कॉलेजियम के बाकी सदस्यों के साथ-साथ उस उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश से भी परामर्श करता है, जिससे न्यायाधीश पद के लिये अनुशंसित व्यक्ति संबंधित होता है।   
    • निर्धारित प्रक्रिया के तहत परामर्शदाताओं को लिखित रूप में अपनी राय दर्ज करानी होती है और इसे फाइल का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
    • इसके पश्चात् कॉलेजियम केंद्रीय कानून मंत्री को अपनी सिफारिश भेजता है, जिसके माध्यम से  इसे राष्ट्रपति को सलाह देने हेतु प्रधानमंत्री को भेजा जाता है।
  • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश के लिये:
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस आधार पर की जाती है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य से न होकर किसी अन्य राज्य से होगा।
    • यद्यपि उनके चयन का निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है।  
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है। 
    • हालाँकि इसके लिये प्रस्ताव को संबंधित उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों से परामर्श के बाद पेश किया जाता है।
    • यह सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो इस प्रस्ताव को केंद्रीय कानून मंत्री को भेजने के लिये राज्यपाल को सलाह देता है।
  • कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना:
    • स्पष्टता एवं पारदर्शिता की कमी।
    • भाई-भतीजावाद जैसी विसंगतियों की संभावना।
    • सार्वजनिक विवादों में उलझना।
    • कई प्रतिभाशाली कनिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की अनदेखी।
  • नियुक्ति प्रणाली में सुधार हेतु किये गए प्रयास:
    • इसे 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (99वें संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से) द्वारा प्रतिस्थापित करने के प्रयास में वर्ष 2015 में न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा है।

आगे की राह 

  • कार्यपालिका और न्यायपालिका को शामिल करते हुए रिक्तियों को भरना एक सतत् और सहयोगी प्रक्रिया है और इसके लिये कोई समय-सीमा नहीं हो सकती है। हालांँकि यह एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिये न्यायिक प्रधानता की गारंटी देता है लेकिन न्यायिक विशिष्टता की नहीं।
  • इसे स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिये, विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिये, पेशेवर क्षमता और अखंडता का प्रदर्शन करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस