चागोस द्वीप विवाद के समाधान में भारत की मदद चाहता है इंग्लैंड

सन्दर्भ

ब्रिटेन के विदेश सचिव ने भारत से उम्मीद जताई है कि वह हिंद महासागर में मौजूद ‘चागोस द्वीपसमूह’ को लेकर अमेरिका इंग्लैंड और मॉरीशस के बीच जारी विवाद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा| विदित हो कि पिछले साल मॉरीशस ने इस मुद्दे को अंतराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने की धमकी दी थी| 

क्यों है विवाद?

  • वर्ष 1965 में मॉरीशस को आज़ाद करने के बाद ब्रिटेन ने हिंद महासागर में मौजूद चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग कर दिया था| हालाँकि, मॉरीशस आज भी इस द्वीप पर अपना अधिकार जताता है|
  • 1966 में अमेरिका ने ब्रिटेन से एक समझौता किया था, जिसके तहत अगले 50 वर्षो तक यानी 2016 तक उसे निर्बाध रूप से डिएगो गार्सिया पर सैन्य गतिविधियों के संचालन की छूट मिल गई थी| इस समझौते के साथ ही अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ मिलकर इस द्वीपसमूह पर वायु और नौसैनिक बेड़ा स्थापित कर दिया| ज्ञात हो कि डिएगो गार्सिया चागोस द्वीपसमूह का ही एक हिस्सा है|
  • वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने समुद्री नियमों के तहत इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि वर्ष 2010 में द्वीपसमूह के आसपास ब्रिटेन द्वारा बनाया गया समुद्री संरक्षित क्षेत्र (जिसमें डिएगो गार्सिया सम्मिलित नहीं है) इस अभिसमय के तहत ब्रिटेन के दायित्वों से तर्कसंगत नहीं है|

चागोस द्वीपसमूह का भारत के लिये महत्त्व

  • हिंद महासागर के बीचोंबीच स्थित डिएगो गार्सिया द्वीप का रणनीतिक महत्त्व इसलिये है क्योंकि यह द्वीप अपनी भौगोलिक स्थिति और चक्रवातीय क्षेत्र से बाहर है| विदित हो कि अमेरिका ने डिएगो गार्सिया स्थित अपने सैन्य बेड़ों का इस्तेमाल इराक और अफगानिस्तान के युद्ध में बहुतायत से किया था|
  • भारत के लिये डिएगो गार्सिया में अमेरिकी फौजों की मौजूदगी तब खासा सिरदर्द साबित हुई थी, जब 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान दुनिया में शीतयुद्ध का माहौल बना हुआ था| उस दौर में अमेरिका अपने हितों के मद्देनज़र खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में आ गया था| इसी दौर में हमारे देश के रणनीतिकारों में यह राय बनी थी कि डिएगो गार्सिया में अमेरिकी सैन्य बेड़ों की उपस्थिति भारत से लिये भारी खतरा है| 
  • ब्रिटेन का कहना है कि चागोस द्वीपसमूह का मुद्दा वहाँ रहने वाले लोगों के अनुसार तय होना चाहिये न कि मॉरीशस या किसी अन्य देश की इच्छा के अनुसार, वहीं इस मामले में भारत का रुख यह है कि इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ले जाने का निर्णय मॉरीशस सरकार को करना होगा और ब्रिटेन इसे सकारात्मक कदम मानता है|